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कुदरत के बेहद करीब हैं देश के ये शीर्ष तकनीकी संस्थान, वन्य जीवों को भी मिला ठिकाना

आईआईटी मंडी के आसपास की हरियाली को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण किया गया है। फोटो- आईआईटी मंडी

आईआईटी मंडी के आसपास की हरियाली को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण किया गया है। फोटो- आईआईटी मंडी

  • देश के शीर्ष तकनीक संस्थान आईआईटी के कई कैंपस में जंगली जीवों की कई प्रजातियां रहती हैं।
  • नए आईआईटी संस्थानों का निर्माण वन्य जीवों के संरक्षण को ध्यान में रखकर हो रहा है।
  • इन संस्थानों में पढ़ाई के साथ-साथ कई दुर्लभ जीवों का संरक्षण किया जा रहा है।

क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ( आईआईटी ) बॉम्बे के परिसर में कौन रहता है? बड़े-बड़े सपनों के साथ दूर दराज से आये छात्र-छात्राएं, उनके शिक्षक और प्रशासन का काम संभाल रहे कर्मचारी। यही न! लेकिन अगर आपसे यह कहा जाए कि इनसब के साथ वन्य जीव भी रहते हैं तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी!

जी हां। आईआईटी बॉम्बे का यह परिसर शिक्षा के साथ-साथ वन्य जीवों के संरक्षण के मामले में भी अव्वल है? यहाँ के शिक्षक, छात्र और कर्मचारी सब लोग मिलकर प्रयास करते हैं कि इनके कैंपस में मनुष्य और अन्य जीवों का सहअस्तित्व बना रहे।

इसी का नतीजा है कि इस  परिसर में बत्तख, सैंडपाइपर्स सहित दर्जनों प्रवासी पक्षी, तरह-तरह के गिरगिट और रीसस मैकेकी प्रजाति के बंदर देखने को मिलते हैं। एक अनुमान के मुताबिक इससे सटे पवई तालाब के दलदल में तकरीबन 40 मगरमच्छों का बसेरा है। इतना ही नहीं, यहां पास के संरक्षित वन से कभी-कभार तेंदुआ भी चक्कर लगा जाता है।

मुंबई स्थित संजय गांधी नेशनल पार्क से सटे आईआईटी कैंपस के आसपास का वातावरण जंगली जीवों के लिए मुफीद है। यह चारो तरफ से पहाड़ियों से घिरा है और इसके एक तरफ विहार और दूसरी तरफ पवई तालाब का किनारा लगता है।

मजेदार यह है कि यह कहानी सिर्फ आईआईटी बॉम्बे की नहीं है। देश में ऐसी कई शिक्षण संस्थान हैं जहां के कैंपस में जंगली जीव भी उतने ही सहज जीवन जीते हैं जितने की वहाँ के पठन-पाठन में व्यस्त लोग।

संजय गांधी नेशनल पार्क से आया तेंदुआ आईआईटी बांबे कैंपस में लॉकडाउन के दौरान देखा गया। फोटो- महेश शिंदे विकिमीडिया कॉमन्स
संजय गांधी नेशनल पार्क से आया तेंदुआ आईआईटी बांबे कैंपस में लॉकडाउन के दौरान देखा गया। फोटो – महेश शिंदे विकिमीडिया कॉमन्स

इसी तरह, आईआईटी मद्रास के प्रांगण में काले हिरण की अच्छी-खासी आबादी रहती है। आईआईटी मंडी के बीच से बहने वाले नाले में हिमालय की मछलियों की प्रजातियां रहती हैं। बेंगलुरु शहर के बीच स्थित भारतीय  विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) में चमगादड़ों की कई प्रजातियों की अच्छी-खासी मौजूदगी है।

आईआईएससी कैंपस के बारे में बात करते हुए चमगादड़ों का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ रोहित चक्रवर्ती ने पाया कि यहां रहने वाले अधिकतर चमगादड़ सामान्य प्रजाति के ही हैं। उन्हें इस परिसर में मौजूद हरियाली, झाड़ियां, पुरानी इमारतों और खंडहरों की वजह से रहने और खाने की दिक्कत नहीं आती।

आंध्रप्रदेश स्थित ऋषि वैली एजुकेशन सेंटर का भी वन्य जीवों के साथ रहने का लंबा इतिहास रहा है। यह सेंटर कृष्णकुमारी फाउंडेशन के द्वारा चलाया जाता है।

यही नहीं, कई संस्थाएं अपना ऐसा कैंपस बनाने की तैयारी में है कि वहाँ लोगों के साथ अन्य जीवों का भी सहज जीवन संभव हो पाए।  आईआईटी के नए कैंपस जैसे धारवाड़, पालक्काड, जम्मू, गोवा और तिरुपति अपने परिसर को कुछ इस तरह बनाना चाहते हैं जहां वन्य जीवों के रहने के लिए भी अनुकूल वातावरण हो।

देश के इन शिक्षण संस्थानों में न केवल वन्य जीवों को रहने का माहौल प्रदान किया जाता है बल्कि इनके संरक्षण के लिए कई कोशिशें की जाती रही हैं।

ताकि बची रहे जैव विविधता

चेन्नई स्थित केयर अर्थ ट्रस्ट संस्थाओं के साथ मिलकर उनके कैंपस के लिए इको मैनेजमेंट प्लान बनाने का काम करता है। इसके मैनेजिंग ट्रस्टी के एन मुथु कार्थिक बताते हैं कि परिसर में वन्यजीवों के प्रबंधन के लिए प्रोटोकॉल का पालन करना जरुरी है ताकि वन्यजीव और मानव का एक सामंजस्यपूर्ण जीवन संभव हो सके।

वन्य जीवों के सरंक्षण के बाबत देश का नेशनल वाइल्डलाइफ एक्शन प्लान (2017-2031) भी सरंक्षित क्षेत्र के विकास की बात तो करता ही है। इसके साथ ही यह भी कहता है कि सरंक्षण के प्रयास इन संरक्षित क्षेत्र के बाहर भी होना चाहिए। वहाँ भी जहां मनुष्यों की रहनवारी अधिक हो जैसे शहर इत्यादि।

उदाहरण के लिए ऋषि वैली एजुकेशन सेंटर को ही ले लिया जाए।  कृष्णमूर्ति फाउंडेशन द्वारा आंध्र प्रदेश के ग्रामीण अंचल में चलाया जाने वाले इस शिक्षण संस्थान ने शुरू से ही अपने परिसर में वनस्पतियों की अच्छी देखभाल पर ध्यान दिया है।  इसके लिए खरपतवार वाले पौधों को बीच-बीच में हटाया  जाता है। इसके अलावा, यहां मवेशियों को चरने से भी रोका जाता है। इन प्रयासों से यह संस्थान सांप के एक ख़ास प्रजाति को सरंक्षित करता है।

कार्थिक कहते हैं, “हम जिस भी आईआईटी कैंपस के साथ काम कर रहे हैं, हमारी कोशिश है कि वहां ऐसी योजना के साथ काम हो कि वन्य जीवन भी परिसर में साथ रह सके और आसपास के जंगली इलाकों से इसका सामंजस्य बन सके। कैंपस के निर्माण के बाद से यहां इंसानी आवाजाही बढ़ती है और जैवविविधता को नुकसान से बचाने के लिए इसकी सतत निगरानी की जानी चाहिए।”

वेंकटेशन ने हिमाचल प्रदेश स्थित आईआईटी मंडी के बारे में बताते हुए कहा कि वहां की इमारतों को प्राकृतिक रूप से समावेशी बनाया गया है। यहां पर्यावरण की योजना के मुताबिक ढांचे को तैयार किया गया है। यह परिसर विपाशा नदी के एक उथले इलाके पर बसा हुआ है। परिसर के भीतर से एक नाला भी बहता है जो कि उहल नदी से जा मिलता है। नाला और उहल नदी हिमालय के मछलियों के लिए महत्वपूर्ण रहवास है। केयर अर्थ के मुताबिक स्नेट्राउट्स मछली की दो प्रजाति इस नाले में रहती है। वेंकटेशन का कहना है कि कैंपस के निर्माण के समय इन नदी और नाले को डिजाइन में शामिल किया गया है। इसके लिए स्थानीय जानकारों को प्रक्रिया में शामिल किया गया।

आईआईटी मंडी के संस्थापक निदेशक टिमोथी गोंसाल्वेस अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उन्होंने मोंगाबे से शुरुआती दिनों का अनुभव साझा किया। वह कहते हैं, “कैंपस की जगह देखने जब पहली बार गया तो उहल नदी घाटी का नजारा अद्भुत था। इसे तब वर्ष 2010 में तैयार होना था। मैंने उसी वक्त सोच लिया था कि यहां एक वैश्विक स्तर का संस्थान बनेगा वह भी बिना प्राकृतिक माहौल को छेड़े हुए। हम युवा पीढ़ी को भविष्य का भारत बनाने की सीख दे रहे हैं और हमें जलवायु परिवर्तन, महामारी को रोकने के लिए प्रकृति के करीब रहना होगा।”

पुराने कैंपस में हो रहा बदलाव

तमिलनाडु के चेन्नई स्थित आईआईटी मद्रास को गिंडी नेशनल पार्क के एक हिस्से पर बनाया गया है। काले हिरण के संरक्षण में इस परिसर ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।  यह परिसर इस प्रजाति का मूल रहवास है।

वन्य जीव के लिए बने परिसर के क्लब प्रकृति की वेबसाइट कहती है कि वर्ष 2003 में काले हिरण की संख्या 1980 के सैकड़ों की संख्या के मुकाबले घटकर 20 रह गई थी। इसकी वजहों में तेज गाड़ियां, शहरीकरण की वजह से खुले जगहों की बढ़ता जाना और परिसर में आवारा कुत्तों की भरमार प्रमुख हैं। गाड़ियों और आवारा कुत्तों की वजह से चित्तीदार हिरण या चीतल की संख्या में काफी कमी आई थी।

आईआईटी मद्रास के प्रांगण में काले हिरण की अच्छी-खासी आबादी रहती है। फोटो- श्रीनिवासचंद्रू विकिमीडिया कॉमन्स
आईआईटी मद्रास के प्रांगण में काले हिरण की अच्छी-खासी आबादी रहती है। फोटो– श्रीनिवासचंद्रू विकिमीडिया कॉमन्स

संस्थान ने केयर अर्थ के माध्यम से वर्ष 2006 में जैव विविधता का आकलन किया। पारिस्थितिकी विज्ञानशास्री (इकोलॉजिस्ट) रंजीत डेनियल्स की अगुआई में यहां एक कार्यक्रम चलाया गया जिससे स्थिति में सुधार हुआ। उन्होंने इस कार्यक्रम के तहत घास से भरे मैदान वाले इलाके में नया निर्माण होने से रोका और खरपतवार वाली प्रजाति के वनस्पतियों को परिसर से हटाया। दो साल में ही हिरण की संख्या 13 से 21 तक पहुंच गई।

इन सब प्रयासों का हवाला देते हुए टिमोथी गोंसाल्वेस कहते हैं कि यह स्पष्ट हो चुका है कि न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को प्रकृति के साथ सहअस्तित्व को स्वीकारना होगा, तभी हम जलवायु परिवर्तन, महामारी जैसी समस्या से निपट सकते हैं। कैम्पस में हम युवा पीढ़ी को विकास के साथ साथ पर्यावरण सरंक्षण का महत्व समझाना चाहते हैं ताकि वे लोग इसे सीखें और दूसरों के लिए उदाहरण बन सकें।

बैनर तस्वीर- आईआईटी मंडी के आसपास की हरियाली को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण किया गया है। फोटो- आईआईटी मंडी

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