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[वीडियो] भारत के परमाणु सपनों को उड़ान देने वाले क्षेत्र की हृदय विदारक दास्तान

जादूगौड़ा की पहाड़ियों में वर्ष 1967 से ही खनन का काम होता आ रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि लोगों का जीवन स्तर सुधरने के बजाए यहां के लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो गए हैं। फोटो- - सुभ्रजीत सेन

जादूगौड़ा की पहाड़ियों में वर्ष 1967 से ही खनन का काम होता आ रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि लोगों का जीवन स्तर सुधरने के बजाए यहां के लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो गए हैं। फोटो- - सुभ्रजीत सेन

  • भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए यूरेनियम काफी महत्वपूर्ण है। देश के कुल सात राज्यों में यूरेनियम के भंडार मौजूद हैं पर अभी इसका खनन झारखंड और आंध्र प्रदेश में ही होता है।
  • झारखंड के जादूगोड़ा क्षेत्र में भारत का सबसे पुराना यूरेनियम खान है। यहां के लोग अपनी जिंदगी और आसपास के वातावरण पर यूरेनियम खनन के नकारात्मक प्रभाव की कहानी बयान करते नहीं थकते। पर सरकार इसे नहीं मानती।
  • भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए भारत सरकार अन्य जगहों पर भी यूरेनियम खनन की शुरुआत करने की कोशिश में है।

जादूगोड़ा, झारखंड। सोलह साल की अनामिका ओराम का एक मासूम सा सपना है कि वो भी अन्य बच्चों की तरह पढ़े-लिखे। पर इस बच्ची का यह छोटा सा सपना भी पूरा नहीं हो सकता। वजह है इसके चेहरे का ट्यूमर। झारखंड के नरवा पहर यूरेनियम खान से करीब एक किलोमीटर दूर बसे डूंगरीडीह गांव की रहने वाली इस लड़की के चेहरे पर एक ट्यूमर है जिसकी वजह से लगातार इसे एक ख़ास तरह के सर दर्द से जूझते रहना होता है।

इसी तरह 18 साल के संजय गोपे हैं जिनकी जिंदगी व्हीलचेयर पर सिमट कर रह गई है। बीस साल के हराधन गोपे चल-फिर सकते हैं, पढ़ाई-लिखाई कर सकते हैं पर उनका सिर उनके शरीर के अनुपात में काफी छोटा है।

झारखंड के जादूगोड़ा यूरेनियम खदान से  सटे बांगो गांव में ऐसे कई लोग हैं जिनका जीवन यूरेनियम खनन की दर्दनाक दास्तान है।

भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए यूरेनियम काफी महत्वपूर्ण है। बीते अगस्त तक भारत की नाभिकीय उर्जा क्षमता 6780 मेगावाट थी  जिसको बढ़ाकर 2030 तक 40,000 मेगावाट करने का प्लान है।

देश में यूरेनियम अयस्क के खनन और प्रसंस्करण की जिम्मेदारी परमाणु ऊर्जा विभाग के अधीन आने वाले यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) की है। इसके अनुसार जादूगोड़ा में खनन की शुरुआत 1967 में हुई और इस तरह यह देश का पहला यूरेनियम खदान बना।

जादूगोड़ा के इर्द-गिर्द, पच्चीस किलोमीटर के दायरे में, कई और यूरेनियम के भंडार हैं। जैसे भाटिन, नरवापहाड़, तुरामडीह, बागजाता, मोहुलडीह इत्यादि। यूसीआईएल की मानें तो जादूगोड़ा खदान और वहाँ खनन करने से देश में यूरेनियम खनन की क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। पर स्थानीय लोग इसको ऐसे नहीं देखते। इनको लगता है कि यूरेनियम खनन ने इनके जीवन और इनकी जमीन को ऐसे गहरे प्रभावित किया है जहां से वापसी शायद संभव नहीं है।

गांव वालों की शिकायत है कि जादूगोड़ा के इर्द-गिर्द की पहाड़ियों पर खुदाई कर टेलिंग पॉन्ड बनाए गए हैं जहां यूरेनियम खनन से निकलने वाले रेडियोएक्टिव मलबे का निष्पादन होता है। गांव वालों का मानना है कि इन टेलिंग पॉन्ड की वजह से आसपास के भूजल और नदी भी प्रदूषित हुई है।

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डूंगरीडीह गांव की रहने वाली नमिता सोरेन कहती हैं कि यह रेडियोएक्टिव कचरा इनके रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हो गया है।

“यहां बच्चे विकलांग पैदा होते हैं। बड़ी संख्या में लोग कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं। लेकिन हमारा दुःख यहीं ख़त्म नहीं होता,” सोरेन कहती हैं। इनकी अपनी कहानी यह है कि तीन बार गर्भपात होने के बाद इन्हें एक बच्चा हुआ और वो भी विकलांग।

झारखंडी आर्गेनाईजेशन अगेंस्ट रेडिएशन (जेओएआर) के सह संस्थापक घनश्याम बिरुली इस क्षेत्र की कहानी को कुछ ऐसे बयान करते हैं। पहले गांव वाले मानते थे कि आस-पास के कुछ चुनिन्दा वनों पर बुरी आत्मा का साया है। ऐसी मान्यता हो चली थी कि अगर कोई महिला गलती से भी उस क्षेत्र से गुजरी तो उसपर उस बुरी आत्मा का साया पड़ जायेगा। अगर महिला गर्भवती है तो उसका गर्भपात हो जायेगा। पुरुषों को भी ढेर सारी परेशानी होने लगेगी जैसे चक्कर आना। यह सब वही इलाके हैं जहां टेलिंग पॉण्ड बनाए गए हैं।

समय के साथ लोगों को एहसास हुआ कि उनकी तकलीफें किसी बुरी आत्मा की वजह से नहीं है बल्कि यूरेनियम खनन और इस टेलिंग पॉण्ड की वजह से हैं।

टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस ने 2003 में एक अध्ययन किया था। इस अध्ययन के हवाले से इस संस्था ने बताया कि 1998 से 2003 के बीच इस क्षेत्र की करीब 18 प्रतिशत महिलाओं को या तो गर्भपात हुआ या मृत बच्चे पैदा हुए। इस अध्ययन में  करीब 30 प्रतिशत महिलाओं ने गर्भधारण में किसी न किसी तरह की मुश्किल आने का जिक्र किया। इस क्षेत्र की अधिकतर महिलाओं ने थकान और कमजोरी की शिकायत की।

यूसीआईएल के खनन प्रोजेक्ट के विरोध करने की वजह पूछने पर बिरुली कहते हैं कि खनन शुरू होने के पहले यहां ऐसी भयावह स्थिति नहीं थी। विकलांग बच्चों का जन्म, गर्भपात, गर्भधारण में समस्या, कैंसर और टीबी जैसी बीमारी की बहुतायत। यह सब इसी खनन की देन है। ऐसा नहीं है कि यहां रहने वाले लोग पहले बीमार नहीं पड़ते थे यहां भी वैसे ही रोग होते थे जैसे अन्य जगहों पर हुआ करते हैं। ये रोग सामान्य इलाज या घरेलु दवाईयों से ठीक हो जाते थे। पर आज ऐसी स्थिति बन गई है कि डॉक्टर न बीमारी का अनुमान लगा पाते हैं और इलाज तो खैर दूर की बात है। यह सब यूरेनियम खनन शुरू होने के बाद हुआ।

भारत के कई राज्यों में यूरेनियम के भंडार पाए जाते हैं जैसे राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, मेघालय, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश इत्यादि। वर्तमान में झारखंड और आंध्र प्रदेश में ही यूरेनियम का खनन होता है। आने वाले दशक में (2031-32 तक) भारत यूरेनियम उत्पादन को लेकर आत्मनिर्भर होना चाहता है। वर्तमान उत्पादन क्षमता में दस गुणा बढ़ोत्तरी करने का प्लान है। इसके लिए वर्तमान में मौजूद खदान की क्षमता बढ़ानी है और नए खदानों में भी खनन की शुरुआत करनी होगी।

तबतक के लिए भारत ने उज्बेकिस्तान से 1,100 मेट्रिक टन यूरेनियम अयस्क के आयात के लिए समझौता किया है। इसी तरह के समझौते कई अन्य देशों से भी किये गए हैं जिसमें कनाडा, कज़ाकिस्तान और फ़्रांस जैसे देश शामिल हैं।

यूरेनियम खदान से एक किलोमीटर दूर रहने वाले अनामिका ओराम और उनकी मां नागी ओराम गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं। फोटो- सुभ्रजीत सेन
यूरेनियम खदान से एक किलोमीटर दूर रहने वाले अनामिका ओराम और उनकी मां नागी ओराम गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं। फोटो- सुभ्रजीत सेन

सरकार या राजनीतिज्ञों से कोई मदद नहीं

बिरुली का मानना है कि सभी राजनितिक दल इस मामले से अवगत हैं पर धरातल पर अबतक इसका कोई फायदा नहीं मिला है। यहां से सांसद या विधायक कोई भी बने पर कोई इस मुद्दे को संसद या विधानसभा में नहीं उठाता। ऐसा कहते हुए बिरुली उम्मीद जताते हैं कि अगर रेडियेशन के बुरे प्रभाव से जुड़े सवाल संसद या विधानसभा में उठाये जाते तो सरकार जरुर कोई कदम उठाती।

पर हाल ही में इस मुद्दे को संसद में आवाज दी गई थी। मार्च 2020 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता राजीव प्रताप रूडी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लोकसभा में इस मुद्दे पर सवाल पूछा। भाजपा नेता ने पूछा कि क्या सरकार के पास ऐसी कोई खबर है कि देश में कई रेडियोएक्टिव स्लरी का खुलेआम भंडारण किया जा रहा है? ऐसा करने से यूरेनियम खानों के आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का स्वास्थ प्रभावित हो रहा है?

प्रधानमंत्री कार्यालय से सम्बंधित राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने ऐसे किसी भी बुरे प्रभाव को सिरे से ख़ारिज करते हुए कहा कि पूरी व्यवस्था चाक-चौबंद है।

इन्होने आगे बताया कि देश में यूरेनियम खनन को संचालित करने के लिए कई नियम कानून है और इन नियमों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए परमाणु उर्जा नियामक परिषद (एईआरबी) वर्ष में कम से कम एक बार यूरेनियम खानों का निरीक्षण करता है। राज्यमंत्री ने आगे कहा, “इन नियामक निरीक्षण के अतिरिक्त, केस-टू-केस आधार पर विशेष निरीक्षण भी किये जाते हैं।”

पर बिरुली इससे सहमत नहीं हैं। इनका मानना है कि विस्थापन अपनेआप में एक त्रासदी है पर रेडियेशन से प्रभावित क्षेत्र से लोगों को कहीं सुरक्षित जगह पर बसाना ही इस समस्या का स्थायी समाधान है।

स्थानीय जीविका के साधनों पर यूरेनियम का प्रभाव

ग्रामीणों का मानना है कि यूरेनियम के खनन के लिए पहले लोगों को विस्थापन झेलना पड़ा। वन की कटाई ने उनसे उनकी जमीन और आजीविका का स्रोत भी छीन लिया। इस आफत का सिलसिला यहीं ख़त्म नहीं हुआ। अब ये लोग कई लाईलाज रोग झेलने के लिए अभिशप्त हैं।

वैसे तो सत्तासीन लोग और खनन करने वाली कंपनी, दोनों स्थानीय वातावरण और आजीविका पर होने वाले किसी बुरे प्रभाव से साफ़ इनकार करते रहे हैं। पर स्थानीय लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में तेंदू पत्ता के खराब होती गुणवत्ता की वजह से बीड़ी बनाने का इनका व्यवसाय भी अब खतरे में आ गया है।

गांववालों को डर है कि भूजल के प्रदूषण की वजह से आसपास के पेड़-पौधे भी प्रभावित होने लगे हैं। इनका कहना है कि खनन क्षेत्र के विस्तार होने की वजह से इनके आस्था से जुड़े वृक्ष भी काटे जा रहे हैं।

जेओएआर से जुड़े फोटो जर्नलिस्ट आशीष बिरुली कहते हैं कि खनन कंपनी लोगों के अनुभव को ऐसे ख़ारिज नहीं कर सकती। स्थानीय लोगों के अनुभव किसी अध्ययन से कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। यूसीआईएल मानने को तैयार नहीं है कि खनन से लोगों को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। अगर कंपनी इसे स्वीकार कर लेगी तो उसे लोगों को मुआवजा देना पड़ेगा।

झारखंड के जादूगौड़ा क्षेत्र में भारत का सबसे पुराना यूरेनियम खान है। यह खदान खुला हुआ है और अधिकतर खनन का कार्य यहीं होता है। फोटो- सुभ्रजीत सेन
झारखंड के जादूगोड़ा क्षेत्र में भारत का सबसे पुराना यूरेनियम खान है। यह खदान खुला हुआ है और अधिकतर खनन का कार्य यहीं होता है। फोटो- सुभ्रजीत सेन

शायद इसीलिए यूसीएल खनन के ऐसे किसी भी नकारात्मक प्रभाव को मानने से इनकार करता है, आशीष बिरुली कहते हैं।

वहीं यह कंपनी कहती है कि कई अध्ययन हो चुके है। इनसे यह साबित हो चुका है यूसीआईएल के कार्य क्षेत्र के पास के गांवो में होने वाली बीमारियां रेडियशन की वजह से नहीं है। इन बीमारियों की मुख्य वजह इन क्षेत्रों में व्याप्त कुपोषण, मलेरिया और गन्दगी है।

मोंगाबे की तरफ से यूरेनियम खनन का पर्यावरण और स्वास्थय पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को लेकर  यूसीआईएल का पक्ष जानने की कोशिश की गई। कंपनी को भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं आया।

 

बैनर तस्वीर- जादूगोड़ा की पहाड़ियों में वर्ष 1967 से ही खनन का काम होता आ रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि लोगों का जीवन स्तर सुधरने के बजाए यहां के लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो गए हैं। फोटो-  – सुभ्रजीत सेन

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