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महाराष्ट्र के एक विद्युत संयंत्र में इंसानों के साथ रहने लगे हैं बाघ, क्या होगा भविष्य

  • महाराष्ट्र के चंद्रपुर स्थित ताप विद्युत संयंत्र में करीब पांच बाघ रह रहे हैं। कई बार इन्हें रिहायशी इलाकों में घूमते देखा गया है।
  • बाघ को आमतौर पर जंगल का माहौल पसंद आता है और इंसानी आबादी के करीब रहना इन्हें पसंद नहीं होता।
  • विशेषज्ञों की माने तो बाघों के इंसानी इलाकों में आने की वजह बाघों की बढ़ती आबादी और जंगलों का लगातार सिमटते जाना है।

चंद्रपुर, महाराष्ट्र। बाघ का नाम आते ही घने जंगल याद आते हैं। ऐसे जंगल जहां बाघ निश्चिंत भाव से विचरण कर रहे हैं और उन्हें इंसानी गतिविधियों की कोई फिक्र नहीं है। लेकिन देश में कुछ ऐसे भी बाघ हैं जिनको जंगल रास ही नहीं आ रहा और ये बाघ भाग-भागकर रिहायशी इलाकों में चले आते हैं।

उत्तरपूर्वी महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के एक ताप विद्युत संयंत्र को पांच बाघों ने अपना बसेरा बना रखा है। पिछले चार या पांच साल से ये बाघ न केवल यहां रहते हैं बल्कि स्वच्छंद होकर घूमते-फिरते भी हैं। यह तब है, जब विद्युत संयंत्र वाले इस क्षेत्र में तकरीबन दस हजार लोगों की भी रहनवारी है। इतना ही नहीं, ये बाघ विद्युत संयंत्र से लगे शहर चंद्रपुर में भी घूमते दिख जाते हैं जहां की आबादी पांच लाख से अधिक है।

यद्यपि ऐसा कोई अध्ययन मौजूद नहीं है जो बाघों के पालतू या कहें मानव जीवन के इर्द-गिर्द रहने की बात स्वीकारता हो पर यहां रहने वाले लोगों के अनुभव बताते हैं कि चंद्रपुर के आसपास रहने वाले बाघों को इंसानी आबादी के साथ रहने में कोई गुरेज नहीं है।

चंद्रपुर जिले में 160 से 170 बाघ पाए जाते हैं जिनमें से आधे ने अपना आशियाना संरक्षित क्षेत्र से बाहर ही बना रखा है। उनके व्यवहारों में पिछले कई वर्षों में परिवर्तन देखा गया है।  इनमें कुछ परिवर्तन प्राकृतिक हैं तो कुछ अन्य वजहों से भी आयें हैं।

बाघ के रहने के लिए मुफीद स्थान

चंद्रपुर सुपर थर्मल पावर स्टेशन (सीएसटीपीएस) मशहूर ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व (टीएटीआर) से एक कोयला खदान के जरिए जुड़ा हुआ है। इस रास्ते पर घने जंगल और झाड़ियां मौजूद हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक यहां शिकार के लिए मौजूद आवारा जानवर और जंगली सुअरों की मौजूदगी, पेड़ों का आच्छादन और विद्युत संयंत्र के बीच से बहने वाला नाला इस बाघों की सभी जरूरतों को पूरा करता है।

विद्युत संयंत्र के रिहायसी इलाके में बाघ से सावधान रहने की चेतावनी देता बोर्ड लगा हुआ है। फोटो- सौरभ कटकुरवार
विद्युत संयंत्र के रिहायसी इलाके में बाघ से सावधान रहने की चेतावनी देता बोर्ड लगा हुआ है। फोटो- सौरभ कटकुरवार

यह विद्युत सयंत्र 1,117 हेक्टेयर जमीन पर बना हुआ है। इसमें 340 हेक्टेयर में कर्मचारियों के रहने का स्थान है तो 2,665 हेक्टेयर जमीन राख रखने के लिए निर्धारित की गई है।

यहां बाघ पास के टाइगर रिजर्व से भी आ जाते हैं। कुछ बाघों ने अब विद्युत संयंत्र में अपना स्थाई बसेरा बना लिया है और इंसानों के साथ बड़ी आसानी से रहने लगे हैं।

चंद्रपुर के मुख्य वन संरक्षक रह चुके वीएस रामाराव बताते हैं कि बाघों के इंसानी इलाकों में आने की वजह बाघों की बढ़ती आबादी और जंगलों का लगातार सिमटते जाना भी है। इनकी माने तो बाघों के व्यवहार में आ रहे बदलाव भी शायद इन्हीं वजहों से हैं। रामाराव का हाल ही में यवतमल स्थानांतरण हुआ है।

रामाराव कहते हैं, “हमने यह पाया है कि बाघों के खाने और रहने की प्रवत्ति काफी बदली है। विद्युत संयंत्र में मौजूद आवारा  जानवर और जंगली सुअर, बाघों के खाने की समस्या हल कर देते हैं और आस-पास की झाड़ियां इनके रहने के लिए माहौल उपलब्ध करा देती हैं। बाघ खुद को संरक्षित क्षेत्र के बाहर इंसानी आबादी के बीच रहने के लिए ढाल रहे हैं।”

विद्युत संयंत्र के आस-पास दो से चार हजार की संख्या में आवारा पशु पाए जाते हैं। यहां मौजूद घास और अन्य चारे की व्यवस्था की वजह से पशुओं की संख्या काफी बढ़ रही है। गौकशी पर प्रतिबंध भी इसकी एक वजह है। कुछ साल पहले एक बाघिन ने राख के ढ़ेर पर तीन शावकों का जन्म दिया था। अनुमान के मुताबिक विद्युत संयंत्र क्षेत्र में यह पहला मामला है और यह उम्मीद की जा रही है कि इन शावकों को ताउम्र जंगल के बाहर के इस कमतर माहौल में ही रहना होगा।

भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के वन्यजीव जीवविज्ञानी बिलाल हबीब कहते हैं कि जो बाघ विद्युत संयंत्र वाले इलाके में पैदा हुए हैं वह ताउम्र ऐसे ही माहौल में रहना चाहेंगे। अगर वे कहीं पलायन कर जाते भी हैं तो जन्म की स्मृति की वजह से उन्हें ऐसा माहौल ही पसंद आएगा जो जंगल के बाहर हो।

वह कहते हैं, “तकनीकी तौर पर हम विद्युत संयंत्र में निवासरत बाघों को ‘शहरी बाघ’ नहीं कह सकते हैं। हालांकि, इन बाघों का दिमागी स्वरूप इनके जन्म लेने और बड़े होने के स्थान से निर्धारित होगा। जन्म की स्मृति की वजह से ये ऐसे जानवर आगे भी विद्युत संयंत्र से मिलते-जुलते इलाके को अपना रहवास बनाने का प्रयास करेंगे।”

ऐसे कई उदाहरण है जो जन्म की स्मृति वाले सिद्धांत को दर्शाती है। एक बाघ विद्युत संयंत्र के इलाके से तीन साल पहले निकलकर आसपास के जिले यवतमाल, वर्धा और नागपुर पहुंच गया था। उसे जंगल के बाहर का इलाका ही पसंद आता था। घूमते घूमते वह बाघ मध्यप्रदेश के बैतुल स्थित सतपुरा ताप विद्युत संयंत्र पहुंच गया।

जंगल के बाहर जीने की जद्दोजहद

भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी (डब्ल्यूपीएसआई) के निदेशक नितिन देसाई कहते हैं कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बाघों ने ऐसे परिवेश में भी रहना चुना जो उनके जीवित रहने के लिए आदर्श जगह यानी जंगल नहीं है।

देसाई कहते हैं, “संरक्षित वन पूरी तरह से भरे हुए हैं और नए बाघों के लिए वहां अब जगह नहीं बची। इसलिए बाघ अब उन जगहों को चुन रहे हैं जहां की पारिस्थितिकी इंसानी मौजूदगी के बावजूद मिलती-जुलती हो। इस वजह से बाघ ऐसे इलाकों में जीवित हैं। बाघों के व्यवहार में यह बदलाव अनुवांशिक नहीं है बल्कि बदलावों में खुद को ढालने की वजह से हुआ है।”

चंद्रपुर जिले के मानद वन्यजीव प्रबंधक बंदु धोत्रे कहते हैं कि कटे हुए जंगल या प्रादेशिक वन बाघों के लिए पलायन करने का रास्ता हुआ करते थे, लेकिन अब ये वन उनके लिए प्रजनन के स्थल बनते जा रहे हैं। बाघों की सतत निगरानी से सामने आया है कि कांटेदार झाड़ियों या राख के ढ़ेर के पास रहने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है। वह कहते हैं, “विद्युत संयंत्र क्षेत्र में रहने वाले बाघों में पाया गया कि उनको इंसानी आबादी के पास होने से फर्क नहीं पड़ता। इन बाघों को चंद्रपुर शहर के किनारे लगे इरई नदी से सटे रहवासी इलाके के पास देखा जाता रहा है।

अपने कॉलोनी के आसपास बाघों को देखे जाने को लेकर वहां रह रहे विद्युत संयंत्र के कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें यदा-कदा बाघ देखे जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अब जब बाघ ने संयंत्र में अपना घर बना लिया है तो उन्हें चिंता हो रही है। एक कर्मचारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर कहा कि वह एक दशक पहले रात में अकेले टहलने निकल सकते थे। जबकि, अब उन्हें मोटरसाइकल से भी निकलने में डर महसूर होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि तेंदुआ और बाघ रात में शिकार पर निकलते हैं।

 

जंगल और विद्युत संयंत्र के बीच जंगल होने की वजह से जानवर को आने-जाने में सुविधा हो जाती है। फोटो- सौरभ कटकुरवार
जंगल और विद्युत संयंत्र के बीच जंगल होने की वजह से जानवर को आने-जाने में सुविधा हो जाती है। फोटो- सौरभ कटकुरवार

धोत्रे का कहना है कि एक बाघ इस विद्युत संयंत्र से पलायन कर तेलंगाना के अदिलाबाद चला गया पर वहां ज्यादा दिन नहीं रह पाया। पहली बार जब वह बाघ यहां से गया तब उसे सीमेंट प्लांट में देखा गया था, जहां उसने कुछ समय बिताया। उसके बाद वह बाघ अदिलाबाद गया और वहां से वापस लौटकर कुछ समय महाराष्ट्र के यवतमल स्थित तिपेश्वर वन्य जीव अभयारण्य में बिताया।

धोते कहते हैं, “हम उस बाघ पर लागातार नज़र बनाए हुए हैं। वह बाघ अभी तक अपना ठिकाना खोजने के लिए संघर्ष कर रहा है।”

पालतू पशुओं के खुला घूमने और झाड़ियों की तरह उगने वाल शमी के घने पौधों की वजह से बाघ को ताप विद्युत संयंत्र में प्रजनन करने में मदद मिली। विद्युत संयंत्र को बाघ के प्रजनन स्थल बनने को लेकर, हबीब चेताते हैं कि इससे वन्य जीव और मनुष्यों के बीच टकराव बढ़ेगा। इनका कहना है कि समय आ गया है कि हमें इंसानी आबादी के पास बाघों की उपस्थिति पर बातचीत हो और सही नीति बनाई जाए।

 

बैनर तस्वीर- चंद्रपुर ताप ऊर्जा विद्युत संयंत्र के बीच से निकलने वाला नाला जिसकी मदद से बाघ कभी-कभार चंद्रपुर शहर की सीमा में प्रवेश कर जाता है। फोटो- सौरभ कटकुरवार और राहुल कुचानकर

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