- पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर ने इस वर्ष सितंबर 21 से सितंबर 30 के बीच 691 पराली जलाने के मामले दर्ज किए हैं, जो कि पिछले साल की तुलना में करीब तीन गुणा अधिक है।
- जमीनी स्तर पर सरकार के प्रयास दम तोड़ते दिखते हैं, जिससे बड़े किसानों को मशीन खरीदी पर सब्सिडी मिल जाती है, लेकिन छोटे किसान मजबूरी में पराली जलाते हैं।
- स्वास्थ्य विशेषज्ञों को अंदेशा है कि पराली के धुएं से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ा तो कोविड-19 के हालात बद से बदतर हो जाएंगे।
तेईस अक्टूबर को हुए तीसरे और आखिरी प्रेसीडेंशियल बहस में अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत का जिक्र करते हुए कहा कि यहां की हवा बहुत गंदी है। इसपर तीखी प्रतिक्रिया हुई और उनके प्रतिद्वंदी जो बाइडेन ने ट्वीट कर ट्रंप के इस तरह के बयान पर सवाल खड़े किए। यह बात सुनने में भले ही अजीब लग रही हो पर नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) में रहने वाले लोग के ही बेहतर बताएंगे जो साल दर साल इस प्रदूषित हवा में रहने को मजबूर हैं।
फसल की कटाई के मौसम में एकबार फिर भारत की राजधानी दिल्ली में हवा प्रदूषित हो चुकी है। इस साल कोविड-19 महामारी की वजह से इस प्रदूषित हवा के भयानक परिणाम होने के अनुमान हैं।
दिल्ली में प्रदूषण की एक बड़ी वजह आसपास के राज्यों में किसानों द्वारा पराली जलाने को माना जाता रहा है। बीते कुछ वर्षों में इसे रोकने के लिए कई योजनाएं बनायी गयीं लेकिन पराली जलाने के मामले घटने की बजाए बढ़ते ही जा रहे हैं। प्रदूषण भी साल दर साल विकराल रूप लेता जा रहा है।
पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष सितंबर 21 से सितंबर 30 तक पराली जलाने के 691 मामले दर्ज किए हैं। बीते वर्ष अब तक महज 208 मामले आये थे। इस तरह पराली जलाने के मामलों में इस साल तीन गुणा वृद्धि दर्ज की गयी है। अक्टूबर में धान की फसल कटने और गेहूं की बुआई के लिए खेत तैयार करने के दरमियान पराली जलाने के सबसे अधिक मामले सामने आते हैं।
पंजाब सरकार ने दावा किया है कि इस वर्ष फसल के अवशेषों को ठिकाने लगाने वाले 23,500 मशीनों की खरीद पर सब्सिडी दी गयी है। साथ ही, 8000 नोडल अधिकारियों को पराली जलाने के मामलों पर नजर रखने की जिम्मेदारी भी दी गयी है। इन सब प्रयासों से पराली जलाने के मामलों में कमी आनी चाहिए थी। पर ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
इस पर किसानों का कहना है कि सरकार की तरफ से मध्यम और छोटे किसानों को पैसों की कोई मदद नहीं की गई, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सरकार को निर्देश दिए थे।
चिकित्सकों का अनुमान है कि पराली जलाने के मामले बढ़ते रहे तो प्रदूषण का स्तर एकबार फिर बढ़ेगा। दूसरे वर्षों की तुलना में इस बार का प्रदूषण अधिक आफत लेकर आएगा। दिल्ली और आसपास के इलाके में कोविड-19 के मरीजों की परेशानी बढ़ेगी।
एनसीआर में हर वर्ष ठंड में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। इसमें आसपास के राज्यों में पराली जलाने की कितनी भूमिका है- यह विवादित और बहस का मुद्दा रहा है। लेकिन प्रदूषण से यहाँ के लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है। इस प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार से जरूरी कदम उठाने की मांग होती रही है। इसमें पराली जलाने पर रोक लगाना भी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष नवंबर को एक आदेश में कहा था कि यह स्थित चौंकाने वाली है। इस मामले पर कोर्ट ने किसानों को 2400 रुपए प्रति एकड़ का मुआवजा देने का निर्देश भी दिया था। इससे किसान को पराली को ठिकाने लगाने में मदद मिलती। साथ ही, इस काम के लिए मशीन खरीदने पर भी सब्सिडी देने की बात कोर्ट ने कही थी। हालांकि, जो आंकड़े सामने आए हैं उससे दिखता है कि जमीन पर इन सब का कोई असर नहीं हुआ।
पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर (पीआरएससी) वर्ष 2014 से ही पराली जलाने के मामलों पर नजर रख रहा है। वर्ष 2018 में इसने प्रतिदिन 26 पराली जलाने के मामले दर्ज किए थे। इस वर्ष अधिकतम पराली जलाने के 159 मामले 25 सितंबर को आए, और 30 सितंबर को यह संख्या 122 थी। अक्टूबर 25 को यह आंकड़ा 1476 पहुंच गया।
मोंगाबे से बातचीत में पीआसएससी के वैज्ञानिक अनिल सूद ने बताया कि अधिकतर मामले अमृतसर और तरनतारन जिले से सामने आए हैं। इस जगह पर धान की फसल दूसरे जगहों की तुलना में कहीं अधिक है। वह बताते हैं, “किसान पराली में आग लगा देते हैं ताकि अगली फसल के लिए खेत को जल्दी तैयार किया जा सके। इसके बाद खेत में आलू और दूसरी सब्जियां भी लगाते हैं। हमने इन मामलों पर रिपोर्ट इलाके के पुलिस अधिकारियों को भेज दी है ताकि कानूनी प्रक्रिया के तहत जुर्माना लगाया जा सके।”
पंजाब कृषि विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा इकट्ठा किए आंकड़े बताते हैं कि 2019 में 52,942 पराली जलाने के मामले सामने आए थे, वहीं 2018 में यह संख्या 51,751 थी। सूद का कहना है कि इस साल हालात बदले हैं यह कहना मुश्किल है। क्योंकि अबतक जो मामले सामने आए हैं वह पिछले साल से अधिक हैं।
किसानों तक पैसों की मदद नहीं पहुंची, सब्सिडी का लाभ बड़े किसानों तक सीमित
पंजाब सरकार में कृषि विभाग के निदेशक सुतांतर कुमार ने मोंगाबे को कहा कि पराली जलाने के मामले इस वर्ष अधिक नहीं हैं, और जहां भी सामने आए हैं, वहां कार्रवाई की जा रही है। इस काम में 800 से अधिक नोडल अधिकारियों को लगाया गया है।
उनका कहना है कि किसानों को मदद करने की जहां तक बात है सरकार ने 51,000 मशीनों पर 500 करोड़ की सब्सिडी दी है। इसके अतिरिक्त इस वर्ष 23,500 मशीनों पर 200 करोड़ की सब्सिडी दी गई। कुमार ने कहा कि किसानों को मशीन की कीमत पर उसे अकेले खरीदने की स्थिति में 50 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है जबकि अगर समूह में मशीन खरीदी जाए तो 80 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है।
भारतीय किसान यूनियन का इस मामले पर मानना है कि यह लाभ छोटे और मझौले किसानों तक नहीं पहुंचा है। अध्यक्ष जगमोहनन सिंह कहते हैं कि केवल बड़े किसानों को इसका लाभ मिल पाता है। सरकार ने सहकारिता के माध्यम से छोटे किसानों तक इसे पहुंचाने की बात की थी लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है।
सिंह के मुताबिक पंजाब में ज्यादातर छोटे किसानों के पास अपनी जमीन नहीं है जिससे वह मशीन से वंचित रह जाते हैं और खेत में पराली जलाने के मजबूर होते हैं। “पराली जलाने के कुप्रभावों से हम सब वाकिफ हैं, लेकिन इसके अलावा हमारे पास विकल्प ही क्या है? जबतक इस समस्या का समाधान नहीं मिलता, किसान पराली जलाने के लिए मजबूर है।” सिंह ने आगे कहा।
अमृतसर में किसानी करने वाले गुरजीत सिंह इस मामले पर कहते हैं कि एक एकड़ से निकली पराली को निपटाने के लिए 3000 रुपए तक खर्च हो जाता है, जिस खर्च को बचाने के लिए जलाने वाला तरीका सही लगता है। अगर सरकार पैसों से मदद दे तो किसानों की काफी मदद हो जाएगी और इस तरह पराली को जलाना नहीं पड़ेगा।
पंजाब सरकार ने इस वर्ष फरवरी में रिटायर्ड जस्टिस मेहताब सिंह गिल की अध्यक्षता में एक कमेटी की स्थापना की थी। कमेटी ने किसान संगठनों से इस मामले में बातचीत भी की। जस्टिस गिल ने इस दौरान पाया कि किसानों की आर्थिक मदद भी की जानी चाहिए। हालांकि, इसके बाद इस कमेटी की कोई बैठक नहीं हो पायी। वहीं, पंजाब सरकार किसानों को देने के लिए पैसा न होने की बात कह रही है। चरणपाल सिंह बगरी जो कि सुप्रीम कोर्ट में किसानों की नुमाइंदगी करते हैं, का कहना है कि सरकार ने कोर्ट में पैसा न होने की बात कही।
राज्य सरकार ने कोविड-19 महामारी के समय केंद्र से मदद देने की बात कही लेकिन केंद्र ने भी इससे इनकार कर दिया। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पिछले साल किसानों पर 40 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था लेकिन इसकी वसूली कितनी हुई यह कहना मुश्किल है।
कृषि विभाग के निदेशक सुतांतर सिंह ने कहा कि किसानों को पराली के लिए पैसों से मदद देने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है लेकिन अभी तक इसपर कुछ कहा नहीं जा सकता है।
कोविड-19 महामारी में प्रदूषित हवा से बढ़ सकती है समस्या
भारत सरकार की संस्था सफर के मुताबिक पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में पराली जलाने की वजह से पैदा हुआ प्रदूषण दिल्ली और एनसीआर के वायु प्रदूषण में 44 प्रतिशत योगदान देता है। इस वर्ष समस्या और गंभीर होने वाली है। संजीव नागपाल जो कि पंजाब सरकार के पराली जलाने मामले पर सलाहकार है, कहते हैं कि अगर पराली जलाने का विकल्प नहीं मिला तो हवा में इतने प्रदूषक गैस होंगे कि लोगों को सांस लेने में तकलीफ होगी। कोविड-19 के समय में यह समस्या और अधिक भयावह होने वाली है।
पंजाब सरकार ने कोविड पर विशेषज्ञों के समूह में शामिल डॉक्टर केके तलवार ने माना कि पराली जलाने से पैदा हुआ धुंआ कोविड-19 के मरीजों पर असर करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार इससे निपटने के लिए उचित कदम उठा रही है। चंडीगढ़ पीजीआई में सांस रोग संबंधी प्रमुख डॉक्टर दिगंबर बेहरा बताते हैं कि वायु प्रदूषण से फेफड़ों में समस्या पैदा होती है जिससे सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या देखने को मिलती है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के मरीज ऐसी स्थिति में अधिक परेशान होंगे और अस्पतालों पर इलाज का बोझ बढ़ता जाएगा।
क्या पराली बन सकेगा फायदे का सौदा
अर्थव्यवस्था के जानकार सुचा सिंह गिल के मुताबिक मशीनों पर सब्सिडी और पराली के निपटारे के लिए आर्थिक सहायता के बजाए सरकार को एक मॉडल विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। यह ऐसा मॉडल हो जिससे पराली की समस्या से निपटने के साथ इसका एक आर्थिक ढ़ांचा खड़ा हो। लोगों को पता नहीं है लेकिन पराली बायो गैस संयंत्रों के लिए एक शानदार कच्चा माल है।
उन्होंने कहा कि जर्मनी की एक कंपनी ने पंजाब के लहरागागा और संगरूर में दो ऐसे संयंत्र लगाए हैं जहां किसानों से 2500 से 3000 रुपए प्रति एकड़ की दर से पराली खरीदी जाती है। ऐसे ही संयंत्र फाजिल्का और नवांशहर इलाके में भी स्थापित हो रहा है।
“अगर हमारे पास ऐसे 100 से 150 संयंत्र हों तो हम इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। राज्य सरकार बायो गैस प्लांट से निकले कचरे का इस्तेमाल खेतों की उर्वरक क्षमता बढ़ाने में भी कर सकती है। इस वक्त पराली जलाने से खेत की उर्वरक क्षमता ही प्रभावित हो रही है और पर्यावरण पर बड़ा असर हो रहा है,” उन्होंने कहा।
बैनर तस्वीर- पटियाला के एक गांव में पराली जलाता हुआ किसान। फोटो- विशेष प्रबंध