- पिछले महीने हैदराबाद में आई बाढ़ ने शहर के आधारभूत ढांचे की बुनियादी समस्याओं की तरफ इशारा किया।
- विशेषज्ञों का दावा है कि शहरों में बाढ़ की विभीषिका की मुख्य वजह तालाबों का अतिक्रमण, शहरों का खराब बुनियादी ढांचा और ऐसी आपदाओं से निपटने की योजना का नहीं होना है।
- जलवायु परिवर्तन को देखते हुए अगर शहरी विकास योजना पर काम नहीं किया गया तो देश को लाखों-करोड़ों का नुकसान उठाते रहना पड़ेगा।
अक्टूबर 13 को निज़ामों के शहर हैदराबाद में जब लोग सोकर उठे तो उनके प्यारे शहर में हर तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा था। विडंबना यह कि इस शहर ने एक सप्ताह पहले अक्टूबर 7-8 को अपना 429वां स्थापना दिवस मनाया था।
अपने झीलों पर नाज़ करने वाले इस शहर में अक्टूबर 13-14 को रिकार्ड बारिश हुई। महज 24 घंटे में हैदराबाद, सिकंदराबाद और साइबराबाद में 29.8 सेंटीमीटर वर्षा हुई जिससे पूरे शहर में अफरा-तफरी का माहौल हो गया।
इस बे-मौसम बरसात ने न केवल करोड़ों की क्षति पहुंचायी बल्कि कई लोगों को जान भी गवानी पड़ी। बाढ़ से 33 लोगों की मौत हो गई और 40 हजार परिवारों को करीब 670 करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ा।
बाढ़ का जिक्र आते ही नदियों के किनारे बसे गांव-समाज की तस्वीर उभरती है। लेकिन शहरों में भी अब बाढ़ के मामले सामान्य होते जा रहे हैं।
शहरों में बाढ़ आने का सिलसिला 2005 में मुंबई से शुरू हुआ। पूरे देश के लिए तब यह यह चौंकाने वाला मामला था। उसके बाद तो देश के कई शहरों ने बाढ़ की विभीषिका झेली। इसमें छोटे-बड़े कई शहर शामिल हैं जैसे, चेन्नई, मुंबई, श्रीनगर, पटना, पुणे इत्यादि।
शहरों में बाढ़ आने की मुख्य वजहें हैं बढ़ती जनसंख्या का दबाव, जल निकासी की समुचित व्यवस्था का न होना। इसमें जलवायु परिवर्तन ने आग में घी का काम किया है। इसकी वजह से बे मौसम और तेज बारिश आम बात हो गयी है।
शहरों में बढ़ती बाढ़ की घटनाओं को हैदराबाद में आई आपदा के बरक्स समझते हैं। कमोबेश हर शहर की कहानी हैदराबाद की तरह ही है।
अमूमन सितंबर में इस क्षेत्र में बारिश होती है। लेकिन इस बार अक्टूबर के दो दिन हैदराबाद में भारी वर्षा हुई। शहर जलमग्न हो गया।
जानकारों के मुताबिक हैदराबाद जैसी घटना से हमें सीख लेने की जरूरत है ताकि इन घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। सावधानी बरतने से न केवल हजारों करोड़ की संपत्ति बचायी जा सकती है बल्कि इससे हजारों लोगों की जान भी बच सकती है।
देश में हर साल जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली आपदाओं में, औसतन 3,660 लोगों की जान चली जाती है। इस मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है। प्राकृतिक आपदा के मामले में दक्षिण भारत के शहर कहीं अधिक खतरा झेल रहे हैं।
हैदराबाद: सुनियोजित विकास से अतिक्रमण तक की यात्रा
हैदराबाद शहर को काफी सोच-समझकर कृष्णा की सहायक नदी मुसी के किनारे बसाया गया था। वर्ष 1908 में जब शहर की आबादी कुछ लाख रही होगी और इसका दायरा 55-60 वर्ग किलोमीटर में फैला था, तब शहर में मुसी नदी से बाढ़ का पानी घुस आया था।
इस घटना से हैदराबाद के निजाम ने सीख ली और भविष्य में कुदरती आपदा से बचने के लिए मशहूर इंजीनियर सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या से मदद मांगी।
विश्वेश्वरय्या ने शहर का ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त किया। तब उन्होंने शहर में दो अंडर ग्राउंड सीवेज सिस्टम बनाया। इन्हे क्रमशः हिमायत सागर और उस्मान सागर नाम दिया गया। दो शहरों को जोड़ने वाले हुसैन सागर का निर्माण भी उसी समय हुआ था।
भारत में शामिल होने के समय 1948 में हैदराबाद की आबादी 10 लाख के करीब थी।
अपने इन्हीं कुछ खास बातों की वजह से आजादी के बाद हैदराबाद का विकास बहुत तेजी से हुआ। यह शहर कई सरकारी संस्थाओं का केंद्र बना। साथ ही इस शहर ने थोक दवा और कई राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र के साथ भी अपनी पहचान बनायी। नब्बे के दशक में जब देश की अर्थव्यवस्था विश्व के लिए खोली गयी तब तटीय आंध्र प्रदेश से आने वाले कई बड़े किसानों और उद्योगपतियों ने शहर के रियल स्टेट में निवेश करना शुरू किया। यह एनटी रामा राव और एन चंद्रबाबू नायडू का समय था और हैदराबाद में रियल स्टेट का व्यवसाय उफान पर था। विदेशी निवेश के आने से इस शहर ने आईटी बूम में भी अपनी पहचान बनायी। माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल, गूगल, इंफ़ोसिस, वालमार्ट और कई अन्य इ-कॉमर्स कंपनियों के आने से हैदराबाद की तस्वीर बदल गयी।
वर्ष 2020 में इस शहर की आबादी एक करोड़ हो गयी है। पर इस शहर के तालाब घटकर 190 रह गए। इस शहर में 1970 में 2500 से अधिक तालाब हुआ करते थे।
शहरी तालाब को बचाने के क्षेत्र में काम करने वाली लुब्ना सरवत के मुताबिक शहर की इस बिगड़े हालात की जिम्मेदारी यहां के जन प्रतिनिधियों के साथ-साथ सभी विभागों की भी है। बारिश का पानी नदी में जाने के बजाए लोगों के घर में घुस रहा है क्योंकि पानी के नदी में जाने के सारे रास्ते बंद पड़े हैं।
सरवत ने आरोप लगाया कि लोगों ने नदी के किनारे मकान बनवा लिए जिससे शहर की यह हालत हो गयी।
आपदाओं से निपटने के लिए कितने तैयार हैं शहर
तेलंगाना के शहरी विकास और आईटी मंत्री केटी रामा राव ने बाढ़ आने से तुरंत पहले शहर के विकास पर 67,500 करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की थी। सरकार ने मुसी नदी की कछार पर भी विकास कार्य की योजना बनायी है। हैदराबाद विकास प्राधिकरण के माध्यम से शहर में 7500 वर्ग किलोमीटर (गोवा के बराबर) का नया क्षेत्र विकसित होना है।
शहरी विकास से जुड़े जानकारों का कहना है कि यह सही समय है। सरकार की विकास की इन योजनाओं को आपदा प्रबंधन की कसौटी पर भी परखा जाए।
हैदराबाद अरबन लैब के अनंत मरिगंती के मुताबिक कृष्णा और गोदावरी नदी का इलाका भी शहर की जद में आ रहा है और पानी की आपूर्ति के लिए भी इन नदियों का सहारा लिया जाएगा। ऐसे समय में विकास की योजना भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखकर बनायी जानी चाहिए। इस में आपदा प्रबंधन की योजना भी शामिल होनी चाहिए।
लेकिन, हैदराबाद तो क्या, तेलंगाना सरकार के पास भी आपदा प्रबंधन की कोई योजना नहीं है। सरकार डॉप्लर रडार का इस्तेमाल भी पूरी तरह से नहीं कर पा रही है। इस रडार की मदद से बारिश की सूचना सटीक और समय से पहले मिल जाती है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पूर्व उपाध्यक्ष एम शशिधर रेड्डी के मुताबिक वर्तमान में सरकार का ध्यान आपदा से संबंधित राहत कार्य की तरफ अधिक है। उन्होंने सुझाव दिया कि मौसम विभाग के आंकड़ों का इस्तेमाल कर हैदराबाद को ऐसे आपदाओं से निपटने के लिए एक मास्टर प्लान बनाना होगा।
हैदराबाद के इस अनुभव को आधार बनाकर वी श्रीनिवास चेरी कहते हैं कि शहरों को क्लाइमेट प्रूफिंग के आधार पर भी परखा जाना चाहिए। इनका तात्पर्य है कि सारे शहरों को इस कसौटी पर भी परखा जाना चाहिए कि वे प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में कितने सक्षम हैं। एड्मिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया के सेंटर फॉर अर्बन गवर्नेंस एण्ड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, इनवायरनमेंट और एनर्जी से जुड़े चेरी कहते हैं कि आपदा प्रबंधन के अतिरिक्त शहरों के विकास में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की क्षमता भी विकसित करनी होगी। इनके अनुसार हैदराबाद आज के समय में ऐसा करने का एक मौका देता है। आपदाओं की चपेट में आने वाले जगहों को चिह्नित किया जाये और ऐसी जगहों को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार किया जाए।
बैनर तस्वीर- बाढ़ का पानी हैदराबाद मुसरंबाग में कुछ इस कदर घुस आया। फोटो- विशेष प्रबंध