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अक्षय ऊर्जा की रौनक में भूल न जाए मजदूरों के हित की बात

भारत के राज्य तेलंगाना में बना सौर ऊर्जा का प्लांट। फोटो- थॉमस लॉयड ग्रुप/विकिमीडिया कॉमन्स

भारत के राज्य तेलंगाना में बना सौर ऊर्जा का प्लांट। फोटो- थॉमस लॉयड ग्रुप/विकिमीडिया कॉमन्स

  • अक्षय ऊर्जा के मामले में देश की क्षमता बढ़ रही है। आने वाले समय में इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है।
  • कोयला खनन के क्षेत्र में मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए उनका संगठन मौजूद है। पर अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में ऐसा नहीं है।
  • हाल ही में अमेरिकी चुनाव में हिस्सा ले रहे उम्मीदवार जो बाईडेन ने अमेरिका के संदर्भ में इस मुद्दे को हवा दी।
  • क्या समय आ गया है कि भारत में भी अक्षय-ऊर्जा के क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिए मजदूर या कर्मचारी संघ की जरूरत पर बात शुरू हो?

हाल ही में जब केंद्र सरकार ने व्यावसायिक कोयला खनन की अनुमति दी तो सरकार का सबसे मुखर विरोध कोयला खनन में कार्य कर रहे कर्मचारियों की तरफ से किया गया। अपने भविष्य को लेकर चिंतित कर्मचारी ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि इन्हें किसी न किसी संगठन का नेतृत्व हासिल था। पर क्या सरकार अक्षय ऊर्जा से संबंधित ऐसा कोई कदम उठाती जिससे इस क्षेत्र से जुड़े कर्मचारी भी असुरक्षित महसूस करते, तो वे भी विरोध दर्ज करा पाते?

अक्षय ऊर्जा से तात्पर्य गैर-पारंपरिक स्रोतों से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा है जिसमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा इत्यादि शामिल हैं। पूरी दुनिया आजकल एनर्जी ट्रांजीशन की बात कर रही है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को देखते हुए सभी देशों पर ऊर्जा जरूरतों के लिए कोयले पर निर्भरता कम करने का दबाव है।

इसी दिशा में भारत भी गैर-पारंपरिक ऊर्जा से जुड़ी अपनी क्षमता बढ़ाने की तरफ अग्रसर है। खासकर नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से देश ने अक्षय ऊर्जा से संबंधित कई महत्वाकांक्षी फैसले लिए हैं। प्रधानमंत्री ने सत्ता में आने के साथ ही दावा किया था कि देश 2022 तक अक्षय ऊर्जा के उत्पादन की क्षमता को बढ़ाकर 175 गीगावाट कर लेगा।

ऐसे में इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर बनेंगे। इसकी चर्चा भी होती रहती है। लेकिन इस क्षेत्र के कर्मचारियों के हितों की रक्षा की बात अभी नहीं होती दिख रही है।

कोयला क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी अक्सर किसी कर्मचारी संगठन से जुड़े होते हैं। फोटो- विस्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स
कोयला क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी अक्सर किसी न किसी कर्मचारी संगठन से जुड़े होते हैं। फोटो– विश्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स

विश्व पटल पर अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में कर्मचारी संघ से जुड़ी बहस को तब और बल मिला जब इस साल अमेरिकी चुनाव प्रचार अभियान के दौरान यह बात उठी। डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाईडेन ने घोषणा की कि वे अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में स्थिर नौकरी और कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा को केंद्र में रखते हुए दो ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश करेंगे। इस योजना में कर्मचारी संघ का निर्माण भी शामिल होगा।

लगातार बढ़ता हुआ अक्षय ऊर्जा का क्षेत्र

पूरी दुनिया इस बात पर लगभग एकमत है कि आज के वैकल्पिक-ऊर्जा के स्रोत ही आने वाले समय में ऊर्जा के मुख्य स्रोत होंगे। अलग-अलग अध्ययनों से पता चलता है कि अगले तीस वर्षों में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र का कई गुणा विकास होना है और उसी अनुपात में रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। वर्ष 2019 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक साल 2050 तक इस क्षेत्र में 32 लाख नौकरियों के मौके बनेंगे। हाल में हुए एक अध्ययन में सामने आया कि वर्ष 2050 तक दिल्ली और आसपास के इलाके पूरी तरह अक्षय ऊर्जा के स्रोत पर निर्भर हो जाएंगे और इस इलाके में बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा होंगी।

इस वक्त (जुलाई 31 तक) भारत में 88.04 गीगावाट क्षमता का अक्षय ऊर्जा संयंत्र स्थापित हैं जो कि देश की ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 23.66 प्रतिशत है। वर्तमान में देश में 371 गीगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है। निर्धारित लक्ष्य के अनुसार 2022 ऊर्जा की क्षमता बढ़ाकर 175 गीगावाट की जानी है। वर्ष 2030 तक इसे बढ़ाकर 450 गीगावाट यानी कुल उत्पादन  क्षमता का 60 फीसदी करने का लक्ष्य है।

नए क्षेत्र की चुनौतियां और कर्मचारी संघ की जरूरत

अक्षय ऊर्जा  के समर्थन में तर्क देने वाली कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं यह बताना नहीं भूलतीं कि भविष्य में इस क्षेत्र में रोजगार के कितने अवसर पैदा होने वाले हैं। लेकिन अभी इस पर बात कम ही हो रही है कि इस नए क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले रोजगार के अवसर कोयला क्षेत्र की तरह स्थिर होंगे या नहीं!

भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका में भी इस बात की चिंता है। 2020 के अमेरिकी चुनाव में कोयला क्षेत्र और अक्षय ऊर्जा क्षेत्र को लेकर काफी बहस चल रही है।

गांव में सोलर लाइट की मरम्मत करती ग्रामीण लड़की। फोटो- अबी टायलर- स्मिथ पानोस पिक्चर्स डिपार्टमेंट फॉर इंटरनेशनल डेलवपमेंट फ्लिकर
गांव में सोलर लाइट की मरम्मत करती ग्रामीण लड़की। फोटो– अबी टायलर- स्मिथ पानोस पिक्चर्स डिपार्टमेंट फॉर इंटरनेशनल डेलवपमेंट फ्लिकर

एनवायरोनिक्स ट्रस्ट के पृथ्वी विज्ञानी श्रीधर रामामूर्ती का मानना है कि कोयला क्षेत्र की तरह अक्षय ऊर्जा क्षेत्र की नौकरियां स्थिर नहीं होंगी। क्योंकि इस क्षेत्र में खास तरह की दक्षताओं या कहें स्पेशल स्किल की जरूरत होती है। रामामूर्ती, माइन्स मिनरल्स और पीपल (एमएमपी) संस्था के सह-संस्थापक भी हैं।  यह संस्था 18 राज्यों में 100 से अधिक  समूह के साथ जुड़कर  काम करती है।

कोयला क्षेत्र में कर्मचारियों के संघ का प्रभाव

कोयला खनन क्षेत्र में मुख्यतः पांच बड़े संघ सक्रिय हैं। इनमें हिंद खदान मजदूर संघ, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय मजदूर संघ कांग्रेस, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स और इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) शामिल  हैं। कर्मचारी संघों के हाल के गतिविधियों से स्पष्ट होता है कि वे इनके हक के खिलाफ हो रहे फैसलों के खिलाफ खड़े होते हैं।

सितंबर 2019 में कोयला क्षेत्र में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का इन मजदूर संघों ने काफी विरोध किया। इतना ही नहीं, मजदूरों के इन प्रतिनिधियों ने केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी से मुलाकात करने से भी इनकार कर दिया। जून और जुलाई 2020 में जब केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के नाम पर व्यवसायिक कोयला खनन की अनुमति दी थी, तब सरकार को  विरोध  में मजदूर तीन दिन के लिए हड़ताल पर चले गए थे। अभी भी कर्मचारी संघ व्यवसायिक कोयला खनन का विरोध कर रहे हैं।


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इन सब विरोधों से यह स्पष्ट होता है कि देश  के कोयला क्षेत्र में इन संघों का कितना महत्वपूर्ण योगदान है। कर्मचारियों के वेतन से लेकर , मूलभूत ढ़ांचे के निर्माण, स्वास्थ्य और शिक्षा, पेंशन और दूसरी सुविधाओं के लिए ये संगठन आवाज उठाते रहे हैं। आने वाले समय में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भी ऐसे संगठनों की महती भूमिका रहने वाली है।

अखिल भारतीय मजदूर संघ कांग्रेस के अध्यक्ष रामेंद्र कुमार कहते हैं कि जहां कर्मचारी काम करते हैं वहां यूनियन की आवश्यकता होती है। अक्षय ऊर्जा का क्षेत्र इससे अलग नहीं है।

कर्मचारी संघ के महत्व के बारे में बताते हुए कुमार कहते हैं कि केंद्र सरकार कोयला खान भविष्य निधि संगठन की राशि को कर्मचारी भविष्य निधि में मिलाना चाहता है। लेकिन मजदूर संगठनों के विरोध की वजह से अबतक ऐसा नहीं कर पाई है। कोयला खान भविष्य निधि संगठन की स्थापना वर्ष 1948 में की गई थी जिसका उद्देश्य खनन कर्मचारियों को भविष्य की सुरक्षा प्रदान करना था।

इस संबंध में केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का पक्ष जानने के लिए मोंगाबे-इंडिया ने सवाल भेजा है जिसका अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) के नेता वीएम मनोहर ने कुमार के विचारों से सहमति जतायी और कहा कि उनकी संस्था अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भी ऐसे संघ बनाने को लेकर विचार कर रही है।

हालांकि बातचीत के दौरान कर्मचारी संघ के नेताओं ने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में निजीकरण की तरफ भी इशारा किया। मनोहर का कहना है कि कोयला क्षेत्र में अधिकतर कंपनियां सरकारी हैं जबकि अक्षय ऊर्जा मुख्यतः निजी कंपनियों के हाथ में है।

 

बैनर तस्वीर – भारत के राज्य तेलंगाना में बना सौर ऊर्जा का प्लांट। फोटो– थॉमस लॉयड ग्रुप/विकिमीडिया कॉमन्स

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