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मुश्किल में मिथिला के तालाब, लोगों के प्रयास से आ रहे सकारात्मक बदलाव

- नारायण चौधरी ने समाज के लोगों को साथ लेकर तालाब बचाने का अभियान शुरू किया जिसकी वजह से मिथिला के कई तालाब फिर से जीवित हो उठे। इलस्ट्रेशन- शीना देवियह

- नारायण चौधरी ने समाज के लोगों को साथ लेकर तालाब बचाने का अभियान शुरू किया जिसकी वजह से मिथिला के कई तालाब फिर से जीवित हो उठे। इलस्ट्रेशन- शीना देवियह

  • पोखर और तालाब बिहार के मिथिला के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। पर विडंबना यह है कि इसके बावजूद भी ये तालाब संकट में आ गए।
  • एक दशक पहले मिथिला के दरभंगा में तालाबों को बचाने की मुहिम शुरू हुई। इसका असर दिखना शुरू हो गया है।
  • तालाब बचाओ अभियान के तहत नारायण चौधरी ने अब तक दरभंगा जिले के दर्जनों तालाबों को नया जीवन दिया है।

‘पग-पग पोखर माछ मखान, सरस बोल मुस्की मुख पान, ई थिक मिथिला केर पहचान।’ मैथिली भाषा की यह कहावत इस क्षेत्र के संपन्न प्राकृतिक वातावरण और यहां के लोगों के जीवन में तालाब के महत्व को रेखांकित करती है। कहावत की पहली पंक्ति का आशय है कि बिहार के मिथिला क्षेत्र में कदम-कदम पर तालाब होने की परंपरा रही है। इन तालाबों में मखाना, मछली और पान का उत्पादन होता रहा है।

स्थानीय जीवन में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका होने के बावजूद भी मिथिला के तालाबों को विकास की नजर लग गयी और ये विलुप्त होने लगे। आलम यह हो गया कि दरभंगा-मधुबनी के शहरी इलाकों में बाढ़ और जल-जमाव हर वर्ष की समस्या हो गयी। बारिश में बाढ़ तो गर्मियों में सूखे के हालात बनने लगे।

तकरीबन एक दशक पहले दरभंगा के नारायण चौधरी ने इस समस्या को नजदीक से देखा और इससे निपटने की ठान ली।

समस्या से निपटने के लिए सबसे जरूरी था उसे समझना। चौधरी ने इलाके के कई विशेषज्ञों से बातचीत की तो पाया कि अतिक्रमण और भू-माफिया द्वारा तालाबों को खत्म किया जा रहा है। परिणामस्वरूप, इस क्षेत्र का भूजल रिचार्ज नहीं हो पा रहा है।

समस्या का पता चलते ही चौधरी ने समाधान की शुरुआत दरभंगा से की और ‘तालाब बचाओ अभियान’ शुरू किया। अभियान के तहत स्थानीय लोगों को जागरूक किया गया और प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए धरना प्रदर्शन, हस्ताक्षर अभियान और पोस्टर लगाने जैसे प्रयास शुरू किए गए। छठ पूजा के दौरान तालाबों के किनारे आए श्रद्धालुओं तक अपनी बात पहुंचाने के लिए चौधरी ने पोस्टर लगाने शुरू किए।

आज एक दशक बीतने के बाद दरभंगा के इस अभियान के साथ शहर के नामचीन डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर, प्रोफेसर सहित अन्य गणमान्य नागरिक जुड़ चुके हैं। सभी का उद्देश्य विलुप्त होते तालाबों की रक्षा करना है।

मिथिला क्षेत्र में होने लगी पानी की किल्लत

ये तालाब ही मिथिला में पानी के प्रमुख स्रोत हैं।  इनके खत्म होने से इलाके में पानी की समस्या पैदा होने लगी है। वर्ष 2018 और 2019 में इसका सबसे विकराल रूप देखने को मिला। दरभंगा और आसपास के इलाके के हैंडपंप सूख गए।

विशेषज्ञ बताते हैं कि इसका सीधा संबंध तालाबों की अनदेखी से है। पिछले कुछ दशकों में इस क्षेत्र से बड़ी संख्या में तालाब विलुप्त हो गए।

दरभंगा के एक कॉलेज में पढ़ाने वाले शिक्षक विद्यानाथ झा वेटलैंड और मखाना पर शोध करते हैं। झा ने पुराने शोध के आधार पर कहा कि दरभंगा के गजेट रिकॉर्ड में 1964 तक 300 तालाब थे।  लेकिन 1990 तक तालाबों की संख्या घटकर महज 213 रह गयी। वर्तमान में यहां सिर्फ 84 तालाब रह गए हैं। तालाबों पर यह शोध मिल्लत कॉलेज, दरभंगा के वनस्पति विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एसएच बज्मी ने किया है।

अतिक्रमण और भू-माफिया द्वारा दरभंगा के तालाबों को खत्म किया जा रहा है। फोटो- नारायण चौधरी
अतिक्रमण और भू-माफिया द्वारा दरभंगा के तालाबों को खत्म किया जा रहा है। फोटो- नारायण चौधरी

पानी बचाने के अभियान से जुड़े कार्यकर्ता रंजीव का कहना है कि मध्यम और छोटे तालाब दो-तीन दशक पहले ही समाप्त हो गए। बचे हुए तालाब खत्म होने की कगार पर हैं। सबसे दुखद बात यह है कि सशक्त लोग प्रशासन के साथ मिलकर तालाबों का अतिक्रमण करते हैं।

तालाबों के प्रति इस उदासीनता पर चौधरी कहते हैं, “एक दशक पहले तक मुझे तालाबों की कोई चिंता नहीं होती थी। साल 2000 के पहले मिथिला-वासियों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि यहां कभी पानी का भी अभाव होगा।

लेकिन 2005 के बाद हैंडपंप सूखने लगे। यहां के तालाब भूजल को रिचार्च करते थे और कभी पानी कम नहीं पड़ता था।

“एक-एक कर तालाब खत्म होते गए और दरभंगा शहर में पानी की किल्लत हो गई। साठ-सत्तर वर्ष के लोगों के लिए यह यकीन करना मुश्किल था कि यहां कभी भूजल नीचे जा सकता है। वर्ष 2007-08 में प्रशासन को टैंकर से पानी पहुंचाना पड़ा था,” चौधरी कहते हैं।

तब चौधरी ने एक नया ‘जलाशय बचाओ अभियान’ शुरू किया। उन्हें इस काम की प्रेरणा मानस बिहारी वर्मा से मिली जो डीआरडीओ में वैज्ञानिक रह चुके हैं।

बिहार जल संसाधन विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी गजानन मिश्र ने यहां के जल स्रोतों पर काफी शोध किया है। वह कहते हैं कि सरकार की तरफ से मिथिला के तालाबों को बचाने की कोई विशेष कोशिश नहीं हो रही है। वह कहते हैं कि चौधरी जैसे नागरिकों की वजह से दरभंगा शहर के कई तालाब बच पाए।

ऐतिहासिक तालाबों पर अनाधिकृत कब्जा

 बिहार को लैंडलॉक राज्य कहा जाता है। इसका तात्पर्य है कि यह राज्य चारों तरफ से रिहायशी क्षेत्रों से घिरा है। ऐसे में इस राज्य के लिए इसके वेटलैंड काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। वेटलैंड को सामान्य भाषा में पोखर, तालाब, नदी और अन्य जलजमाव के क्षेत्र के तौर पर समझा जा सकता है। इसरो द्वारा तैयार नेशनल वेटलैंड एटलस के मुताबिक बिहार के कुल क्षेत्रफल का 4.4 प्रतिशत (4,03,209 हेक्टेयर) वेटलैंड है। यहां कुल 4,416 बड़े और 17,582 छोटे (2.25 हेक्टेयर से कम) वेटलैंड की पहचान की गई है। इनमें से 92 फीसदी प्राकृतिक वेटलैंड हैं जबकि 3.5 फीसदी कृत्रिम या कहें इंसानो के बनाए हुए हैं।

लेकिन इसपर भी लोगों की बुरी नजर है। चौधरी के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों में तालाबों को मिट्टी और कचरे से पाटकर उसपर निर्माण कर लिया गया। दीघी संग्रहालय, गंगा सागर और हारथी जैसे तालाब शहर में 600 से 700 साल से हैं। इसके अलावा कई और तालाब जो 200 से 400 वर्ष पहले बने हैं, इन सब पर अतिक्रमण और कचरे से पाटे जाने का खतरा बना हुआ है।

दरभंगा के दिघी तालाब में अतिक्रण का एक दृष्य, जिसकी वजह से तालाब के अस्तित्त पर संकट है। फोटो- नारायण चौधरी
दरभंगा के दिघी तालाब में अतिक्रण का एक दृष्य, जिसकी वजह से तालाब के अस्तित्त पर संकट है। फोटो- नारायण चौधरी

चौधरी सरकार की उदासीनता पर सवाल उठाते हैं। सरकार ने कुछ समय पहले तालाबों से अतिक्रमण हटाने और वर्षा जल संरक्षण के लिए योजनाएं बनाई थीं, जिसे ‘जल जीवन हरियाली’ योजना के नाम से प्रचारित किया गया। इसके तहत तालाब खुदवाने पर किसानों को सब्सिडी भी दी गई। आपदा के खतरे को कम करना भी इस अभियान का एक उद्देश्य था। इसके तहत तालाबों के किनारे से अतिक्रमण हटाया जाना था।

“इस योजना के नाम पर अतिक्रमण हटाने के बहाने गरीब से गरीब लोगों की रोजी-रोटी छीन ले गयी। योजना में तालाबों के सौंदर्यीकरण के नाम पर और इनकी स्थिति और खराब कर दी गयी,” चौधरी ने बताया।

समाज के लोगों को साथ लेकर सरकार पर दबाव

चौधरी कहते हैं “सरकार और प्रशासन के उदासीन रवैये के साथ काम करना हमेशा मुश्किल होता है। इस तरह से इन तालाबों का अतिक्रमण करने वाले हमेशा बचकर निकल जाते हैं।

 ऐसे में स्थानीय लोगों का साथ आना ही एक मात्र रास्ता बच जाता है। इसको ध्यान में रखकर चौधरी ने अधिक से अधिक स्थानीय लोगों को इस मुहिम में जोड़ने की कोशिश की।

समाज के लोगों ने कम से कम 8 से 10 तालाबों  और जल स्रोतों का पुनरुद्धार किया। इसमें मोइनी तालाब, बाबा सागर दास पोखर, डुमडुमा पोखर इत्यादि शामिल जैसे। मखनाली पोखर को भी स्थानीय लोगों ने अतिक्रमण से बचाया।

“स्थानीय लोगों का साथ मिलने के साथ हमारे अभियान को काफी सफलता मिली। लोगों ने तालाब को अतिक्रमण से बचाना शुरू कर दिया और इसपर नजर भी रखने लगे,” चौधरी कहते हैं।

इनका कहना है कि अब लोग सचेत हो गए हैं और तालाब के किसी भी अतिक्रमण का विरोध करते हैं। यही इस अभियान की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

स्वास्थ्य संबंधित कुछ चुनौतियों की वजह से 2017-2019 तक इनका तालाब बचाने का अभियान कुछ धीमा पड़ गया था। फिर  कोविड-19 महामारी की वजह से भी अभियान में रुकावट आयी।


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लेकिन इस समय चौधरी तालाबों के साथ-साथ वेटलैंड और नदियों के संरक्षण का भी प्रयास शुरू कर रहे हैं।

“हमने कमला नदी के बारे में कुछ तथ्य इकट्ठा किए हैं। इस नदी से निकली नहर जिसे धार के नाम से जाना जाता है, उनके बारे में भी दस्तावेज जमा किए गए। ऐसे धार कम से कम 1000 वेटलैंड से जुड़े हुए हैं। हालांकि, इन नहरों पर कंक्रीट के तटबंध बना दिए गए हैं जिससे उनका जुड़ाव वेटलैंड से टूट गया है,” चौधरी ने बताया।

मिथिला में कमला नदी के 10 धार (नहर) 45 किलोमीटर तक फैले हुए हैं। बाढ़ पर काबू पाने के लिए कमला के इन धारों पर तटबंध बना दिए गए, जिससे इनसे जुड़े वेटलैंड सूख रहे हैं।

समाज का सहयोग लेकर चौधरी अब सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि इन वेटलैंड को बचाया जा सके।

 

बैनर तस्वीर- नारायण चौधरी ने समाज के लोगों को साथ लेकर तालाब बचाने का अभियान शुरू किया जिसकी वजह से मिथिला के कई तालाब फिर से जीवित हो उठे। इलस्ट्रेशन- शीना देवियह

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