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क्या देश की महत्वाकांक्षी इलेक्ट्रिक वाहन की योजना पर्यावरण और समाज के लिए और मुश्किल पैदा करेगी?

हैदराबाद में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन बनाया गया है। फोटो- आईमहेश विकिमीडिया कॉमन्स

हैदराबाद में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन बनाया गया है। फोटो- आईमहेश/विकिमीडिया कॉमन्स

  • पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री सहित भारत सरकार लोगों को इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ जाने को प्रोत्साहित करती दिख रही है। इसके परिणामस्वरूप देश में अगले कुछ वर्षों में लाखों इलेक्ट्रिक वाहन बढ़ने की संभावना है।
  • विशेषज्ञों की चिंता है कि इस परिवर्तन को लेकर अगर कोई ठोस योजना नहीं बनाई गयी तो पर्यावरण को इससे कोई खास लाभ नहीं मिलेगा। अगर इलेक्ट्रिक वाहन कोयले इत्यादि से बनी बिजली से ही रिचार्ज होंगे तो पर्यावरण से जुड़े जो लक्ष्य हैं उसे पाना मुश्किल होगा।
  • ऊर्जा विशेषज्ञ सचेत कर रहे हैं कि इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आवश्यक बैटरी की आपूर्ति के लिए सरकार को स्पष्ट नीति बनानी चाहिए।

पिछले कुछ सालों से भारत सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों (इवी) को बढ़ावा देने की बात करती रही है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई दफा भारत की सड़कों पर पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों से बदलने का सपना दिखाया है। हालांकि ऐसा कब तक हो पाएगा इसको लेकर अभी तक कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गयी है। लेकिन यह भी मानी हुई बात है कि आने वाले कुछ सालों में बड़ी संख्या में लोग इलेक्ट्रिक वाहन की तरफ रुख कर सकते हैं। एक तरफ यह राहत की बात है तो दूसरी तरफ इससे पर्यावरण इत्यादि को भी नुकसान होने का खतरा है।

पेट्रोल या डीजल से इलेक्ट्रिक वाहन की तरफ रुख करने का मतलब अगले 10-20 वर्षों में भारत में बिजली से चलने वाले लाखों वाहन पंजीकृत होंगे। इसके लिए लाखों की संख्या में बैटरी की जरूरत पड़ेगी।

आने वाले भविष्य को देखते हुए पर्यावरण के जानकार एक खास तरह की चिंता जाहिर करते हैं। यदि इलेक्ट्रिक वाहन भी कोयले इत्यादि से बनने वाली बिजली से ही चार्ज होंगे तो इस पूरी कवायद का मुख्य उद्देश्य हासिल नहीं हो पाएगा। इन गाड़ियों को अगर नवीन ऊर्जा जैसे सौर या पवन ऊर्जा से बनी बिजली से चार्ज किया जाए तभी पर्यावरण से जुड़े बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं।

यद्यपि ऐसा न होने की स्थिति में भी इलेक्ट्रिक वाहन लोगों को गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण से कुछ हद तक तो निजात दिलाएंगे ही। पर इलेक्ट्रिक वाहन को बढ़ावा देने का यह महज तात्कालिक उद्देश्य है। इसके मुख्य उद्देश्य में जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे शामिल हैं।

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीइइडब्ल्यू) द्वारा 9 नवंबर को जारी एक अध्ययन  में कहा गया है कि देश अगर 2030 तक हर साल बिकने वाले गाड़ियों की संख्या में तीस फीसदी इलेक्ट्रिक वाहन बेचने का लक्ष्य हासिल कर ले तो इसके बड़े आर्थिक लाभ भी होंगे। इससे हर साल कच्चे तेल के आयात की लागत में करीब एक लाख करोड़ रुपये की बचत होगी।   इससे पावरट्रेन, बैटरी और सार्वजनिक चार्जर का दो लाख करोड़ रुपये का बाजार भी बनेगा।  इस क्षेत्र में 120,000 नौकरियां भी बनेंगी।

इसके अतिरिक्त कई अन्य क्षेत्र भी विकसित होंगे जैसे बैटरी रीसाइक्लिंग जिसमें पुरानी बैटरी को फिर से इस्तेमाल के लायक बनाया जाएगा। ऐसे कई अन्य क्षेत्र का भी विस्तार होगा और नौकरी के नए मौके बनेंगे। हालांकि इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर यह लक्ष्य हासिल कर लिया गया तो इससे कच्चे तेल के क्षेत्र में 19 प्रतिशत नौकरियां घट भी जाएंगी।

भारत की सड़कों पर इस तरह के ई रिक्शा का चलन तेजी से बढ़ा है। फोटो- कार्तिक चंद्रमौली मोंगाबे
भारत की सड़कों पर इस तरह के ई रिक्शा का चलन तेजी से बढ़ा है। फोटो- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

इस अध्ययन के अनुसार, कच्चे तेल और ऑटोमोबाइल क्षेत्र, दोनों मिलाकर देखा जाए तो करीब दो लाख करोड़ रुपये का घाटा होगा। केंद्र और राज्य सरकारों को इस क्षेत्र से मिलने वाले राजस्व में करीब एक लाख करोड़ रुपये की कमी आएगी।

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरइसीए) से जुड़े सुनील दहिया कहते हैं कि इलेक्ट्रिक वाहन को बढ़ावा देते हुए नीति-निर्माताओं को यह बात ध्यान में रखनी होगी कि सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देनी है।  अन्यथा इससे कई समस्याएं भी उत्पन्न होंगी।

“अगर इलेक्ट्रिक वाहनों को रिचार्ज करने के लिए अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को इस्तेमाल नहीं किया जाता है तो देश के पर्यावरण और कोयला-जनित बिजली उत्पादन क्षेत्र के आस-पास रहने वाले लोगों के लिए बड़ी समस्या उत्पन्न होगी। यह सब ध्यान में रखते हुए  नवीन ऊर्जा से संचालित होने वाले, गैर-मोटर के वाहन तथा सार्वजनिक परिवहन के वाहनों को प्राथमिकता देने की जरूरत है। अगर सबको इलेक्ट्रिक वाहन के लिए प्रोत्साहित किया गया तो कई समस्याएं उत्पन्न होंगी। जैसे सड़क और जाम की समस्या। इलेक्ट्रिक वाहनों के बैटरी के लिए जरूरी खनिज और उससे जुड़ी समस्या पर अलग से व्यापक बहस की जरूरत है, दहिया ने मोंगाबे से बातचीत में कहा।

ऐसी ही बात सीइइडब्ल्यू ने अपने अध्ययन में भी कही है। इसके अनुसार इलेक्ट्रिक वाहन के अधिकतम फायदे के लिए निजी वाहनों को बढ़ने से रोकना चाहिए। सरकार नीतियां बनाकर और जागरूकता फैलाकर ऐसा कर सकती है।

“बढ़ते यात्रियों की संख्या को देखते हुए सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके साथ गैर-मोटर चालित साधन जैसे साइकिल या पैदल चलने को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ऐसा करने से वायु प्रदूषण भी कम होगा। जाम, सड़क पर होने वाले हादसे और ऊर्जा खपत भी कम होगी,” अध्ययन में इन बातों को स्पष्ट कहा गया है।

इलेक्ट्रिक वाहन के प्रोत्साहन के साथ बैटरी पर भी ध्यान देने की जरूरत

वर्ष 2019 में जारी आंकड़ों के अनुसार 2017 में देश में कुल पंजीकृत वाहनों की संख्या करीब 28 करोड़ थी। इसके अतिरिक्त हर महीने हजारों नए वाहन देश की सड़कों पर उतारे जाते हैं। अगर इलेक्ट्रिक वाहन की बात करें तो भारत में अभी निजी कारों, सार्वजनिक परिवहन बसों, इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया वाहन, सबको मिलाकर इनकी संख्या करीब 500,000 के आस पास है।

इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए अग्रणी बैटरी निर्माताओं और निर्यातकों में से एक, एक्यूज़ (Aqueouss) के संस्थापक विभास वर्मा का कहना है कि आज के समय में दुनिया में इलेक्ट्रिक वाहन सबसे महत्वपूर्ण और चर्चित विषयों में से एक है।

भारत सरकार पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाड़ियों से लोगों को इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ जाने के लिए काफी प्रोत्साहन दे रही है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई नीतियां बनाईं हैं, सब्सिडी दे रहीं हैं। इन सबके बावजूद चिंता का विषय है कि देश के लगभग सारे इलेक्ट्रिक वाहन लिथियम बैटरी से ही चलते हैं, ”वर्मा ने मोंगाबे-इंडिया से कहा।

ये लिथियम वाले बैटरी देश में नहीं बनाये जाते। इनके कल-पुर्जे विदेशों से आते हैं और उन्हे यहां बस असेम्बल किया जाता है। वर्मा ने कहा, “देश में ही बैटरी बनाने का प्रयास कई कंपनियां कर रहीं है पर अब तक कोई खास सफलता नहीं मिली है।”

बैंगलुरु में इस तरह के इलेक्ट्रिक बस चलने शुरू हो गए हैं। फोटो- रमेश एनजी फ्लिकर
बैंगलुरु में इस तरह के इलेक्ट्रिक बस चलने शुरू हो गए हैं। फोटो- रमेश एनजी/फ्लिकर

इंस्टिट्यूट फॉर सस्टैनबल कॉम्युनिटीज  के कंट्री डायरेक्टर विवेक पी अधिया का कहना है कि परिवहन क्षेत्र में कई सफलता भी मिली है जिसे बारीकी से देखने की जरूरत है।

जैसे दोपहिया, तिपहिया और बसों के मामलें में इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ शिफ्ट होना वर्तमान में ही फायदे का सौदा है। निजी कार के क्षेत्र में अभी दिक्कत है और यहां काफी प्रयास करने की जरूरत है।

वर्मा ने स्पष्ट किया कि देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ोत्तरी मुख्यतः दोपहिया और तिपहिया क्षेत्र में ही हो रहा है।

“भारत का दोपहिया क्षेत्र दुनिया में सबसे बड़ा है। पिछले 2 -3 वर्षों में, देश के दोपहिया वाहनों के क्षेत्र में कई नई कंपनियां आयीं है। ये कंपनियां बढ़ते इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में अपना भाग्य आजमा रहीं हैं।  भारत सरकार को पता है कि अगर इलेक्ट्रिक वाहनों को इन दोनों क्षेत्रों में उपभोक्ताओं से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है तो चार पहिया वाहन या अन्य बड़े वाहन की तरफ लोगों का रुझान खुद ब खुद होने लगेगा। देश के कई राज्य या तो इलेक्ट्रिक बसों की तरफ शिफ्ट हो रहें हैं या इसको लेकर नीतियां बना रहे हैं। इससे भी लोगों को इलेक्ट्रिक वाहन को अपनाने का प्रोत्साहन मिलेगा। भारत में इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र के साथ एक अच्छी बात है कि यह एक समान गति से निरंतर बढ़ रहा है,’ वर्मा ने कहा।

इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाली बैटरियों और इसके लिए जरूरी खनिज से बाबत एक सवाल पर अधिया ने कहा, “इसके स्थायी समाधान के लिए यह  महत्वपूर्ण है कि किसी एक देश या क्षेत्र पर निर्भरता न हो।  जैसा कि पेट्रोल-डीजल के शुरुआती दिनों में हुआ। सभी देश कुछेक तेल उत्पादक देश पर निर्भर हो गए। कुछ ऐसा ही अभी बैटरी के क्षेत्र में हो रहा है। कुछ चिह्नित क्षेत्र में इससे जुड़े खनिज का खनन होता है और पूरी दुनिया उन्हीं क्षेत्रों पर निर्भर है।”

“सौभाग्य से, तकनीक के क्षेत्र में विकास हो रहा है और इसके कई और विकल्प बाजार में आने की उम्मीद है। जैसे सोडियम बैटरी इत्यादि। भारत जैसे देशों के लिए ऐसे विकल्प से काफी सहूलियत होगी।”

 

बैनर तस्वीर- हैदराबाद में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन बनाया गया है। फोटो- आईमहेश/विकिमीडिया कॉमन्स

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