दिल्ली की हरियाली जानने के लिए लोग राजधानी में ट्री वॉक और नेचर ट्रेल जैसी गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं।शहर में पेड़ों का लंबा इतिहास रहा है। यहां सबसे पुराने खिरनी के पेड़ हैं जो 600 साल पुराने बताए जाते हैं।अंग्रेजों ने दिल्ली में समूचे विश्व से पौधे लाकर लगाए थे, वहीं मुगलों ने यहां कब्रगाहों को बाग की तरह विकसित किया था। ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ जैसे उपन्यास लिखने वाले और अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक रह चुके खुशवंत सिंह ने दिल्ली को दुनिया की सबसे हरी-भरी राजधानी का खिताब दिया था। इसके पीछे उनके अपने तर्क थे। लेकिन आज दिल्ली वासी इस सत्य से अपने तरीके से रू-ब-रू हो रहे हैं। दिल्ली के इस हरियाली के पीछे मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक का योगदान है। यह सब जानने के लिए अब नागरिक ट्री वॉक और नेचर ट्रेल जैसी गतिविधियों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। दिल्ली की हरियाली के पीछे का एक दिलचस्प किस्सा वंडरफुल वंडरर्स नामक संस्था के साथ नेचर वॉक कराने वाले सैयद मोहम्मद कासिम सुनाते हैं। उनके मुताबिक जब अंग्रेजों ने साल 1911 में अपनी राजधानी को कोलकाता से दिल्ली लाने का निर्णय लिया तो उनकी योजना में पेड़-पौधों को भी काफी तरजीह दी गयी। जब वे दिल्ली आये तब अपने साथ विश्व की कई पेड़-पौधों की प्रजातियां भी साथ लेकर आए। सुंदर नर्सरी में इन पौधों को उगाया गया। “अंग्रेजों ने दिल्ली में भारतीय प्रजाति के पौधे, जैसे पीपल (Ficus religiosa) और बरगद (Ficus benghalensis) इत्यादि को तवज्जो नहीं दी। इसके पीछे 1857 का विद्रोह था। इस विद्रोह में भारतीय विद्रोही पीपल और बरगद जैसे घने और विशाल पेड़ों की आड़ में छिपकर ब्रिटिश सेना पर हमला करते थे। अंग्रेजों पर इसका डर इतना हावी था कि वे पीपल और बरगद के पेड़ों से दूर ही रहे। सुरक्षा के लिहाज से अंग्रेज अपनी राजधानी में सीधे पेड़ चाहते थे। उनकी इमारतों की सुंदरता भी सीधे पेड़ लगाने पर साफ नजर आती। लुटियंस दिल्ली स्थित सुंदर नर्सरी में ये पेड़ आज भी मिलते हैं,” कासिम बताते हैं। हेरिटेज एक्सपर्ट विक्रमजीत सिंह रूपराई कहते हैं कि दिल्ली विश्व की कई दूसरी राजधानियों से हरी-भरी है। इनमें संजय वन, सुंदर नर्सरी, उत्तरी और केंद्रीय चोटी, मुरादाबाद पहाड़ी, वसंत विहार, अरावली पहाड़ी, सुल्तान गारी पार्क, यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क और महरौली पुरातत्व पार्क प्रमुख हैं। दिल्ली के पेड़ों पर ‘ट्रीज ऑफ डेल्ही- अ फील्ड गाइड’ नाम की किताब लिखने वाले प्रदीप कृषन कहते हैं कि यहां की खूबसूरती दूसरे कई शहरी क्षेत्रों के मुकाबले बेहतर है। इस खूबसूरती को महसूस करने के लिए अब दिल्ली में ट्री वॉक इत्यादि का आयोजन होने लगा है। ट्री वॉक से प्रकृति से जुड़ रहे दिल्ली के लोग वर्ष 2013 में कविता प्रकाश ने पहली बार अपने आसपास ही ट्री वॉक करवाया था। शुरुआत में रहवासी समितियों ने कई स्थानों पर वॉक की अनुमति नहीं दी। फिर भी प्रकाश ने 12 साथियों के साथ 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के दिन एक वॉक का आयोजन किया था। बीते वर्षों में प्रकाश ने प्रमुख स्थान जैसे लोधी गार्डन, जनपथ, सिटी फॉरेस्टस, सुंदर नर्सरी में लगभग 70 से अधिक ट्री वॉक आयोजित किया है। महरौली पुरातत्व पार्क में एक पुराने पेड़ के नीचे खेलते बच्चे। फोटो- दीपन्विता गीता नियोगी प्रकाश ऐसे आयोजन को एक साधारण व्यायाम की तरह देखती हैं और इन्हें दिल्ली की हर कॉलोनी और संस्थानों में आयोजित कराना चाहती हैं। इस मजेदार यात्रा के दौरान, प्रकाश पेड़ों को उनके प्रचलित नामों से परिचित कराती हैं। साथ ही पेड़ों के बारे में रोचक जानकारियां भी साझा करती हैं। ऐसे वॉक एक से दो घंटे चलते हैं। इन वर्षों में प्रकाश ने वैसे फूल के पौधे भी देखे जो इससे पहले कभी नहीं देखे थे। कुछ वर्ष पहले उन्हें रिड रिवर बॉक्स नीलगिरी (Eucalyptus brownie) का पेड़ दिखा। इन पेड़ों में उनका पुराने सेमल (Bombax ceiba) के दो पेड़ दिखे जो लोधी गार्डन में लगे हुए हैं। प्रकाश के कार्यक्रमों में शिरकत करने वाली नोएडा की प्रीति खन्ना एक ऐसे ही वॉक को याद कर कहती हैं कि लोधी गार्डन्स के पेड़ों के बारे में जानना काफी रोचक होता है। दक्षिणी दिल्ली की शेख सराय में रहने वाली विप्रा मलिक का मानना है कि ऐसे ट्री वॉक के दौरान प्रकाश काफी तैयारी के साथ आती हैं और पेड़ों और हरियाली के बारे में कई रोचक जानकारियां देती हैं। मेफेयर गार्डन स्थित मखदूम साहब मस्जिद में कई वृक्ष लगे हुए हैं। फोटो- दीपन्विता गीता नियोगी हेरिटेज एक्सपर्ट रूपराई का लोगों को प्रकृति से जोड़ने का बिल्कुल अलग तरीका है। “मैं लोगों के बीच प्रकृति से संबंधित बातचीत करता हूं और उन्हें उसी दौरान पुरानी इमारते दिखाने ले जाता हूं। इनमें से कई इमारतों में प्रकृति से जुड़ाव दिखता है। कई इमारतों को फूलों की तर्ज पर बनाया गया है। इनमें सबसे प्रमुख है सफदरगंज का मकबरा, हुमायूं का मकबरा, लाल किला और कुतुब मीनार। मैं अपने प्रतिभागियों को टेसू या पलाश के फूल, कमल और आम की पत्तियों पर आधारित आकृतियों का इमारतों में प्रयोग दिखाता हूं,” कासिम बताते हैं। रूपराई कहते हैं कि हमारे पास तीन तरह की विरासत है, इमारतें, संस्कृति और कुदरती विरासत। “हर वॉक के दौरान मेरी कोशिश रहती है कि लोगों को तीनों तरह की विरासत से जुड़ी जानकारी साझा की जाए। इनमें कुदरती विरासत की जानकारियां भी शामिल होती हैं,” रूपराई बताते हैं। मुगल से लेकर अंग्रेज तक का योगदान है दिल्ली की हरियाली में यह सब जानते हैं कि मुगल बाग-बगीचों के काफी शौकीन थे। सैयद मोहम्मद कासिम कहते हैं कि मुगलों ने दिल्ली में सबसे अधिक बगीचे, कब्रगाह के पास बनाए थे। हालांकि, इनमें से कई बगीचे अब बचे ही नहीं। दिल्ली के चिराग दिल्ली दरगाह में खिरनी (Manilkara hexandra) का एक 600 साल पुराना वृक्ष मौजूद है, जो संभवतः दिल्ली का सबसे पुराना पेड़ है। महरौली पुरातत्व पार्क में सड़क के किनारे एक कतार में पेड़ लगे हुए हैं। फोटो- – दीपन्विता गीता नियोगी इस वृक्ष से जुड़ी जानकारी देते हुए कासिम कहते हैं, “यह विशाल वृक्ष अभी भी काफी जवान दिखता है। पूरी तरह से हरा-भरा और फलों से लदा हुआ। इसे फिरोज शाह तुगलक के जमाने में इसे लगाया गया था।” दिल्ली में ऐसे अन्य वृक्षों की जानकारी देते हुए कृषण बताते हैं कि खिरनी के पेड़ कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह और महरौली के जमाली-कमाली में भी देखे जा सकते हैं। ये भी दिल्ली के सबसे पुराने वृक्षों में शामिल हैं। कृषण 20वीं सदी में खत्म हुए कुछ बगीचों की बात भी करते हैं। जैसे हुमायूं मकबरा स्थित बगीचा। इनके अनुसार, “लॉर्ड कर्जन ने सब्जी उगाने और बैंडमिंटन खेलने के लिए इस बगीचे को उजाड़ा था।” उस समय के उजड़े कई बगीचों को दोबारा से लगाने की कोशिश भी हुई। मुगलों के बगीचों में कई बार बदलाव हुए हैं जिनमें से कुछ बदलावों से उनका नुकसान भी हुआ है। यह सारी जानकारी कृषण ने मोंगाबे से इमेल के जरिए बातचीत में बताया। अंग्रेजों का बनाया सुंदर नर्सरी। वे यहां कई प्रजाति के पौधे लेकर आए थे। फोटो- दीपन्विता गीता नियोगी अंग्रेजों की सुंदर नर्सरी के बारे में कासिम बताते हैं कि यहां 220 तरह के पेड़ हैं। उनमें से 20 से 30 प्रजाति के पेड़ काफी अनोखे हैं और दिल्ली के अलावा देश में कहीं नहीं पाए जाते। जैसे अफ्रीकी महोगनी का खूबसूरत पेड़ जो दिल्ली के अलावा कहीं नहीं दिखता। कृषण के मुताबिक अंग्रेजों ने बड़े रोचक तरीके के पौधे लगाए हैं। लुटियंस दिल्ली के रास्ते के लिए एडविन लुटियंस और डब्ल्यू आर मस्टो ने पेड़ों की प्रजाति का चुनाव किया था। “उन्होंने पेड़ चुनते समय कुछ गलतियां भी की थी। अब हमें उन गलतियों के साथ ही रहना है।” पेड़ लगाने के इतिहास पर रूपराई का कहना है कि अंग्रेजों ने दिल्ली के स्थानीय पेड़ों को हटाया भी। चारबाग के स्थानीय पेड़ों को हटाकर नीलगिरी और कीकर (Prosopis juliflora) के पेड़ लगाए गए जिससे दिल्ली की स्थानीय आबोहवा खराब हुई। शहर में हरियाली का महत्व फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफओए) से जुड़े वन अधिकारी सिमोन बोरेली का कहना है कि लोगों का जीवन स्तर सुधारने में शहरों में हरियाली का बड़ा महत्व है। सिमोन के अनुसार, “इन पेड़ों से शहरों में बढ़ती गर्मी पर काबू पाने में मदद मिलती है। जलवायु परिवर्तन और मौसम में आ रहे बदलाव की वजह से बढ़ती गर्मी की समस्या हमारे सामने है। इन पेड़-पौधों से हमें बारिश नियंत्रित कर, मिट्टी को बहने से रोकने और जमीन में नमी बनाए रखने में हमें मदद मिलती है। चिराग दिल्ली दरगाह स्थित खिरनी के इस पेड़ को 600 साल पुराना बताया जाता है। इसे 14वीं सदी में सूफी संत हजरत मखदूम ने लगाया था। फोटो- सैयद मोहम्मद कासिम सिमोन मानते हैं कि उष्णकटिबंधीय शहर जैसे दिल्ली में तापमान पर नियंत्रण काफी जरूरी है। अधिक से अधिक पेड़ होने के कई फायदे हो सकते हैं। “शोध करने की जरूरत है कि तेजी से विकास कर रहे शहर भविष्य में किस तरह की चुनौती का सामना करेंगे और हम उससे बचने के लिए आसपास के वातावरण को कैसे बचाएं,” सिमोन कहते हैं। बैनर तस्वीर- महरौली पुरातत्व पार्क से कुतुब मिनार का एक दृष्य। फोटो- दीपन्विता गीता नियोगी।