डल झील श्रीनगर की खूबसूरती बढ़ाने के साथ यहां आए लाखों प्रवासी पक्षियों का ठिकाना भी है।झील में प्रदूषण की वजह से वर्ष 2014 में श्रीनगर में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया।अतिक्रमण और प्रदूषण की वजह से गंदे हुए झील की सफाई के लिए आम शहरी सामने आ रहे हैं। एक सिगरेट की ठूंठ ने श्रीनगर के तारिक ए पतलू का जीवन बदल दिया। अब रोजाना जब अपनी सेहत की चिंता में लोग मॉर्निंग वॉक के लिए निकलते हैं तो तारिक भी अपना शिकारा लिए दिन की शुरुआत करते हैं। फर्क बस इतना है कि तारिक की चिंता में उनकी सेहत के साथ-साथ श्रीनगर के मशहूर डल झील के सेहत की चिंता भी शामिल होती है। तारिक के दिन की शुरुआत झील की सफाई से होता है। पिछले चौबीस घंटे में झील में फेका हुआ कूड़ा-कचरा सुबह होते होते सतह पर तैरने लगता है जिसे तारिक अपने शिकारे में बैठकर साफ करते हैं। कई वर्षों से झील की सफाई कर रहे तारिक इसकी शुरूआत का किस्सा सुनाते हैं। जर्मनी से आये एक सैलानी और एक सिगरेट की ठूंठ का इसमें बड़ा योगदान है। तारिक उस सैलानी के साथ नहर के किनारे टहल रहे थे। विदेशी मुल्क से आये उस सैलानी ने सिगरेट जलायी। सिगरेट पीने के बाद उसने उसे बुझाया और ठूंठ को अपने पास रख लिया। कारण पूछने पर उस सैलानी का कहना था कि ठूंठ से पानी जहरीला हो जाएगा। सैलानी की इस बात से पचास वर्ष के तारिक को कुछ अजीबो-गरीब एहसास हुआ। उन्होंने झील पर नजर डाली तो चारों तरफ गंदगी नजर आयी। झील के बीच में ही अपना गुजर-बसर करने वाले तारिक को अपना डल झील कुछ अलग दिखा। अपरिचित सा। झील की गंदगी देखकर तारिक बेचैन हो उठे। तारिक श्रीनगर के हांजी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जो डल झील में ही अपना जीवन व्यतीत करता है। लोग कहते हैं कि पृथ्वी पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं कश्मीर में है। पृथ्वी के इस स्वर्ग की भी खूबसूरती बढ़ाने वाले डल झील का यहां के स्थानीय जीवन में काफी योगदान है। डल झील लाखों प्रवासी पक्षियों को आशियाना है। इस झील की वजह से ही बाढ़ का पानी शहर में प्रवेश नहीं करता। कश्मीर के बेरीनाग में चल रहा सफाई अभियान। फोटो- बेरीनाग इको वाच लेकिन वर्ष 2014 में डल झील भी शहर को बाढ़ से बचा नहीं पाया। जान-माल का काफी नुकसान हुआ। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सब बढ़ते प्रदूषण की वजह से हुआ। तारिक इन सब के लिए यहां की नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं। कहते हैं, “क्या कोई यकीन कर सकता है कि शहर के पास मल इत्यादि के निकासी का कोई तंत्र मौजूद नहीं है। यहां घरों से निकलने वाला गंदा पानी सीधे जल स्रोतों में जा मिलता है। डल झील के आसपास अतिक्रमण और निर्माण की वजह से यह कंक्रीट के जंगल से घिर चुका है।” .. और कारवां बनता गया जर्मनी से आये सैलानी की नजर से झील को देखने के बाद, तारिक ने इसकी सफाई का बीड़ा अपने कंधों पर ले लिया। अब वे हर सुबह अपना शिकारा लेकर इसकी सफाई करते हैं। उन्होंने झील को बचाने के लिए कई आवेदन दिया और अतिक्रमण के खिलाफ शिकायतें की। दो वर्ष पहले उनकी पांच साल की बेटी जन्नत ने भी झील को साफ करने के अभियान में शामिल होने की इच्छा जाहिर की। झील बचाने के लिए उन्होंने एक फेसबुक पेज भी बनाया हुआ है और तब से दोनों इस अभियान में लगे हुए हैं। इतना ही नहीं, जन्नत की इस कोशिश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी ट्विटर पर समर्थन मिला। इसके बाद कई और लोग भी झील बचाने के अभियान में शामिल हुए। जन्नत ने बताया कि वह आगे चलकर वैज्ञानिक बनना चाहती है और ऐसे मशीन बनाना चाहती है जिससे डल झील की सफाई तेजी से हो सके। सफाई के बाद कई तरह के पक्षी दिखने लगे हैं जिसकी वजह से बर्ड वाचिंग जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं। फोटो- वेटलैंड रिसर्च सेंटर जन्नत की तरह ही 22 वर्ष के परवेज यूसुफ को घर के पास झील से इस काम की प्रेरणा मिली। वह कहते हैं, “मेरा घर पांपोर के पास छतलम झील से कुछ दूरी पर है। मैं वहां आ रहे प्रवासी पक्षियों को देखते हुए बड़ा हुआ हूं।” परवेज इस समय प्राणी विज्ञान से मास्टर डिग्री कर रहे हैं और वेटलैंड रिसर्च सेंटर पांपोर के निदेशक भी हैं। यह संस्था वेटलैंड की पारिस्थितिकी पर शोध करती है। इनका कहना है कि कश्मीर में जमीन पर फैले पानी के स्रोतों की संख्या में बड़ी कमी आई है। झेलम के आसपास दलदली भूमि पर रेलवे के बड़े प्रोजेक्ट और अंधाधुंध निर्माण की वजह से स्थिति और भी खराब हो गई है। एक अध्ययन के मुताबिक कश्मीर में पिछले पांच दशक में शहर के कॉलोनियों की वजह से 20 से अधिक झील खत्म हो गए हैं। खासकर दक्षिणी श्रीनगर में यह तेजी से हुआ है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वर्ष 2014 में राजधानी में बाढ़ का पानी घुस आया है और झेलम के कछार का इलाका कई हफ्तों तक डूबा रहा। “2014 का बाढ़ स्थानीय लोगों के लिए इशारा था। अगर पांपोर में चार झील नहीं होते तो हमारे इलाके में भी बाढ़ से तबाही मचती,” परवेज कहते हैं। श्रीनगर में बाढ़ के बाद झील बचाने का अभियान वर्ष 2014 में जब बाढ़ ने श्रीनगर में तबाही मचायी तो लोगों को झील और दूसरे जल स्रोतों का महत्व समझ आया। लोगों ने इन जलस्रोतों को बचाने की जरूरत समझी। पर्यावरण से जुड़े वकील नदीम कादरी इस जागरुकता को जमीनी अभियान में बदलना चाह रहे थे। वह कहते हैं कि वे किसी कॉर्पोरेट संस्था की तरह न चलकर एक ऐसा अभियान बनाना चाह रहे थे जिसमें हर सदस्य को बराबर समझा जाए और वे ग्रीन एम्बेसडर की तरह संस्था में रहे। जनवरी 2020 में उन्हें जम्मू कश्मीर इको वाच नाम की संस्था का निर्माण किया। इसमें उन्होंने तारिक और परवेज जैसे दर्जनों लोगों को एक मंच दिया। इस संस्था ने अपने आसापास जंगल, तालाब और झील बचाने का अभियान शुरू किया। इस वक्त संस्था के पास जम्मू कश्मीर, कारगिल और लेह के 23 जिलों में 25 इको वाच टीम है। पिछले कुछ महीनों में इस टीम ने बेरीनाग और कई अन्य जलस्रोतों की सफाई की। कौसर में भी ऐसा ही सफाई अभियान चला। कौसर नाग समुद्र तल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। संस्था सभी अभियानों के फोटो और वीडियो लेकर हर जिले के नाम से बने फेसबुक पेज पर डालती है। परवेज कहते हैं कि कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन ने उन्हें अपने आसपास की हालत देखने का मौका दिया और इस दौरान सफाई अभियान जारी रहा। जिला स्तर पर सेवानिवृत्त अधिकारी से लेकर वैज्ञानिक और स्कूल जाने वाले बच्चे वॉलंटियर की तरह जुड़े हैं और वे पानी में उतरकर साफ-सफाई का काम करते हैं। तारिक पतलू अपनी बेटी जन्नत के साथ। फोटो- तारिक पतलू इस संस्था में मुख्य तकनीकी सलाहकार की भूमिका निभाने वाले हायड्रॉलिक इंजीनियरिंग के जानकार अयाज रसूल कहते हैं कि उनके पास जम्मू कश्मीर इको वाच से पहले भी ऐसे लोगों का समूह था जो कि डल और वुलर झील बचाने का काम करते थे। हालांकि, अब लोगों में जागरुकता बढ़ी है और हमारे साथ आम शहरी भी जुड़ रहे हैं। कोरोना लॉकडाउन के बावजूद कोविड-19 से बचाव करते हुए नदी, तालाब और झीलों की सफाई का अभियान जारी रहा। जल स्रोतों के कैचमैंट एरिया में खर पतवार हटाने और उसे साफ रखने के बार में भी संस्था के सदस्यों में चर्चा होती है। अयाज कहते हैं कि लोगों के भीतर जागरुकता आई है और वह अपने पर्यावरण संसाधनों बचाने में गर्व महसूस करते हैं। साफ-सफाई के अभियान के अलावा इको वाच के सदस्य ग्रीन इंटेलिजेंस की तरह काम करने लगे हैं। इसका मतलब पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर वे अपने आंख-कान खुला रखने लगे हैं। इस संस्था के सदस्य अब इतने सशक्त होने लगे हैं कि वे जंगल माफिया को पेड़ों की कटाई और झील को गंदा करने से रोकने लगे हैं। अगर इस दौरान कोई बड़ा मामला आता है तो वे कोर्ट तक भी जाते हैं। इको वाच से 15 वकील जुड़े हैं जो कानूनी मामलों को देखते हैं।