कश्मीर में जन्मे गजल कादरी ने इस तस्वीर को बनाया है। 

वापस चलन में नदी बचाने के पारंपरिक तरीके

परवेज बताते हैं कि पुराने समय में किसान खेत से लेकर झेलम तक छोटी नालियां बनाते थे ताकि बारिश का पानी खेत में न लगकर सीधे नदी में पहुंच जाए। इस पद्धति के कश्मीरी में व्येन कादून कहते हैं। यह तरीका आज भी बाढ़ से बचाने में कारगर हो सकता है। तारिक ने भी बताया कि स्थानीय हांजी समुदाय को डल झील को गंदा होने के पीछे जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन किसी एक समुदाय को दोषी ठहराना सही नहीं है। जो लोग झील पर अतिक्रमण करते हैं उनपर कार्रवाई जरूर होनी चाहिए। असल में हांजी समुदाय झील पर अपने जीविकोपार्जन के लिए निर्भर है और वे अपने पशुओं को खिलाने के लिए झील में मौजूद खर-पतवार का इस्तेमाल करते हैं। इससे झील की सफाई होती रहती है। इको वाच जैसी संस्थाओं का प्रयास है कि स्थानीय समुदाय को झील बचाने का जिम्मा दिया जाए। इसके लिए 250 इको डेवलपमेंट कमेटी का निर्माण किया गया है और वहां के स्थानीय लोगों को इसका जिम्मा दिया गया है। परवेज कहते हैं कि उनका सफाई अभियान काफी सफल हुआ है। सफाई के बाद छतलम वेटलैंड को इलाके का सबसे शानदार झील माना जाने लगा है। अब वहां कई तरह के पक्षी दिखने लगे हैं जिसकी वजह से बर्ड वाचिंग जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं।

 

बैनर इलस्ट्रेशन- कश्मीर में जन्मे गजल कादरी ने इस तस्वीर को बनाया है। अब वे अमेरिका में रहते हैं।

Article published by Manish Chandra Mishra





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