- राजस्थान के उदयपुर में फॉस्फोरस के खदान मौजूद हैं, जिनकी वजह से वहां के स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर हो रहा है।
- इस खदान से निकलने वाले जहरीले रसायनों की वजह से ग्रामीण टीबी और फेफड़े के कैंसर जैसी बीमारियां झेलने को अभिशप्त हैं।
- खदान संचालन करने वाली कंपनी खदान से कोई नुकसान होने से इंकार करती हैं, लेकिन स्थानीय विधायक इस मुद्दे को विधानसभा में उठाते रहे हैं।
सिंचाई की व्यवस्था होने के बावजूद अगर फसल सूखने या मुरझाने लगे तो परेशान किसान को बताया जाता है कि मिट्टी में फॉस्फोरस की कमी हो गई है। फिर किसान उर्वरक का इस्तेमाल करता है ताकि फसल फिर से लहलहा उठे। लेकिन फसल में जान फूंकने वाले इस उर्वरक के बनने में कितने इंसानी जीवन बेजान हो जा रहे हैं इसपर अभी किसी की नजर नहीं है।
इस उर्वरक को बनाने के लिए फॉस्फोरस या फॉस्फेट खदानों से आता है। इन खदानों के आसपास रहने वाले लोग इसकी कीमत चुकाते हैं। इनके जीवन में फेफड़े का कैंसर, टीबी जैसी जानलेवा बीमारियां सामान्य होती जा रही हैं।
राजस्थान के उदयपुर जिले में मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर झमरकोटरा गांव में देश की सबसे बड़ी फॉस्फेट की खदान है। इसी गांव में रहती हैं लोहरी मीणा जिन्होंने गर्भ में ही अपने दो बच्चे गंवा दिए। इसे यह अपने पूर्व जन्म में किए गए पापों का फल मानती हैं।
हाल-चाल पूछने पर अपनी थकी हुई आवाज में लोहरी मीणा कहती हैं, “यह तो भगवान की मर्जी है साहब। पिछले जन्म कुछ पाप किए होंगे जो इस जन्म में यह सामने आ रहा है। ”
हालांकि, जानकार बताते हैं कि लोहरी की इस हालत की वजह गांव के पास मौजूद फॉस्फेट खदान है।
झामरकोटरा पंचायत के सरपंच भेरूलाल मीणा बताते हैं कि लोहरी ही नहीं बल्कि गांव की कई और महिलाओं का गर्भपात हो चुका है। झामरकोटरा के अलावा उमरदा, लकड़वास, चांदसा जैसे 13 गांव खनन से प्रभावित हैं। इन गांवों में भील, माणा और गड़रिया आदिवासी रहते हैं।
झामरकोटरा में पत्थर से फास्फेट निकालने का काम वर्ष 1968 में शुरू हुआ था। इस खदान में 74.68 मिट्रिक टन फास्फेट होने का अनुमान है। राजस्थान सरकार की कंपनी राज्य खान और खनिज लिमिटेड (आरएसएमएमएल) ने 1370.37 हेक्टेयर इलाके को फास्फेट निकालने के लिए लीज पर दिया हुआ है।
खदान से निकलने वाली फास्फेट की मात्रा का 19 गुना अधिक मलवा निकलता है। यहीं से इलाके में समस्या शुरू होती है।
फॉस्फेट ने खराब किया हवा-पानी
भूरेलाल बताते हैं कि इस खदान से निकलने वाली धूल की वजह से इलाके की हवा खराब हो गई है। यहां लोगों की जिंदगी में फेफड़े की बीमारी, पथरी, लीवर की खराबी, गर्भपात और कम वजन के शिशु का पैदा होना जैसी समस्याएं आम हो गईं हैं।
कॉलेबरेशन ऑफ चाइनीज यूनिवर्सिटी के एक शोध के मुताबिक फॉस्फेट खनन के समय फ्लोराइड हवा में मिलता है, जिसका कुप्रभाव अन्य खदानों के मुकाबले कहीं अधिक होता है। इस शोध में सामने आया कि इस खदान से शीशा, कैडमियम, क्रोमियम, आर्सेनिक, यूरेनियम और रेडियम जैसे तत्व भी हवा में मिलते रहते हैं जिससे हड्डी, लिवर, किडनी और फेफड़ों सहित शरीर के अंदरुनी अंगों पर गहरा असर होता है।
महाराणा भूपल शासकीय अस्पताल उदयपुर के अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर रमेश जोशी कहते हैं कि झामरकोटरा के आसपास रहने वाले लोग खदानों में होने की वाली ब्लास्टिग की धूल के शिकार हैं। जोशी ने समझाया कि फेफड़े की समस्या तीन-चार साल में सिलिकोसिस और फेफड़े के कैंसर तक में तब्दील हो रही है।
जागरण जन विकास समिति से जुड़े गमेश पुरोहित कहते हैं कि आरएसएमएमएल ने पूरे इलाके को खोदकर रख दिया है। खुले में मौजूद खदान को खनन के लिए सूखा रखना होता है। उन्होंने आरोप लगाया कि कंपनी ने जमीन के पानी को सोखकर खदानों को सूखा रखा जिससे इलाके में अब पानी की कमी भी हो गई है। यहां का भूजल स्तर नीचे पहुंच गया है और पीने के पानी की किल्लत शुरू हो गई है।
पुरोहित कहते हैं कि मलबा रखने के लिए बने तालाब का पानी जहरीला हो गया और यह जहरीला पानी बारिश के साथ उदयपुर के साफ पानी के तालाबों में जा मिला है। इस तरह से उदयपुर के पीने का पानी भी प्रदूषित हो रहा है।
सरपंच भूरेलाल ने बताया कि उन्होंने गांव के पानी की जांच भी करवायी थी। हैंडपंप और कुएं का पानी एसिडिक हो गया है जो कि पीने लायक नहीं बचा है। हालांकि, प्रशासन को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
फॉस्फेट खदान से पर्यावरण को नुकसान
खदानों को लीज पर देने के काम में ग्राम सभा को भी शामिल किया जाना होता है, लेकिन गांव वालों का आरोप है कि पटवारी ने यह काम अपने हाथ में ले रखा है। एक अध्ययन के मुताबिक झामरकोटा इलाके में 500 हेक्टेयर जंगल के जमीन को खनन के लिए कंपनी को दे दिया गया।
गांव के किसान लालूराम मीणा बताते हैं कि खदान होने के बावजूद इलाके में गंभीर बेरोजगारी है। खदान में इलाके के लोगों को काम ने देकर बाहर के लोगों को काम दिया जाता है।
जगदीश कुमार पुरोहित के अध्ययन में सामने आया कि आस-पास के गांव के लोगों का जीवन कई तरह से प्रभावित हो रहा है। खेती में घाटे की वजह से लोगों ने खदान को अपनी जमीन बेच दीं, और अब उनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है।
पुरोहित ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि एक समय में गांव जंगल से घिरा हुआ था। लेकिन अब यहां हरियाली का कोई नामोनिशान नहीं दिखता। अब यहां सिर्फ धूल और धुंआ दिखता है। जमीन की ऊपरी सतह भी इस धूल से बर्बाद हो गई है।
“खेती की जमीन पर गांव के लोग आश्रित थे। खनन कंपनी ने यहां इलाके में फ्लोरिन गैस भी छोड़ना शुरू किया है। फॉस्फोरस और फ्लोरिन की वजह से इस इलाके में खेती करना अब असंभव हो गया है,” पुरोहित कहते हैं।
गणेश के मुताबिक अब इलाके के चारागाह भी खत्म हो गए हैं। ब्लास्टिंग की वजह से तालाबों का पानी पशुओं के पीने लायक नहीं रहा। “हमने देखा है कि यहां प्रदूषित पानी पीकर आसपास के बंदर देखते-देखते मर गए। दूसरे जानवरों में भी गर्भपात की समस्या देखी गई है,” गणेश ने बताया।
गणेश के मुताबिक बगदारा नेचर पार्क में 1989 में करीब 125 मगरमच्छ होते थे, जो कि अब 25 ही बचे हैं। इलाके में पक्षी और मधुमक्खियों की संख्या भी कम हो रही है।
उदयसागर झील में रहने वाले जलीय जीवों पर भी फॉस्फोरस का असर दिखता है।
इलाके के विधायक भी लाचार
लकड़वास पंचायत के पूर्व सरपंच जग्गूराम मीणा ने बीते 20 साल को याद कर बताया कि उन्होंने यहां कोई विकास नहीं देखा है। इलाके में न सड़क बनी, न ही कोई अस्पताल। वह आरोप लगाते हैं कि गांव में 100 से अधिक परिवार के पास शौचालय तक नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएमएमएल ने इस इलाके को कुछ दिया नहीं है, बल्कि सिर्फ लूटा है।
उदयपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी से जुड़े विधायक फूल सिंह मीणा चुनकर आए हैं। उन्होंने इस समस्या को स्वीकार किया कि वे लाचार हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने विधानसभा में भी इस मुद्दे को उठाया लेकिन किसी ने इसपर ध्यान नहीं दिया।
विधायक ने बताया कि उन्होंने आरएसएमएमएल को भी खनन से हो रहे नुकसान के बारे में रिपोर्ट दिखाते हुए बात की, लेकिन कंपनी ने इस बात को खारिज कर दिया।
आरएसएमएमएल का कहना है कि कंपनी पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए सबकुछ कर रही है। ग्रुप के महाप्रबंधक मुकेश चतुर्वेदी कहते हैं, “हम इलाके के पर्यावरण को बेहतर बनाने पर जोर दे रहे हैं। हमने यहां काफी पौधे लगाए। एक बांध भी बनाया ताकि दूषित पानी आसपास के तालाबों में ना जाए।”
(काजल 101Reporters.com के स्टाफ रिपोर्टर हैं। इस रिपोर्ट के लिए सोहैल खान ने भी जानकारी इकट्ठी की है।)
बैनर तस्वीर- झामरकोटरा के इस खदान से फॉस्फेट निकाला जाता है। इसकी वजह से ग्रामीणों की जिंदगी तबाह हो गई है। फोटो- सोहैल खान