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बूंद बूंद का संघर्ष: 85 वर्ष के आबिद सुरती ने अपने 13 सालों के प्रयास से बचाया करोड़ों लीटर पानी

बूंद-बूंद पानी बचाने वाले आबिद सूरती की कहानी, पानी बचाने में लगाई पूरी जिंदगी

बूंद-बूंद पानी बचाने वाले आबिद सूरती की कहानी, पानी बचाने में लगाई पूरी जिंदगी

  • आबिद सुरती का मुंबई के मीरा रोड से शुरू हुआ पानी बचाने का अनोखा प्रयास अब देश के कई शहरों तक पहुंच चुका है और अब सरकारें भी इस अभियान में शामिल हो रही हैं।
  • इनके पानी बचाने के इस प्रयास को संयुक्त राष्ट्र के साथ उद्योग और फिल्म-जगत के बड़े दिग्गजों की सराहना मिल चुकी है।
  • भारत अभूतपूर्व पानी की किल्लत से जूझ रहा है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में करीब दो लाख लोग जरूरत भर पानी उपलब्ध न होने के कारण अपनी जान गंवा देते हैं।

आपके घर में नल से पानी गिरने की टप-टप की आवाज़ आती है तो आप क्या करते हैं? सामान्यतः लोग अनसुना कर देते हैं। लेकिन देश में एक 85 साल का एक ऐसा भी बुजुर्ग है जो कभी किसी दूसरे के घर के नल से टपकते पानी की आवाज़ से इस कदर परेशान हुआ कि उसने आस-पड़ोस के घरों के नल ठीक करने का बीड़ा उठा लिया। पिछले 13 साल से लोगों के नल ठीक करने के उनके इस मुहिम को बॉलीवुड के कलाकारों से लेकर, सरकार और संयुक्त राष्ट्र तक ने पानी बचाने का अनोखा प्रयास बताया है।

जब हर रविवार मुंबई के मीरा रोड में रहने वाले आबिद सुरती एक महिला वॉलेंटियर और एक प्लंबर के साथ अपने इलाके के झुग्गी और छोटे छोटे बिल्डिंग के फ्लैट का दरवाज़ा खटखटाते हैं तो लोगों को एकबारगी यकीन नहीं होता कि इस बुजुर्ग को दूसरों के नल ठीक करने में इतनी गहरी दिलचस्पी क्यों हैं। शायद वे लोग इस सत्य से वाक़िफ़ नहीं है कि देश में लाखों लोग हर साल पानी कि किल्लत की वजह से जान गंवा देते हैं।  

लेकिन आबिद सुरती ने इस किल्लत को खुद महसूस किया है। उस तकलीफ़ का आवेग ऐसा है कि उन्होंने 2007 में जो पानी बचाने का अभियान शुरू किया वह आज भी निरंतर जारी है।

अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा मुंबई के फुटपाथ पर गुजार देने वाले आबिद प्रत्येक रविवार को नल ठीक करने निकलते हैं। फोटो- आबिद सूरती/फेसबुक
अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा मुंबई के फुटपाथ पर गुजार देने वाले आबिद प्रत्येक रविवार को नल ठीक करने निकलते हैं। फोटो- आबिद सुरती/फेसबुक

गुजरात में इनका जन्म हुआ। अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा मुंबई के फुटपाथ पर गुजार देने वाले आबिद प्रत्येक रविवार, एक चुने हुए इलाके में जाते हैं, दरवाज़ा खटखटाते हैं, इजाज़त लेते हैं और पानी के नल की छोटी छोटी समस्याओं का निदान करते हैं। इनका दावा है कि ऐसा करते हुए महज एक साल- फरवरी 2007 से फरवरी 2008 तक- में इन्होंने 1,666 घरों के दरवाज़े खटखटाए। कुल 414 नलों को ठीक किया और इस तरह 4,14,000 लीटर पानी बचाया। मोंगाबे से बात करते हुए आबिद सुरती कहते हैं कि हर साल की उपलब्धि ऐसी ही है और अब तक इन्होंने करोड़ों लीटर पानी बचाया है।

एक नल के लगातार टपकने से बर्बाद होने वाले पानी की बर्बादी को लेकर अलग-अलग अनुमान मौजूद है। ग्रीनसूत्र नाम की एक संस्था ने एक कैलक्यूलेटर बनाया है जिसपर बूंद के हिसाब से पानी के नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके अनुसार अगर एक सेकंड में एक नल से एक बूंद पानी टपकता है तो एक दिन में 22 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। इसके अनुसार एक महीने में इस तरह 660 लीटर और साल में 8,030 लीटर पानी की बर्बादी होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि तीन आदमी के एक परिवार को रोजाना करीब 340 लीटर पानी की जरूरत होती है। इस हिसाब से एक नल से साल भर में बर्बाद होने वाले पानी से तीन लोगों के परिवार का करीब 24-25 दिन का काम चल सकता है।

बहरहाल, इन सब की शुरुआत कैसे हुई पूछने पर बहुमुखी प्रतिभा के धनी सुरती  बताते हैं कि इनके बचपन का काफी हिस्सा फुटपाथ पर गुजरा। गुजरात से पलायन करके आया इनका पूरा कुनबा डोंगरी के एक खोली में रहता था। मुंबई के झुग्गियों में एक छोटे से कमरे के घर को खोली कहते हैं। आबिद सुरती के परिवार में लोग इतने अधिक थे कि आधे लोगों को कमरे के बाहर फुटपाथ पर, सोना पड़ता था।

“मुझे याद है भोर के चार बजे का समय होता था और मेरी अम्मी पानी के लिए लगे लंबी कतार में खड़ी रहती थीं। कभी-कभी मुझे भी खड़ा किया जाता था। इसके पहले मैंने गुजरात में अपनी दादी को पानी के बंदोबस्त के लिए मीलों का सफर तय करते देखा था। इतनी मशक्कत के बाद एक से दो बाल्टी पानी मिल पाता था जिसमें पूरा दिन चलाना होता था। पानी की अहमियत का पता बचपन में चल गया,” आबिद कहते हैं।  यह आजादी के समय के आस-पास की बात है। 

रविवार को नल ठीक करने के अलावा आबिद घरों के सामने पानी बचाने का संदेश देने वाले पोस्टर भी लगाते हैं। फोटो- आबिद सूरती/फेसबुक
रविवार को नल ठीक करने के अलावा आबिद घरों के सामने पानी बचाने का संदेश देने वाले पोस्टर भी लगाते हैं। फोटो- आबिद सुरती

पानी को लेकर यह संघर्ष इन्हें हमेशा याद रहा। दोस्तों के घर जाने पर पानी के गिरने की टप-टप की आवाज़ जिसे इनके दोस्त अक्सर अनसुनी कर देते थे, वह इन्हें चुभती थी। “कई दोस्तों के घर के नल से पानी टपकता रहता था। यह टप-टप की आवाज़ मेरे दिमाग पर चोट करती थी। जब मैं इन दोस्तों से बोलता कि यार इसे ठीक क्यों नहीं कराते तो उनका जवाब होता कि महज चंद बूंदें ही तो बर्बाद हो रही हैं या कभी कहते कि प्लंबर ही नहीं मिलता है,” आबिद बताते हैं।  

उन्हीं दिनों इन्होंने एक अखबार में पढ़ा कि इस तरह टप-टप कर एक नल से करीब महीने भर में हजार लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। उस खबर को पढ़कर एक दिन इन्होंने सोचा कि एक प्लमबर लेकर दोस्तों के घर का नल खुद ही ठीक करा दें।

ऐसा करने पर दोस्त भी खुश हुए और इन्हें भी असीम संतुष्टि मिली। इन्हें लगा कि यह काम तो करने लायक है। छः महीने तक वे हर रविवार एक बिल्डिंग चुनते और प्लमबर लेकर उस बिल्डिंग के सारे घरों के दरवाज़े खटखटाते। जिनके घर का नल खराब होता उसे ठीक कर देते। फिर एक दिन एक अंग्रेज़ी अखबार से फोन आया और खबर छपी। “खबर पढ़कर पहला मैसेज शाहरुख खान का आया। और भी लोग मैसेज करने लगे तो पता चला कि मैं कोई बड़ा काम कर रहा हूं,” आबिद सुरती बताते हैं।

“यह सब 2007 की बात है। जब मुझे लगा कि संसाधन की कमी होगी तभी कहीं से मुझे मेरे एक साहित्यिक कार्य पर एक लाख रुपये का पुरस्कार मिल गया” सुरती ने बताया। इन्होंने अब तक 80 किताबें लिखी हैं। कॉमिक कैरेक्टर ‘बहादुर’ इन्हीं का रचना  है। प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका धर्मयुग में करीब तीस साल तक प्रकाशित ‘कार्टून कोना /ढब्बू जी’ के रचयिता आबिद सुरती ही हैं। इनकी बहुचर्चित व्यंग कृति ‘काली किताब’ की प्रस्तावना धर्मवीर भारती ने लिखी थी। इनके कहानी-संकलन ‘तीसरी आंख’ को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

अपने उस साहित्यिक पुरस्कार की राशि को इन्होंने अपने पानी बचाओ अभियान पर खर्च कर डाला। बाद के दिनों में तो कई बड़े लोगों ने इस अभियान को आगे बढ़ाने में मदद की। वर्ष 2007 में ही आबिद सुरती ने ‘ड्रॉप डेड फाउंडेशन’ नाम से एक संस्था भी बनायी। सुरती इस संस्था के इकलौते कर्मचारी हैं। 

देश-विदेश में मिली सराहना तो कई सरकारों ने भी अपनाया यह मॉडल

आबिद सुरती  के इस काम की सराहना संयुक्त राष्ट्र से लेकर उद्योग जगत के आनंद महिंद्रा, हर्ष गोयनका और बॉलीवुड के दिग्गज जैसे अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान इत्यादि ने भी की है। अमिताभ बच्चन ने एक निजी चैनल के प्रोग्राम में इनको अतिथि के तौर पर बुलाया था। इस अभियान के बारे में जानने के बाद सदी के महानायक के तौर पर चर्चित अमिताभ ने निजी तौर पर इनकी संस्था को 11 लाख रुपये की मदद भी की थी।  

इसके अतिरिक्त दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल की सरकार ने भी देश की राजधानी में इस योजना को लागू किया और कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए आबिद सुरती  को आमंत्रित किया। वर्ष 2019 में दिल्ली सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर एक प्रोग्राम की शुरुआत की जिसमें दिल्ली सरकार की तरफ से वॉलेंटियर, लोगों के घर-घर घूम कर नल ठीक करेंगे।

दिल्ली सरकार की इस कोशिश पर वाटरएड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वीके माधवन कहते हैं कि लोगों के घरों के खराब नल को सही करना उचित कदम है। इस तरह सरकार लोगों को पानी की किल्लत को लेकर जागरूक कर रही है, यह  भी सही है। पर साथ में सरकार को खुद भी जागरूक होने की जरूरत है। इस तरह नल के टपकने से कितना पानी बर्बाद होता है इसका समुचित अध्ययन नहीं हुआ है। पर घरों के बाहर बहुत बड़ी मात्रा में पानी बर्बाद होता है यह सबको मालूम है। दिल्ली सरकार के द्वारा कुल पानी के सप्लाई का 40 फीसदी से अधिक लोगों के घर तक पहुंचने से पहले ही बर्बाद हो जाता है। यह नुकसान सिर्फ सरकार ही रोक सकती है, वीके माधवन समझाते हैं।

खैर, आबिद सुरती के काम को आगे बढ़ाने वालों में अभी कई और नाम हैं। इनकी मुहिम से प्रभावित होकर फ़र्न होटल और रिसॉर्ट  ने 2019 कई शहरों में इस अभियान की शुरुआत की। इस कंपनी के सीईओ सुहैल कांनामपीली ने कहा कि आबिद सुरती जी के मुहिम को आगे बढ़ाते हुए इन कंपनी के सारे होटल अपने शहरों के हाउसिंग सोसाइटी में जाकर खराब नल को ठीक करेंगे। एक साल में इन्होंने दस करोड़ लीटर पानी बचाने का लक्ष्य रखा। इनके दावे के अनुसार मुंबई, जयपुर, राजकोट, रणथंबोर, हैदराबाद और कोलकाता में ऐसे कार्य का विस्तार किया जा चुका है।  अर्बन क्लैप नाम के स्टार्टअप ने 2016 में घोषणा की कि कंपनी मुफ़्त में लोगों के नल ठीक करेगी। कंपनी ने घोषणा की कि अगर कोई इनके ऐप पर जाकर प्लंबर बुलाता है तो कंपनी उसका खर्च वहन करेगी।  

आबिद सुरती कहते हैं कि विदेशों में भी कई लोगों ने इनके काम को आगे बढ़ाने की इच्छा जाहिर की है।  कई लोगों के पत्र आते रहते हैं जिसमें लोग इच्छा जताते हैं कि वो भी उनसे जुड़कर यह काम करना चाहते हैं। “पर मेरा कहना है कि इसमें जुड़ने की कोई जरूरत नहीं। अगर मैं कर सकता हूं तो आप भी कर सकते हैं,” आबिद सुरती कहते हैं।

बिन पानी सब सून: भविष्य के लिए खतरे की घंटी                                              

आबिद सुरती के इस प्रयास को देश की वर्तमान स्थिति के आईने में बेहतर समझा जा सकता है। भारत ऐतिहासिक पानी की किल्लत से जूझ रहा है। वर्ष 2018 में आई नीति आयोग की  एक रिपोर्ट  के अनुसार देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की सामान्य दैनदिनी ज़रूरतों के लिए भी संघर्ष करते हैं। करीब दो लाख लोग जरूरत भर पानी उपलब्ध न होने के कारण अपनी जान गंवा देते हैं। पानी की किल्लत को लेकर भविष्य में स्थिति और विकट होती दिख रही है। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक देश में पानी की जरूरत, कुल उपलब्ध पानी के मुकाबले दोगुनी हो जानी है। इसका तात्पर्य यह है कि करोड़ों और लोग पानी के लिए संघर्ष करने पर मजबूर होंगे।

भविष्य में पानी को लेकर कैसी स्थिति आने वाली है इसको ऐसे भी समझा जा सकता है। एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार देश में दुनिया की 17.1 फीसदी आबादी और 20 फीसदी मवेशी रहते हैं पर महज चार प्रतिशत पानी उपलब्ध है। इसी संस्थान ने स्पष्ट किया है कि भारत भविष्य में पानी को लेकर अलहदा संकट झेलने जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार अगर किसी देश में प्रति-व्यक्ति प्रतिवर्ष पानी की उपलब्धता 1,700 घनमीटर से कम है तो उसे ‘पानी की किल्लत’ (वाटर-स्ट्रेस्ड) वाले श्रेणी में रखा जाता है। भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल की उपलब्धता अभी 1,545 घनमीटर है। इस लिहाज भारत पानी की किल्लत झेल रहे देशों की श्रेणी में आ चुका है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घटकर 1,401 घनमीटर हो जाएगी।  वर्ष 2050 तक यह घटकर 1,191 घनमीटर हो जानी है। इस तरह देश में पानी से जुड़ी मुसीबत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

पानी की कमी सिर्फ प्यास पर ही नहीं असर करेगी बल्कि भूख को भी प्रभावित करेगी। नीति आयोग की दूसरी रिपोर्ट जो 2019 में प्रकाशित हुई उसके अनुसार 2030 तक भारत की जनसंख्या डेढ़ अरब हो जाएगी और सबके लिए भोजन उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती होगी। इसके पीछे भी भविष्य में होने वाली पानी की समस्या ही है। वर्तमान में ही भारत की दो मुख्य फसलें- गेंहू और चावल- इस वजह से प्रभावित होने लगी हैं। करीब 74 प्रतिशत गेंहू की खेती का क्षेत्र और 65 प्रतिशत धान की खेती का क्षेत्र सूखे से प्रभावित है।

इन तथ्यों के मद्देनज़र अगर आबिद सुरती के पानी बचाने के प्रयास को देखें तो तस्वीर कुछ और ही उभरती है।

 

बैनर तस्वीर- आबिद सुरती ने पानी की कमी को खुद के जीवन में भी महसूस किया है और वह इसकी कीमत को समझते हुए पानी बचाने में लगे हैं। फोटो- आबिद सुरती/फेसबुक

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