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इंसानों से टकराव की वजह से कहीं विलुप्त न हो जाएं ये भालू

इंसानों से टकराव की वजह से कहीं विलुप्त न हो जाएं ये भालू
  • रिहायशी इलाके में भालू (स्लॉथ बीयर) और इंसानों के बीच टकराव की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस जानवर के अंगों की तस्करी भी होती है और इस वजह से इसपर शिकार का भी खतरा बना रहता है।
  • जहां इंसानों की आबादी अधिक है वहां कई बार इस टकराव में भालू की जान भी चली जाती है।
  • वैज्ञानिकों को इन भालुओं के भोजन से संबंधित एक नई जानकारी मिली है। मध्यप्रदेश के जंगलों में ये लैंटाना झाड़ी पर उगने वाले फल को भी खाते हैं।

स्लॉथ बियर भालू की एकमात्र प्रजाति है जो अपने से हजारों गुना छोटी चींटियों का शिकार कर उन्हें अपने भोजन के तौर पर इस्तेमाल करता है। इस भालू के मुख्य भोजन में दीमक, दूसरे छोटे कीड़े और जंगल के फल इत्यादि शामिल हैं। यह जानवर इंसानी दुनिया से एक खास स्तर पर दूरी बनाये रखना चाहते हैं। फिर भी इस प्रजाति के भालुओं का जीवन संकट में है। 

वर्तमान में ये भालू कई तरह के संकट से जूझ रहे हैं। इंसानों की बढ़ती आबादी और जंगल के पास हो रहे विकास कार्य से भी इनके जीवन में खलल पैदा हो रहा है। कर्नाटक स्थिति एक गैर-लाभकारी संस्था वाइल्डलाइफ एसओएस ने एक रिसर्च में पाया कि सड़क के नजदीक भालुओं ने अपने रहने के लिए मांद बनायी हुई है। अपने बच्चों को खतरे में देखकर ये भालू काफी आक्रामक हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में ये बाघ जैसे फुर्तीले और खतरनाक जानवर से भी भिड़ने  से नहीं कतराते।  इंसानों से खतरा महसूस होने पर जो स्थिति बनती है उसका अनुमान लगाया जा सकता है।

विलुप्त होने की कगार पर है भालुओं की यह प्रजाति

भारतीय उपमहाद्वीप में भालू की यह प्रजाति (Melursus ursinus) विलुप्त होने की कगार पर है। वर्ष 2016 में के. योगानंद द्वारा किए गए एक सर्वे से यह पता चला कि ये भालू, देश के घने जंगलों में पाए जाते हैं।  भारत के पश्चिमी घाट से लेकर दक्षिण के जंगलों तक या राजस्थान के अरावली पर्वतों और उत्तर में हिमालय पर्वत के जंगलों तक में भी इनको देखा जा सकता है। वर्ष 2015 में एक अध्ययन में सामने आया कि दक्षिण और मध्य भारत को जोड़ने वाले जंगलों में भी यह जानवर अच्छी तादाद में मौजूद है।

भारत में इन भालुओं की गणना 2006 में हुई थी जिसमें अनुमान लगाया गया था कि देश में इनकी कुल संख्या 6000 से 11,000 के बीच है। फोटो- प्रकाश मरदराज
भारत में इन भालुओं की गणना 2006 में हुई थी जिसमें अनुमान लगाया गया था कि देश में इनकी कुल संख्या 6000 से 11,000 के बीच है। फोटो- प्रकाश मरदराज

भारत में इन भालुओं की गणना 2006 में हुई थी जिसमें अनुमान लगाया गया था कि देश में इनकी कुल संख्या 6000 से 11,000 के बीच है। इनकी गणना करने वाली टीम ने बताया था कि इनमें से आधे से अधिक भालू संरक्षित क्षेत्र से बाहर रहते हैं। इस टीम ने भी जंगलों की बिगड़ती दशा और भालुओं के ठिकानों पर इसके होने वाले असर को चिह्नित किया था। इसी गणना में भालुओं की तस्करी और अन्य समस्याओं की तरफ भी इशारा किया गया था। भालुओं की संख्या पता करने वाली इस टीम ने स्पष्ट किया था कि देश में इस प्रजाति के भालू संकट में हैं।

सोलह साल गुजर गया पर स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखता। भालुओं पर सारे संकट आज भी वैसे ही मंडरा रहे हैं।

क्यों बढ़ रहा है भालुओं का इंसानों से टकराव

ओडिशा के वन्यजीव शाखा के साथ नॉर्थ ओडिशा यूनिवर्सिटी के हिमांशु पलेई कहते हैं कि ओडिशा के 50 में से 41 जंगल परिक्षेत्र में भालू और इंसान के टकराव की घटना सामने आई है। इनमें ज्यादातर मामलों के पीछे भालुओं के रहने के ठिकाने यानी जंगल की बिगड़ती दशा को ही जिम्मेदार माना गया।

“दक्षिण ओडिशा में संरक्षित क्षेत्र के बाहर जंगलों को साफ कर मक्के की फसल उगायी जा रही है। कभी ये इलाका भालुओं के विचरण का क्षेत्र हुआ करते था। अब यहां भालुओं की आबादी कम होती जा रही है,” पलेई कहते हैं।

ये भालू जंगल के आसपास के खेतों में लगी फसल बर्बाद करते हैं और ऐसे क्षेत्र में इनका लोगों से टकराव होता है। ओडिशा में हुए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि लगभग हर मौसम में लगने वाली फसलों पर भालू की नजर होती है।

भालू शांत स्वभाव के होते हैं लेकिन अपने बचाव में हमलावर हो जाते हैं। फोटो- वाइल्डलाइफ एसओएस
भालू शांत स्वभाव के होते हैं लेकिन अपने बचाव में हमलावर हो जाते हैं। फोटो- वाइल्डलाइफ एसओएस

इंसानों की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए भालुओं से इंसानों के बढ़ते टकराव को रोकना मुश्किल प्रतीत होता है। हिमांशु पलेई के शोध के मुताबिक बालासोर के जंगल में 2002 से 2013 के बीच 167 बार इंसान और भालू के बीच मुठभेड़ दर्ज किए गए। इनमें से अधिक मामले जंगल के किनारे वाले इलाके के हैं। जंगल के महुआ और जंगली फलों पर आश्रित लोग इस मुठभेड़ के शिकार हो रहे हैं।

इसी तरह मध्यप्रदेश के कान्हा-पेंच इलाके में वर्ष 2001 से लेकर 2015 के बीच 166 बार भालुओं ने इंसानों पर हमला किया। इन हमले में गोंड समुदाय के लोग रीछ के निशाने पर आए जो कि महुआ बीनने या घास चराने के वास्ते जंगल गए थे।  

ओडिशा में बदले की भावना में आकर भालुओं को मारना कोई नई बात नहीं है। पलेई और उनकी टीम ने पाया कि पिछले 12 साल में सात भालुओं को लोगों ने मार दिया।

भालू हमलावर नहीं होते

भालू और इंसानों से जुड़े टकराव की घटनाओं को देखकर लग सकता है कि वे हमलावर स्वभाव के होते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। हाल में हुए एक शोध की माने तो भालू अपने बचाव में ही हमला करते हैं।

शोधकर्ताओं ने कर्नाटक में 1985 से 2016 के बीच हुए हमलों के शिकार लोगों से बातचीत की तो पाया कि भालू सिर्फ खतरा महसूस होने पर ही हमला करते हैं। इन विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला कि अगर इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जागरूक किया जाए तो ऐसे टकराव को कम किया जा सकता है।  ऐसा ही कुछ अनुभव महाराष्ट्र में भी सामने आया है।

पलेई का कहना है कि ऐसे कई टकराव के पीछे अन्य स्थानीय और सामाजिक कारण भी होते हैं। ओड़िशा में सुबह या शाम के समय लोग शौच के लिए घरों के बाहर निकलते हैं। ऐसे ही समय में भालू भी काफी सक्रिय होते हैं। “सरकारी प्रयास से शौचालयों की संख्या तो बढ़ गई, पर पानी के लिए लोग अब भी बाहर निकलते हैं,” पलेई कहते हैं।

बालासोर के मानद वन्यजीव वार्डन प्रकाश मरदाराज के मुताबिक जंगल में जलावन के लिए लकड़ी लाने वाले भी भालुओं के हमले के शिकार होते हैं। प्रकाश स्लॉथ बियर पर बनी अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर, आईयूसीएन) विशेषज्ञ समूह के सदस्य भी हैं।

मध्यप्रदेश से स्लॉथ बियर के बारे में नई जानकारी

मध्यप्रदेश के जंगल लैंटाना (Lantana camara) नाम की झाड़ियों की वजह से काफी परेशानी झेल रहे हैं। ये झाड़ियां तेजी से बढ़ती हैं और जंगल के दूसरे पौधों वाले इलाके में पहुंच जाती हैं। सामान्यतः जानवरों को इसपर उगने वाला फल अच्छा नहीं लगता। लेकिन ऐसा देखा जा रहा है कि लैंटाना पर लगने वाले छोटे बेरी यहां के भालुओं को काफी पसंद आ रहे हैं।

वैसे तो तमिलनाडु और केरल से ऐसी खबर पहले भी आ चुकी है जिसमें भालुओं के लैंटाना खाने की पुष्टि हुई है। लेकिन नए रिसर्च में पता चला है कि इंसानी आबादी से घिरे इलाकों में लैंटाना इस प्रजाति के भालुओं का प्रमुख भोजन बन रहा है। मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ से यह  जानकारी सामने आई है।

ये लैंटाना की बेरी है। नई जानकारी के मुताबिक मध्यप्रदेश के जंगलों में ये भालुओं को पसंद आ रही है। फोटो- आथिरा पेरिंचेरी
ये लैंटाना की बेरी है। नई जानकारी के मुताबिक मध्यप्रदेश के जंगलों में ये भालुओं को पसंद आ रही है। फोटो- आथिरा पेरिंचेरी

लैंटाना बेरी भालुओं के सबसे प्रिय छः फलों में से एक है। भालू जो फल खाते हैं उसके बीजों को जंगल में फैलाने का भी काम करते हैं। संभव है कि लैंटाना के बीज भी भालुओं की वजह से मध्यप्रदेश के जंगलों में तेजी से फैल रहे हैं। बांधवगढ़ में बढ़ता लैंटाना हाल के वर्षों में वन विभाग के लिए सिरदर्द बना हुआ है।

भालू के शिकार का खतरा बरकरार

मध्य भारत के राज्यों में भालुओं का शिकार बदस्तूर जारी है। मध्यप्रदेश वन विभाग के स्पेशल टास्क फोर्स के प्रमुख रितेश सिरोठिया कहते हैं कि मध्यप्रदेश के शहडोल और छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में भालुओं पर शिकार का खतरा बना रहता है। इसकी वजह है इन इलाकों में संरक्षित क्षेत्र के बाहर भी भालुओं की अच्छी-खासी आबादी।

सिरोठिया के अनुसार भालुओं को लेकर लोगों में कई अंधविश्वास है। इसलिए इनके अंगों की तस्करी भी होती है।

पिछले कुछ सालों में मध्य प्रदेश के वन विभाग के सामने भालुओं के शिकार के मामले आए। ऐसे पांच मामले में सामने आया कि भालुओं के कई अंग गायब हैं। वर्ष 2019 में स्पेशल टास्क फोर्स ने एक ऐसे गिरोह का पर्दाफाश किया जिनपर पिछले 15 वर्ष से इस प्रजाति के भालू और बाघों के शिकार का आरोप था।

“स्लॉथ बियर के अंग की अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी मांग है। इनका इस्तेमाल चीन में पारंपरिक दवा बनाने में इस्तेमाल होता है,” वाइल्डलाइफ एसओएस के कटिक सत्यनारायनन बताते हैं। सत्यनारायनन की संस्था एशिया का सबसे बड़ा स्लॉथ बियर पुनर्वास केंद्र चलाती है। वह कहते हैं कि भालू के छोटे बच्चों को तस्करी के द्वारा नेपाल ले जाया जाता है। वहां मनोरंजन के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है।

 

बैनर तस्वीर- जंगल में लगे ट्रैप कैमरा में भालू और उनके बच्चों की ये तस्वीर आई है। फोटो- वाइल्डलाइफ एसओएस

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