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दशकों बाद पंजाब की नदी में फिर नजर आ रहे घड़ियाल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का भी योगदान

ब्यास नदी की कछार में रेत पर धूप सेंकता घड़ियाल। रेत खनन की वजह से इनका यह स्थान छिन सकता है, जिस पर ये आराम करने के साथ-साथ अंडा भी देते हैं। फोटो- विवेक गुप्ता

ब्यास नदी की कछार में रेत पर धूप सेंकता घड़ियाल। रेत खनन की वजह से इनका यह स्थान छिन सकता है, जिस पर ये आराम करने के साथ-साथ अंडा भी देते हैं। फोटो- विवेक गुप्ता

  • पंजाब में दशकों तक यह माना जाता रहा कि घड़ियाल विलुप्त हो गए हैं। पर मध्य प्रदेश के मुरैना से लाए गए 47 घड़ियाल के बूते पंजाब में पुनः इनके संरक्षण की उम्मीद जगी है। लखनऊ से भी कुछ घड़ियालों को लाकर पंजाब की नदी में छोड़ने की तैयारी चल रही है।
  • राजा-महाराजाओं के शिकार और बैराज बनने की वजह से घड़ियालों का सफाया हुआ था। यहां तक कि मतस्य पालन विभाग भी घड़ियालों को मारने का ठेका निकालता था। अभी भी कई जगहों पर घड़ियालों के खाल देखने को मिल जाते हैं।
  • घड़ियाल के इस संरक्षण के लिए प्रेरणा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से मिली। पाकिस्तान ने सिंधु नदी में कुछ घड़ियाल छोड़े थे लेकिन वहां उनका संरक्षण नहीं हो पाया। भारत-पाकिस्तान के संबंधों में तल्खी की वजह से वहां पुनः संरक्षण के प्रयास नहीं हो पाए।

दशकों से पंजाब में यह माना जा रहा था कि घड़ियाल खत्म हो गए। तीन साल पहले इस जलजन्तु को लेकर एक छोटी सी कोशिश हुई और फिर इसके संरक्षण की उम्मीद को पंख लग गए।

मध्य प्रदेश से लाए गए इन घड़ियालों को बीते तीन साल में छोटे-छोटे समूहों में ब्यास नदी में छोड़ा गया। इसी महीने इस बात को तीन साल होने वाले हैं। इसकी सफलता को देखकर इस परियोजना से जुड़े लोग उत्साहित हैं और अब उत्तर प्रदेश से घड़ियाल लाकर संरक्षण को आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं।

संरक्षण के इस अभियान में मुख्य भूमिका निभाने वाले बी.सी. चौधरी ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि पंजाब ने घड़ियालों के संरक्षण से जुड़ी सबसे मुश्किल चुनौती पर फतह हासिल कर लिया है। इस अभियान का सबसे महत्वपूर्ण चरण था वयस्क घड़ियालों को प्राकृतिक माहौल में छोड़ना।

खुशखबरी यह है कि पंजाब सरकार के कई सर्वेक्षण में स्पष्ट हुआ है कि खुले वातावरण में भी ये घड़ियाल जिंदा हैं और सक्रिय भी। इस सर्वेक्षण में यह सामने आया कि खुले वातावरण में भी इन घड़ियालों की मृत्यु दर काफी कम है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि ये घड़ियाल स्थानीय परिवेश में खुद को ढालने में सफल हो रहे हैं।

इस सफलता पर संतोष जताते हुए चौधरी कहते हैं कि अब अगला महत्वपूर्ण कदम होगा इनका प्रजनन। देखना यह है कि ये घड़ियाल इस माहौल में स्वतः प्रजनन कर अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं कि नहीं। किसी भी संरक्षण परियोजना का यह सबसे खास चरण माना जाता है।

पंजाब के घड़ियाल अभी पूरी तरह वयस्क नहीं हुए हैं। लेकिन आने वाले 4-5 सालों में ये प्रजनन करने की स्थिति में होंगे। “जितनी आसानी से इन घड़ियालों ने नए वातावरण में खुद को ढाला है, यह देखते हुए मुझे भरोसा है कि घड़ियाल प्रजनन भी करेंगे और इस तरह पंजाब में इनकी संख्या भी बढ़ेगी,” चौधरी कहते हैं।

पंजाब स्थित ब्यास नदी में जलक्रीडा करता घड़ियाल। इस नदी में 47 घड़ियाल छोड़ जा चुके हैं। फोटो- वन और वन्यजीव संरक्षण विभाग, पंजाब
पंजाब स्थित ब्यास नदी में जलक्रीड़ा करता घड़ियाल। इस नदी में 47 घड़ियाल छोड़ जा चुके हैं। फोटो- वन और वन्यजीव संरक्षण विभाग, पंजाब

“मादा घड़ियाल 10-12 वर्ष की आयु में अंडा देने की क्षमता हासिल कर लेती है। नर घड़ियाल के वयस्क होने की सबसे बड़ी पहचान है मुंह पर मिट्टी के घड़े जैसा आकार का बन जाना,” चौधरी बताते हैं। इनके अनुसार, इसी वजह से पानी के इस जीव को भारतीय उपमहाद्वीप में घड़ियाल के नाम से बुलाया जाता है।

घड़ियालों को रास आई पंजाबी आबो-हवा

भारत सरकार के घड़ियाल परियोजना (प्रोजेक्ट क्रोकोडाइल) की शुरुआत 1975 में हुई थी। पंजाब में घड़ियालों का संरक्षण इसी परियोजना के तहत किया जा रहा है। इसके तहत मुरैना घड़ियाल प्रजनन केंद्र से 47 घड़ियालों को पंजाब लाया गया। तीन साल के दौरान इन्हें समहू में पंजाब के ब्यास नदी में छोड़ा गया। दिसंबर 2017 में 10, जनवरी 2018 में 15 और मार्च 2018 में 22 घड़ियालों को छोड़ा गया। 

पंजाब के मुख्य वन्यजीव वार्डन आरके मिश्रा ने बताया कि दो घड़ियालों को छोड़कर बाकी 45 सुरक्षित हैं। दो की इस दौरान मृत्यु हो गई। विभाग द्वारा किए गए दो सालाना सर्वे में इनकी संख्या 18 और 24 देखी गई जो कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से काफी अच्छा माना जाएगा।

मिश्रा कहते हैं कि सभी घड़ियालों को हरिके बैराज से 30-40 किलोमीटर के दायरे में छोड़ा गया था। अमृतसर और तरन तारन जिले से सटे नदी के कछार वाले इलाके में इन घड़ियालों को अक्सर देखा जाता है। हालांकि, अब वे दूसरे इलाकों में भी फैल गए हैं।

“हमारे जमीनी दस्ते ने कुछ घड़ियालों को हरिके बैराज से करीब 180 किलोमीटर दूरी पर भी देखा है। इसे अच्छा संकेत माना जाएगा,” मिश्रा कहते हैं।

मिश्रा ने बताया कि इस सफलता को ध्यान में रखकर विभाग अगले कुछ महीनों में 25 और नन्हें घड़ियालों को खुले वातावरण में छोड़ने की तैयारी कर रहा है।

पंजाब के मुख्य संरक्षक वन (वन्यजीव) बसंत राज कुमार बताते हैं कि इस कार्यक्रम को शुरू करने से पहले एक सर्वे हुआ था जिसमें पाया गया कि ब्यास नदी में 155 घड़ियाल छोड़े जा सकते हैं। “हालांकि हम पुनः सर्वे करेंगे पर हमारे पास इन घड़ियालों को छोड़ने के बाद भी इस नदी में कई और घड़ियाल छोड़ने की गुंजाइश बची रहेगी,” वह कहते हैं।

उन्होंने बताया कि पंजाब को 25 और घड़ियाल के बच्चे मिलने वाले हैं पर इस बार ये बच्चे लखनऊ से लाए जाएंगे। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि घड़ियाल की प्रजातियों में विविधता लाई जा सके जिससे एक ही परिवार के घड़ियाल आपस में प्रजनन न कर सकें।

सर्दियों की शुरुआत में नदी के किनारे रेत पर घड़ियाल धूप सेंकते नजर आ रहे हैं।

हरिके के फॉरेस्ट गार्ड सतनाम सिंह ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि ब्यास नदी में शेरोन वाघा गांव के पास एक रेत का टीला बना हुआ है जिसपर घड़ियाल आराम फरमाते नजर आते हैं। चित्ता शेर गुरुद्वारा से सटे हुए रेत के मैदान में कई घड़ियाल एकसाथ देख जा सकते हैं।

महाराजाओं के शिकार से विलुप्त हुए घड़ियाल का संरक्षण आसान नहीं था

“सरकार की तरफ से ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है जिससे यह पता चले कि पंजाब में घड़ियाल कहां-कहां फैले थे और कैसे खत्म हो गए। पंजाब के राजा-महाराजाओं द्वारा घड़ियाल मारने की कई कहानियां प्रचलित हैं। शिकार के अतिरिक्त सिंचाई के लिए बैराज बनने की वजह से घड़ियाल के रहने का ठिकाना छिनता गया और वे खत्म होते गए,” मिश्रा कहते हैं।

ब्यास नदी किनारे रेत पर आराम फरमाते घड़ियाल। फोटो- वन और वन्यजीव संरक्षण विभाग, पंजाब
अमृतसर जिले के पास नदी किनारे आराम फरमाते घड़ियाल। फोटो- वन और वन्यजीव संरक्षण विभाग, पंजाब

वन्यजीवों के जानकार और चंडीगढ़ वाइल्डलाइफ एडवायजरी बोर्ड के सदस्य विक्रमजीत सिंह ने मोंगाबे को बताया कि शिकार की ट्रॉफियां कपूरथला के विला बुएना विस्टा में लटकी दिखेंगी जिससे पता चलता है कि पहले घड़ियालों का शिकार हुआ करता था। महाराजा जगजीत सिंह ने 13 जनवरी 1913 में एक 15 फीट 10 इंच का घड़ियाल मार गिराया था, जिसकी खाल आज भी वहां सुरक्षित रखी गई है।

“उस घड़ियाल को .375 मैगनम डबल बैरल की गोली से एक वार में ही मार दिया गया था। वह राइफल हॉलेंड एंड हॉलेंड की बनाई हुई थी,” वह कहते हैं।

डब्लूडब्लूएफ के फील्ड ऑफिसर गीतांजलि कुंवर ने मोंगाबे इंडिया से 1914 का गुरुदासपुर जिले के गजेटियर साझा किया जिसमें मिलता है कि घड़ियाल यहां काफी मात्रा में मौजूद थे।

बीसी चौधरी कहते हैं कि 50 के दशक तक घड़ियाल पंजाब में पाए जाते थे। यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के लागू होने से पहले का समय है। “घड़ियाल का शिकार उस वक्त सामान्य था। रिकॉर्ड्स में यह भी मिलता है कि मतस्य पालन विभाग ने घड़ियाल मारने के लिए भी ठेका भी निकाला था। पंजाब में यह मान्यता थी कि घड़ियाल सारी मछलियां चट कर जाते हैं,” चौधरी कहते हैं।

घड़ियाल की वापसी की शुरुआत

पंजाब में घड़ियाल की वापसी दो बड़ी घटनाओं से प्रेरित है। साल 2000 के आसपास पाकिस्तान सरकान ने सिन्धु नदी में घड़ियाल की वापसी की कोशिश की। वहां भी घड़ियाल विलुप्त होने की कगार पर थे। इससे प्रेरित होकर देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने पंजाब में सिन्धु नदी की सहायक नदियों में ऐसे प्रयास शुरू किए। वर्ष 2005 में डब्लूआईआई ने एक प्रस्ताव भी सरकार को सौंपा।

इसके बाद दूसरी बड़ी प्रेरना 2007 में सिन्धु नदी में डॉलफिन की वापसी से मिली। यह विश्वास जगा कि इस तरह से संरक्षण संभव है।


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विक्रमजीत सिंह कहते हैं कि पाकिस्तान ने अपनी नदी में घड़ियाल की वापसी की कोशिश की लेकिन असफल रहा। इसकी वजह उनके यहां घड़ियाल न होना है। “पाकिस्तान ने भारत से घड़ियाल लेने की कोशिश की, लेकिन दो देशों के आपसी संबंधों की वजह से उन्हें नाउम्मीद होना पड़ा। ऐस सुना कि अब नेपाल से घड़ियाल लाने की कोशिश हो रही है,” सिंह कहते हैं।

गांव वालों में पहले घड़ियाल का डर था, लेकिन अब वे संतुष्ट

गगरेवाल गांव से सटे नदी में घड़ियाल की पहली खेप खुले में छोड़ी गई थी। पहले गांव वालों को डर लगा था, लेकिन अब स्थिति सामान्य है। गांव के सरपंच हरभजन सिंह ने मोंगाबे इंडिया को कहा कि हमें पहले लगा हमारे मवेशियों पर घड़ियाल का हमला हो जाएगा। हालांकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। लोग अक्सर घड़ियाल को आराम करते देखते हैं।

इसी गांव के राजा सिंह जो विभाग की तरफ से घड़ियाल पर नजर रखते हैं, कहते हैं, “घड़ियाल के बारे में कई गलतफहमियां थी, वो अब दूर हो चुकी हैं। जब कोई उनके नजदीक जाता है तो वे डरकर पानी में घुस जाते हैं,” सिंह कहते हैं।

ब्यास नदी के किनारे बसने वाले ग्रामीण घड़ियाल संरक्षण की कोशिशों में सहयोग करते हैं। फोटो- ब्यास नदी किनारे रेत पर आराम फरमाते घड़ियाल। फोटो- वन और वन्यजीव संरक्षण विभाग, पंजाब
ब्यास नदी के किनारे बसने वाले ग्रामीण शुरुआत में घड़ियाल को लेकर सशंकित थे, लेकिन अब उनकी गलतफहमियां दूर हो रही हैं। फोटो- वन और वन्यजीव संरक्षण विभाग, पंजाब

हरिके के जिला वन अधिकारी नलिन यादव के मुताबिक शुरुआत में किसानों ने इसका विरोध भी किया था। हालांकि बाद में किसान जागरूक हो गए।

बसंत राज कुमार कहते हैं कि दुनिया में कहीं भी घड़ियाल इंसान या जानवर पर हमला नहीं करता। ये मछली खाने वाले सरिसृप हैं।

चुनौतियां जस की तस

बीसी चौधरी कहते हैं कि घड़ियाल संरक्षण के मामले में आगे कई चुनौतियां हैं। “हम घड़ियाल को कम से कम परेशान करना चाहते हैं। उन्हें खनन, नदी किनारे होने वाली व्यापारिक गतिविधियों, मछली पकड़ने की वजह से परेशानी हो सकती है,” चौधरी ने बताया।

ब्यास नदी के 175 किलोमीटर के क्षेत्र को 2017 में संरक्षण क्षेत्र घोषित किया गया। चौधरी कहते हैं कि बावजूद इसके उस इलाके में किस तरह की गतिविधियों को रोका जाना है इसका निर्णय नहीं हो सका है।

संरक्षण में रेत खनन एक बड़ी चुनौती है। विक्रमजीत सिंह कहते हैं कि रेत के टीले खत्म होने से घड़ियाल के आराम करने की जगह, अंडा देने का स्थान छिन जाएगा।  इससे उनके खत्म होने का खतरा बढ़ा जाएगा। इसके अलावा नदी की क्षमता का आंकलन किए बिना अगर अधिक मात्रा में घड़ियाल छोड़ा गया तब भी दिक्कत हो सकती है। “हरिके बैराज में बाढ़ के समय घड़ियाल के फंसने का खतरा भी बना रहता है,” सिंह कहते हैं।

बैनर तस्वीर- ब्यास नदी की कछार में रेत पर धूप सेंकता घड़ियाल। रेत खनन की वजह से इनका यह स्थान छिन सकता है, जिस पर ये आराम करने के साथ-साथ अंडा भी देते हैं। फोटो- वन और वन्यजीव संरक्षण विभाग, पंजाब

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