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केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना पर पर्यावरण मंत्रालय ने मांगे नए आंकड़े, नए सिरे से होगा आंकलन

सूर्यास्त के समय केन नदी का दृष्य। केन-बेतबा लिंक परियोजना के दूसरे चरण में 40 मीटर ऊंचा और 2,218 मीटर लंबा बांध प्रस्तावित है। फोटो- क्रिस्टोफर क्रे/फ्लिकर 

सूर्यास्त के समय केन नदी का दृष्य। केन-बेतबा लिंक परियोजना के दूसरे चरण में 40 मीटर ऊंचा और 2,218 मीटर लंबा बांध प्रस्तावित है। फोटो- क्रिस्टोफर क्रे/फ्लिकर 

  • मध्य प्रदेश में केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना के दूसरे चरण के तहत बनने वाले बांध के सिलसिले में पर्यावरण मंत्रालय से जुड़े विशेषज्ञों के पैनल ने नए सिरे से आंकड़ों की मांग की है।
  • इन नए आंकड़ों के आधार पर विशेषज्ञों का यह पैनल संभावित नुकसान का अनुमान लगाएगा। इसी आधार पर यह तय किया जाएगा कि पुनः जन सुनवाई की जरूरत है या नहीं।
  • इस परियोजना के खिलाफ यह तर्क दिया जाता रहा है कि इससे जंगल नष्ट होंगे और पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ संरक्षण की कोशिशों को धक्का लगेगा।

भारत की पहली नदी जोड़ो परियोजना के तहत केन-बेतवा लिंक के दूसरे चरण में बांध बनने की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। हालांकि पर्यावरण मंत्रालय इसको लेकर कुछ असहज है। मंत्रालय के पैनल ने इस परियोजना से जुड़े आंकड़ों को नए सिरे से पेश करने को कहा है ताकि इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का अनुमान लगाया जा सके। इसी आधार पर तय किया जाएगा कि आगे जन सुनवाई की जरूरत है या नहीं।

केन-बेतबा लिंक परियोजना के दूसरे चरण में 40 मीटर ऊंचा और 2,218 मीटर लंबा बांध प्रस्तावित है। यह बांध मध्यप्रदेश के दिदौनी गांव में बनने वाला है। इससे मध्यप्रदेश के 90,000 हेक्टेयर में खेतों की सिंचाई हो सकेगी।

इस परियोजना पर 30.65 अरब रुपए खर्च का अनुमान है। इसके लिए 3,730 हेक्टेयर जमीन चाहिए जिसमें 968.24 हेक्टेयर जंगल की जमीन भी शामिल है। परियोजना पूरी होने के बाद 2,723.70 हेक्टेयर जमीन डूब क्षेत्र में आ सकती है।  इसमें सात गांव पूरी तरह और पांच गांव आंशिक रूप से डूब सकते हैं।

इस परियोजना को अक्टूबर 29, 2020 को मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) की अनुमति मिलने की उम्मीद थी।

फरवरी 2016 में पहली बार इस परियोजना का मूल्यांकन किया गया था। मई 2016 में ईएसी ने पर्यावरण संबंधी मंजूरी के लिए इसकी अनुशंसा की थी। हालांकि, परियोजना में जंगल की जमीन भी शामिल है इसलिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने मध्य प्रदेश सरकार को राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी और वन विभाग से भी अनुमति लेने को कहा था।

वर्ष 2019 में वन विभाग की अनुमति मिलने के बाद परियोजना को अक्टूबर 2020 में पर्यावरण संबंधी मंजूरी के लिए पेश किया गया।

विशेषज्ञों के समूह की हालिया बैठक में यह सामने आया कि अगर वन विभाग की सहमति 18 महीने के भीतर नहीं जमा की जाती है तो ऐसी परियोजनाओं को पर्यावरण मूल्यांकन समिति के पास दोबारा भेजा जाता है। पर्यावरण संबंधी मंजूरी की तीन साल से अधिक पुराने आंकड़ों के आधार पर नहीं दी जाती है।

इस नियम के मुताबित मूल्यांकन समिति ताजा आंकड़ों को दोबारा इकट्ठा करवा सकती है या उस आधार पर परियोजना का मूल्यांकन दोबारा कर सकती है।

इन्हीं नियमों के आधार पर पर्यावरण मूल्यांकन समिति ने केन-बेतवा परियोजना के ताजा आंकड़े मांगे हैं क्योंकि वर्ष 2019 में 31 महीनों बाद वन विभाग ने इस योजना को सहमति दी थी।

“पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन के लिए जो आंकड़ों का इस्तेमाल हुआ वह तीन साल से अधिक पुराना है,” पर्यावरण मूल्यांकन समिति की बैठक के मिनट्स में कहा गया।

केन नदी मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से होकर गुजरती है। फोटो- एजेटी जॉन सिंह, डब्लू डब्लूएफ इंडिया, एनसीएफ/विकिमीडिया कॉमन्स
केन नदी मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से होकर गुजरती है। फोटो- एजेटी जॉन सिंह, डब्लू डब्लूएफ इंडिया, एनसीएफ/विकिमीडिया कॉमन्स

विवादों में रही है केन-बेतवा परियोजना

परियोजना को हरी झंडी देने से पहले विशेषज्ञ समूह की यह सावधानी देखकर अधिक आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह परियोजना अपनी शुरुआत से ही विवादों में रही है।

केन-बेतवा को जोड़ने की यह परियोजना केंद्र सरकार द्वारा चिन्हित नदी जोड़ो परियोजना के तहत पहली योजना है। सरकार ने देश भर में ऐसे 30 नदी जोड़ो परियोजना को चिह्नित किया है। इस परियोजना को 1980 में ही शुरू करने की कोशिश हुई थी।

यह कल्पना की गई थी कि केन नदी घाटी से निकले अतिरिक्त पानी को बेतवा नदी में डालकर उत्तरप्रदेश के सूखा ग्रस्त इलाके को पानी पहुंचाया जाएगा। परियोजना की वजह से 9,000 हेक्टेयर भूमि पानी के भीतर जाने वाली थी जिसमें 5,803 हेक्टेयर भूमि पन्ना टाइगर रिजर्व की है।

वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने उस आधार पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया था जिसके बूते वन्यजीवों के मामले पर सहमति दी गयी थी। कमेटी ने इस परियोजना के आर्थिक पहलू का भी संज्ञान लिया और इसकी व्यावहारिकता पर सवाल उठाए।

वन्यजीव और संरक्षण के जानकार मानते हैं कि इस परियोजना की वजह से जंगल की जमीन पानी में डूब रही है जिससे विलुप्तप्राय प्रजाति जैसे बाघ और गिद्धों का नुकसान होगा।

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएन डीआरपी) के हिमांशु ठक्कर कहते हैं, “ऐसी स्थिति में जब केन-बेतवा परियोजना के आर्थिक पक्ष पर ही सवाल हो तो इसके दूसरे चरण की पर्यावरण से जुड़ी मंजूरी लेने की क्या जरूरत है। विशेषज्ञों के समूह ने नए आंकड़ों की मांग कर सही किया है। जरूरी है कि परियोजना के पहले चरण का आंकलन अतिरिक्त पानी की मात्रा के आधार पर हो और इस आधार पर नए चरण को मंजूरी दी जाए।”

पर्यावरण मूल्यांकन समिति ने वन्यजीव अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, जैविक रूप से संवेदनशील इलाके और वन्यजीव कानूनों के अंतर्गत आने वाली प्रजातियों की संख्या के बारे में भी जानकारियां मांगी  है।

मध्यप्रदेश के वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे कहते हैं कि अब बड़े बांध बनाने का समय नहीं रहा है। “कोई भी विकास के खिलाफ नहीं है और असल में पानी एक जरूरी मुद्दा है। लेकिन, अब बड़े बांध बनाने का कोई औचित्य नहीं है। सरकार छोटी परियोजनाओं पर काम कर पानी की समस्या को खत्म कर सकती है,” वह कहते हैं।

पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ संरक्षण को लेकर मिली कामयाबी को बांध से खतरा बताते हुए वह कहते हैं, “सरकार संरक्षण के क्षेत्र में मिली इस सफलता को क्यों व्यर्थ करना चाहती है। पन्ना के बाघ खत्म हो गए थे जिन्हें बाहर से लाकर एकबार फिर संरक्षित किया गया है। ऐसी परियोजनाएं विनाश और पलायन लेकर आएगी।”

सुप्रीम कोर्ट की समिति की रिपोर्ट ने पाया है कि बाघ, गिद्ध और घड़ियाल को बचाने के लिए जिस तरह की लैंडस्कैप मैनेजमेंट प्लान पर काम करने की जरूरत है, उससे केन बेतवा परियोजना आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं रह जाती।

बैनर तस्वीरः सूर्यास्त के समय केन नदी का दृष्य। केन-बेतबा लिंक परियोजना के दूसरे चरण में 40 मीटर ऊंचा और 2,218 मीटर लंबा बांध प्रस्तावित है। फोटो- क्रिस्टोफर क्रे/फ्लिकर 

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