- बिहार के बेगुसराय स्थित कावर झील को बिहार का पहला रामसर स्थल घोषित किया गया है।
- इस घोषणा के बाद से कावर झील के संरक्षण को गति मिलने की उम्मीद है। एक अध्ययन के अनुसार इस झील का आकार 1984 में 6786 हेक्टेयर था जो कि घटकर 2012 में मात्र 2032 हेक्टेयर रह गया।
- रामसर स्थल की घोषणा ईरान के रामसर शहर में वर्ष 1971 में हुए कई देशों के बीच की संधि के तहत की जाती है। ऐसे स्थल पर्यावरण और जैव-विविधता के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
- कावर झील के आसपास रहने वाले मछुआरों के लिए यह आजीविका का साधन है। इस घोषणा के बाद से लोगों के बीच झील के संरक्षण को लेकर उम्मीद बढ़ी है।
बिहार की राजधानी पटना से तकरीबन डेढ़ सौ किलोमीटर दूर बेगुसराय में एशिया का सबसे बड़ा गोखुर झील है। इसका नाम कावर ताल है। जब नदी अपना रास्ता बदल देती है और वापसी के समय पानी का अथाह भंडार छोड़ जाती है तो गोखुर झील का निर्माण होता है।
अब कावर ताल के साथ एक और उपलब्धि जुड़ गई है। इसे रामसर स्थल घोषित किया गया है। रामसर स्थल की घोषणा ईरान के रामसर शहर में वर्ष 1971 में हुए कई देशों के बीच की संधि के तहत की जाती है। ऐसे स्थल पर्यावरण और जैव-विविधता के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
बेगुसराय जिला मुख्यालय से तकरीबन 22 किलोमीटर दूर उथले पानी का यह झील पक्षियों का पसंदीदा स्थान है। यहां सैकड़ों जलीय पौधे, स्थानीय और प्रवासी पक्षी और मछलियों का बसेरा है।
कावर झील के लिए साल 2020 अच्छा रहा है। पिछले साल यहां सूखे जैसी स्थिति थी। लेकिन इस साल अच्छी बारिश की वजह से यहां भरपूर पानी है। “अच्छी बारिश ने हमारा काम आसान कर दिया। पहले पूरे दिन मेहनत के बाद भी एक किलो मछली नहीं पकड़ पाता था, लेकिन इस साल रोजाना 6-7 किलो मछली पकड़ना आम बात हो गई है,” राम शंकर साहनी कहते हैं।
पैंतालीस वर्षीय राम शंकर मछुआरा समुदाय से आते हैं। इनकी रोजी-रोटी कावर झील पर निर्भर है। रामसर स्थल की घोषणा के बाद उन्हें लगता है कि अब झील का संरक्षण हो पाएगा। झील पर अतिक्रमण की वजह से काफी खतरा मंडरा रहा है।
कावर ताल के अलावा इस साल उत्तराखंड के आसन झील को भी रामसर स्थल के रूप में चुना गया है। अब देश में रामसर स्थल की संख्या 39 हो गई है।
मछुआरा समुदाय के कुछ लोग इस घोषणा से अनभिज्ञ हैं और उन्हें इसका महत्व भी नहीं पता। “हमलोग पढ़ें-लिखे नहीं है कि इसका मतलब हमें समझ आएगा। इस घोषणा से अगर हमारे आमदनी बढ़े तब तो यह अच्छा है। हमारी स्थिति दिन-ब-दिन खराब ही होती जा रही है,” सत्तर वर्ष के लालू साहनी ने कहा। पिछले पांच दशक से इनकी रोजी-रोटी इसी झील के सहारे चल रही है।
रामसर कंवेन्शन के मुताबिक कावर ताल 2620 हेक्टेयर इलाके में फैला हुआ है। “यह स्थान गंगा के मैदानी इलाके के 18 वेटलैंड में शामिल है। मानसून में यह लबालब भर जाता है और पानी की गहराई 1.5 मीटर तक होती है। इनकी जल संग्रहण की क्षमता काफी अच्छी है। इसकी वजह से आस-पास के इलाके में बाढ़ से भी सुरक्षा मिलती है। वहीं सूखे के समय यह पानी खेती के काम आता है। बिहार की 70 प्रतिशत भूमि पर बाढ़ का संकट बना रहता है।,” रामसर कंवेन्शन ने इस घोषणा से साथ झीलों की व्याख्या की।
इस घोषणा का स्वागत पर्यावरणविद् भी कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि इसके बाद परिस्थितियां बदलेंगी। “कावर झील की लगातार खराब हो रही स्थिति को लेकर देश भर के पर्यावरणप्रेमी चिंतित थे। अतिक्रमण और दूसरी इंसानी गतिविधियों की वजह से जैव विविधता के लिहाज से महत्वपूर्ण तालाब को काफी क्षति हुई है। अब राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि इस ताल को बचाकर रखे। जैव विविधता को बनाए रखने के लिए पक्षियों का अवैध शिकार भी रोकना होगा, इसमें स्थानीय समुदाय की भागीदारी भी सुनिश्चित कर सकते हैं,” बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक और अध्यक्ष अशोक घोष कहते हैं।
झील में पानी की कमी की वजह समझाते हुए घोष कहते हैं कि यहां अधिक गाद जम गया है। आगे बताते हुए कहते हैं कि जब जलीय पौधों की वजह से पानी में ऑक्सीजन कम हो जाता है तो दूसरे जलीय जीव मरने लगते हैं। इस वजह से पानी की गुणवत्ता भी खराब होने लगती है।
“बूढ़ी गंडक नदी से यह झील जुड़ी हुई है, लेकिन गाद की वजह से यह जुड़ाव खत्म हो गया और पानी कम होने लगा। इस साल अच्छी बारिश की वजह से हालात ठीक हुए हैं,” घोष कहते हैं।
झील का सबसे बड़ा दुश्मन अतिक्रमण और अवैध शिकार
कावर झील के एक बड़े इलाके पर खेती होने लगी और तेजी से हुए अतिक्रमण ने इसका दायरा सीमित किया।
घोष ने इस विषय में एक शोध किया औऱ पाया कि यह झील 1984 में 6,786 हेक्टेयर में फैली थी। वर्ष 2012 तक यह सिमटकर 2031 हेक्टेयर ही रह गई थी। झील का 60 फीसदी इलाका खेती के काम में आ रहा है। इसके 5.13 प्रतिशत इलाके में खेती के अलावा दूसरे तरह का निर्माण और अतिक्रमण भी है। यहां 2.80 प्रतिशत भाग में ही स्थायी रूप से पानी जमा होता है।
अतिक्रमण के अलावा अवैध शिकार की वजह से भी झील के जैव-विविधता को काफी खतरा है। स्थानीय मछुआरा समुदाय और वहां के जमीन के मालिकों के बीच झील पर अधिकार को लेकर भी विवाद चलता रहता है। बिहार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत लोगों की जमीन का एक बड़ा हिस्सा संरक्षण स्थल के रूप में शामिल हो गया। जमीन के मालिक अब भी इसपर अपना अधिकार जमाते हैं। वे गुस्से में प्रवासी पक्षियों को भी अपना निशाना बनाते हैं।
बिहार राज्य वेटलैंड प्राधिकरण के सदस्य सचिव एके द्विवेदी बताते हैं कि यह झील 6300 हेक्टेयर में फैली है। पर पानी महज 2620 हेक्टेयर में ही उपलब्ध हो पाता है। “हम स्थानीय लोगों से बात कर किसी भी विवाद को सुलझाने की कोशिश करते हैं। हमने उनसे खेती में कीटनाशक का इस्तेमाल करने से भी मना किया हुआ है। उन्हें हम समझाते हैं कि कीटनाशक से जैव-विविधता को खतरा होता है,” द्विवेदी कहते हैं।
इको टूरिज्म की संभावना
घोष मानते हैं कि कावर ताल को इको टूरिज्म के स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। “सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने के साथ सरकार को भी राजस्व मिलेगा। राज्य सरकार को वहां तक यातायात के साधनों को दुरुस्त करना चाहिए,” घोष कहते हैं।
बैनर तस्वीरः कावर झील के आसपास रहने वाले मछुआरों के लिए यह आजीविका का साधन है। फोटो- समीर वर्मा