अभी देश में प्रवासी पक्षियों के आने का मौसम है और तमाम नदियों, झीलों, उद्यानों में इन रंग-बिरंगे पक्षियों को देखा जा सकता है। इन पक्षियों के प्रवास की भी कई दिलचस्प कहानियां हैं तो कुछ तकलीफ पहुंचाने वाले दास्तान भी हैं।दूर देश से आए ये पक्षी यहां की रौनक तो बढ़ाते हैं पर इनके प्रवास की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जैसे इंसानों के प्रवास की होती है। ये हाईवे की जगह फ्लाइवे का इस्तेमाल करते हैं। तमाम आंकड़े बताते हैं कि इन प्रवासी पक्षियों की संख्या घट रही है।मंगोलिया के कुक्कू प्रोजेक्ट के तहत इन प्रवासी पक्षियों के यात्रा का अध्ययन किया जिससे पता चला कि कई-कई बार ये पक्षी 3,500 किलोमीटर तक की एक उड़ान भरते हैं और इस तरह एक साथ कई देशों का भ्रमण करते हैं। करीब छः महीने पहले देश में माइग्रेशन और माइग्रेन्ट का मुद्दा छाया हुआ था। लॉकडाउन लगने के बाद हजारों-लाखों प्रवासी मजदूर सड़क पर थे। रोजी-रोटी की उम्मीद में बड़े शहरों में गए प्रवासी मजदूर लॉकडाउन की घोषणा के बाद, हताश होकर अपने गांव लौट रहे थे। भारतीय सड़कों पर हताश चलते इन प्रवासी मजदूरों का हुजूम देखकर, पूरा विश्व हतप्रभ था। इस हृदय-विदारक दृश्य को देखकर प्रवासी मजदूरों के लिए एक समुचित नीति की मांग उठने लगी। मेजबानों से सहृदय होने की अपील की जाने लगी। उन्हीं दिनों एक और माइग्रेशन हो रहा था जिसपर बहुत कम ही लोगों की नजर गई। इन्हीं प्रवासी मजदूरों की तरह ओनन भी मंगोलिया से कुछ बेहतर की तलाश में निकला था। उसे अफ्रीका जाना था। लंबी यात्रा के बीच थके इस यात्री की मेजबानी का मौका भारत को भी मिला था। पिछले साल भी इसने हजारों किलोमीटर की यात्रा की थी। जैसे शहर से लौटे मजदूर अपनी नई यात्रा शुरू करने से पहले परिवार के साथ कुछ राहत के दिन गुजारते हैं, वैसा ही कुछ ओनन ने भी किया। मई के आखिरी सप्ताह में भारत होते हुए यह अपने घर पहुंचा और करीब सात हफ्ते ब्रीडिंग ग्राउन्ड यानी प्रजनन के क्षेत्र में समय गुजारा। फिर अजनबी आबो-हवा के बीच रोजी-रोटी की तलाश में निकल गया। तारीख थी 13 जुलाई। मंगोलिया और चीन के विभिन्न प्रांतों से होते हुए ओनन 3 सितंबर को बिहार पहुंचा। रपट के अनुसार इसे बिहार के बांका और भागलपुर के बीच ट्रैक किया गया। यहां पहुंचने के लिए इसने कुछ छोटी-छोटी उड़ानों के बाद एक 1500 किलोमीटर की लंबी उड़ान भरी थी। बिहार से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश होते हुए यह पक्षी 10 सितम्बर को राजस्थान पहुंचा। ओनन की तस्वीर। जब भारत में प्रवासी मजदूर सड़कों पर संघर्ष कर रहे थे तब यह पक्षी भी अफ्रीका से अपने वतन लौट रहा था। इस पक्षी की यात्रा को समझने के लिए मंगोलिया कुक्कू प्रोजेक्ट के तहत इसकी टैगिंग की गई थी। फोटो- बर्ड बीजिंग/ मंगोलिया कुक्कू प्रोजेक्ट मंगोलिया का यह पक्षी 25 सितंबर को अरब सागर के ऊपर उड़ रहा था और नॉन-स्टॉप 2500 किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था। इसने महज ढाई दिन यानी (64 घंटे) में 3500 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तय की और 27 सितंबर को यमन पहुंच गया। हर साल की तरह इसे यहां कुछ महीने गुजारने थे और फिर अपने वतन वापस जाना था। पर अफसोस ऐसा नहीं हो पाया। अक्टूबर 5 को इस शोध से जुड़े लोग परेशान से दिखे। उन्हें आभास हो रहा था कि कुछ गड़बड़ है। आखिर, 15 अक्टूबर को इनलोगों ने उदास लहजे में लिखा कि ओनन अब नहीं रहा। “इसने 27 सितंबर से 1 अक्टूबर की बीच यमन में ही अपने प्राण त्याग दिए।” यह पक्षी मंगोलिया कुक्कू प्रोजेक्ट का हिस्सा था। मंगोलिया के वाइल्डलाइफ साइंस एण्ड कंजरवेशन सेंटर और ब्रिटिश ट्रस्ट फॉर ऑर्निथोलॉजी के संयुक्त प्रयास से पांच पक्षियों के शरीर में जून 8, 2019 को ट्रांसमीटर लगाया गया था। बर्ड बीजिंग और ओरिएंटल बर्ड क्लब के सहयोग से शुरू हुए इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य था इनके उड़ने के रास्ते और तरीकों पर समझ विकसित करना। इसके लिए पांच पक्षी- नोमैड, कप्तान, नमजा, बयान और ओनन (सब के सब मंगोलिया के कुक्कू ) के शरीर में खुर्क बर्ड बैंडींग स्टेशन, मंगोलिया में ट्रांसमीटर लगाया गया था। अपने पिछले प्रवास के दौरान ओनन ने मंगोलिया से मोज़ाम्बिक तक की यात्रा की थी। अपने वतन से मोज़ाम्बिक तक की यात्रा में इसने करीब तीस देशों की सीमाएं लांघी। इस यात्रा को मैप के सहारे दिखाया गया है।फोटो- बर्ड बीजिंग/मंगोलिया कुक्कू प्रोजेक्ट ट्रांसमीटर लगाने के बाद एक साल इन पक्षियों के मंगोलिया से अफ्रीका और पुनः लौटने के रास्ते का क्रमवार ब्योरा लोगों को बताया जाता रहा। पिछले साल इन पांचों पक्षियों में से दो- ओनन और बयान ने भारत होते हुए सूडान वगैरह की यात्रा की। ओनन घर लौटने में सफल रहा पर बयान घर के नजदीक (चीन) आकर भी अपनी मिट्टी को खूशबू नहीं महसूस कर पाया। चीन में ही इसने अपने प्राण त्याग दिए। तब इनपर शोध कर रहे है विशेषज्ञों ने भारी मन से लिखा कि इससे साबित होता है कि प्रवास अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है। यात्रा के दौरान इन पक्षियों को ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। खराब मौसम के थपेड़े, ठहरने की व्यवस्था का घटते जाना और फिर शिकार हो जाने का खतरा। इन्हीं वजहों से अनगिनत पक्षी वापस नहीं लौट पाते। आगे लिखा, “इन पक्षियों को बचाना हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है। मंगोलिया से मोज़ाम्बिक तक के रास्ते में जितने भी देश आते हैं, उन सभी देशों की यह सामूहिक जिम्मेदारी है। बयान की कहानी से हम यही सीख ले सकते हैं।”