यह तस्वीर पन्ना टाइगर रिजर्व के बीच उमरावन बीट की है। जिस तरफ भी नजर दौड़ाइए गाजर घास ही दिखेगा, मानो एक हरा-भरा समंदर हो।  खेतों के अलावा यह पौधा अब जंगलों में भी फैलता जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक यह 20 लाख हेक्टेयर जंगली की जमीन पर फैला हुआ है।फोटो- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे हिन्दी

गाजर घास से निपटने के कई आधुनिक समाधान और उनसे जुड़ी मुश्किलें

इस पौधे से निपटने के लिए कई प्रयास होते रहे हैं। एफएओ ने अपनी शोधपत्र में कई प्रयासों का जिक्र भी किया है। इसका सबसे आसान तरीका पौधे में फूल लगने से पहले इसे जड़ से उखाड़ना है। पौधे को नियंत्रित करने के लिए कैसिया सेरिका, क्रोटन बोनपांडियनस, सी स्पार्सिफ्लोरस, ऐमारैंथस स्पिलोसस, सीडा एक्यूटा, टेफ्रोसिया पुरपुरिया, स्टायलोसेन्थ्स स्काबरा और कैसिया ऑराटाटा जैसी कई पौधों की प्रजातियां विकसित की गई हैं, लेकिन ये पौधे गाजर घास की तुलना में कम तेजी से बढ़ते हैं। गाजर घास को रोकने के लिए कई तरह के फंगस पर शोध किया जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया में लगभग एक दशक से ऐसे शोध हो रहे हैं।  

इसका एक और बेहद कारगर तरीका है मैक्सिकन बीटल। यह एक तरह का कीट है जो सिर्फ गाजर घास ही खाता है। हालांकि, शोधकर्ताओं को अंदेशा है कि यह कीड़ा दूसरे पौधे भी खाना शुरू कर सकता है। एक शोध से पता चलता है कि मैक्सिकन बीटल सूरजमुखी के पत्ते भी खाता है।

डायरेक्टोरेट ऑफ वीड रिसर्च, जबलपुर के वैज्ञानिक सुशील कुमार ने मोंगाबे हिन्दी से इमेल के जरिए बातचीत करते हुए बताया कि यह सच है कि खेतों के अलावा यह पौधा अब जंगलों में भी फैलता जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक यह 20 लाख हेक्टेयर जंगली की जमीन पर फैला हुआ है।

“मैक्सिकन बीटल के फायदों को देखते हुए नागपुर कृषि विभाग ने 70 लाख बीटल को गाजर घास वाले स्थानों पर छोड़ा। यह ध्यान रखा गया कि ये स्थान खेतों से दूर हों। वर्ष 2009 से लेकर 2012 तक चले शोध के परिणाम काफी सफल रहे। यह समाधान पर्यावरण के लिए सही और टिकाऊ है,” कुमार मैक्सिकन बीटल को लेकर चल रहे प्रयोगों के बारे में बताते हुए कहते हैं।  

“इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर द सेमी-अरिड टॉपिक्स (इक्रीसेट), हैदराबाद ने भी कई हजार बीटल को झांसी के आसपास छोड़ा जिसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की केंद्रीय कृषिवानिकी अनुसंधान संस्थान, झांसी ने सहयोग किया था। इसके अलावा देश के कई कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विश्वविद्यालय इस शोध को आगे बढ़ा रहे हैं, और उन्हें सफलता भी मिल रही है,“ देशभर में मैक्सिकन बीटल पर चल रहे शोध को लेकर कुमार बताते हैं।

वह कहते हैं कि जबलपुर स्थित डायरेक्टोरेट ऑफ वीड रिसर्च में आकर किसान इस समस्या का समाधान पूछते हैं।   

मध्यप्रदेश के जंगलों में ऐसे वैज्ञानिक प्रयोग आजमाने के प्रश्न पर वन विभाग के वन्यजीव मुख्यालय के अपर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक जेएस चौहान कहते हैं कि यह तरीका सुनने में कारगर लगता है, लेकिन शोध अभी पूरा नहीं हुआ है।

“मध्यप्रदेश के जंगलों में गाजर घास का फैलना चिंता की बात है। इससे निपटने के लिए इस पौधे को जड़ से उखाड़ने के अलावा कोई दूसरा तरीका नहीं सूझता। मुझे मैक्सिकन बीटल के बारे में पता चला है। छोटे इलाके में इसका प्रयोग हो भी रहा है, लेकिन संवेदनशील जंगल में इसका प्रयोग करना उचित नहीं है। अगर इस कीड़े ने दूसरे पौधे खाना शुरू कर दिया तो संकट की स्थिति पैदा हो जाएगी,” चौहान कहते हैं।

कुमार, बीटल के प्रयोग के फायदे बताते हुए कहते हैं कि यह प्रकृति की मित्र की तरह है और इनका खाना सिर्फ और सिर्फ गाजर घास ही है। गाजर घास के घनी झाड़ियों में इसका इस्तेमाल करें तो असर देखने को मिलेगा।

“इसके नुकसान की बात करें तो बीटल सिर्फ बारिश के मौसम में ही बाहर निकलते हैं। दूसरे मौसम में खुद को बचाए रखने के लिए मिट्टी में अनुकूल माहौल खोजकर छिप जाते हैं। खेतों में इसका प्रयोग मुश्किल है क्योंकि कीटनाशक के प्रयोग से दूसरे कीटों की तरह बीटल भी नष्ट हो जाएंगे,” कुमार कहते हैं।

 

बैनर तस्वीर- पन्ना टाइगर रिजर्व के बीच इस तरह गाजर घास फैला हुआ है। इसके बीच से जानवर मुश्किल से घास खोजकर खा पाते हैं। फोटो- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे हिन्दी

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