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बॉक्साइट खनन से सूख रही छत्तीसगढ़ और झारखंड की बुरहा नदी, भेड़ियों के एक मात्र ठिकाने पर भी खतरा

भारतीय भेड़िया की प्रतिकात्मक तस्वीर। फोटो- डेविस क्वान/फ्लिकर

भारतीय भेड़िया की प्रतिकात्मक तस्वीर। फोटो- डेविस क्वान/फ्लिकर

  • छत्तीसगढ़ और झारखंड में बॉक्साइट का खनन बड़े पैमाने पर होता है। स्थानीय पर्यावरण को इससे काफी नुकसान हो रहा है।
  • झारखंड स्थित भेड़िया अभयारण्य भी इस बॉक्साइट खनन से काफी प्रभावित है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि छत्तीसगढ़ में खनन की वजह से बुरहा नदी में पानी कम हो रहा है।
  • नुकसान देखते हुए झारखंड स्थित खदान को बंद कर दिया, लेकिन इससे सटे छत्तीसगढ़ के खदान अभी चालू हैं। दो राज्य का मामला होने की वजह से कोई समुचित समाधान नहीं निकल पा रहा है।
  • छत्तीसगढ़ के लोग आरोप लगाते हैं कि धूल से उनके खेत खराब हो रहे हैं और खेती तबाह हो रही है।

छत्तीसगढ़ और झारखंड की सीमा पर बॉक्साइट की खनन की वजह से देश के एक मात्र भेड़िया अभ्यारण्य के लिए खतरा उत्पन्न होने लगा है। चमकते एल्युमीनियम बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले इस खनिज के खनन से स्थानीय बुरहा नदी भी प्रभावित हो रही है।

एल्युमीनियम का एक प्रमुख स्रोत बॉक्साइट है। धूल में लिपटे सुर्ख या गुलाबी मिट्टी जैसे छोटे-बड़े टुकड़ों से इसे निकाला जाता है। इसमें 28 से 80 प्रतिशत तक एल्युमीनियम ऑक्साइड (एल्युमिना) होता है, जिसकी वजह से यह एल्युमीनियम का सबसे लोकप्रिय स्रोत माना जाता है।

देश में इस बॉक्साइट के सबसे अधिक खदान झारखंड और छत्तीसगढ़ में पाए जाते हैं। सरकारी अनुमान के मुताबिक झारखंड में बॉक्साइट 68,135 हजार टन और छत्तीसगढ़ में 16.8 करोड़ टन है।

बॉक्साइट एक महत्वपूर्ण खनिज है। झारखंड और छत्तीसगढ़ के खनिज समृद्धि में इसका विशेष योगदान है। हालांकि, बॉक्साइट खनन का स्याह पक्ष भी है। इससे स्थानीय पर्यावरण प्रभावित होता है। दोनों राज्यों में बहने वाली बुरहा नदी पर पड़ने वाला असर, इसका एक उदाहरण है। झारखंड स्थित देश के इकलौते महुआडांड भेड़िया अभ्यारण्य पर भी खनन का दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है।

झारखंड के लातेहार जिला स्थित ओरसा गांव में बॉक्साइट खनन की शुरुआत वर्ष 1986 में हुई थी। तब भेड़िया अभयारण्य से खदान 2.5 किलोमीटर दूर हुआ करती थी और यह 309.36 हेक्टेयर में फैली थी। यहां खनन के लिए लीज 2006 तक ही जारी हुआ था, लेकिन बाद में (2017) 196 हेक्टेयर जमीन पर 2036 तक के लिए खनन की अनुमति दे दी गयी।

हालांकि, वर्ष 2018 में खनन का काम रुक गया। इसकी वजह थी भेड़िया अभयारण्य के आसपास के इलाके को इको सेंसेटिव जोन में शामिल करने संबंधित नोटिफिकेशन का जारी होना। वर्ष 2019 में इस इलाके को इको सेंसेटिव जोन में शामिल भी कर लिया गया। जिन स्थानीय लोगों के प्रयास से सरकार को यह कदम उठाना पड़ा, वे अब भी संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि झारखंड में इसका खनन तो रुक गया, लेकिन इनके क्षेत्र से सटे छत्तीसगढ़ के बलरामपुर में खनन अब भी जारी है।

बॉक्साइट खनन की वजह से बुरहा नदी की धार धीमी हो रही है। फोटो- विशेष प्रबंध
बॉक्साइट खनन की वजह से बुरहा नदी की धार धीमी हो रही है। फोटो- विशेष प्रबंध

बॉक्साइट खनन से भेड़ियों के ठिकाने पर खतरा

झारखंड की राजधानी रांची से 194 किलोमीटर दूर स्थित लातेहार का यह भेड़िया अभयारण्य 90 भेड़ियों का घर है। इसके अलावा यहां भालू और तेंदुए की अच्छी खासी आबादी भी रहती है।

झारखंड की सामाजिक कार्यकर्ता शशि पन्ना ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि इको सेंसेटिव जोन का निर्णय झारखंड तक ही सीमित था, जिसकी वजह से यहां खनन तो रुक गया, लेकिन इलाके से सटे छत्तीसगढ़ में यह जारी है। “छत्तीसगढ़ में हिंडाल्को का खदान 3,741 एकड़ में फैला हुआ है,” शशि ने बताया।

झारखंड के वन्यप्राणी विशेषज्ञ डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि यह मामला दो राज्यों के बीच का है इसलिए केंद्र सरकार को पहल करनी चाहिए।

बॉक्साइट खनन की वजह से खत्म हो रही बुरहा नदी

खनन की वजह से छत्तीसगढ़ से निकलकर झारखंड के पलामु टाइगर रिजर्व से होकर गुजरने वाली बुरहा नदी की धार भी धीमी हो रही है। इसकी बड़ी वजह नदी के कैचमेंट एरिया में बने खदान को माना जाता है। इस रिजर्व से 64 किलोमीटर दूर भेड़िया अभयारण्य है।

ओरसा गांव के वकील अहमद के मुताबिक बुरहा नदी को खदानों से खतरा है।

ओरसा के बंद पड़े बॉक्साइट खदान पर खड़े ग्रामीण। फोटो- वकील अहमद
ओरसा के बंद पड़े खदान पर खड़े ग्रामीण। इनका आरोप है कि बॉक्साइट खनन के बाद खदान को खुला छोड़ दिया गया। फोटो- वकील अहमद

वर्ष 2018 में पलामु टाइगर रिजर्व ने बॉक्साइट खदानों को रिजर्व के लिए खतरा बताते हुए छत्तीसगढ़ वन विभाग को पत्र लिखा था। तत्कालीन अधिकारी महालिंगा ने बताया कि उन्होंने पत्र में बुरहा नदी के कैचमेंट में हो रहे खनन और उससे नदी पर हो रहे विपरीत प्रभावों के बारे में बताया था।

वकील अहमद कहते हैं कि ओरसा से गुजरने वाली इस नदी में अगर पानी खत्म हो गया तो यहां के लोगों का जीना दुभर हो जाएगा। जमीन के भीतर इतना पानी नहीं कि लोग लंबे समय तक इसका इस्तेमाल कर सकें।

छत्तीसगढ़ में खनन जारी रहने की वजह से बुरहा नदी पर बने पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण झरनों को नुकसान हो रहा है। हाल के वर्षों में पानी में काफी कमी देखी जा रही है।

एक और ग्रामीण धर्मसाई नागेसिया ने भी बुरहा नदी में पानी कम होने की बात कही। “नदी में पानी कम हुआ है और अब यह पानी प्रदूषित भी है। जंगल के आसपास अब जंगली जानवर भी नहीं दिखते,” वह कहते हैं।

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के पूर्व वन अधिकारी विवेकानंद झा कहते हैं कि टाइगर रिजर्व से पत्र मिलने के बाद उन्होंने अधिकारियों को मामले की जांच के लिए कहा था, लेकिन नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से जांच में देरी हो रही है।

बलरामपुर में खनिज अन्वेषण निगम लिमिटेड का एक 257 हेक्टेयर में फैला खदान है जो कि भेड़िया अभयारण्य से 10 किलोमीटर दूर है। इस खदान के प्रभाव को लेकर भी चिंताए जताई जाती रही हैं।

खनन बंद होने के बाद भी समस्याएं खत्म नहीं हुईं

इको सेंसटिव जोन बनने के बाद ओरसा में खनन का काम रुक गया है। हालांकि, यहां के लोगों की परेशानी अब भी बनी हुई है। स्थानीय निवासी सुनिता नगेसिया और दुलारी देवी कहती हैं कि खदान के गड्ढे में गिरकर उनके कई जानवर मर चुके हैं। उन्हें अपने खेतों तक जाने के लिए लंबा रास्ता लेना पड़ता है।

ग्रामीण खदान को समतल करने की मांग कर रहे हैं, ताकि वहां खेती की जा सके।

तातिझारिया गांव से पास बने खदान से धूल की काफी मात्रा निकलती है। फोटो- राकेश सिंह
तातिझारिया गांव से पास बने खदान से धूल की काफी मात्रा निकलती है। फोटो- राकेश सिंह

धूल से कई किलोमीटर के दायरे में खेती चौपट

छत्तीसगढ़ के खदानों के आसपास रहने वाले लोगों को भी कई तरह की परेशानियां हो रही है। इसमें प्रमुख है खदान से निकलने वाली धूल की वजह से प्रदूषण। तातिझारिया गांव खदान से पांच किलोमीटर दूर है, लेकिन धूल की वजह से यहां के फसलों पर इसका असर हो रहा है।

इस गांव के अनिल यादव और राकेश सिंह के मुताबिक गांव के पास खदान एक दशक से अधिक से चल रहे हैं। “ब्लास्ट की वजह से धूल का गुबार उठता है, जो खेतों में खड़ी फसल पर बैठ जाता है,” वे कहते हैं।

नवंबर 20 को गांव के लोगों ने शिकायत की कि हिंडाल्को ने खनन के बाद जंगल लगाने का काम ठीक से नहीं किया। हालांकि, हिंडाल्को का दावा इसके विपरीत है। 

बलरामपुर कलेक्टर श्याम धावड़े ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि अभी तक उनके पास कोई शिकायत नहीं आई है। हिंडाल्को को मोंगाबे के प्रश्नों का जवाब अब तक नहीं दिया है।


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बैनर तस्वीरः भारतीय भेड़िया की प्रतिकात्मक तस्वीर। फोटो– डेविस क्वान/फ्लिकर 

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