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तकनीक के सहारे हाथियों से बचाव, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में हो रहे नए प्रयोग

बैनर तस्वीर- कुल्हिया वाइल्ड लाइफ सेंचुरी ओडिशा से लगी सड़क पर हाथी। फोटो - अरिंदम भट्टाचार्य/फ्लिकर

कुल्हिया वाइल्ड लाइफ सेंचुरी ओडिशा से लगी सड़क पर हाथी। फोटो - अरिंदम भट्टाचार्य/फ्लिकर

  • दोनों राज्य हाथियों के हमले से लोगों को बचाने के कई रास्ते निकाल रहे हैं जिनमें ड्रोन से निगरानी, सीड बॉल से हरियाली बढ़ाना जैसे कदम शामिल हैं।
  • पिछले 6 वर्षों में हाथियों के हमले की वजह से ओडिशा में अकेले 527 लोगों की जान चली गई
  • भारत के पूर्वी क्षेत्र के 71 प्रतिशत हाथी छत्तीसगढ़ और ओडिशा के जंगलों में रहते हैं।

मनोरम पठारी क्षेत्र में बसे जशपुर जिले के गांव अमूमन शांत रहते हैं। यहां जंगल के सटे गांवों में तो चिड़ियों की आवाज के अलावा घंटों कोई दूसरी आवाज नहीं आती। लेकिन, गांव वालों के कान हमेशा किसी तेज आवाज की  इंतजार में रहते हैं। यह एक साइरन की तेज आवाज होती है जिससे उन्हें पता चलता है कि गांव पर खतरा आने वाला है।

जशपुर के 10 गावों में हाथियों का आतंक है। वन विभाग ने गांव वालों को सजग रखने के लिए ऐसी तकनीक लगाई कि जैसे ही हाथी गांव के दो किलोमीटर के अंदर घुसते हैं, साइरन बज उठता है।

“साइरन सिस्टम वन विभाग के सजग एप से जुड़ा हुआ है। जैसे ही हाथी गांव के दो किलोमीटर के दायरे में प्रवेश करता है, अलार्म सिस्टम गांव वालों को सजग कर देता है। गांव वालों को हाथी से सुरक्षित बच निकलने का समय मिल जाता है,” जशपुर के वन अधिकारी श्रीकृष्ण जादव कहते हैं।

ऐसे ही सायरन सिस्टम को महासमुंद, सरगुजा, राजगढ़ और धर्मगढ़ वन परिक्षेत्रों में भी लगाए जाने की योजना है।

जादव बताते हैं कि हाथी सीधे तौर पर लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि उनके धान और गन्ना के खेतों में घुस आते हैं। अगर कोई फसल घर के समीप रखा हो तो हाथी इंसानों को भी नुकसान पहुंचा देते हैं।

छत्तीसगढ़ में राजगढ़ वन क्षेत्र भी हाथियों के मामले में काफी संवेदनशील है। यहां के जिला वन अधिकारी मनोज पांडे के मुताबिक विभाग ने इन पर नजर रखने के लिए लोग लगा रखे हैं जो स्थानीय लोगों को और वन विभाग के कर्मचारियों को हाथी की आवाजाही की सूचना देते हैं, ताकि बचाव में कदम उठाए जा सकें। 

ओडिशा ने हाथियों पर निगरानी के लिए रेडियो कॉलर तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू किया है।

ओडिशा के सतकोसिया टाइगर रिजर्व स्थित इस सड़क को पार करते हुए हाथी दिख जाते हैं। फोटो- मनीष कुमार
ओडिशा के सतकोसिया टाइगर रिजर्व स्थित इस सड़क को पार करते हुए हाथी दिख जाते हैं। फोटो- मनीष कुमार

सीड-बॉल है हाथियों से बचने का टिकाऊ समाधान

बद्रीनाथ दास ओडिशा के अथगढ़ वन क्षेत्र के बेंतापाड़ा गांव में रहते हैं। पूरा गांव हाथियों के हमले से परेशान है। हाथी जब-तब उनके धान के खेत में आकर उत्पात मचा जाते हैं।

बार-बार हो रहे हमलों से बचने के लिए ग्रामीणों ने सीड बॉल तकनीक का इस्तेमाल किया है। दास वन विभाग के वन सुरक्षा समिति के सदस्य हैं। यह समिति ग्रामीणों को जानवरों से और वन को ग्रामीणों से बचाने की दिशा में काम करती है। पिछले वर्ष 25 ग्रामीणों ने मिलकर बांस के पौधों को मिट्टी में मिलाकर उसका गोला बनाया। इसे ही सीड बॉल कहते हैं। मानसून में इन गोलों को जंगल में फेका गया ताकि जंगल की हरियाली बढ़ सके और हाथियों को जंगल में ही खाना मिल सके।

अथगढ़ का जंगल हाथी और इंसान के बीच तनाव के लिए जाना जाता है। “इस वर्ष हमने सभी 38 रिजर्व के ग्रामीणों से सीड बॉल बनाने में मदद ली। हम लोगों को बीज बांटते हैं और फिर वे इनका गोला बनाकर जंगल में फेंकते हैं। करीब 60 फीसदी बीज से पौधा निकल आता है। हमने पाया है कि बांस की प्रजातियां हाथियों को अधिक आकर्षित करती हैं,” अथगढ़ की वन अधिकारी सुस्मिता लेंका बताती हैं।  वह कहती हैं कि सीड बॉल की सफलता पांच वर्षों में दिखेगी।

छत्तीसगढ़ के वन अधिकारी भी सीड बॉल को हाथी और इंसानी टकराव रोकने में एक टिकाऊ समाधान के रूप में देख रहे हैं। सीड बॉल में फलों और पत्तेदार पेड़ों के बीज डालकर उन्हें जंगलों में फेका जाता है, जिससे वहां की हरियाली बढ़ रही है। “हमलोग यह प्रयोग जंगली जंतुओं को भविष्य में खाने की कमी से बचाने के लिए कर रहे हैं। आने वाले समय में उन्हें खाने के लिए गांवों पर निर्भर नहीं रहना होगा,” छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) पीवी नरसिंहा राव ने मोंगाबे को बताया।

छत्तीसगढ़ के जशपुर में इस तरह का अलार्म सिस्टम लगा है। फोटो- विशेष प्रबंध
छत्तीसगढ़ के जशपुर में इस तरह का अलार्म सिस्टम लगा है। फोटो- विशेष प्रबंध

हाथी-इंसान के बीच टकराव एक बड़ी समस्या

ओडिशा के साथ झारखंड और दक्षिणी पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों के अलावा हाथियों की मौजूदगी बिहार और मध्यप्रदेश में है। यह पूरा इलाका लगभग 21,000 वर्ग किलोमीटर का है। यहां 3128 हाथी पाए जाते हैं। हाथियों के रहने के लिए यह इलाका अब संपन्न नहीं रहा। इसकी वजह है खेती के तरीकों में बदलाव, जंगलों पर अतिक्रमण और खनन।

इन इलाकों में हाथी और इंसानों के बीच टकराव काफी आम हो चला है। इस इलाके में पूरे भारत के करीब 10 फीसदी हाथी रहते हैं, लेकिन हाथियों की वजह से होने वाली मौतों के मामले में इसकी 45 फीसदी हिस्सेदारी है। हाथियों की गणना 2017 के मुताबिक ओडिशा में 1976 हाथी और छत्तीसगढ़ में 247 हाथी हैं।

लोकसभा में एक लिखित जवाब में पर्यावरण मंत्रालय ने 2017-18 में कहा कि ओडिशा में हाथियों की वजह से सबसे अधिक मृत्यु हुई है। छत्तीसगढ़ इस मामले में चौथे स्थान पर है। 

नई तकनीक से हाथियों से टकराव रोकने की कोशिश

रेडियो कॉलर तकनीक के इस्तेमाल में छत्तीसगढ़ और ओडिशा शुरुआती चरण में हैं। ओडिशा के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) एचएस उपाध्याय कहते हैं कि ड्रोन का इस्तेमाल उन्होंने शुरू कर दिया है। इसके लिए आईआईटी भुवनेश्वर की मदद ली जा रही है।

छत्तीसगढ़ में सजग एप की तरह ओडिशा ने भी अनुकंपा एप से लोगों को हाथियों की आवाजाही की जानकारी देना शुरू किया है।

हालांकि, जानकार मानते हैं कि अधिकतर राज्यों ने एलिफेंड कॉरिडोर के लिए नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है। अगर ऐसा किया होता तो कानून को और सख्ती से लागू किया जा सकता था।


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राष्ट्रीय हरित न्यायालय से जुड़े वकील संकर प्रसाद पानी कहते हैं कि अगर नोटिफिकेशन जारी हुआ तो हाथियों के इलाके में खनन से लेकर दूसरी गतिवधियों को कानूनी तौर पर रोका जा सकेगा।

छत्तीसगढ़ के राजगढ़ के पर्यावरणविद् रमेश अग्रवाल कहते हैं कि वन विभाग की कोशिशों का हाथियों के संरक्षण पर कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ है। “यह सच है कि वाचटावर, चेकडैम जैसे निर्माण करने के लिए राशि दी गई है, लेकिन बावजूद इसके सरगुजा, कोरबा, राजगढ़ में हाथी और इंसान के बीच टकराव अक्सर सामने आता है।” वह कहते हैं।

 

बैनर तस्वीर- कुल्हिया वाइल्ड लाइफ सेंचुरी ओडिशा से लगी सड़क पर हाथी। फोटो – अरिंदम भट्टाचार्य/फ्लिकर

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