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सुंदरता बनी जी का जंजाल: क्या तितली पार्क बनाने से बचेगा यह जीता-जागता फूल!

कॉमन क्रो। भोपाल के वन विहार में नेक्टर प्लांट पर तितलियां फूलों का रस लेती हुई नजर आती हैं। फोटो- मोहम्मद खालिक

कॉमन क्रो तितली। भोपाल के वन विहार में नेक्टर प्लांट पर तितलियां फूलों का रस लेती हुई नजर आती हैं। फोटो- मोहम्मद खालिक

  • जंगलों की स्थिति खराब होने की वजह से तितलियों का आशियाना भी खत्म हो रहा है। फूड चेन और इको सिस्टम के लिए तितलियों का होना बहुत जरूरी है।
  • तितलियों के संरक्षण के लिए बटरफ्लाई पार्क बनाए जा रहे हैं, लेकिन क्या इससे इन्हें बचाया जा सकता है?
  • तितलियां परागण में सहायक होती हैं जिससे फूल, फल में परिवर्तित हो पाता है। इसीलिए खेती के लिहाज से भी इनको बचाया जाना बहुत जरूरी है।
  • भारत में कीटनाशक के बढ़ते प्रयोग, जंगल की कटाई और जलवायु परिवर्तन की वजह से तितलियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। पर शोध की कमी की वजह से इसकी ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है।

क्यारियों में लगे रंग-बिरंगे फूल और उसपर मंडराती अनगिनत तितलियां। एक साथ हजारों तितलियों को उड़ता देखकर लगता है मानो खूबसूरत फूल हवा में तैर रहे हों। यह दृश्य भोपाल स्थित एक बटरफ्लाई पार्क का है यानी तितलियों का मानव-निर्मित संसार।

इक्कसवीं सदी में मानवता ने ऐसी ऊंचाई पाई है कि अब तितलियों को बचाने के लिए पार्क बनाना पड़ रहा है। इस कड़ी में बना यह बटरफ्लाई पार्क हाल ही में भोपाल स्थित वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में खोला गया है। यहां पहले ही साल तकरीबन तीन दर्जन तितलियों की प्रजाति देखी गई है, उद्यान के सहायक संचालक ए के जैन ने मोंगाबे हिन्दी से बात करते हुए बताया। इनमें ब्लू टाइगर, प्लेन टाइगर, स्ट्रिप्ड टाइगर, कॉमन बेंडेड ऑल, कॉमन इवनिंग ब्राउन, कॉमन इंडियन क्रो, कॉमन ग्रास येलो, कॉमन जेजवेल, ग्राम ब्लू जैसी प्रजातियां शामिल हैं।

पार्क बनाने के उद्देश्य पूछने पर जैन कहते हैं, “बटरफ्लाई पार्क का उद्देश्य संरक्षण के अलावा यहां आने वाले लोगों को तितलियों के बारे में जागरूक करना भी है। इन पौधों के सहारे कोई भी अपने घर में तितलियों को आकर्षित कर सकता है। हम पार्क आने वाले लोगों को कीटनाशक का प्रयोग नहीं करने के लिए कहते हैं, ताकि उनके घर के आसपास भी तितलियां दिख सके।”

तितली की एक प्रजाकि एंगल्ड पायरोट। वन विहार भोपाल में ऐसे तीन दर्जन तितलियों की प्रजाति दिख रही है। फोटो- मोहम्मद खालिक
तितली की एक प्रजाकि एंगल्ड पायरोट। वन विहार भोपाल में ऐसे तीन दर्जन तितलियों की प्रजाति दिख रही है। फोटो- मोहम्मद खालिक

हाल के वर्षों में देश के कई शहरों में बटरफ्लाई पार्क की स्थापना हो रही है। कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र के बाद अब मध्यप्रदेश के इंदौर और भोपाल जैसे शहरों में ऐसे पार्क बनाये गए हैं।

तितलियों को बचाने के लिए पार्क बनाने की नौबत कैसे आई इसका जवाब सब जानते हैं। आप भी सोचिए क्या आपके आस-पास तितलियां उतनी संख्या में दिखती हैं जैसी पहले दिखती थीं।

भारत में यद्यपि इसका कोई अधिकृत आंकड़ा मौजूद नहीं है पर एक शोध के मुताबिक यूरोप के देशों में तितलियों की संख्या में 31 फीसदी तक कमी आई है। मधुमक्खियों की नौ फीसदी प्रजातियां विलुप्त होने का खतरा झेल रहीं हैं।

फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेश के मुताबिक तितली और मधुमक्खियों की आबादी में 35 फीसदी की कमी आई है। इसी तरह, परागण करने वाले जीव जैसे उल्लू और चमगादड़ की संख्या में 17 फीसदी की कमी देखी जा रही है।

वर्ष 2019 तक अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) रेड लिस्ट के लिए महज 870 तितलियों की प्रजातियों का अध्ययन हुआ है, इसमें से भी 245 प्रजातियों को लेकर जानकारी 10 वर्ष से अधिक पुरानी है। अनुमान है कि दुनिया में 18000 तितलियों की प्रजाति मौजूद हैऔर भारत में 1400 प्रजाति पाई जाती है।

भारत के कुछ हिस्सों में छोटे-मोटे अध्ययन हुए हैं और इनसे भी कुछ ऐसा ही इशारा मिलता है। जैसे हिमालय के जंगलों पर हुए शोध में सामने आया कि यहां तितलियों की कई प्रजाति खतरे में है।

 भारत को लेकर शोध न होने की स्थिति में भी जानकार मानते हैं कि देश में इनके रहने का स्थान कई वजहों से प्रभावित हो रहा है जिससे अनुमान है कि इनकी संख्या कम हो रही है।

वन विहार भोपाल में तितलियों के लिए नेक्टर प्लांट लगाए गए हैं जिनके फूलों से इनको भोजन मिलता है। फोटो- मोहम्मद खालिक
वन विहार भोपाल में तितलियों के लिए नेक्टर प्लांट लगाए गए हैं जिनके फूलों से इनको भोजन मिलता है। फोटो- मोहम्मद खालिक

 क्या होगा अगर खत्म हो गई तितलियां?

रंग-बिरंगी सुंदर तितलियां के बारे में कभी आपने सोचा है कि अगर ये पृथ्वी से खत्म हो गईं तो क्या होगा?  तितलियां न रहे तो इंसानों को चॉकलेट नसीब न हो.  लोग सेब का स्वाद भी नहीं ले पाएंगे, यहां तक की कॉफी भी नसीब नहीं होगी। ऐसे कई फल हैं जिनके फूलों का रस पीकर तितलियां परागण की क्रिया करती हैं जिससे फूल, फल में बदलता है।

अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर ये तितलियां जैव-विविधता के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं।

अमेरिकी संस्था यूनाइटेड स्टेट जियोलॉजिकल सर्वे का यह मानना है कि अगर तितलियां और मधुमक्खियां खत्म हो गईं तो इसका असर 75 प्रतिशत अमेरिकी फलों पर होगा। संयुक्त राष्ट्र की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन का भी अनुमान है कि दुनियाभर की 75 फीसदी खेती परागण पर निर्भर करती है। परागण में मधुमक्खी, तितली, छोटे पक्षी और कई तरह के कीट मदद करते हैं। पौधों में पराग कण का नर-भाग से मादा-भाग पर स्थानातरण परागण कहलाता है। इसे अंग्रेजी में पॉलिनेशन कहते हैं।

देहरादून के तितली ट्रस्ट से जुड़े विशेषज्ञ संजय सोंधी ने मोंगाबे हिन्दी को तितलियों की विशेषता बताते हुए कहते हैं कि तितलियों का स्थान परागण में मधुमक्खियों के बाद आता है।

“मधुमक्खियों के अलावा कई कीट-पतंगे और तितलियां भी परागण करती हैं। इसके अलावा भी इको सिस्टम और फूड चेन में तितलियों का योगदान है,” सोंधी कहते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र यानी इको सिस्टम में एक महत्वपूर्ण अंग है फूड चेन। फूड चेन का मतलब पृथ्वी का हर जीव एक दूसरे पर निर्भर है और एक के खत्म हो जाने से इसका प्रभाव दूसरे जीवों पर पड़ता है।

इसे समझाते हुए सोंधी कहते हैं, “तितलियां न सिर्फ परागण करती हैं बल्कि उनके अंडे से बने लार्वा (कैटरपिलर) और प्यूपा कई दूसरे जीवों का भोजन होते हैं। कई चिड़िया अपने बच्चों को कैटरपिलर खिलाकर ही पालती है। सांप और दूसरे कई और कीट तितलियों को खाते हैं। कहते हैं कि तितली के 100 अंडो में से तीन ही वयस्क बन पाते हैं, बाकी किसी न किसी जीव का भोजन बन जाते हैं,” सोंधी कहते हैं।

ऐसे में अगर तितलियां खत्म हुईं तो दूसरे जीवों के संरक्षण पर भी असर होगा।

सरकारों के बीच विज्ञान, जैवविविधता और अर्थव्यवस्थाओं पर बन रही नीतियों पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था आईपीबीईएस ने वर्ष 2017 की रिपोर्ट में खेती में परागण के महत्व का आंकलन किया। इस रिपोर्ट में भारत से वर्ष 2007 का आंकड़ा शामिल किया गया है जिसके मुताबिक भारत में एक हेक्टेयर खेती पर 804 डॉलर (करीब 60 हजार रुपए) का लाभ परागण की वजह से होता है।

होस्ट प्लांट पर तितलियों के लार्वा इस तरह सुरक्षित रहते हैं। फोटो- उल्लासा कोदंडारमैया/500px
होस्ट प्लांट पर तितलियों के लार्वा इस तरह सुरक्षित रहते हैं। फोटो– उल्लासा कोदंडारमैया/500px

खूबसूरती ही बन गई तितलियों की सबसे बड़ी दुश्मन

तितली की खूबसूरती इनके जान की दुश्मन बन गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुख्यतः सजावट के लिए इनका शिकार कर इन्हें बेचा जाता है। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 1998 से 2007 के बीच दक्षिण-पूर्व एशिया से तीन लाख तितलियों को दूसरे देशों में भेजा गया।

जूलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया ने वर्ष 2005 में तितलियों को लेकर एक किताब ‘बटरफ्लाइज ऑफ इंडिया’ प्रकाशित की थी। इस किताब के लेखक आईजे गुप्ता और डीके मंडल लिखते हैं कि विश्व में तितलियों का कारोबार 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का है। भारत की मुद्रा में अभी यह 7.3 खरब रुपया होता है।

“भारत से हर महीने 50 हजार से अधिक तितलियों की तस्करी होती है। इनका शिकार पश्चिमी हिमालय (हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और पूर्वी उत्तर प्रदेश का कुछ भाग) पूर्वी हिमालय (सिक्कम और पूर्वी बंगाल का इलाका) में सर्वाधिक होता है,” किताब ने तितली के व्यापार को समझाते हुए लिखा है।

तितलियों का इस्तेमाल दीवार पर शो पीस की तरह टांगने, ऐश ट्रे बनाने और दूसरी सजावट के सामानों में होता है। 

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक तितलियों का कारोबार 1990 के दौरान बढ़ा। रिपोर्ट में कहा गया है कि वियतनाम के कई जंगलों में वर्ष 2004 में तितलियों की कई प्रजातियां खत्म होने लगी और जहां इनका शिकार होता था, वहां तितलियों की आबादी में 55 से 58 प्रतिशत तक गिरावट देखी गई। इस वर्ष तितली की प्रजाति तेनायल्पुस सपा (Teinopalpus sp.) की कीमत 100 डॉलर (करीब 7000 रुपए) तक पहुंचती थी। इन्हें जंगल में लाइट ट्रैप (बल्ब के माध्यम से फंसाकर) पकड़ा जाता है।

भारत में संरक्षण के लिए तितलियों को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) एक्ट 1972 के तहत अनुच्छेद 1 (भाग-4) में रखा गया है।

ऑरेंज-स्पॉटेड टाइगरविंग बटरफ्लाई (मैकेनाइटिस पॉलीमिया)। अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर ये तितलियां जैव-विविधता के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। फोटो- रेट ए. बटलर/मोंगाबे
ऑरेंज-स्पॉटेड टाइगरविंग बटरफ्लाई (मैकेनाइटिस पॉलीमिया)। अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर ये तितलियां जैव-विविधता के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। फोटो- रेट ए. बटलर/मोंगाबे

तितलियां कम हो रहीं, मतलब जंगल को खतरा

जर्नल ऑफ एंटॉमोलॉजी एंड जूलॉजी स्टडीज नामक शोध पत्रिका में वर्ष 2017 में हिमालय के तितलियों पर एक शोध प्रकाशित हुआ था। पंजाब यूनिवर्सिटी के दीपिका मेहरा, अवतार कौर सीधू और जगबीर सिंह कीर्ति के इस शोध में सामने आया कि हिमालय के जंगल काफी तेजी से गुणवत्ता खो रहे हैं, और इसका एक बड़ा संकेत जंगलों से तितली का गायब होना है। शोधकर्ताओं ने पाया कि ये काफी संवेदनशील होती हैं और जंगल की गुणवत्ता में कमी का असर उनपर सबसे पहले होता है। इस शोध के दौरान हिमालय के शिवालिक रेंज के इलाके में इनकी 493 प्रजाति देखी गई। शोधकर्ताओं ने पाया कि 89 प्रजाति की तितलियां कम देखी जा रही हैं, इसका मतलब ये विलुप्ति की कगार पर हैं। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि इस क्षेत्र में इनकी 18 प्रतिशत प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है।

जानकार मानते हैं कि तितलियां काफी संवेदनशील होती हैं, और आबोहवा में बदलाव को भांपकर जगह बदल देती हैं। किसी जंगल में तितलियां खत्म हो रही तो इसका मतलब जंगल की गुणवत्ता भी खराब हो रही है।

तितलियों के विशेषज्ञ सारंग म्हात्रे कहते हैं कि प्रदूषण और शहरीकरण की वजह से तितलियां हमारे घरों से दूर होती जा रही है।

“मैं बचपन से ही तितलियों को देखने का शौकीन हूं और हाल के दिनों में मैंने देखा है कि निर्माण की वजह से इनको को पसंद आने वाले पौधे कम हो रहे हैं। इस वजह से खाने और रहने की जगह तलाशने ये हमसे दूर जा रही हैं,” सारंग कहते हैं। सारंग ने भोपाल का पहला बटरफ्लाई पार्क बनाने में तकनीकी सहयोग किया था। मध्यप्रदेश में वे कई तितली पार्क बना चुके हैं।

तितली पर एक और खतरा खेती के तरीके में आया बदलाव भी है।

“मौसम में परिवर्तन, अंधाधुंध जंगल की कटाई और जंगल में आग लगने सहित कीटनाशकों के प्रयोग की वजह से तितलियों के रहने का स्थान खत्म हो रहा है,” सोंधी कहते हैं।

कमांडर तितली। यह तितली भोपाल स्थित बटरफ्लाई पार्क में देखी जा सकती है। फोटो- मोहम्मद खालिक
कमांडर तितली। यह तितली भोपाल स्थित बटरफ्लाई पार्क में देखी जा सकती है। फोटो- मोहम्मद खालिक

संरक्षण में  तितली पार्क का कितना योगदान

तितली पार्क और तितली संरक्षण को अलग-अलग देखना होगा। पार्क का योगदान तितलियों के बारे में लोगों तक जागरुकता पहुंचाने का हो सकता है, लेकिन संरक्षण का काम बिल्कुल अलग होगा। यह कहना है राष्ट्रीय जैविक विज्ञान केंद्र के एसोशिएट प्रोफेसर कृष्णमेघ कुंते का। उन्होंने मोंगाबे हिन्दी के सवालों का जवाब इमेल के जरिए दिया। 

“सरंक्षण को शहरी और जंगल के इलाके में अलग तरीके से करना होगा। इसमें तितली का आशियाना सुरक्षित करने के साथ विलुप्त हो रही प्रजाति का लैब में प्रजनन कराकर उन्हें जंगल में छोड़ने जैसे कई वैज्ञानिक कदम शामिल हैं। तितली के लिए मददगार नेक्टर और होस्ट प्लांट का संरक्षण भी एक कदम हो सकता है,” कुंते कहते हैं।

बटरफ्लाई पार्क का तितली संरक्षण में योगदान के सवाल पर संजय सोंधी कहते हैं कि पार्क से नहीं बल्कि जंगल लगाने से बड़े स्तर पर तितलियों का संरक्षण होगा। जंगल में जैव विविधता रहती है जिसमें तितली के साथ दूसरे कीट, जानवर और पक्षी भी शामिल हैं। 

“बटरफ्लाई पार्क को हमें इस तरह से देखना होगा कि क्या वह तितली के लिए है या इंसानों के लिए। अगर पार्क तितली के संरक्षण के लिए है तो वहां सिर्फ तितली ही नहीं बल्कि जंगल के दूसरे जीवों के रहने का इंतजाम भी करना होगा। इसका एक तरीका है रिवाइल्ड करना, यानी हर तरह के पेड़-पौधे लगाकर उसे प्रकृति को सौंप देना। इससे तितली के साथ दूसरे जीव भी वहां रहने लगेंगे,” सोंधी कहते हैं।

बैनर तस्वीर- कॉमन क्रो तितली। भोपाल के वन विहार में नेक्टर प्लांट पर तितलियां फूलों का रस लेती हुई नजर आती हैं। फोटो- मोहम्मद खालिक

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