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देश में 60 फीसदी और मध्यप्रदेश में 88 फीसदी बढ़ी तेंदुए की आबादी, इंसानों के साथ संघर्ष रोकना बड़ी चुनौती

दक्षिणपूर्व कर्नाटक में बिलीगिरिंगा पहाड़ी का तेंदुआ। देशभर में कर्नाटक तेंदुए की अनुमानित संख्या (1,783) में दूसरे स्थान पर है। फोटो- उदय किरण/विकिमीडिया कॉमन्स

दक्षिणपूर्व कर्नाटक में बिलीगिरिंगा पहाड़ी का तेंदुआ। देशभर में कर्नाटक तेंदुए की अनुमानित संख्या (1,783) में दूसरे स्थान पर है। फोटो- उदय किरण/विकिमीडिया कॉमन्स

  • भारत सरकार ने हाल ही में तेंदुए की आबादी से संबंधित आंकड़ा जारी किया जिसमें तेंदुए की आबादी में 60 फीसदी की वृद्धि दिखाई गई है।
  • इस रपट में वर्ष 2018 में 12,852 तेंदुओं के होने का अनुमान लगाया गया है। इसके अनुसार मध्य प्रदेश में सबसे अधिक तेंदुए मौजूद हैं।
  • मध्य प्रदेश में देश के 26 फीसदी तेंदुए रहते हैं और यहां इनकी आबादी में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई है। प्रदेश में तेंदुए और इंसानों के बीच बढ़ता टकराव भी चिंता की बात है।
  • इस रपट में तेंदुए के रहने लायक जंगल की गुणवत्ता में कमी देखते हुए उनमें सुधार की जरूरत पर बल दिया गया है। तेंदुआ और इंसान के बीच का संघर्ष को भी इस रपट में प्रमुखता से उठाया गया है।

आए दिन देश के किसी कोने से तेंदुए के पीछे लाठी-डंडा लेकर दौड़ते लोगों की तस्वीर नजर आती है। कभी पंजाब के खेतों से तो कभी मध्यप्रदेश के किसी रिहायशी इलाके से। कई बार तेंदुआ घबड़ाकर कुएं में गिर जाता है, तो कई बार ऊंचाई से छलांग लगाकर खुद को घायल कर लेता है। हाल में गुवाहाटी और भोपाल जैसे देश के कई शहर ऐसे हैं जहां यह जंगली जानवर शहर की भीड़भाड़ वाले इलाका में देखा गया है।

ये सब तस्वीरें इंसान और तेंदुए के बीच बढ़ते टकराव को दर्शाती है, जिसमें अक्सर तेंदुए की जान चली जाती है। कई बार इसमें इंसान घायल होते हैं तो कई मामलों में इंसानों की भी जान जाती है।

इन सब संघर्ष के बीच भारत सरकार ने तेंदुए की आबादी को लेकर एक अच्छी खबर सुनाई है। दिसंबर 21 में जारी एक रपट  में देश में मौजूद तेंदुओं की संख्या का अनुमान लगाया गया है। इसके अनुसार वर्ष 2018 में देश में 12,852 तेंदुए मौजूद थे। यह संख्या 2014 में हुए अनुमान से 60 फीसदी अधिक है।

मध्यप्रदेश तेंदुए की आबादी में देश में पहले स्थान पर है। यहां  3,421 तेंदुए के मौजूद होने का अनुमान लगाया है, जो कि 2014 में हुए सर्वे से 88 प्रतिशत अधिक है। मध्यप्रदेश के जंगलों के लिए पिछला दो साल दो अच्छी खबरों वाला रहा। वर्ष 2019 में आई एक अन्य रपट में प्रदेश में 526 बाघ होने का अनुमान आया और इस तरह मध्य प्रदेश में इस मामले में भी प्रथम स्थान पर रहा।

तेंदुओं की अनुमानित संख्या में कर्नाटक का स्थान 1,783 के साथ दूसरे और 1,690 तेंदुओं के साथ महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर रहा। संख्या का अनुमान लगाने के लिए इस रपट में तकनीक का भी इस्तेमाल देखने को मिलता है। करीब 5,240 तेंदुए की पहचान उनकी 51,337 तस्वीरों और इसके पैटर्न समझने वाले सॉफ्टवेयर की मदद से की गई।

हालांकि, इस सर्वे में पूर्वोत्तर राज्यों से अच्छी खबर नहीं आई है। यहां तेंदुए के रहने लायक जंगलों का ह्रास, चाय बगानों का विस्तार और दूसरे विकास की परियोजनाओं की वजह से तेंदुए की आबादी में काफी कमी देखी गई है। इस रपट में पूर्वोत्तर राज्यों में महज 141 तेंदुओं के होने का अनुमान लगाया गया है।

हिमालय स्थित शिवालिक की पहाड़ियों और गंगा के मैदानी इलाको में 1,253 तेंदुए देखे गए हैं, वहीं मध्य और पूर्वी घाट के इलाके में 8,071 तेंदुए देखे गए हैं। पश्चिमी घाट में 3,386 तेंदुए होने का अनुमान लगाया है।

अन्नामलाई की पहाड़ी स्थित जंगल में विचरण करता हुआ तेंदुआ। फोटो- पी जगन्नाथन/विकिमीडिया कॉमन्स
अन्नामलाई की पहाड़ी स्थित जंगल में विचरण करता हुआ तेंदुआ। फोटो– पी जगन्नाथन/विकिमीडिया कॉमन्स

सरकार का दावा यह संरक्षण की कोशिशों का नतीजा

 इस रपट के मुताबिक जिन स्थानों पर तेंदुओं को शिकार आसानी से मिलता है वहां उनकी अच्छी खासी आबादी देखने को मिलती है।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस रपट को जारी करते हुए कहा कि शेर, बाघ और तेंदुए की बढ़ती आबादी सरकार के द्वारा संरक्षण के सफल प्रयासों का नतीजा है। इस रपट में, नीतिनिर्माताओं ने अपनी उपलब्धि के महत्व को समझाने के लिए यह भी कहा है कि वैश्विक स्तर पर तेंदुओं की आबादी कम हो रही है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के सदस्य सचिव एसपी यादव मोंगाबे-हिन्दी से बात करते हुए कहते हैं कि इस सभी प्रजातियों में प्रमुख है बाघ और उसका संरक्षण सबसे जरूरी है।

इसे समझाते हुए वह कहते हैं, “जब हम बाघ का संरक्षण करते हैं, उनसे मिलती-जुलती दूसरी प्रजातियों जैसे तेंदुए का संरक्षण खुद-ब-खुद हो जाता है।”

बड़ी चुनौती: जंगलों का ह्रास और इंसान और तेंदुए का संघर्ष 

इस रिपोर्ट के आने के बाद सरकार तेंदुए की बढ़ी आबादी पर भले ही जश्न मना रही हों, लेकिन देश में बढ़ रहे इंसानों और तेंदुओं के बीच संघर्ष, चिंता का विषय है। देश में तेंदुए की मौत पर कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन एक गैर सरकारी संस्था वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया (डब्लूपीएसआई) के मुताबिक वर्ष 2020 में अबतक 435 तेंदुओ की मौत हो चुकी है। इनमें से 144 की मौत शिकार की वजह से हुई।  वर्ष 2019 में 494 तेंदुओं की जान गई थी।

“मध्यप्रदेश तेंदुए की आबादी के मामले में पहले स्थान पर है। तेंदुए जंगल के साथ-साथ इंसानी आबादी के करीब भी रहने में सहज हैं। इसलिए इंसान और तेंदुओं के बीच टकराव की आशंका अधिक है। जंगलों का ह्रास और शिकार की वजह से इनकी आबादी कम होने का खतरा है,” तेंदुआ पर सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है।

मध्य प्रदेश में तेंदुए और इंसानों के बीच टकराव की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

“एनटीसीए बाघ के साथ-साथ तेंदुए की मौत को भी काफी गंभीरता से लेता है, लेकिन मध्य प्रदेश में जमीनी हकीकत कुछ और ही दिखती है। तेंदुए की आबादी में नंबर एक पर आने से अधिक महत्वपूर्ण है इनके रहने के स्थान का सुरक्षित रहना। मध्य प्रदेश में जंगल का तेजी से ह्रास हो रहा है, जिससे इंसानों और जंगली जीवों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है,” वन्यजीवों के जानकार अजय दुबे ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

वह कहते हैं कि एनटीसीए के प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालन न करने के वजह से तेंदुए की मौत का सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं हो पाता है।

इस बात को बाघ की मौत के आंकड़े से समझा जा सकता है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2020 में 26 बाघों की मौत हुई है, जो कि देश में सबसे अधिक है। देश भर में 99 बाघों की मौत हुई है। प्रदेश में 2012 से लेकर 2019 तक 172 बाघ मरे।

देश में राज्यवार बाघ की मौत का आंकड़ा। मध्यप्रदेश में वर्ष 2020 में 26 बाघों की मौत हुई है, जो कि देश में सबसे अधिक है। फोटो- TRRAFIC
देश में राज्यवार बाघ की मौत का आंकड़ा। मध्यप्रदेश में वर्ष 2020 में 26 बाघों की मौत हुई है, जो कि देश में सबसे अधिक है। फोटो– TRRAFIC

संदीप चौकसे, सोमेश सिंह, विराट सिंह तोमर, एसबी लाल, अरविंद बिजालवन और आरपीएस बघेल ने वर्ष 2018 में बांधवगढ़ के जंगल में तेंदुआ और इंसान के टकराव पर एक अध्ययन किया था। इन्होंने इस अध्ययन में स्थानीय समुदाय की तेंदुए के प्रति व्यवहार का अध्ययन किया। इसके लिए ऐसे मामले से संबंधित आंकड़े जुटाए गए और मामलों की तहकीकात कर संघर्ष की वजह खोजी गई। अध्ययनकर्ताओं में संदीप चौकसे विश्व वन्यजीव कोष (डब्लूडब्लूएफ) से संबंधित हैं। सोमेश सिंह और विराट सिंह तोमर नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा एवं विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर में वन्यजीव विज्ञान शाखा के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वहीं, अरविंद बिजालवन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट भोपाल से जुड़े हैं। आरपीएस बघेल स्कूल ऑफ फॉरेस्ट एंड एनवायरनमेंट, इलाहाबाद से जुड़े हैं।

इन शोधकर्ताओं ने पाया कि जंगल के भीतर इंसानी आबादी का विस्तार, इंसानों की जंगल पर निर्भरता और जंगल की गुणवत्ता में कमी इन संघर्षों का कारण बनती है।

“बाघ और तेंदुए के रहन-सहन में एक बड़ा फर्क है, बाघ को घना जंगल चाहिए, जबकि तेंदुआ इंसानी आबादी के पास भी रह लेता है। इंसानी आबादी में आवारा कुत्तो की बढ़ती संख्या की वजह से तेंदुए इस तरफ आसान शिकार के लोभ में आ जाते हैं। यहीं टकराव शुरू होता है। सुअरों और अन्य शाकाहारी जानवरों को फंसाने के लिए लगाए फंदों में कई बार तेंदुए भी फंस जाते हैं,”

नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा एवं विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर के वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. सोमेश सिंह ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में कहा।

आखिर कैसे कम होगा इंसान-तेंदुआ के बीच का टकराव

यह रिपोर्ट कहती है कि तेंदुए किसी भी तरह के माहौल में खुद को ढालने में सक्षम होते हैं इसलिए इनकी आबादी देश के कमोबेश सभी इलाके में पाई जाती है। ये अपनी इस खूबी की वजह से इंसानी आबादी वाले इलाकों में भी रह लेते हैं।

“इतिहास में देखें तो इंसान और तेंदुए के संबंध कभी अच्छे नहीं रहे और इस वजह से इंसानों का व्यवहार तेंदुए के प्रति नकारात्मक रहता है। इसलिए टकराव अधिक होता है,” रिपोर्ट में कहा गया है।

इस रपट में समाधान का सुझाव भी है। इसके लिए एक जंगल से दूसरे जंगल को जोड़ने वाले कॉरिडोर की जरूरत पर जोर दिया गया है। यह रपट कहती है कि निर्माण के दौरान हरियाली का ख्याल रखा जाए। नई तकनीक की मदद से इंसान और तेंदुए दोनो को सुरक्षित रखा जा सकता है।

“जंगल में इंसानों द्वारा पाले जानवर भीतर न घुस पाएं इसलिए घेराबंदी और अच्छी होनी चाहिए। आजकल बायो फेंसिंग यानी जेट्रोफा जैसे पौधे जिसे शाकाहारी जीव पसंद नहीं करते, उसे जंगल के आसपास लगाकर जानवरों को भीतर आने से रोका जा सकता है। लोगों को तेंदुए का महत्व बताकर उन्हें जागरूक करने से भी यह संघर्ष कम हो सकता है,” डॉ. सोमेश सिंह कहते हैं।

गुजरात के गिर के जंगल में तेंदुआ। जानकार मानते हैं कि शेर या बाघ के संरक्षण की कोशिशों की वजह से तेंदुए का संरक्षण भी होता है। फोटो- एजेटी जॉन सिंह, डब्लूडब्लूएफ इंडिया और एनसीएफ/विकिमीडिया कॉमन्स
गुजरात के गिर के जंगल में तेंदुआ। जानकार मानते हैं कि शेर या बाघ के संरक्षण की कोशिशों की वजह से तेंदुए का संरक्षण भी होता है। फोटो– एजेटी जॉन सिंह, डब्लूडब्लूएफ इंडिया और एनसीएफ/विकिमीडिया कॉमन्स

आंकड़ों की खामी की वजह से पूर्वोत्तर में कम तेंदुए होने का अनुमान

 इस रपट में देश के अलग-अलग हिस्सों में तेंदुए की आबादी के विशेष आंकड़े उपलब्ध कराए गए हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों में कम संख्या होने को लेकर रिपोर्ट में आंकड़ों की खामी की बात की गई है। इसके मुताबिक पूर्वोत्तर के राज्य और बंगाल में ट्रैप कैमरे मात्र मानस, पकुई और नमेरी टाइगर रिजर्व में ही लगाए गए हैं। जबकि तेंदुए की बड़ी आबादी चाय के बागानों में रहती है। इसलिए यह संभव है कि इन तेंदुओं की गिनती न हुई हो।

“काजीरंगा और नामदफा टाइगर रिजर्व से भी कुछ तस्वीरें आई, लेकिन बावजूद इसके पूर्वोत्तर राज्यों का आंकड़ा अधूरा है,” इस रपट में कहा गया है।

उत्तराखंड को लेकर भी जारी आंकड़ो को संदेह से देखा जा रहा है। रुद्रप्रयाग वन क्षेत्र के वन अधिकारी वैभव सिंह मानते हैं कि उत्तराखंड का आंकड़ा तीन से चार गुना अधिक होगा। अभी राज्य में 839 तेंदुए होने का अनुमान लगाया गया है, जबकि इनकी वास्तविक संख्या तीन से चार हजार के करीब होनी चाहिए।

“उत्तराखंड जैसे हिमालय वाले इलाकों में निर्माण संबंधी परियोजनाएं तेंदुए के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं। इसकी वजह से लोगों से इनका टकराव भी बढ़ रहा है,” सिंह ने मोंगाबे- हिन्दी से बातचीत में बताया।


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बैनर तस्वीरः दक्षिणपूर्व कर्नाटक का पहाड़ी तेंदुआ। देशभर में कर्नाटक तेंदुए की अनुमानित संख्या (1,783) में दूसरे स्थान पर है। फोटो– उदय किरण/विकिमीडिया कॉमन्स

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