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राहुल राम: संगीत और पर्यावरण के मुद्दों के समागम के प्रयास में

राहुल राम
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन से पर्यावरण और प्रशासन के जमीनी समझ लेने वाले राहुल राम अपने गीतों में पर्यावरण और समाज के अन्य ज्वलंत मुद्दों को आवाज देते रहे हैं।
  • नब्बे के दशक में ही इंडियन ओशन बैंड ने भारतीय लोक और शास्त्रीय परंपराओं के साथ रॉक संगीत के फ्यूजन का प्रयोग शुरू कर दिया था। ये अपने गीत के बोल भारतीय कविता, लोक संगीत, प्रतिरोध संगीत और अन्य अभिनव स्रोतों से उठाते हैं।
  • पर्यावरण से जुड़े मुद्दे बदल रहे हैं। इन मुद्दों को कला के क्षेत्र में बेहतर तरीके से व्यक्त करने के लिए दृष्टिकोण में बदलाव लाया जा रहा है।

नब्बे के दशक के शुरुआती साल में जब देश में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हो रही थी, उन्हीं दिनों मुझे नर्मदा घाटी की यात्रा का मौका मिला। नर्मदा बचाओ आंदोलन की तरफ से एक बैठक का आयोजन किया गया था। सरदार सरोवर डैम के खिलाफ चल रहे मुहिम में मैं इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एण्ड कल्चरल हेरिटेज (आईएनटीएसीएच) की तरफ से शामिल था। इसी बहाने मुझे नर्मदा घाटी में कुछ दिन गुजारने का अवसर मिला।

इस आयोजन में मेरे हमउम्र कई कार्यकर्ता शामिल थे। हमलोग छोटे-छोटे समूह में नदी की तरफ घूमने जाते थे। घाट का मनोरम दृश्य और फिर कभी-कभी मगरमच्छ देखने की चाह में। नर्मदा के घाट पर जब ठंढी हवा के झोंके हमें किसी और दुनिया में ले जाते थे उसी वक्त वह ऊंचे स्वर में गाता था। जैसे बाउल गायन। मुझे पता था कि यह शख्स दिल्ली से है। किसी नए बैंड के साथ जुड़ा है और इस तरह संगीत और अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय है। नब्बे के दशक के अंत आते-आते यह बैंड काफी मशहूर हो गया। इस शख्स को पुनः मैंने 2011 में यूट्यूब पर देखा। ऊंचे स्वर में गाए ‘अरे रूक जा रे बंदे’ को सुनते ही मुझे लगा कि इंडियन ओशन का यह राहुल राम वही शख्स है। 

मोंगाबे-इंडिया ने हाल ही में राहुल राम के साथ अपनी नई श्रृंखला की शुरुआत की। इस शृंखला के तहत हम कला, नीति, उद्योग और अन्य क्षेत्रों में सक्रिय हस्तियों का साक्षात्कार करेंगे। उन हस्तियों का जो किसी भी तरीके से पर्यावरण के मुद्दे से जुड़े रहे हैं। ऐसी ही एक हस्ती हैं राहुल राम जो गायक, गिटारवादक, संगीतकार के साथ साथ चर्चित इंडियन ओशन बैंड के सदस्य भी हैं। पिछले कुछ सालों में इनके नए समूह ‘ऐसी तैसी डेमोक्रेसी’ को भी काफी चर्चा और सराहना मिली है।

नब्बे के दशक में ही इंडियन ओशन बैंड ने भारतीय लोक और शास्त्रीय परंपराओं के साथ रॉक संगीत के फ्यूजन का प्रयोग शुरू कर दिया था। ये अपने गीत के बोल भारतीय कविता, लोक संगीत, प्रतिरोध संगीत और अन्य अभिनव स्रोतों से उठाते हैं। उदाहरण के लिए, कंदीसा एल्बम के शीर्षक गीत को ही लीजिए।  यह अरेमिक भाषा की एक प्रार्थना है जो आज भी सीरियाई मूल से जुड़े कुछ भारतीय गिरिजाघरों में गायी जाती है।

पुणे में इंडियन ओशियन बैंड के साथ प्रस्तुति देते राहुल राम। फोटो- कुशल दास/फ्लिकर
पुणे में इंडियन ओशन बैंड के साथ प्रस्तुति देते राहुल राम। फोटो– कुशल दास/फ्लिकर

इनका बैंड हर उम्र के लोगों के बीच लोकप्रिय है। मेरे सहपाठियों में एक संगीत के शौकीन मित्र हैं जिन्होंने इस बैंड के बारे में कुछ ऐसा कहा, “इस बैंड के गायकों की आवाज अनोखी है। ये लोग किसी की नकल नहीं करते हैं और इन्हें सुनकर आपको भारतीय होने पर गर्व होता है। उनकी जड़ें भारतीय शास्त्रीय संगीत में है पर साथ में इन्हें रॉक संगीत पर भी अच्छी पकड़ है। इनका मजबूत स्वर और शानदार गीत, इनके संगीत को खास बनाता है।”

इसी तरह नौजवान पीढ़ी से आने वाले 26- वर्षीय युवा मुनाफ लुहार एक स्वतंत्र गायक, लेखक और संगीतकार को भी इंडियन ओशन खासा पसंद है। पर इनकी पसंद की वजह कुछ और ही है। अहमदाबाद के रहने वाले इस युवा के अनुसार “इंडियन ओशन बैंड हमेशा देश के ज्वलंत मुद्दों को अपनी आवाज देता है। इनके संगीत का लक्ष्य केवल मनोरंजन करना नहीं होता। बल्कि ये लोग अपने गीतों के माध्यम से सामाजिक संदेश भी देते हैं।”

इनकी बात में दम है। एक तरफ इंडियन ओशन अपने गीतों में पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों को तरजीह देता रहा है तो दूसरी तरफ, ‘ऐसी तैसी डेमोक्रेसी’ एक कदम आगे बढ़कर समसामयिक राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरण के मुद्दों को आधार बनाकर व्यंग करता है। ‘ऐसी तैसी डेमोक्रेसी’ की टीम में राहुल राम बतौर संगीतकार जुड़े हैं और हिन्दी फिल्मों के गानों की तर्ज पर नए गीत सुनाते हैं।

टेहरी और नर्मदा

राहुल राम के पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को लेकर सक्रिय होने की कहानी भी अलहदा है। इसकी शुरुआत तब हुई जब राम को सुंदरलाल बहुगुणा के टिहरी गढ़वाल स्थित घर पर ठहरने का मौका मिला। बहुगुणा, चर्चित चिपको और टिहरी बांध विरोधी आंदोलन से जुड़े प्रमुख व्यक्ति हैं।

राम को यहां ग्रामीण स्तर पर पर्यावरण से जुड़े आंदोलन को समझने का मौका मिला। इसके बाद राहुल राम कल्पवृक्ष के साथ जुड़ गए। छात्रों का यह समूह तमिलनाडु के संरक्षित क्षेत्र और चमड़ा उद्योग के क्षेत्र में सक्रिय था। राहुल राम ने अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय से इनवायरनमेंटल टॉक्सिकॉलॉजी से पीएचडी की।

वर्ष 1990 से 1995 तक नर्मदा घाटी में नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथ जुड़कर पर्यावरण से जुड़े जमीनी स्तर के मुद्दों को समझा। मोंगाबे-इंडिया से बात करते राहुल राम कहते हैं, “पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को लेकर मैंने यहां बहुत कुछ सीखा। भारत बतौर राज्य कैसे काम करता है! प्रशासन उनलोगों से कैसे पेश आता है जो लोग इसकी नीतियों से सहमत नहीं होते! जेल और बेल क्या चीज होती है! को जानने समझने का मौका मिला!जिला प्रशासन के विभिन्न अंग को समझने का मौका मिला। एक शहरी लड़के के लिए यह सब गजब का अनुभव था।” 

राहुल राम का जन्म विद्वानों के घर में हुआ था। राहुल राम के माता-पिता वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर थे। उनके चाचा एच.वाई. शारदा प्रसाद, एक वरिष्ठ पत्रकार थे जो प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की मीडिया सलाहकार भी रहे। इस तरह छोटी उम्र से ही राहुल राम को इन मुद्दों की समझ होने लगी थी। बाद में राहुल नर्मदा घाटी और दिल्ली के बीच यात्रा करते रहे। इसके साथ संगीत बैंड के साथ जुड़कर गाना-बजाना भी करते रहे ताकि कुछ कमाई हो जाए।

नब्बे के दशक बीतने के साथ साथ, इंडियन ओशन बैंड नई बुलंदी छूता गया। इक्कसवीं सदी के दो दशक बीत गए और यह सिलसिला आज भी जारी है।  राम ने बैंड के कुछ गानों में नर्मदा घाटी के सिरे को भी जोड़ा। मसलन रेवा और चीतु

नब्बे के दशक में पर्यावरण के मुद्दे को लेकर वैचारिक दुनिया में भी बहुत कुछ बदल रहा था। देश में हो रहे आर्थिक सुधार से उपभोग को प्राथमिकता देने वाला एक शहरी मध्यम वर्ग तैयार हो रहा था। इस तरह राष्ट्रीय चेतना में, नर्मदा घाटी में आदिवासी समुदायों के पर्यावरण और आजीविका के मुद्दों का महत्व कम होता गया।  विडंबना यह है कि इंडियन ओशन जिस तरह के संगीत तैयार करता था उसकी मांग बढ़ रही थी पर नर्मदा आंदोलन में ही लोगों की रुचि कम हो गयी।

इनके अनुसार चीतु, आदिवासी कवि शंकरभाई तडावले द्वारा लिखा गया एक गीत है। यह गीत नर्मदा घाटी में रहने वाले मूल निवासियों के साथ ऐतिहासिक और वर्तमान में किए गए अन्याय की कहानी बयान करता है। शंकरभाई तडावले का लिखा एक और गीत है जिसे इंडियन ओशन ने गाया है। इस गीत में थानेदार गांव में आकर भील आदिवासियों से मुर्गा मांगता है वहीं वन अधिकारी इन गांव वालों से रिश्वत की मांग करता है। “राज्य द्वारा रिश्वत लेने और आदिवासियों का यह कहना कि पहले रिश्वत देते थे पर अब नहीं देंगे- इतना सबकुछ महज चार पंक्तियों में समेट लिया गया है।”

राम मानते हैं, “एक शहरी व्यक्ति के लिए इन जटिल विचारों को चार सरल पंक्तियों में कह देना कठिन है। जब गांव में रहने वाले कवि कुछ लिखते हैं तो वह सरल जरूर होता है पर बड़े जटिल मुद्दों को बयान करता है। शहरी लोग जब पर्यावरण से जुड़े मुद्दे पर संगीत की कल्पना करते हैं तो उन्हें बहुत कुछ सोचना-समझना पड़ता है। क्योंकि यह संगीत ऐसे लोगों को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है जो इसके संदर्भ से वाकिफ नहीं हैं। लेकिन जब शंकर भाई अपने गांव के लोगों के लिए एक गीत लिख रहे थे तो उनके सामने यह चुनौती नहीं थी। उन्होंने जैसे ही थानेदार और मुर्गे की बात कि लोगों यह बात एक झटके में समझ में आ गयी।”

पर्यावरण संबंधी मुद्दों को राहुल राम ने अपने गानों में स्थान दिया है। फोटो- निनाद चौधरी/फ्लिकर
पर्यावरण संबंधी मुद्दों को राहुल राम ने अपने गानों में स्थान दिया है। फोटो– निनाद चौधरी/फ्लिकर

पर्यावरण के मुद्दे बदल रहे हैं, संगीत के मंच को भी बदलना होगा

पर्यावरण से जुड़े मुद्दे बदल रहे हैं। इन मुद्दों को कला के क्षेत्र में बेहतर तरीके से व्यक्त करने के लिए दृष्टिकोण में बदलाव लाया जा रहा है। इंडियन ओशन बैंड के साथ अपनी सक्रियता के बावजूद, हाल के वर्षों में राम ने एक राजनीतिक कमेंटटर और एक स्टैंड-अप कॉमेडियन – वरुण ग्रोवर और संजय राजौरा, के साथ मिलकर ‘ऐसी तैसी डेमोक्रेसी’ की शुरुआत की।

इस समूह की एक चर्चित पैरोडी है जिसे राम ने गाया है। इस पैरोडी में वायु- प्रदूषण की बात की गयी है। नई दिल्ली और उत्तर भारत में हर साल सर्दियों के दौरान होने वाले वायु-प्रदूषण पर किए गए इस व्यंग में अस्थमा और फेफड़ों में धूल की बात की गई है। इस व्यंग के अंत में इस प्रदूषण को नियंत्रित करने में असफल नीति-निर्माताओं पर तंज कसा गया है। “ये गीत इसलिए लोकप्रिय हो गए हैं क्योंकि इनमें गंभीर बातों को मजाकिया लहजे में कहा गया है। चूंकि श्रोताओं के लिए यह परिचित धुन होता है तो इनके बोल उन्हें आसानी से याद हो जाते हैं,” राम कहते हैं। 

इनका कहना है, “मेरी समझ से हम सभी के कई पक्ष हैं और सबको एक मंच के सहारे बयान नहीं किया जा सकता। ऐसे माध्यम और तरीकों को खोजते रहना होगा जिससे पर्यावरण से जुड़े मुद्दे को लोग सहजता से लें। ऐसे गीत बनाने होंगे जिसमें प्रतिरोध का तत्व भी हो और सीमापार के लोगों से कोलैबोरेट (सहयोग) भी किया जा सके। इंटरनेट के आने से इन सबकी संभावना बढ़ी हैं। पहले यह सब संभव नहीं था।”

रैप एक अच्छे माध्यम के तौर पर उभर रहा है। राम का मानना है, “भारत में युवा दो छलांग लगाकर, लोक संगीत से सीधे रैप पर आ रहे हैं। इसके दो प्रमुख कारण हैं। एक तो यह कि रैप के लिए संगीत का कोई बहुत ज्ञान नहीं चाहिए। इसके लिए बस लय में अच्छा और तेज बोलने की क्षमता चाहिए। दूसरा, युवाओं के पास कहने के लिए बहुत कुछ है और रैप आपको वह सब कहने की अनुमति देता है। उदाहरण के लिए कश्मीर के एमसी कैश को ही लीजिए। यह कश्मीरी युवा सीधे लोक संगीत से रैप करना शुरू किया और इस माध्यम की मदद से इस युवा ने क्या गजब राजनीतिक बयान दिए!”

आने वाले सीजन में ‘ऐसी तैसी डेमोक्रेसी’ का ध्यान शहरी क्षरण पर केंद्रित होगा। राम बताते हैं, ”भारत में शहरी जीवन जो रूप लेता जा रहा है उसको कहा जाना जरूरी है। पानी की समस्या, प्रदूषण, भीड़, हर दिन काम करने के लिए पांच घंटे की यात्रा करने की नासमझ जद्दोजहद। किसी अन्य के लिए रोज ऐसे काम करते जाना जो वास्तव में निरर्थक है। पूरी संभावना है कि हास्य और व्यंग के कलेवर में इन मुद्दों को समेटे जल्द ही कुछ श्रोताओं को देखने-सुनने को मिलेगा।”

बैनर तस्वीरः इंडियन ओशन बैंड के राहुल राम। फोटो- अमित रॉय

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