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कुत्ते इंसानों के बेहतरीन दोस्त पर वन्यजीवों की 80 प्रजातियों के लिए खतरा

लेह के जंगलों में घूमते आवारा कुत्ते। जानकार मानते हैं कि घरेलू कुत्तों से वन्यजीवन को खतरा है। तस्वीर- अथर परवेज

लेह के जंगलों में घूमते आवारा कुत्ते। जानकार मानते हैं कि घरेलू कुत्तों से वन्यजीवन को खतरा है। तस्वीर- अथर परवेज

  • इंसानों के बेहतरीन दोस्त के तौर पर विख्यात कुत्ते वन्य जीवों के प्रति हमलावर होते हैं। इनके निशाने पर करीब 80 प्रजातियों के वन्य जीव होते हैं।
  • विश्वभर में घरेलू कुत्तों की संख्या तकरीबन एक अरब है। इसमें से छह करोड़ कुत्ते भारत में रहते हैं। पालतू कुत्तों के मामले में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है।
  • वन्य जीवों पर आधे से अधिक कुत्तों के हमले संरक्षित क्षेत्र के आसपास होते हैं। जानकार मानते हैं कि कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने पर विचार करना चाहिए। इन्हें पालने वालों के लिए गाइडलाइन भी बननी चाहिए।

कुत्तों को इंसानों का सबसे पुराना दोस्त होने का दर्जा मिला हुआ है। पर इंसानों से दोस्ताना व्यवहार रखने वाले कुत्ते जंगली जीवों से ऐसी दोस्ती नहीं निभाते। देश में हुए एक सर्वे से कुत्तों के इन जीवों पर हमलावर होने की पुष्टि हुई और इससे संरक्षण के लिए काम कर रहे लोगों के माथे पर बल पड़ गया।

करीब दो साल पहले प्रकाशित इस रपट के अनुसार वन्यजीवों की 80 फीसदी प्रजातियां कुत्तों के हमले का शिकार बनती हैं। इनमें गोल्डन लंगूर, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और हरे कछुए जैसे जीव शामिल हैं। इन जीवों पर आधे के करीब हमले संरक्षित क्षेत्र के भीतर या उसके आसपास होते हैं।

कुत्तों द्वारा जंगली जानवरों पर होने वाले हमलों को लेकर अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट (एटीआरईई) से जुड़ीं चंद्रिमा होमे ने एक ऑनलाइन सर्वे और मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर आंकड़े जुटाए। जानकार मानते हैं कि घरेलू कुत्ते और जंगली जानवर के बीच होने वाले टकराव पर इस तरह का अध्ययन कम ही देखने को मिलता है। यह अध्ययन को एनिमल कंजर्वेशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

“बावजूद इसके कि यह सर्वे ऑनलाइन था जिसकी अपनी सीमा होती है, हम पूरे देश भर से आंकड़े जुटाने में कामयाब रहे। पता चला कि कुत्तों ने लगभग 80 वन्य जीवों पर हमला किया। हमला करने वाले अधिकतर कुत्ते झुंड में खुले में घूमने वाले थे। लगभग आधे हमलों में वन्य जीव की जान चली गई,” होमे ने मोंगाबे-इंडिया को बताया।

जंगली गदहे का पीछा करते कुत्ते। यह तस्वीर गुजरात स्थित कच्छ के रण की है। तस्वीर- कल्याण वर्मा
जंगली गदहे का पीछा करते कुत्ते। यह तस्वीर गुजरात स्थित कच्छ के रण की है। तस्वीर- कल्याण वर्मा

विलुप्तप्राय जीव भी कुत्तों की चपेट में

इस सर्वे में जिन 80 प्रजाति के वन्यजीवों पर कुत्तों के हमले की बात सामने आई उनमें से 31 वन्यजीव प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ  (आईयूसीएन) रेड लिस्ट के मुताबिक गंभीर रूप से विलुप्ति का खतरा झेल रहे हैं। इन जीवों में गिद्ध, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, बंगाल फ्लोरिकन, चाइनीज पैंगोलिन, हरे कछुए, हिमालय के गोरल, एशिया का जंगली गधा, लाल पांडा और सुनहरा लंगूर शामिल हैं। वर्ष 2000 से 2016 के बीच हुए हमलों को इस सर्वे में शामिल किया गया।

शोध के आंकड़ों से पता चला कि इसमें शामिल 249 लोगों में से 73 प्रतिशत लोगों ने पालतू कुत्तों के द्वारा जानवरों पर हुआ हमला अपनी आंखों के सामने देखा है। सर्वे में शामिल 78 प्रतिशत लोगों ने पालतू कुत्तों को जंगल के आसपास देखा और उन्हें लगता है कि इससे जंगली जानवरों को खतरा है।

वैश्विक स्तर पर कुत्ते, बिल्ली, चूहे और सुअर को 600 तरह की वन्यजीवों की प्रजाति को नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। ये प्रजातियां आईयूसीएन रेड लिस्ट में विलुप्तप्राय या संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में दर्ज की गई हैं।

वैश्विक स्तर पर हुए शोध से पता चलता है कि 11 प्रजातियों को विलुप्त होने में कुत्तों की अहम भूमिका रही है। इंसानों के इस बेहतरीन दोस्त ने 188 प्रजातियों को विलुप्त होने की कगार पर ला खड़ा किया है।

दुनिया भर में एक अरब कुत्तों के होने का अनुमान है। इनमें से छः करोड़ कुत्ते भारत में पाए जाते हैं। कुत्तों की कुल संख्या के मामले में भारत चौथे स्थान पर आता है।

भारत में कुत्तों की अधिक आबादी होने के पीछे लचीले नियम-कानून को जिम्मेदार माना जाता है। कुत्ता पालने संबंधी नियम। इसके अलावा, यहां आबादी को नियंत्रण करने की कोई ठोस कोशिश नहीं हुई है। जानकार मानते हैं कि भारत में खाद्य-पदार्थों की अत्यधिक बर्बादी भी इसकी एक बड़ी वजह है।

“वन्य जीवों की तुलना में कुत्तों की आबादी अधिक होने की वजह से वे इनके सामने कमजोर पड़ जाते हैं। हमारे देश में संरक्षित क्षेत्र काफी छोटे हैं जिसकी वजह से जब कुत्ते समूह में हमला करते हैं तो जीवों के पास बच निकलने का मौका नहीं मिलता,” होमे कहती हैं।

होमे ने कहा कि भारत में आवारा कुत्तों की संख्या काफी अधिक है जिसपर किसी का नियंत्रण नहीं होता। ‘पालतू कुत्तों के भी घर के आसपास के वन्य जीवों पर हमला करने का खतरा बना रहता है। देश में बफर जोन में भी इंसानों की आबादी रहती है,” उन्होंने कहा।

घर में खाना मिलने के बावजूद भी कुत्ते शिकार के लिए वन की तरफ निकल जाते हैं। ज्यादातर हमले इंसानों की नजर में नहीं आ पाते।

घरेलु कुत्ते झुंड में मिलकर जंगली जानवरों को दौड़ाकर थका देते हैं। तस्वीर- राणा और सुगंधी/फ्लिकर
घरेलु कुत्ते झुंड में मिलकर जंगली जानवरों को दौड़ाकर थका देते हैं। कई बार जानवर डर के मारे मर भी जाते हैं। तस्वीर– राणा और सुगंधी/फ्लिकर

कुत्तों की वजह से भी बन रहा ‘एज इफैक्ट’

सर्वे के आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी सामने आया है कि कुत्तों की वजह से एज इफैक्ट पैदा होता है। एज इफैक्ट मतलब किसी दो पारिस्थितिकी तंत्र के बीच का स्थान। उदाहरण के लिए जल और भूमि के बीच का वह स्थान जहां पारिस्थितिकी तंत्र आपस में मिलते हैं। कई बार यह प्रभाव प्राकृतिक वजहों से न होकर मानव निर्मित वजहों से होता है। जैसे जंगलों में सड़क बनने से या इंसानी रहवास के आसपास होने सा वन्य जीवन और इंसानी जीवन के बीच एज इफैक्ट बनना।

कुत्तों की वजह से जंगल के किनारे ऐसा ही प्रभाव देखा जा रहा है।करीब 48 प्रतिशत मामलों में यह देखा गया कि कुत्तों ने संरक्षण क्षेत्र के अंदर ही वन्य जीवों पर हमला किया है।

गोरिल्ला, आरंगुटान, चिम्पांजी की प्रजातियों पर शोध करने वाले विशेषज्ञ परिमल भट्टाचार्जी ने एक शोध में पाया कि असम के सिल्चर के एक छोटे से जंगल से लीफ मंकी गायब हो गए। आसपास के घरों में पलने वाले कुत्तों का तेज आवाज में भौंकने से यह हुआ।

“वन्य जीवों के रहने लायक स्थान का तेजी से क्षरण हो रहा है। लोग जलावन, खेती और दूसरी जरूरतों के लिए जंगल पर निर्भर हैं। ऐसे में कुत्तों के द्वारा जंगली जीवों को परेशान करने की वजह से वे उस इलाके को छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं,” भट्टाचार्जी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया।

जीवविज्ञानी संजय गुब्बी कहते हैं कि पालतू कुत्तों का वन्यजीवों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है। कुत्ते कई बार मांसाहारी वन्य जीवों के साथ एक ही शिकार के लिए मुकाबला करते हैं।

“कुत्ते छोटे वन्यजीवों जैसे खरगोश, छिपकली से लेकर बड़े स्तनधारियों जैसे कि चीतल और सांबर का शिकार भी कर लेते हैं। ट्रैप कैमरा में अक्सर ऐसा होता हुआ दिखता है। जंगली जीवों का पीछा करते घरेलू कुत्ते या शिकार को मारते हुए अक्सर कैमरे में रिकार्ड हो जाते हैं। जैसे कभी ये तेंदुए का शिकार छीन लेते हैं तो यह जंगली जीव शिकार की तलाश में रिहायशी इलाके में चला आता है। इससे तेंदुए और इंसानों के बीच टकराव की स्थिति बनती है,” गुब्बी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया।

जानकार मानते हैं कि इस तरह जंगल में पालतू कुत्तों के दखल से कुत्तों की बीमारियों के जंगली जीव जैसे सियार, भेड़िया और लोमड़ी में भी पहुंचने का खतरा बना रहता है।

बंदीपुर के जंगल में जंगली कुत्तों का एक समूह। जंगल में रहने वाले ये कुत्ते जंगल का हिस्सा हैं, लेकिन घरेलू कुत्तों के जंगल में घुसने से वन्यजीवों में कई बीमारियां फैलने का खतरा है। तस्वीर- सिद्धार्थ मचाडो/फ्लिकर
बंदीपुर के जंगल में जंगली कुत्तों का एक समूह। जंगल में रहने वाले ये कुत्ते जंगल का हिस्सा हैं, लेकिन घरेलू कुत्तों के जंगल में घुसने से वन्यजीवों में कई बीमारियां फैलने का खतरा है। तस्वीर– सिद्धार्थ मचाडो/फ्लिकर

क्या है इस समस्या से निजात!

सर्वे में शामिल 87 फीसदी लोगों का मानना है कि जंगल के आसपास आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रित किया जाना चाहिए।

करीब 16 प्रतिशत लोग कुत्तों को पकड़कर नसबंदी करने को एक कारगर तरीका मानते हैं जबकि 14 प्रतिशत लोगों ने तो कुत्ते को मारने को सही विकल्प माना। अन्य 61 प्रतिशत लोग कई विकल्पों को आजमाने के पक्षधर रहे जिनमें कुत्तों को जंगल से दूर भेजना और खुले में खाने की उपलब्धता कम करना जैसे उपाय पर बल दिया गया।

पशुओं के स्वभाव का अध्ययन करने वाली जीवविज्ञानी अनिंदिता भद्र जंगल के आसपास कुत्तों की आबादी को लेकर अलग विचार रखती हैं। वह कहती हैं, “कुत्ते भी जैव विविधता का हिस्सा हैं। इसके उलट पश्चिम में कुत्तों को सिर्फ पालतू जानवर के तौर पर देखा जाता है। ”

द ह्यूमन सोसायटी ऑफ यूएस के चीफ साइंटिफिक ऑफिसर एंड्रयू रोवन कहते हैं कि भारत में जंगली जीवों के खत्म होने के लिए कुत्तों को जिम्मेदार मानना ठीक वैसा ही है जैसा अमेरिका में पक्षियों के मरने की वजह बिल्लियों को माना जाता है।

“इस समस्या के मूल में इंसानों के द्वारा जंगल पर कब्जा जमाना है। जंगल क्षेत्र में इंसान रहते हैं और उनके साथ कुत्ते। कुत्ते आसपास के जंगली जीवन में रहने के दौरान शिकार करते हैं,” एंड्रयू रोवन कहते हैं।

बैनर तस्वीरः लेह के जंगलों में घूमते आवारा कुत्ते। जानकार मानते हैं कि घरेलू कुत्तों से वन्यजीवन को खतरा है। तस्वीर- अथर परवेज

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