- छत्तीसगढ़ में मध्यप्रदेश की सीमा से लगा है भोरमदेव का जंगल। यहां बाघों की संख्या देखकर इसे टाइगर रिजर्व बनाने की मांग उठती रही है।
- छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्य मात्र 19 है और यहां बाघों के लिए जंगल आरक्षित कर उनकी संख्या बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।
- बाघ बचाने की कोशिश करने वाले लोग भोरमदेव को टाइगर रिजर्व बनाना चाहते हैं, लेकिन आदिवासियों को उनका घर छिन जाने की चिंता है।
- सरकार ने टाइगर रिजर्व बनाने के फैसले को कुछ साल पहले टाल दिया था। इसके खिलाफ वन्यजीव कार्यकर्ता वर्ष 2019 में अदालत गए।
छत्तीसगढ़ में मध्यप्रदेश की सीमा से सटा भोरमदेव का जंगल अपने इतिहास और बाघ समेत दर्जनों अन्य प्रजाति के जीवों की उपस्थिति को लेकर चर्चा में रहा है।
मध्यप्रदेश कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से सटे होने की वजह से इस जंगल में बाघों की आवाजाही दर्ज की गई है। बीते कुछ वर्षों में यहां बाघों को सुरक्षित घर देने के लिए जंगल को टाइगर रिजर्व घोषित करने की चर्चा होती रही है। हालांकि, इस घोषणा की राह में आदिवासियों के विस्थापन की चिंता आड़े आ रही है।
छत्तीसगढ़ में इस वक्त तीन टाइगर रिजर्व हैं, और यहां एक और रिजर्व बनाने की तैयार चल रही है। सरकार ने हाल ही में गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व के तौर पर अधिसूचित करने का फैसला लिया है। वन्यजीव कार्यकर्ता का मत है कि सरकार को गुरु घासीराम उद्यान के बजाए भोरमदेव अभयारण्य को टाइगर रिजर्व बनाना चाहिए।
भोरमदेव अभयारण्य कान्हा टाइगर रिजर्व से सटे होने की वजह से बाघों के लिए महत्वपूर्ण है, जबकि गुरु घासीराम राष्ट्रीय उद्यान, मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ और झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व के बीच गलियारे के रूप में स्थित है।
वर्ष 2017 में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भोरमदेव वन को टाइगर रिजर्व के तौर में शामिल करने संबंधी प्रस्ताव को आगे भी बढ़ाया था। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन ऑथोरिटी (एनटीसीए) ने राज्य सरकार को ऐसा करने को सुझाव दिया था। ऐसा माना जाता है कि स्थानीय लोगों ने इस निर्णय का विरोध किया और भोरमदेव वन उस वक्त टाइगर रिजर्व बनते-बनते रह गया। इस जंगल में बैगा समुदाय के आदिवासी रहते हैं। इनको अपने विस्थापन का डर सता रहा है।
वर्ष 2019 में वन्यप्राणी कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका लगाई जिसमें एनटीसीए के इस सुझाव को लागू करने की बात कही गई थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के मुताबिक राज्य सरकार एनटीसीए के सुझावों को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।
बाघों की आबादी में छत्तीसगढ़ काफी पीछे
छत्तीसगढ़ में वर्ष 2018 की गणना के मुताबिक मात्र 19 बाघ पाए गए, जो कि वर्ष 2014 में 46 के मुकाबले काफी कम हैं। बाघों की गिरती संख्या की वजह जंगलों का खराब प्रबंधन और शिकार को माना जाता है। बगल के राज्य मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या 526 है।
छत्तीसगढ़ में बाघों की घटती संख्या को लेकर वन्यप्राणी कार्यकर्ता अजय दुबे कहते हैं कि सामान्यतौर पर गरीब आदिवासियों को बाघ मारने का जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। “इंद्रवति टाइगर रिजर्व में कई शिकार के मामले सामने आए, लेकिन किसी भी मामले में सजा नहीं हुई। इस इलाके से सच्ची तस्वीर कभी आ ही नहीं पाती है,” दुबे कहते हैं।
ऐसी स्थिति में जानकार मानते हैं कि भोरमदेव को टाइगर रिजर्व बनाने से लाभ मिलेगा।
सिंघवी मानते हैं कि बाघ के लिहाज से भोरमदेव का जंगल अधिक महत्वपूर्ण है।
नाम न जाहिर करने की शर्त पर एनटीसीए के एक अधिकारी कहते हैं कि भोरमदेव को टाइगर रिजर्व बनाना उचित रहेगा। हालांकि, विस्थापन के सवाल पर उनका मानना है कि बैगा समुदाय को जंगल से हटाने के बजाए संरक्षण के काम में उन्हें सहयोगी बनाना चाहिए।
अधिकारी मानते हैं कि छत्तीसगढ़ बाघों की आबादी के लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां के जंगल उनके लिए गलियारे का काम करते हैं। भारत में 2,967 बाघ हैं जिनमें से 1,033 देश के मध्य भारत के राज्यों में रहते हैं।
सिंघवी कहते हैं कि भोरमदेव को टाइगर रिजर्व न बनाने के पीछे राजनीतिक वजह है। “इस समय हमने हाईकोर्ट में एनटीसीए के सुझाव को लागू करने की मांग रखी है,” वह कहते हैं।
वह भोरमदेव का महत्व समझाते हुए कहते हैं कि महाराष्ट्र से बाघ मध्यप्रदेश में कान्हा नेशनल पार्क के जरिए आते हैं। यहां से वे पेंच के रास्ते गुरु घासीदास जंगल और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व जा सकते हैं। इस तरह बाघों के पास अच्छा खासा गलियारा होगा।
“अगर नक्शे में देखेंगे तो भोरमदेव का महत्व समझ आएगा। संजय दुबरी, गुरु घासीदास, इंद्रवती, कान्हा और पेंच के जंगल को यह जोड़ता है,” सिंघवी कहते हैं।
छत्तीसगढ़ वन विभाग के लिए कंसल्टेंट के तौर पर सेवा देने वाली नेहा सैमुअइल का कहना है कि भोरमदेव को टाइगर रिजर्व बनने की संभावना को देखते हुए यह प्रोजेक्ट तैयार हुआ था, लेकिन वन विभाग ग्रामीणों की सहमति नहीं ले पाया।
एनटीसीए के सदस्य सचिव एसपी यादव कहते हैं कि राज्य सरकार से प्रस्ताव आने के बाद टाइगर रिजर्व संबंधी मुद्दे पर विचार किया जाएगा।
“भोरमदेव को राज्य सरकार की मंशा के मुताबिक ही टाइगर रिजर्व बनाया जा सकता है। अगर सरकार ऐसा नहीं चाहती तो इसमें कुछ नहीं किया जा सकता है। गुरु घासीदास के जंगल को टाइगर रिजर्व बनाने का सुझाव हम दे चुके हैं लेकिन अभी तक इस मामले में सरकार का रुख साफ नहीं हुआ है,” यादव ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में कहा।
विरोध में भोरमदेव के लोग
सैमुअल के मुताबिक ग्रामीण भोरमदेव को टाइगर रिजर्व बनाने के पक्ष में नहीं है। “लोगों को लगता है कि अगर यह टाइगर रिजर्व बना तो उनका घर छिन जाएगा,” वह कहती हैं। हालांकि, गांव वालों को यह कहा गया कि टाइगर रिजर्व बनने के बाद उन्हें रोजगार के नए अवसर भी प्राप्त होंगे।
भोरमदेव वन में करीब 50 हजार बैगा आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। इनके करीब 39 गांव जंगल के भीतर बसे हैं और 250 गांव जंगल के आसपास हैं।
छिलपी गांव की नागरिक अनुरुद्ध दास पनारिया का कहना है कि स्थानीय लोगों ने पिछली सरकार का काफी विरोध किया था। “लोगों को अपना घर छोड़कर जाने से इंकार है और इस फैसले के खिलाफ धरना और प्रदर्शन किया गया था,” दास ने कहा।
उनका मानना है कि अगर टाइगर रिजर्व बना तो 28 गांव के लोगों का घर छिन जाएगा। साथ रही, उनके खेती लायक जमीन भी चली जाएगी जहां वे कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा और मक्का जैसे मोटे अनाज उगाते हैं।
अंजना गांव की ग्राम पंचायत की प्रमुख लीलाबाई सरकार ने बताया कि इस वन को टाइगर रिजर्व घोषित करने के फैसले के खिलाफ जिला मुख्यालय पर भी विरोध हुआ है। लोग डरे हुए हैं कि घर छिनने के साथ जंगल से दूसरे उत्पाद लाने पर भी पाबंदी लग सकती है। बरपसपुर गांव के मुखिया राजेंद्र छुरे ने मोंगाबे-इंडिया से बातचीत में कहा कि वे अपने घर और खेत छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। इस क्षेत्र के अधिकतर लोगों का जीवनयापन कृषि पर आधारित है। कैसे ये लोग अपना घर और जमीन छोड़कर कहीं और चले जाएं!
“कोई विस्थापित नहीं होना चाहता। दूसरे, कभी सरकार ने विस्थापन के बाद मिलने वाली राहत पर कोई चर्चा नहीं की,” कहते हैं छुरे।
सिवनीकला गांव के दीन दयाल परते ने कहा कि अगर उन्हें गांव से हटाने की कोशिश हुई तो वे इसका कड़ा विरोध करेंगे। वे जहां पैदा हुए हैं वहीं रहेंगे।
बैनर तस्वीर- छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। तस्वीर- छत्तीसगढ़ वन विभाग (बाएं), कोशी/फ्लिकर (दाएं)