मध्यप्रदेश का छतरपुर जिला बुंदेलखंड क्षेत्र में आता है। बुंदेलखंड में पानी की बेहद कमी है। यहां की बबिता राजपूत और गंगा राजपूत ने महिलाओं की एक टोली बनाकर तालाबों का संरक्षण किया।इनके द्वारा निखारे गए तालाब आज कई गांव के जीवन का मुख्य आधार बन चुका है। ये तालाब पहले सूख जाते थे जिससे महिलाओं को गर्मियों में दूर-दूर तक पानी के लिए भटकना पड़ता था।जल सहेली नामक एक अभियान से जुड़कर बबिता और गंगा ने अपने-अपने गांव की तस्वीर बदल दी है। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की महिलाएं पानी की तलाश में दूर-दूर तक भटकती हैं। गर्मी के दिनों में यह तस्वीर काफी आम है। छतरपुर जिले के चौधरीखेरा गांव की गंगा की सुबह भी इसी तरह शुरू होती थी, लेकिन पिछले एक साल में गंगा ने पूरे गांव की तस्वीर बदलकर रख दी है। गांव के साधारण किसान से पूरे समुदाय को रास्ता दिखाने वाली गंगा राजपूत का सफर काफी प्रेरणादायक है। बहुत पुरानी बात नहीं जब इस इलाके में चौधरीखेरा के बाबा तालाब की चर्चा होती थी। बारह एकड़ में फैला एक ऐसा तालाब जो गर्मियों में भी अब लबालब भरा रहता है। लेकिन हमेशा ऐसी स्थिति नहीं रही। कभी चंदेल राजाओं के द्वारा बनाया यह तालाब गांव का गौरव हुआ करता था। हो भी क्यों न, इस तालाब के साथ न सिर्फ शानदार इतिहास जुड़ा था, बल्कि आसपास के गांवों के लिए यह जीवन का मुख्य स्रोत हुआ करता था। हालांकि, एक कुप्रथा की वजह से तालाब की स्थिति खराब होती गई। कहते हैं कि चालीस वर्ष पहले एक बार गांव के एक सरपंच ने तालाब की मरम्मत का काम करना चाहा तो उनके दोनों बेटों की मृत्यु हो गयी। इसके बाद इस तालाब को सुधारने से लोग कतराने लगे। सफाई और सुधार न होने की वजह से तालाब की स्थिति खराब होती गयी और यह उथला होकर सूखता गया। सूखे हुए हिस्से पर गांव वालों ने खेती शुरू कर दी। बुंदेलखंड स्थित बड़ा तालाब जो कि जीर्णोद्धार के बाद पानी से लबालब भरा है। तस्वीर- परमार्थ समाजसेवी संस्थान इस गांव में बदलाव की कहानी शुरुआत होती है वर्ष 2019 से। गांव में एक भी तालाब नहीं बचा और कुएं और चापाकल गर्मी शुरू होते ही सूख जाते थे। गांव में पानी की किल्लत से हर कोई परेशान था, महिलाएं मीलों दूर से पानी खोजकर लाती थीं, लेकिन कुप्रथा की वजह से कोई तालाब को ठीक करने की हिम्मत नहीं कर पाता था। इन्हीं परेशानियों से जुझती एक साधारण महिला गंगा राजपूत ने इस काम को करने का बीड़ा उठाया। परमार्थ सेवा संस्थान की मदद से गंगा ने लोगों को जागरूक करना शुरू किया। यह संस्था बुंदेलखंड में वाटरमैन के नाम से मशहूर संजय सिंह चलाते हैं। इसके तहत जल सहेली नाम से महिलाओं का एक समूह जल संरक्षण के लिए काम करता है। जैसा कि अंदेशा था, कुप्रथा की वजह से गांव में गंगा को शुरुआती विरोध भी झेलना पड़ा। हालांकि, ग्रामीणों को मनाने और स्थानीय मान्यताओं को ध्यान रखकर पूजा-पाठ भी किया गया। लोगों को समझाया गया कि उनके देवता ‘गौर बाबा’ इस तालाब पर राज करते हैं और अगर यहां पानी आया तो उन्हें खुशी ही मिलेगी। महिलाओं ने महज तालाब ही नहीं संवारा बल्कि आसपास पौधारोपण कर इस जगह को हरा-भरा कर दिया। तस्वीर- परमार्थ समाजसेवी संस्थान इतना ही नहीं, जिन्होंने तालाब की सूखी जमीन पर खेती करते थे, उन्होंने भी इस काम में अड़ंगा लगाने की कोशिश की। तालाब को संरक्षित करने की शुरुआत ऐसे की गई कि खेती करने वाले लोगों पर इसका असर न हो। शुरुआत में तालाब को साफ किया गया और बारिश से पहले ही चेक-डैम बनाया गया। अब बारिश के पानी को रोका जा सकता था। चेक-डैम का असर ऐसा हुआ कि बारिश में पानी तो रुका ही, भूजल स्तर भी ऊपर आया और दूसरे कुएं भी आबाद हो गए। पानी भरने के बाद यहां खेती करने वाले लोगों का भी ख्याल रखा गया। तीन-चार महीने पानी भरा रखने के बाद गेहूं की खेती के लिए तालाब का पानी खाली किया गया। एक पंप की मदद से पानी को बगल से बह रही बछेरी नदी में डाला गया। परमार्थ संस्था के लिए काम करने वाले धनी राम बताते हैं कि इस कदम से भूजल भी रिचार्ज हो गया और खेती करने वालों के लिए जमीन भी तैयार हो गई। अबतक जो लोग सोयाबीन लगाते थे, उन्होंने पहली बार खेत में गेहूं लगाया। गांव के किसान नीलेश लोधी कहते हैं कि तालाब के इलाके में करीब 150 परिवार के खेत हैं। वह कहते हैं कि यह भी सहमति बनी है कि बारिश के समय तालाब में मछली पालन किया जाएगा। “ वर्ष 2019 में शुरू किया काम हमने 2020 में भी जारी रखा। इसमें 25 और महिलाओं की मदद मिली और तालाब का संरक्षण संभव हो पाया। हमारा ध्यान बारिश के पानी को बछेरी नदी में बहने से रोकने की तरफ था और चेकडैम ने यह काम बखूबी किया,” गंगा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। वर्ष 2020 में पानी की कोई कमी नहीं हुई। गांव के पुरुष कुप्रथा की वजह से तालाब को छेड़ने से बचते हैं, लेकिन महिलाओं ने खूब हिम्मत दिखाई, गंगा कहती हैं।