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नर्मदा के उद्गम से ही शुरू हो रही है नदी को खत्म करने की कोशिश

अमरकंटक में जंगलों के बीच से गुजरती नर्मदा। यहां जंगल से निकली छोटी-छोटी जलधाराएं नर्मदा को विशाल बनाती जाती है। तस्वीर- अजय ताव/फ्लिकर

अमरकंटक में जंगलों के बीच से गुजरती नर्मदा। यहां जंगल से निकली छोटी-छोटी जलधाराएं नर्मदा को विशाल बनाती जाती है। तस्वीर- अजय ताव/फ्लिकर

  • मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलने वाली नर्मदा नदी के उद्गम स्थल से ही नदी के अस्तित्व पर हमला शुरू हो गया है। नदी के उद्गम स्थल के अध्ययन में यह बात सामने आई है।
  • उद्गम स्थल पर लोगों की बढ़ती आबादी, निर्माण और जंगल के ह्रास से नदी के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है। घास के मैदानों का ह्रास और प्रदूषण की वजह से नदी दम तोड़ने लगी है।
  • अमरकंटक से नर्मदा के निकलते ही पहले तीन किलोमीटर में पांच चेक डैम और बैराज बनाए गए हैं जिससे नदी के कुदरती बहाव पर बुरा असर हुआ है।
  • भारत सरकार और केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने नदी के विकास पर 50 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई है, जिसका उद्देश्य नदी के प्राकृतिक स्वरूप को बचाने से अधिक उसके आसपास कंक्रीट का जंगल खड़ा करना है।

मध्य भारत की जीवन रेखा मानी जाने वाली नर्मदा नदी के लिए उद्गम स्थल से ही अस्तित्व का संकट शुरू होने लगा है। यह नदी मध्यप्रदेश के अमरकंटक के आस-पास के पहाड़ियों से निकलती है। इसके उद्गम में आस-पास के वनों की बड़ी भूमिका है। पर इन वनों का तेजी से ह्रास हो रहा है। इंसानी विकास से जुड़ी गतिविधियों से नदी का कुदरती बहाव भी खत्म हो रहा है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन से नर्मदा पर मंडरा रहे इन खतरों की जानकारी सामने आई है। जर्नल ऑफ किंग साउद यूनिवर्सिटी के मार्च 2021 अंक में प्रकाशित इस अध्ययन में इन खतरों का विस्तृत वर्णन किया गया है।

पिछले चार दशक में नर्मदा नदी के कैचमेंट में जंगल कम हुए हैं। कृषि और दूसरी इंसानी जरूरतों के लिए पानी का दोहन बढ़ा है और इससे नदी की हालत खराब हुई है। अध्ययन का कहना है कि समृद्ध जैव-विविधता वाले इस क्षेत्र में 11.63 प्रतिशत डेंस मिक्स्ड फॉरेस्ट यानी सघन मिश्रित जंगल (डीएमएफ) है, वहीं 2.1 प्रतिशत हिस्सा साल के वृक्षों से भरा है। इस इलाके में वर्ष 1980 से 2018 तक में खुले हिस्से का 7.52 प्रतिशत विस्तार देखा गया है। खुले हिस्से के विस्तार से तात्पर्य वनों की कटाई से है। इंसानी आबादी वाले क्षेत्र या इमारतों वाले इलाके इस दौरान करीब 4.18 प्रतिशत बढ़ गए हैं। जमीन के प्रयोग में हुए बदलाव को समझने के मकसद से यह अध्ययन किया गया था।

मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले का अमरकंटक शहर छत्तीसगढ़ से सटा हुआ है। नर्मदा का उद्गम दो पर्वत श्रृंखला सतपुड़ा और मैकल का मिलन स्थान भी है। पहाड़ियों की यह शृंखला कुछ  इस कदर स्थित है कि वहां वर्षा जल की भारी मात्रा नदी में एकत्रित होती है। यहां से तीन नदियां तीन दिशाओं में निकलती हैं- नर्मदा, जोहिला और सोन। 

नर्मदा के उद्गम स्थल का इलाका अमरकंटक पिछले चार दशक में अपनी हरियासली खो रहा है। तस्वीर- अध्ययन से साभार
नर्मदा के उद्गम स्थल का इलाका अमरकंटक पिछले चार दशक में अपनी हरियाली खो रहा है। तस्वीर- अध्ययन से साभार

अमरकंट में 1350 मिलीलीटर से 1600 मिलीलीटर तक औसत वर्षा होती है जो कि यहां के घने जंगल, समृद्ध जैव-विविधता, साल के पेड़ और असंख्य जड़ी-बूटि के पौधों के लिए वरदान की तरह है। यूनेस्को की सूची में शामिल अचानकमार-अमरकण्टक जीवमण्डल रिज़र्व (एएबीआर) भी वर्षा-जल से ही गुलजार रहता है।

उद्गम स्थल पर एक मंदिर है और यहीं एक पत्थर के तालाब का भी निर्माण हुआ है। यहीं से नर्मदा नदी निकलती है। रास्ते में कई वेटलैंड्स, तालाब, छोटी जल धाराएं मिलती जाती है और नर्मदा विशाल होती जाती है। इन जल धाराओं में कपिल, वैतरणी इत्यादि शामिल हैं।

नर्मदा नदी उद्गम स्थल से ही कई खतरों को झेल रही है। वर्ष 1970 तक अमरकंट इंसानी विकास की विभीषिका से लगभग अछूता था। वर्ष 1960 में यहां बॉक्साइट का खनन शुरु हुआ था जिससे इस स्थान पर चहल-पहल बढ़ी। वर्ष 2000 में इस खदान को बंद कर दिया गया। वर्ष 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक शहर में मात्र 1,952 परिवार रहते है। यहां की कुल जनसंख्या 8,946 है।

शहर में शांति का ऐसा आलम था कि कुछ 20 वर्ष पहले तक मात्र 35 से 40 दुकानें हुआ करती थी। वर्ष 2020 तक आते-आते उद्गम स्थल मंदिर के पास 100 दुकानें देखी जा सकती हैं, जिनमें से कुछ का पक्का निर्माण भी हुआ है। शहर में श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या की वजह से यहां आश्रमों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। आश्रमों से निकलने वाला अपशिष्ट, नदी में बहाया जाता है। यहां के जंगल और जल-स्रोत एक साल में आने वाले करीब पांच लाख श्रद्धालुओं का भार झेल रहे हैं।

नर्मदा के लिए प्राण जितना महत्वपूर्ण जंगल हो रहा तबाह

इस अध्ययन में सामने आया है कि नर्मदा नदी को मजबूत करने वाली छोटी-छोटी जल धाराओं की धार कमजोर पड़ रही है। इसकी बड़ी वजह आसपास के जंगल का नष्ट होना है। इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रमुख तरुण कुमार ठाकुर कहते हैं कि खुली जमीन और इंसानों द्वारा किये जा रहे निर्माण से नदी घाटी के लिए संकट उत्पन्न हो रहा है।

“यहां जंगल समाप्त हो रहे हैं। अगर इसी तरह अवैज्ञानिकता के साथ इस इलाके की अवहेलना की जाती रही तो एक दिन सबकुछ खत्म हो जाएगा,” ठाकुर ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

इस अध्ययन में सामने आया है कि नर्मदा के उद्गम स्थल के आसपास रहने वाले लोगों द्वारा जंगल का दोहन भी किया जा रहा है जिसकी वजह से जंगल क्षीण हो रहे हैं।

उद्गम स्थल के मुख्य मंदिर के पुजारी धर्मेंद्र द्विवेदी कहते हैं कि पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक नर्मदा नदी को पांच जल धाराओं से पानी मिलता है। इसमें इंद्र दमन तालाब, बट्टे कृष्ण तालाब, सूरजकुंड और मार्कंडेय तालाब इत्यादि शामिल हैं।

अमरकंटक से निकलने के बाद नर्मदा को कई निर्माणों को पार कर निकलना पड़ता है जिससे इसके प्राकृतिक बहाव पर असर होता है। तस्वीर- अध्ययन से साभार
अमरकंटक से निकलने के बाद नर्मदा को कई निर्माणों को पार कर निकलना पड़ता है जिससे इसके प्राकृतिक बहाव पर असर होता है। तस्वीर- अध्ययन से साभार

कुछ वर्ष पहले प्रशासन ने दो जल धाराओं को जोड़कर मंदिर के आसपास ही घेरकर रख लिया था, जिससे वहां आए लोगों को नहाने के लिए पानी दिया जा सके। मंदिर के आसपास रहने वाले लोगों के घरों से निकले कचरे (मल और गंदा पानी) को बिना सफाई किए ही नदी में जाने दिया जाता है।

वर्ष 2019 में एक जल धारा सावित्री को गायित्री की धारा से मिलने से पहले साफ किया गया। नर्मदा समग्र संस्थान के सहयोग से इस जल धारा से गाद निकाला गया। नर्मदा मंदिर के एक संत नीलू महाराज का भी इसमें सहयोग लिया गया।

“हमने 300 मीटर लंबे क्षेत्र में 15 फीट गहरा और 20 फीट चौड़ा खुदाई की। खुदाई में कई ट्रक गाद निकला,” नर्मदा समग्र से जुड़े स्थानीय कार्यकर्ता नीलेश कटारे कहते हैं।

वह कहते हैं कि जंगल का तेजी से समाप्त होना भी नर्मदा पर बढ़ रहे संकट की एक बड़ी वजह है। “इस स्थान पर यूकेलिप्टस के पेड़ लगाए जा रहे हैं। यह सही नहीं है,” वह कहते हैं।

तीन किलोमीटर में पांच अवरोध, कैसे बहेगी अविरल नर्मदा

उद्गम स्थल पर ही नर्मदा पर एक चेकडैम, अमरकंटक शहर में बने आश्रमों को पानी देने के लिए एक बांध सहित कई और रुकावट बनाए गए हैं। हालांकि, जंगल कम होने की वावजूद अच्छी बारिश और नदी के आसपास के इलाके की बनावट की वजह से नर्मदा में पानी की खास कमी नहीं हो रही है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक अनूपपुर जिला पानी के मामले में सुरक्षित श्रेणी में आता है। बावजूद इसके आने वाले पर्यटकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल का खूब दोहन किया जा रहा है। जल आपूर्ति के लिए ही नदी की शुरुआत में ही कई चेक डैम बनाए गए हैं।

पुष्कर सरोवर झील में जमी गाद को वर्ष 2020 में पहली बार निकाला गया। यहां आकर नर्मदा एक संकरी धारा के रूप में नजर आती है। इन अवरोधों की वजह से नदी का प्राकृतिक बहाव प्रभावित हुआ है। तस्वीर- निवेदिता खांडेकर
पुष्कर सरोवर झील में जमी गाद को वर्ष 2020 में पहली बार निकाला गया। यहां आकर नर्मदा एक संकरी धारा के रूप में नजर आती है। इन अवरोधों की वजह से नदी का प्राकृतिक बहाव प्रभावित हुआ है। तस्वीर- निवेदिता खांडेकर

नदी कछार में निर्माण रोकने में असफल प्रशासन

वर्ष 2013 से लेकर 2017 तक राष्ट्रीय हरित अधिकरण या नैशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) में नर्मदा में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर चार अलग-अलग आवेदन लगाए गए। मध्यप्रदेश सरकार ने एनजीटी को मार्च 2017 में कहा कि नर्मदा सेवा मिशन के तहत नदी को प्रदूषण मुक्त रखने के प्रयास किए जा रहे हैं।

मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नदी में 50 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता को परखता रहता है। वर्ष 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक अमरकंटक के दो स्थानों पर पानी की गुणवत्ता में सुधार दर्ज किया गया।

हालांकि, नदी से 100 मीटर की दूरी तक निर्माण न करने के एनजीटी के निर्देश को पालन कराने में प्रशासन नाकामयाब रहा है। चक्र तीर्थ और कपिलधारा के पास नदी के किनारे आश्रम बने हैं, और ऐसे ही कई निर्माण नदी के आसपास भी हुए हैं। 

एनजीटी में वर्ष 2016 में वकील धर्मवीर शर्मा ने कोर्ट के आदेशों की अवहेलना का मामला दर्ज करवाया था जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दिसंबर 2020 में जिला अधिकारी को नोटिस दिया था।

“सरकार की बेरुखी की वजह से इस स्थान का प्राकृतिक स्वरूप खत्म हो रहा है और इसकी ऐतिहासिकता के साथ-साथ आध्यात्मिक महत्व भी खत्म हो रहा है,” शर्मा कहते हैं।

अमरकंटक नगर परिषद की सदस्य अंजना कटारे कहती हैं, “यहां पांच बड़े आश्रमों का राजनीतिक लोगों से वास्ता है, इस वजह से नगर परिषद से उन्हें किसी अनुमति की जरूरत नहीं। वे ऊपर से ही आदेश ले आते हैं।”

कहीं सरकारी विकास की चपेट में न आए नर्मदा

पर्यावरण की चिंताओं के बावजूद सरकार का ध्यान इस स्थान के ‘विकास’ की तरफ है। यह विकास पर्यावरण का विनाश कर ही संभव है। हालांकि, सरकार अपनी इस मंशा से इनकार करती है।

सरकार ने वर्ष 2017 में अमरकंटक को मिनी स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने की योजना बनाई थी। सिवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी इसी योजना का हिस्सा है।

केंद्रीय पर्यटन मंत्री प्रहलाद जोशी ने यहां 50 करोड़ की विकास की योजना शुरू की जिसके तहत इंद्र दमन तालाब का जीर्णोद्धार और कपिलधरा और सोनमुद्रा के बीच कांच का पुल निर्मित किया जाएगा।

नर्मदा के उद्गम स्थल के समीप गावों में जनजातियां रहती हैं। रोजगार के अभाव में वे जंगल की लकड़ियां काटकर आसपास के पर्यटन स्थलों पर रेस्टोरेंट और आश्रम में इनव लकड़ियों को बेचा जाता है। इससे अमरकंटक का जंगल खत्म हो रहा है। तस्वीर- निवेदिता खांडेकर
नर्मदा के उद्गम स्थल के समीप गावों में जनजातियां रहती हैं। रोजगार के अभाव में वे जंगल की लकड़ियां काटकर आसपास के पर्यटन स्थलों पर रेस्टोरेंट और आश्रम में इन लकड़ियों को बेचा जाता है। इससे अमरकंटक का जंगल खत्म हो रहा है। तस्वीर- निवेदिता खांडेकर

अमरकंटक से खत्म हो रहा जंगल

अमरकंट के आसपास बसने वाले 15 गावों में बैगा, गोंड, उमरावन जनजातियां रहती हैं। ये लोग जंगल पर आश्रित हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वे जंगल से लकड़ी इकट्ठा कर आसपास के रेस्टोरेंट को उपलब्ध कराते हैं। नाम न जाहिर करने की शर्त पर उन्होंने बताया कि इस काम में पेड़ की कटाई भी शामिल है।

शहर में आश्रम और मंदिर बनाने के लिए पेड़ों की बेतहासा कटाई हुई है। उदाहरण के लिए इस स्थान पर एक विशाल जैन मंदिर का निर्माण हो रहा है, जिसमें पार्किंग और दुकानों के लिए कई पेड़ों को काटा गया है। इसी तरह कपिला नदी के मैदान में कब्जा कर खेती होने लगी है, जिससे नदी का दायरा कम होता जा रहा है।

बैनर  तस्वीरः अमरकंटक में जंगलों के बीच से गुजरती नर्मदा। यहां जंगल से निकली छोटी-छोटी जलधाराएं नर्मदा को विशाल बनाती जाती हैं। तस्वीर– अजय ताव/फ्लिकर

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