- दो देशों के बीच बेहतर समन्वय की वजह से भारत-नेपाल की सीमा पर घड़ियाल बेखौफ तैर रहे हैं। दोनों देश के शोधकर्ता सोशल मीडिया के जरिए संपर्क कर संरक्षण की कोशिशें कर रहे हैं।
- घड़ियाल अक्सर मछलियों के लिए बिछाए जाल में फंस जाते हैं। इस वजह से कई बार उनकी जान भी चली जाती है।
- घड़ियाल संरक्षण में लगे दोनों देशों के विशेषज्ञ आपस में संपर्क में रहते हैं। जब किसी घड़ियाल को संरक्षण केंद्र से खुले में छोड़ा जाता है तो इसकी जानकारी साझा की जाती है, ताकि उनकी देखभाल की जा सके।
- विशेषज्ञ मानते हैं कि इस साझेदारी को अगर आधिकारिक तौर पर किया जाए तो संरक्षण की कोशिशों को बल मिलेगा।
बिहार और बंगाल की सीमा पर बसे एक गांव में अजीब खलबली मची थी। कोई चिल्ला रहा था- घड़ियाल देख लो, घड़ियाल देख लो। देखने वालों में अजीबोगरीब उत्साह था। महानंदा नदी के किनारे बसे इस गांव के लोगों के लिए घड़ियाल एक अजूबा बनकर आया था।
हालांकि, लोगों के घड़ियाल देखने के इस खेल में घड़ियाल की जान पर बन आयी थी।
इस गांव के शिक्षक गौतम तांतिया ने यह सब देखा। तांतिया बताते हैं कि इस घड़ियाल को नदी से निकालकर गांव वालों ने एक छोटे तालाब में डाल दिया। इधर से गुजरने वाले लोगों से 10-15 रुपए लेकर उन्हें यह घड़ियाल दिखाया जा रहा था।
“घड़ियाल की लंबाई कुछ 8 फीट रही होगी। उसे मछली पकड़ने वाले जाल से पकड़ा गया था। उसे लोगों ने पकड़कर रखा था और कहीं जाने नहीं दे रहे थे। देखने वाले लोग बांस की छड़ी से उसे तंग भी कर रहे थे,” तांतिया ने वर्ष 2015 के इस घटना के बारे में बताया।
तांतिया बंगाल के उत्तरी-दिनाजपुर जिले में पशुओं के कल्याण संबंधी संगठन के साथ काम करते हैं। उन्होंने यह घटना बिहार के गांव में देखी थी। वन विभाग को सूचना देकर उन्होंने उस घड़ियाल को बचाया और उसे कूच बिहार लाया गया।
गांवों में इस तरह की घटनाएं आम हो चली हैं। यह तब है जब घड़ियाल को गंभीर रूप से विलुप्तप्राय जानवरों की श्रेणी में रखा गया है। देश की नदियों में वयस्क घड़ियालों की संख्या मात्र 650 आंकी गई है। कभी गंगा, सिंधु, महानदी जैसी नदियों में इनका पाया जाना काफी सामान्य हुआ करता था। लेकिन अब यह स्थिति नहीं रही।
अब सामान्यतः नेपाल और भारत में ही घड़ियाल पाए जाते हैं। बंगाल में घड़ियाल विलुप्त होने की कगार पर हैं। भारत में चंबल, गिरवा, घाघरा और गंडक नदी में घड़ियाल देखे जा सकते हैं।
भारत-नेपाल सीमा पर हजार किलोमीटर तैरा घड़ियाल, बन गया रिकॉर्ड
जिस घड़ियाल को तांतिया ने देखा था वह भारत-नेपाल सीमा पर स्थित गंडक नदी से तैरकर आया हुआ था। इसे बिहार वन विभाग ने वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की मदद से नदी में छोड़ा था।
लगभग 234 दिन की यात्रा कर यह घड़ियाल गंडक से महानंदा में प्रवेश कर बिहार और बंगाल की सीमा तक पहुंच गया और मछुआरों के जाल में फंस गया था। गंडक और महानंदा नदी, गंगा की ही सहायक नदियां हैं।
वर्ष 2015 में एक घड़ियाल द्वारा 1000 किलोमीटर की यात्रा करना अपने आप में रिकॉर्ड था। पिछले 40 वर्ष में लंबी यात्रा के सात मामले प्रकाश में आए हैं। आईयूसीएन की घड़ियाल संबंधी पत्रिका में इसका उल्लेख मिलता है। सबसे ताजा मामला मई 2020 का है जब नेपाल में एक घड़ियाल को पानी में छोड़ा गया और वह बाद में बंगाल के हुगली के रानी नगर घाट पर मिला था।
घड़ियाल संरक्षण में भारत-नेपाल की साझेदारी
बंगाल में 10 घड़ियाल पाए गए जिन्हें संरक्षणकर्ताओं ने नदी में छोड़ा था। इन घड़ियालों की पूंछ पर एक निशान छोड़ा जाता है जिससे पता चल सके कि इन्हें संरक्षण केंद्रों में पालने के बाद जब ये वयस्क हो गए तो इन्हें खुले पानी में छोड़ा गया। विशेषज्ञ बीसी चौधरी बताते हैं कि एक देश में छोड़ा गया घड़ियाल अगर इतनी दूरी तय कर दूसरे देश पहुंच रहा है, इसका मतलब एक साथ बड़ी संख्या में इन्हें नदी में छोड़ा जा रहा है।
सिन्हा नेपाल और भारत के संरक्षण की साझेदारी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि दोनों देश के विशेषज्ञ आपस में जानकारियां साझा करते हैं। “सोशल मीडिया जानकारी साझा करने का एक बेहतरीन माध्यम बन गया है। संरक्षणकर्ता आपस में मोबाइल के जरिए बेहतर तरीके से संपर्क बना पा रहे हैं,” सिन्हा कहते हैं।
डब्लूटीआई के फील्ड बायोलॉजिस्ट सुब्रत बहेरा दो देशों के बीच संरक्षण में साझेदारी का एक उदाहरण सुनाते हैं। “वर्ष 2015 में हुगली में मछली पकड़ने वाले जाल में घड़ियाल फंसा था। सोशल मीडिया पर इस तस्वीर को काफी शेयर किया गया। पूंछ पर लगे निशान को देखकर मैंने नेपाल के अधिकारियों को संपर्क किया और पता चला कि घड़ियाल नेपाल से तैरकर बंगाल पहुंच गया,” वह कहते हैं।
चितवन राष्ट्रीय उद्यान, नेपाल के संरक्षण विशेषज्ञ बेद खडका ने पूंछ पर निशान देखकर इस बात की पुष्टि की कि घड़ियाल उनके यहां से छोड़ा गया था। नेपाल की नदी से यह 1100 किलोमीटर तैरकर बंगाल पहुंच गया।
मार्च 2020 में 1515 घड़ियालों को नेपाल की नदियों में छोड़ा गया था।
संरक्षण से घड़ियालों की हुई वापसी
चौधरी कहते हैं कि संरक्षण की कोशिशों की वजह से ही घड़ियालों की वापसी संभव हो पाई है। करीब पांच दशक पहले, 1960-70 के दौर में घड़ियाल लगभग खत्म हो गए थे। प्रोजेक्ट क्रोकोडाइल की शुरुआत 1975 में की गई थी। तब घड़ियाल का प्रजनन कराकर वयस्क घड़ियालों को वापस पानी में छोड़ना शुरू किया गया। दो दशक बाद यानी 1980-90 में घड़ियालों की संख्या बढ़नी शुरू हुई।
मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश से लगे नेशनल चंबल सेंचुरी के बाद भारत-नेपाल की नदी नारायणी-गंडक में घड़ियाल की सबसे अधिक संख्या देखने को मिलती है। गिरवा, रामगंगा और गंडक नदी में भी घड़ियाल संरक्षण का काम होता है। भारतीय नदियों में 1800 से 1900 तक घड़ियाल हैं।
बेद खड़का जोर देते हैं कि भारत और नेपाल के बीच आधिकारिक तौर पर घड़ियाल संरक्षण के लिए समझौता होना चाहिए ताकि इस काम को और मजबूती से किया जा सके और वैज्ञानिक तथ्यों को आपस में साझा किया जा सके। “घड़ियाल संरक्षण के लिए दोनों देश का साथ काम करना जरूरी है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि एक देश में छोड़ा गया घड़ियाल अगर किसी दूसरे देश में मिलता है तो भी उसका संरक्षण किया जाए,” खडका ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
“नेपाल घड़ियाल में रेडियो रॉलर लगा रहा है ताकि उसकी गतिविधियों को देखकर शोध किया जा सके। इसके परिणाम से संरक्षण की कोशिशों में सहायता मिलेगी,” वह कहते हैं।
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बैनर तस्वीरः चितवन राष्ट्रीय उद्यान, नेपाल में संरक्षण केंद्र पर आराम फरमाता एक घड़ियाल। तस्वीर– शंकर एस./फ्लिकर