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गोवा में बढ़ रहा शार्क खाने का चलन, दुर्लभ प्रजातियों पर पड़ सकता है विपरीत प्रभाव

स्थानीय मछुआरों को काली धारी वाले शार्क अधिक मिलते हैं। तस्वीर- मेमुरुबु/विकिमीडिया कॉमन्स

स्थानीय मछुआरों को काली धारी वाले शार्क अधिक मिलते हैं। तस्वीर- मेमुरुबु/विकिमीडिया कॉमन्स

  • समुद्र में पाए जाने वाले शार्क को खाने का चलन भारत के समुद्री तटों पर पुरातन काल से चला आ रहा है। पर हाल में गोवा के कई रेस्टोरेंट में इसकी मांग बढ़ी है।
  • भारत में 160 प्रजाति के शार्क पाए जाते हैं जिसमें से 10 प्रजाति के शार्क को मारने पर पाबंदी है।
  • सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो घूम रहे हैं जिसमें शार्क का मांस परोसने वाले रेस्टोरेंट का जिक्र मिलता है। इनमें गोवा के समुद्री तटों पर शार्क के मांस बिकते देखे जा सकते हैं।
  • संरक्षणकर्ता मानते हैं कि जानकारी के अभाव में लोग प्रतिबंधित शार्क भी खा सकते हैं, जिससे इनके विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाएगा। दुर्लभ प्रजाति के शार्क भी मछली पकड़ने के दौरान जाल में फंस जाते हैं।

समुद्र की बेहतरीन शिकारी शार्क के दांत इतने मजबूत होते हैं कि मछली और इंसान तो क्या पानी के नाव भी चबा जाए। बावजूद इसके शार्क इंसानों के आहार का हिस्सा रहे हैं। हाल के वर्षों में देखा गया है कि देश के समुद्री तट वाले इलाके में शार्क खाने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। खासतौर पर गोवा में।

सोशल मीडिया पर देश में शार्क खाने की चर्चा तेज है। हाल ही में अमेरिका के वीडिया ब्लॉगर ने एक वीडियो जारी किया जिसमें यह बात सामने आई कि अमेरिका में लोग शार्क शायद ही खाते होंगे, पर भारत के गोवा जैसे समुद्री तट पर शार्क खाने का चलन खूब फल-फूल रहा है। 

देश-विदेश के फूड ब्लॉगर देश में शार्क परोसने वाले रेस्टोरेंट की तस्वीरें और वीडियो जारी करते रहते हैं। इनसीजन फिश नामक चेन्नई स्थित एक संस्था ने हाल ही में एक सर्वे किया। इससे पता चला कि गोवा के रेस्टोरेंट में शार्क से बनी खाने की सामग्री को बढ़ावा दिया जा रहा है। 

इनसीजन नाम की यह संस्था देश में समुद्र में पाए जाने वाले भोज्य पदार्थ को लेकर जागरुकता फैलाती है और समुद्री आबो-हवा को टिकाऊ बनाये रखने की वकालत करती है। यद्यपि संस्था द्वारा सर्वे के नतीजे अभी सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। 

कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन के बाद गोवा के रेस्टोरेंट में भीड़ बढ़ रही है। साथ ही यहां शार्क करी, शार्क मशाला और शार्क से बने ऐसे कई डिश की मांग भी बढ़ रही है। 

हथौड़े की आकृति जैसे सर वाले शार्क को हैमरहेड शार्क कहा जाता है। गोवा के मापुसा मछली बाजार में इसे बिकने के लिए रखा गया है। तस्वीर- विक्टोरिया इमेसन/फ्लिकर
हथौड़े की आकृति जैसे सर वाले शार्क को हैमरहेड शार्क कहा जाता है। गोवा के मापुसा मछली बाजार में इसे बिकने के लिए रखा गया है। तस्वीर– विक्टोरिया इमेसन/फ्लिकर

फूड ब्लॉगर मोंटे दा सिल्वा कहते हैं कि पारंपरिक तौर पर शार्क गोवा में भोजन का हिस्सा रहा है। गोवा में शार्क खाने के दो मुख्य तरीके प्रचलित हैं।  

“गोवा के सामान्य लोग बिना नारियल के शार्क करी बनाते हैं, जिन्हें वहां के सामान्य लोगों का खाना कहा जाता है। इसे तेल में तलकर भी परोसा जाता है,” दा सिल्वा कहते हैं। 

सिल्वा ने शार्क खाने के एक पुराने तरीके का भी जिक्र किया जिसका चलन अब कम हो गया है। यह है शार्क को सुखाकर खाने का तरीका। 

“जब बिजली नहीं थी तब लोग मछली को सुखाकर रख लेते थे। गोवा में मछली सुखाकर रखने के लिए एक दिन त्योहार की तरह मनाया जाता है। मानसून से पहले मछलियों को पकड़कर सुखाकर या अचार बनाकर रख लिया जाता है, जिसे मानसून के दौरान खाया जाता है। शार्क को अपने स्वाद और खास सुगंध की वजह से खासतौर पर सुखाकर रखा जाता है। हालांकि, समय के साथ यह परंपरा चलन से बाहर हो रही है,” वह कहते हैं।

शार्क से एक तीखी खुशबू आती है, जिसे बाहर से आए पर्यटकों की अपेक्षा स्थानीय लोग अधिक पसंद करते हैं। हालांकि, अब रेस्टोरेंट वाले इस चलन को बदलना चाहते हैं और पर्यटकों को भी शार्क खाने के लिए आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। 

 

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“शार्क की गंध इतनी तीखी होती है कि मेरी मां इसे सात बार धोती थी,” कहती हैं विद्या नायक जो पीप्स किचन में शेफ हैं। मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में उन्होंने बताया कि गोवा के रेस्टोरेंट में उपलब्ध भोजन में अब इसे भी शामिल किया जा रहा है और अगर इसका प्रचार ठीक तरीके से हुआ तो लोग इसे पसंद करने लगेंगे।
“एकबार इस गंध से परिचित होने के बाद यह अच्छा लगने लगता है,” उन्होंने बताया। 

फर्नांडो मोंटे दा सिल्वा कहते हैं कि गोवा में शार्क खाने का चलन स्थानीय लोगों में नहीं बढ़ा है। बल्कि इसकी मांग आलीशान रेस्टोरेंट में आए पर्यटकों के बीच बढ़ी है। इन रेस्टोरेंट में आए लोग कुछ नया खाना चाहते हैं।

“उदाहरण के लिए बोमरास (अंजुना बीच स्थित एक आलीशान बर्माई रेस्टोरेंट) आम के साथ शार्क परोसा जाता है। यह एक तरीके का प्रयोग है जिससे लोगों की भीड़ बढ़ती है। शार्क के मांस के साथ ऐसे कई प्रयोग किए जा रहे हैं,” उन्होंने कहा। 


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शार्क और उनकी प्रजातियों के बारे में जानकारी का अभाव 

रेस्टोरेंट में शार्क को खाने में शामिल करने के तरीकों पर कई प्रयोग भले ही हो रहे हों, लेकिन शार्क की कौन सी प्रजाति खाई जाती है और कौन सी नहीं- इसकी चर्चा कम ही होती है। कोंकणी में मोरी के नाम से प्रचलित शार्क के कई प्रजातियों को बेचा जाता है। बल्कि ये कहें कि शार्क की कई प्रजातियों को मोरी के नाम से ही बेचा और खाया जा रहा है। 

“मैंने महसूस किया है कि मिल्क शार्क की मांग अधिक है,” इनसीजन फिश की दिव्या कर्नाड ने कहा। 

“शार्क की यह प्रजाति छोटी है, जिसकी लंबाई एक मीटर से अधिक नहीं होती है। लोग समझते हैं कि यह शार्क का बच्चा है, जबकि ऐसा नहीं है। शार्क की यह प्रजाति काफी मात्रा में उपलब्ध है और इस प्रजाति पर फिलहाल विलुप्ति का खतरा नहीं आने वाला है। हालांकि, खरीदार को इसकी जानकारी नहीं है और कई बार मिल्क शार्क के नाम पर कई ऐसी प्रजातियों के शार्क भी बिकते हैं जो कि विलुप्त होने की कगार पर हैं,” वह कहती हैं। 

नुस्ते नाम से गोवा में सी-फुड और पॉल्ट्री का ऑनलाइन कारोबार करने वाले आफताब मोहम्मद कहते हैं कि शार्क या मोरी तीन तरह के होते हैं।  एक मध्यम आकार का होता है जिसका वजन दो से चार किलो होता है। एक छोटा शार्क भी होता है। मोरी के छोटे टुकड़े करके भी बेचा जाता है। पकाने में सुविधा होने की वजह से मध्यम आकार का शार्क अधिक बिकता है। 

“बाजार में काली धारी वाला शार्क की मांग सबसे अधिक है और अधिकतर स्थानीय लोग ही शार्क खरीदने वालों में शामिल हैं,” वह कहते हैं। 

शार्क की अलग-अलग प्रजाति को मोरी कहकर ही बेचा जाता है। इसकी वजह पूछने पर मोहम्मद बताते हैं कि हर बार जाल फेंकने पर अलग-अलग किस्म की मछलियां पकड़ में आती है। इसमें शार्क की अलग-अलग प्रजातियां होती हैं। इन्हें अगर अलग-अलग नाम से बेचा जाए तो खरीदने वालों को काफी भ्रम होगा। इसलिए इन्हें एक ही नाम शार्क या मोरी के नाम से बेचा जाता है। 

सिल्वना कहते हैं कि हमें नहीं पता कि किस प्रजाति का शार्क हम खा रहे हैं। 

वह कहते हैं कि एक्सपर्ट होने के बावजूद भी सामान्य तौर पर शार्क के प्रजातियों में भेद करना आसान नहीं होता है। 

भारत में 160 प्रजाति के शार्क पाए जाते हैं, जिनमें से 10 प्रजाति दुर्लभ है और इन्हें मारना गैरकानूनी है। तस्वीर- आरोन सावियो लोबो
भारत में 160 प्रजाति के शार्क पाए जाते हैं, जिनमें से 10 प्रजाति दुर्लभ है और इन्हें मारना गैरकानूनी है। तस्वीर- आरोन सावियो लोबो

शार्क और शार्क के मांस में ऐसी क्या खास बात!

शार्क मछली की त्वचा मोटी होती है और इनमें हड्डी के बजाए कार्टिलेज होता है। शरीर नौकाकार और सांस लेने के लिए सर के ऊपर सात भागों में बंटा हुआ गिल होता है। इंसान शार्क को सैकड़ों वर्ष से जानते हैं। इनकी लंबाई 17 सेंटीमीटर से 12 मीटर तक होती है और विश्व में इनकी करीब 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। 

शार्क का जीवन लंबा होता है और धीरे-धीरे बड़ा होता है। वयस्क होने में भी काफी लंबा समय लगता है। शार्क का प्रजनन दर भी दूसरी मछलियों के अपेक्षा कम है और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए इनका रहना जरूरी है। 

नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में स्पष्ट किया गया है कि पिछले 50 वर्षों में शार्क की वैश्विक आबादी में 70 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। अध्ययन का कहना है कि अधिक मछली मारने की वजह से ऐसा हो रहा है। 

भारत में शार्क की 160 प्रजातियां पाई जाती है, जिसमें से 10 को कानूनी रूप से संरक्षण प्राप्त है। इन्हें वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के वर्ग एक में रखा गया है। 

ह्वेल शार्क को सबसे पहले इस सूचि में स्थान मिला था। इसके बाद पॉन्डीचेरी शार्क को इस सूची में शामिल किया गया। गंगा के मीठे पानी में रहने वाले शार्क दुर्लभ श्रेणी में आते हैं। 

वर्ष 2016 में भारत को सबसे अधिक शार्क का शिकार करने वाला देश घोषित किया गया। आरोन सेवियो लोबो एक समुद्री जीवों के संरक्षण वैज्ञानिक हैं। वह कहते हैं कि कई बार मछुआरे इसे पकड़ना नहीं चाहते, बावजूद इसके शार्क, मछली पकड़ने वाले जाल में फंस जाती है। 

“बड़ी शार्क को मारने का चलन अब बीते वक्त की बात हो गई है। अब बड़े शार्क को पकड़ने में फायदा नहीं होता,” वह कहते हैं। 

शार्क के शरीर का उपरी हिस्सा अब भारत से एक्सपोर्ट नहीं होता। इसके लिए कानूनी मनाही है। हालांकि, शार्क का मांस खाने पर कोई पाबंदी नहीं है। 

“अब शार्क पकड़ना सामान्य नहीं रहा। 15-20 वर्ष पहले मछलियों के बास्केट में 3-4 शार्क से भरे बास्केट दिख ही जाते थे, जो कि अब नहीं दिखते,” कहते हैं सिमॉन पेरेइरा। वे वास्को में रहते हैं। 


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शार्क बचाने का क्या कोई उपाय है?

कुछ लोग मानते हैं कि शार्क खाने वाले लोगों में जागरुकता फैलाकर दुर्लभ शार्क को बिकने से रोका जा सकता है। कुछ लोग मछली पकड़ने के समय ही इसपर रोक की बात करते हैं। 

“सी-फूड के शौकीन लोगों को ही शार्क के विलुप्त होने की बात समझाई जाए तो वह इसका इस्तेमाल बंद कर सकते हैं,” इनसीजन फिश की आलिसा बार्नर कहती है। 

“शार्क का मांस परोसने वाले रेस्टोरेंट के बारे में हम जानकारी इकट्ठा कर उनसे संपर्क करते हैं। हमने गौर किया है कि शार्क परोसने वाले करीब 50 फीसदी रेस्टोरेंट में शार्क की प्रजातियों की कोई जानकारी नहीं दी जाती है,” वह कहती हैं। 

लोबो जैसे कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि भारत में मछली पकड़ने की बेतहाशा तेज रफ्तार को भी कम करना चाहिए। भारत की ताजा फिशरी पॉलिसी 2020 में गहरे समुद्र की मछलियों को पकड़ने के लिए कौशल विकास की योजना है। इससे बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने को बढ़ावा मिलेगा।

बैनर तस्वीरः स्थानीय मछुआरों को काली धारी वाले शार्क अधिक मिलते हैं। तस्वीर– मेमुरुबु/विकिमीडिया कॉमन्स

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