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सुंदरबन में भ्रांति और अनदेखी के बीच पिसती ‘बाघ विधवाएं’

सुभद्रा सान्याल और गीता मंडल सुंदरबन के सतजेलिया गांव में रहती हैं। दोनों महिलाओं के पति बाघ के हमले में मारे गए। गीता आज भी जंगल के उत्पादों से जीवन यापन करती हैं, लेकिन सुभद्रा के मन मस्तिष्क पर बाघ के हमले का गहरा असर हुआ और अब वह जंगल जाने से डरती हैं। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

सुभद्रा सान्याल और गीता मंडल सुंदरबन के सतजेलिया गांव में रहती हैं। दोनों महिलाओं के पति बाघ के हमले में मारे गए। गीता आज भी जंगल के उत्पादों से जीवन यापन करती हैं, लेकिन सुभद्रा के मन मस्तिष्क पर बाघ के हमले का गहरा असर हुआ और अब वह जंगल जाने से डरती हैं। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

  • सुंदरबन में संसाधनों की कमी की वजह से जंगली जीव और इंसानों के बीच टकराव की स्थिति बढ़ती जा रही है।
  • बाघ के हमलों में कई लोगों की जान भी चली जाती है। इनकी मृत्यु के बाद इनकी विधवाओं को कई तरह की समस्याओं से गुजरना पड़ता है।
  • परिवार चलाने की जिम्मेदारी के अलावा हादसे का आघात और सामाजिक भ्रांतियों की वजह से उनका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।

रॉयल बंगाल टाइगर के घर सुंदरबन के सतजेलिया गांव में सूरज ढलते ही लोगों के बीच अजीब सी मायूसी छा जाती है। मछली और केकड़ा पकड़कर पेट पालने वाली गीता मंडल अपना रोज का दुखड़ा याद करते हुए कहती हैं, “पानी में मगरमच्छ का खतरा और जमीन पर बाघ का। ये क्या कम है कि अब हमारी जमीनें भी पानी में समा रही हैं। हम लोग का जीवन हर क्षण संकट में रहता है।”

गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के बीच बने इस टापू को विश्व का सबसे बड़ा मेंग्रोव का जंगल माना जाता है। यह जंगल रॉयल बंगाल टाइगर का गढ़ भी है।

जंगल और बाघ की खासियत अपनी जगह पर इसने 55-वर्षीय गीता मंडल के जीवन को बेरंग कर दिया। बाघ के हमले में उनके पति की जान चली गई। इसके बाद गीता जीवन के संघर्षों का सामना अकेले कर रही हैं। पानी में मिलने वाली मछली और केकड़ा के सहारे वह अपना जीवनयापन कर रही हैं।

सुंदरबन की देवी बनबीबी में आस्था रखने वाली गीता हर रात टापू पर पानी के किनारे जाल बिछाती है, जिसमें रातभर में मछलियां और केकड़े जैसे जीव फंस जाते हैं। हर सुबह वह इन्हें निकालकर घर ले जाती है। किनारे तक आने-जाने के दौरान कई बार गीता का सामना भी बाघ से हुआ है।

गीता की पड़ोसी 45-वर्षीय सुभद्रा सान्याल भी अपने पुराने दिनों की याद में डूबी रहती हैं। पांच वर्ष पहले उनके पति को उनके आंखों के सामने ही बाघ गला दबोचकर ले गया। उस वक्त वह अपने पति के साथ मछली मार रही थीं।

सुमित्रा मिधा के पति मछली मारने गए थे और बाघ के शिकार बन गए। तब से मिधा की जिंदगी बगल गई। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे
सुमित्रा मिधा के पति मछली मारने गए थे और बाघ के शिकार बन गए। तब से मिधा की जिंदगी बगल गई। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

हाल ही में सुमित्रा मिधा के पति मछली मारने गए थे और बाघ के शिकार बन गए। यह इलाका सुंदरबन टाइगर रिजर्व का है। इस घटना के बाद सुमित्रा का भरोसा बनबीबी से उठ सा गया है। बाघ के डर से उन्होंने मछली मारना छोड़ ही दिया और अब खेतों में मजदूरी करती हैं।


समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी से सुंदरबन मिट्टी के कटान से जूझ रहा है। इसके अलावा भी यहां के लोगों को ढेरों मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। प्राकृतिक आपदा, इंसान-जानवर के बीच टकराव और अन्य कई। यूनाइटेड किंगडम में रहने वाले मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ अरबिन्द चौधरी कहते हैं कि ऐसे में बाघ की वजह से अपनों को खोने वाली महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर पड़ा है। चौधरी मानसिक स्वास्थ्य का अध्ययन पर्यावरण की दृष्टि से करते हैं।

चौतरफा मार की शिकार हैं बाघ-विधवाएं 

सुंदरबन में 45 लाख लोग और 86 बाघ रहते हैं। यहां बाघ की वजह से अपने पति को खोने वाली महिला को बाघ विधवा (टाइगर विडोज) कहते हैं। ऐसी महिलाओं की संख्या यहां सैकड़ो में होगी। 

चौधरी ने मानसिक स्वास्थ्य पर यहां कुछ वर्ष पहले एक क्लिनिक लगाया था। सतजेलिया और लहिरपुर गांव में इस अध्ययन से पता चला कि कैसे आसपास का वातावरण लोगों के जीवन को प्रभावित करता है। विशेषकर महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर। 

चौधरी ने स्थानीय लोगों के साथ इस बारे में बातचीत की तो पता चला कि बाघ की वजह से विधवा हुई महिलाओं को लेकर इन इलाकों में ढेरों भ्रांतियां फैली हुई हैं। पर अगर मेडिकल शब्दावली का इस्तेमाल करें तो ये महिलायें पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) की समस्याएं जूझ रहीं हैं। इस स्थिति में व्यक्ति अपने साथ घटी या देखी गई घटनाओं पर वर्तमान में प्रतिक्रिया देता है। इसके कारण पुरानी बातों का बार-बार याद आना, बुरे सपने आना और ध्यान केंद्रित ना कर पाने जैसी समस्याएं होती है। चौधरी को पीटीएसडी के शिकार लोगों में 72 लोग बाघ हमले से पीड़ित मिले। 

बनबीबी का मंदिर। स्थानीय लोग वन देवता को अपना रक्षक मानते हैं। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे
बनबीबी का मंदिर। स्थानीय लोग वन देवी को अपना रक्षक मानते हैं। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

सुमित्रा और सुभद्रा जैसी कुछ महिलाओं में उन्होंने डर, पुरानी बातों को बार-बार याद करते रहने जैसे लक्षण देखे। 

बाघ हमले के बाद उनकी मानसिक स्थिति ऐसी हो गई कि वे समुद्र में या समुद्री नाले में जाकर केकड़ा, झींगा और मछली पकड़ने जैसे काम करने में भी डरती हैं, चौधरी कहते हैं।

इस वजह से पीटीएसडी का असर इन महिलाओं की आय पर भी पड़ा है। 

यह जानना इसलिए भी खास है क्योंकि टाइगर रिजर्व के कोर इलाके में अगर कोई बाघ के हमले में मारा जाता है तो उस मामले में सरकार की तरफ से घरवालों को मुआवजा भी नहीं दिया जाता है। 

वर्ष 2010 से 2017 के बीच सुंदरबन के भीतर 52 लोगों की जान बाघ के हमले की वजह से चली गई। 

वर्ष 2008 में हुए शोध में चौधरी और उनके साथी लेखकों ने पाया कि पिछले 15 वर्षों में 111 लोगों पर जानवर का हमला हुआ, जिसमें से 83 पुरुष और 28 महिलाएं शामिल हैं। इसमें से 82 प्रतिशत लोगों की जान बाघ के हमले से गई। मगरमच्छ ने 10.8 प्रतिशत लोगों की जान ली और शार्क की वजह से 7.2 प्रतिशत लोग मारे गए। इन हमलों में 73.9 प्रतिशत लोगों की जान चली गई। 

करीब 94 प्रतिशत मामले में हमला टाइगर रिजर्व के आसपास हुआ जब पीड़ित अपना काम कर रहे थे, अध्ययन में पाया गया। 

वर्ष 2008 में पर्यावरण-मनोचिकित्सा और पर्यावरण संरक्षण: सुंदरबन डेल्टा नामक शोध में यह आंकड़े सामने आए थे। चार्ट- कार्तिक चंद्रमौली
वर्ष 2008 में पर्यावरण-मनोचिकित्सा और पर्यावरण संरक्षण: सुंदरबन डेल्टा नामक शोध में यह आंकड़े सामने आए थे। चार्ट- कार्तिक चंद्रमौली
सुंदरबन में बाघ हमले में मारे गए लोगों की संख्या
सुंदरबन में बाघ हमले में मारे गए लोगों की संख्या। चार्ट- कार्तिक चंद्रमौली

गांव वालों का मानना है कि कई मामले रिकॉर्ड में नहीं आते, क्योंकि ये हमले जंगल के अंदरुनी हिस्सों में होते हैं और प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं दी जाती है। 

नेशनल फिशरवर्क्स फोरम के सचिव प्रदीप चटर्जी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि मछुआरे जंगल की तरफ से मछली पकड़ने जाते हैं। क्योंकि सुलभ और जंगल के बाहरी इलाकों में मछलियों अब खत्म हो रही हैं। मछलियों की कीमत अच्छी है जिससे कम मछलियों में भी यहां के लोगों को जीने लायक आमदनी हो जाती है।

बाघ विधवा पर ही पति की मृत्यु का ठीकरा

पुरुष की मृत्यु के बाद घर की जिम्मेदारी महिला पर आ जाती है। अपने बच्चों को पालने के लिए युवा महिलाएं उस इलाके को छोड़कर मजदूरी के लिए बाहर निकलने पर मजबूर हैं। गीता मंडल सतजेलिया गांव की हैं। इस गांव को स्थानीय लोग विधोवा पारायानी ‘विधवाओं का गांव’ के नाम से जानते हैं। गीता ने कहा कि पति के जाने के बाद अपने तीन बच्चों को पालने के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया।

इस इलाके में बाघ के हमले के पीछे कई भ्रांतियां जुड़ी हैं। एक भ्रांति  है कि जब देवी नाराज होती हैं तभी बाघ का हमला होता है। इस तरह पति की मृत्यु की जिम्मेदारी उसकी पत्नी पर ही डाल दी जाती है। 

श्यामल कर्माकर जो कि बाघ के हमले में जिंदा बचने वाले लोगों में शामिल हैं, कहते हैं, मैं शहद निकालने जंगल गया था। बाघ ने मुझपर झलांग लगा दी। साथ आए लोगों ने डंडों से बाघ को भगाया।

हमले के बाद वह बेहोश हो गए थे। एक सप्ताह बाद उनकी आंख खुली तो वह अस्पताल में थे। इस हमले के बाद उन्होंने शहद इकट्ठा करने का काम छोड़ दिया।

सुमित्रा कहती हैं कि अब वह अपने बच्चों को कभी जंगल नहीं जाने देंगी।

 

बैनर तस्वीरः सुभद्रा सान्याल और गीता मंडल सुंदरबन के सतजेलिया गांव में रहती हैं। दोनों महिलाओं के पति बाघ के हमले में मारे गए। गीता आज भी जंगल के उत्पादों से जीवन यापन करती हैं, लेकिन सुभद्रा के मन मस्तिष्क पर बाघ के हमले का गहरा असर हुआ और अब वह जंगल जाने से डरती हैं। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

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