हिमालय की दुर्दशा देखकर प्रदीप सांगवान ने ‘हीलिंग हिमायल’ नाम से एक समूह की शुरुआत की। नाम के मुताबिक इस समूह का काम हिमाचल की वादियों की साफ-सफाई करना है ताकि हिमालय को स्वस्थ बनाया जा सके। क्लीन अप ट्रैक नाम से एक मुहिम के तहत इस समूह ने पर्यटकों के आने-जाने वाले स्थानों पर कचरे की सफाई करनी शुरू की। इलस्ट्रेशन- मोहित नेगी।

हिमाचल में प्लास्टिक पर प्रतिबंध कितना कारगर

अत्री कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश में सिंगल यूज प्लास्टिक यानी एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ है।

बैन के बावजूद सांगवान का अनुभव कहता है कि यह कारगर नहीं हुआ है।  उन्होंने अबतक 8,00,000 किलो प्लास्टिक कचरा पर्यटन स्थल से जमा किया है।

आईआईटी मंडी के द्वारा किए एक शोध से पता चलता है कि पहाड़ चढ़ने वाले रास्तों पर प्लास्टिक के पैकिंग में लोग सामान लाते हैं और खाने के बाद उन्हें वहीं छोड़ देते हैं। पहले इन स्थानों पर खाना पारंपरिक बर्तनों में लाया जाता था।

वर्ष 2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट ने हिमालय में टिकाऊ पर्यटन की सिफारिश की थी। जानकार मानते हैं कि हिमालय क्षेत्र में पर्यटन को टिकाऊ बनाने की जरूरत है नहीं तो आने वाले समय में समस्या और गंभीर होगी।

हिमालय क्षेत्र में वेटलैंड

मैदानी इलाकों की तुलना में हिमालय का वेटलैंड काफी अलग होता है। यहां बर्फ पिघलने पर पानी जमा होता है। ऊंचाई पर होने की वजह से यहां बड़े पेड़ नहीं बल्कि घास उगते हैं।

हिमाचल प्रदेश में 271 झील हैं जिनका विस्तार 575 हेक्टेयर इलाके में है। राज्य में कांगरा का पोंग जैम, सिरमौर का रेनुका झील और लाहौल स्पीति चंद्रताल रामसर स्थल है।

 

बैनर तस्वीरः हरियाणा के प्रदीप सांगवान वर्ष 2016 में पहली बार हिमाचल प्रदेश आए तो उनसे यहां की गंदगी देखी नहीं गई। उसके बाद से वह पहाड़ों में सफाई अभियान चलाकर प्रकृति को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। इलस्ट्रेशन- मोहित नेगी

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