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माउंट आबूः भालुओं ने किया बंदर का शिकार, विशेषज्ञ हैरान, राजस्थान का पहला मामला

माउंट आबू में स्लोथ बीयर यानी भालुओं की संख्या लगातार कम हो रही है। पूरे राजस्थान में लगभग 655 भालू हैं। तस्वीर- रुद्राक्ष चोडनकर/विकिमीडिया कॉमन्स

माउंट आबू में स्लोथ बीयर यानी भालुओं की संख्या लगातार कम हो रही है। पूरे राजस्थान में लगभग 655 भालू हैं। तस्वीर- रुद्राक्ष चोडनकर/विकिमीडिया कॉमन्स

  • हाल ही में माउंट आबू में तीन भालुओं ने मिलकर एक बंदर का शिकार किया और उसको खाया। इस घटना के विस्तृत अध्ययन की मांग उठ रही है ताकि भालुओं के बदल रहे स्वभाव के बारे में सही जानकारी सामने आ सके।
  • यह घटना चौंकाने वाली थी क्योंकि अमूमन इस प्रजाति के भालू शिकार नहीं करते। सामान्यतः फल, फूल-पत्ती, शहद, दीमक खाते हैं। लेकिन पूरी प्लानिंग के साथ बंदर के शिकार की घटना और उसको खा जाना चौंकाने वाली है।
  • माउंट आबू में भालुओं के ठिकाने में कमी आ रही है। पर्यटन और उसे जुड़े होटल इत्यादि के विकास से वन क्षेत्र संकुचित हो रहे हैं। उधर वनों में दीमक की कमी की वजह से भी भालू रिहायश इलाके में आने को मजबूर हैं।

बीते फरवरी महीने की 17 तारीख को माउंट आबू के जंगलों में भालुओं  ने अपने स्वभाव के विपरीत एक बंदर का शिकार किया। इस वाकये ने वन्यजीव विशेषज्ञ और जानकारों को हैरत में डाल दिया है। इनका कहना है कि सबूत के साथ भालुओं  के इस स्वभाव का कैद होना राजस्थान की पहली घटना है।

बंदर को मार कर खाने की इस घटना ने भालुओं  की स्थिति पर एक बार फिर से सोचने को मजबूर कर दिया है। इस घटना पर एक विस्तृत रिसर्च की मांग की जा रही है ताकि भालुओं  के बदल रहे स्वभाव के बारे में सही जानकारी सामने आ सके।

मोंगाबे हिंदी ने कई वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञों से इस घटना की वजह, परिणामों को लेकर बात की। सभी ने माना कि भारत में मिलने वाले स्लॉथ बीयर कभी शिकार नहीं करते। स्वभाव से ये शांत होते हैं और ज्यादातर फूल-पत्ती, शहद, दीमक  खाते हैं। मांसाहार भोजन में भालू ज्यादा से ज्यादा चूहे जैसे छोटे जीव-जानवर या किसी बड़े शिकारी जानवर का छोड़ा हुआ शिकार खा लेते हैं, लेकिन खुद कभी शिकार नहीं करते।

भालुओं  के शिकार की इस घटना को अपने मोबाइल कैमरे में कैद करने वाले नेचर गाइड हर्ष दाना से मोंगाबे हिंदी ने बात की। उन्होंने बताया, ‘मैं माउंट आबू के अधरदेवी मंदिर के पीछे 17 फरवरी शाम के साढ़े पांच बजे पर्यटकों को ट्रेकिंग करा रहा था। वहीं पास ही एक चट्टान पर लगे पेड़ पर एक अर्धवयस्क बंदर बैठा हुआ था। तभी तीन भालू वहां आए। इनमें दो वयस्क और एक  बच्चा था। इसके बाद एक भालू पेड़ पर चढ़ गया और पेड़ हिलाकर बंदर को नीचे गिरा दिया। नीचे घात लगाकर बैठे दूसरे भालू ने उसका शिकार कर लिया। इतना ही नहीं इसके बाद भालुओं  ने उस बंदर को पूरा खा भी लिया। करीब 45 मिनट तक यह सब चलता रहा। इसके बाद सभी भालू ऊपर जंगल में चले गए।’

हर्ष आगे बताते हैं, ‘उनके तरीकों से लग रहा था उन्होंने सोच-समझ कर शिकार किया है। शायद भालू ज्यादा भूखे थे। मैं बीते 12 साल से नेचर गाइड का काम कर रहा हूं और यहां के भालुओं  से अच्छी तरह परिचित हूं। ये पहली बार है जब किसी भालू ने इस तरह बंदर का शिकार किया है।’

जानकार मानते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी भालू ने बंदर का शिकार किया हो। भालू सर्वाहारी होते हैं जो फल, फूल-पत्ती, शहद, दीमक खाते हैं। तस्वीर- संजय अग्रवाल
जानकार मानते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी भालू ने बंदर का शिकार किया हो। खासकर माउंट आबू में। भालू सर्वाहारी होते हैं जो फल, फूल-पत्ती, शहद, दीमक खाते हैं। तस्वीर- संजय अग्रवाल

भालुओं  के साथ लगातार 40 साल रहने वाले कलंदर (मदारी) नूर मोहम्मद कहते हैं, ‘मैंने अपनी जिंदगी के 40 साल भालुओं  के साथ गुजारे हैं। उनके साथ रहना, बैठना और कई बार तो प्यार से गले तक लगा हूं। इसीलिए भालुओं  की हर एक आदत से परिचित हूं। पिछले 40 साल में मैंने कभी नहीं सुना कि माउंट आबू के भालुओं  ने शिकार किया हो। शिकार करने वाले भालू अलग प्रजाति के होते हैं।’

उदयपुर में रहने वाले वन्यजीव संरक्षणकर्ता और वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो के सदस्य अनिल रोज़र्स भी इस घटना का चौंकाने वाली मानते हैं। उन्होंने मोंगाबे हिंदी से कहा, ‘मैंने अपने 15 साल के करियर में भालुओं  के शिकार की पहली रिकॉर्ड की गयी घटना देखी है। यह दुर्लभ है।’

अनिल आगे बताते हैं, ‘भालुओं  का स्वभाव अप्रत्याशित होता है। हालांकि स्वभाव के बारे में बहुत ज्यादा शोध नहीं हुए हैं। भालू सर्वाहारी होते हैं जो फल, फूल-पत्ती, शहद, दीमक खाते हैं। लेकिन पूरी प्लानिंग के साथ बंदर के शिकार की घटना चौंकाने वाली है।’

माउंट आबू में बचे हैं सिर्फ 183 भालू, प्रदेश में 655

माउंट आबू में स्लॉथ बीयर यानी भालुओं  की संख्या लगातार कम हो रही है। बीते चार साल में यहां 190 भालू कम हुए हैं। वर्ष 2017 की वन्य जीव गणना के अनुसार माउंट आबू के जंगलों में 373 भालू थे। जो 2018 में घटकर 352, 2019 में 232 और 2020 में सिर्फ 183 रह गए। पूरे राजस्थान में लगभग 655 भालू हैं।

जानकारों के अनुसार भालुओं  की संख्या घटने के पीछे माउंट आबू में पर्यटन गतिविधियों में बेतहाशा बढ़ोतरी, इंसानों की जंगलों में घुसपैठ और अतिक्रमण मुख्य कारण है। भारत में चार स्लॉथ बीयर, एशियन ब्लैक बीयर, हिमालयन ब्राउन बीयर और मलायन सन बीयर प्रजाति  के भालू पाए जाते हैं। इनमें से स्लॉथ बीयर भारत, श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल और भूटान तक में पाए जाते हैं। स्लॉथ बीयर भारतीय वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 के शेड्यूल-1 के तहत संरक्षित भी हैं। दुनिया में भालू की आठ प्रजातियां पाई जाती हैं। राजस्थान की बात करें तो यहां सिर्फ स्लॉथ बीयर ही मिलते हैं। प्रदेश में कैलादेवी अभ्यारण्य, कुंभलगढ़, माउंट आबू, सवाई माधोपुर के रणथंभौर सेंचुरी में ये भालू आसानी से देखे जा सकते हैं। माउंट आबू में बंदर का शिकार स्लॉथ प्रजाति के भालुओं  ने ही किया है।  नर स्लॉथ बीयर 80-145 किलो और मादा भालू 60-100 किलो तक की होती है। 

साल 2013 में हरेन्द्र सिंह बर्गली और बी.के. शर्मा की ‘राजस्थान में स्लोथ बीयर के संरक्षण की दशा रिपोर्ट में भालुओं  को आ रही परेशानियों का जिक्र है। रिपोर्ट के अनुसार यहां भालुओं  के रहने की जगह सिमट रही है और खाने की भी कमी हो रही है। इसके अलावा इंसानों और भालुओं  के बीच टकराव की घटनाएं भी काफी बढ़ रही हैं।

जंगल में लगे ट्रैप कैमरा में भालू और उनके बच्चों की ये तस्वीर आई है। फोटो- वाइल्डलाइफ एसओएस
जंगल में लगे ट्रैप कैमरा में भालू और उनके बच्चों की ये तस्वीर आई है। फोटो- वाइल्डलाइफ एसओएस

कितनी महत्वपूर्ण है यह घटना?

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर, एसएससी के सदस्य और स्लॉथ बीयर स्पेशिलिस्ट प्रकाश मरदराज से भी मोंगाबे हिंदी ने बात की। वे कहते हैं, ‘स्लॉथ बीयर शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह का भोजन करते हैं। कान्हा, रणथंभौर, बांधवगढ़ में बाघ और पैंथर के शिकार को भालुओं  की ओर से छीनने की घटनाएं पहले से संज्ञान में हैं। इसके अलावा भालू गांवों के आस-पास मरे जानवरों को भी खाता है। कुल 8 में से तीन प्रजाति पांडा, स्लॉथ बीयर और सन बीयर के अलावा भालुओं  की बाकी सभी पांचों प्रजाति शिकार करती हैं। स्लॉथ बीयर कभी शिकार नहीं करता। माउंट आबू की तरह ओडिशा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में स्लॉथ बीयर के शिकार की घटनाएं आई हैं, लेकिन वे सिर्फ इकलौती घटनाएं हैं।’

मरदराज आगे कहते हैं, ‘मैंने आबू में 6 साल लगातार भालुओं  पर काम किया है। हमने अपनी स्टडी में पाया कि माउंट आबू के भालू इंसानों को बहुत जल्दी अपनाते हैं और हिंसक नहीं हैं।माउंट आबू के भालुओं  के शिकार की घटना मेरे लिए भी हैरान करने वाली है। जिस परिवार ने अभी शिकार किया है, मैंने उसे स्टडी किया हुआ है। इस भालू को मैंने लगातार 6 साल तक मॉनिटर किया है, लेकिन कभी इन्हें इतना हिंसक नहीं देखा।’

प्रकाश कहते हैं, ‘भालुओं  के इस व्यवहार के बारे में एक विस्तृत शोध की बेहद जरूरत है। सबसे पहले तो इनकी रिहायश और संख्या के बारे में ठीक जानकारी जुटानी होगी। भालुओं  के रहने की जगह पर अतिक्रमण काफी हुआ है। पर्यटकों के कारण होटल भी काफी संख्या में खुले हैं। ये होटल अपना कचरा ठीक से ट्रीट नहीं करते इसीलिए आसान भोजन की तलाश में भालू इंसानी रिहायश के काफी नजदीक तक आ रहे हैं। दूसरी बात ये भी है जनवरी से अप्रैल तक जंगल में खाने की काफी कमी रहती है। इसीलिए संभव है कि भूख मिटाने के लिए इन्होंने बंदर का शिकार कर लिया हो।’

राजस्थान वन विभाग में डीसीएफ बालाजी करी से भी मोंगाबे ने बात की। करी इस घटना को बहुत गंभीरता से नहीं लेने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं, ‘ये घटना अपने आप में काफी हैरान करने वाली है। देश के दूसरे जंगलों में भालुओं  ने शिकार किया है, लेकिन माउंट आबू में यह होना हैरान करने वाला है। क्योंकि वहां भालुओं  के लिए खाने की कोई कमी नहीं है। दीमक बड़ी मात्रा में यहां मिलते हैं। हालांकि वे भालुओं  के लिए यहां अन्य दिक्कतों की बातों को स्वीकार करते हैं।’

भालुओं का मुख्य भोजन दीमक और शहद होता है। स्टडी में पाया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से जंगल में दीमक की उपलब्धता कम हो रही है। इसीलिए भालू खाने की तलाश में जंगल से बाहर आ रहे हैं।
भालुओं का मुख्य भोजन दीमक और शहद होता है। स्टडी में पाया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से जंगल में दीमक की उपलब्धता कम हो रही है। इसीलिए भालू खाने की तलाश में जंगल से बाहर आ रहे हैं। फोटो- विक्की चौहान/विकिमीडिया कॉमन्स

करी शिकार की इस घटना के संबंध में कहते हैं, ‘मादा भालू अपने बच्चों के लिए काफी संवेदनशील होती हैं। चूंकि वीडियो में भालुओं  के साथ उनका एक बच्चा दिखाई दे रहा है। इसीलिए मेरा अंदाजा है कि बंदरों ने भालू या उसके बच्चे से पहले कोई छेड़छाड़ की हो। इससे चिढ़कर भालुओं  ने बंदरों से बदला लिया हो। इसीलिए ये बदले की कार्रवाई में किया गया शिकार भी हो सकता है।’

द कॉर्बेट फाउंडेशन में उप निदेशक डॉ. हरेन्द्र सिंह बर्गली भी बालाजी करी जैसा ही तर्क देते हैं। वे कहते हैं, ‘जब तक ऐसा कोई पैटर्न नहीं दिखाई देता तब तक भालुओं  को शिकारी नहीं बोला जा सकता। ये घटना बड़ी है, लेकिन भालू शिकारी हो रहे हैं, ऐसा कहना जल्दबाजी होगी।’

डॉ. हरेन्द्र ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के जंगलों में पाए जाने वाले स्लॉथ बीयर और इंसानों के बीच टकरावों पर काफी साल काम किया है।

माउंट आबू में डीसीएफ विजय शंकर पांडेय कहते हैं, ‘इस घटना की मैंने वन विभाग के उच्च अधिकारियों से चर्चा की है। हमारी कोशिश है कि शिकार की इस घटना की तह तक जाया जाए। भालुओं  के इस व्यवहार से कई सवाल तो खड़े हुए हैं। वन विभाग इनके जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा है।’


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जंगल के बाहर के जीवों के संपर्क में आ रहे भालू

राजस्थान के कुंभलगढ़ में स्लॉथ बीयर पर स्टडी कर चुके वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट जॉय गार्डनर कहते हैं, ‘हमारी रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के भालुओं  पर असर से होने वाले खतरों को गहराई से देखा गया है। भालुओं  का मुख्य भोजन दीमक और शहद होता है। स्टडी में पाया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से जंगल में दीमक की उपलब्धता कम हो रही है। इसीलिए भालू खाने की तलाश में जंगल से बाहर आ रहे हैं।’

जॉय आगे बताते हैं, ‘राजस्थान के भालुओं  में इंसानों के लगातार संपर्क में आने से नए वायरस पनपने के संकेत भी मिलते हैं। वर्ष 2011 में देसूरी के सादड़ी में एक भालू की मौत हुई। पोस्टमार्टम से पता चला कि इसे बोन्चोनिमोनिया हुआ। ये बीमारी ज्यादातर गोजातीय पशुओं में मिलती है। इसका मतलब साफ है कि भालू जंगल के बाहर के जीवों से भी संपर्क में आ रहे हैं।’

 

बैनर तस्वीरः माउंट आबू में स्लॉथ बीयर यानी भालुओं की संख्या लगातार कम हो रही है। पूरे राजस्थान में लगभग 655 भालू हैं। तस्वीर– रुद्राक्ष चोडनकर/विकिमीडिया कॉमन्स

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