- जैविक खेती को बढ़ावा देने के नाम पर छत्तीसगढ़ में पिछले साल जुलाई में शुरु की गई गोधन न्याय योजना में अब तक 40.359 लाख क्विंटल गोबर की खरीदी हुई लेकिन इस गोबर से केवल 95,680 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया गया, जिसमें आधे से भी कम 44,368 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री हो पाई।
- इस योजना के तहत किसानों से गोबर खरीद कर वर्मी कंपोस्ट में बदल कर किसानों को बेचना था। पर आलम यह है कि 28 में से 6 ज़िलों में एक भी किसान ने एक किलो वर्मी कम्पोस्ट भी नहीं ख़रीदा।
- लोकसभा में कृषि मामलों की स्थायी समिति ने छत्तीसगढ़ की तर्ज पर गोबर ख़रीदी योजना पूरे देश में शुरु करने की सिफारिश की है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इन दिनों इस बात से ख़ुश हैं कि राज्य में गोबर ख़रीदी की जिस महत्वाकांक्षी गोधन न्याय योजना का विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने विरोध किया था, अब केंद्र में कृषि मामलों की स्थायी समिति ने लोकसभा में इस योजना की न केवल तारीफ़ की है बल्कि समिति ने यहां तक कहा है कि यह योजना पूरे देश में शुरू की जानी चाहिए।
गोबर से जुड़ी योजनाओं का यह सिलसिला नया नहीं है। 80 के दशक में भारत में गोबर गैस और बायो गैस संयंत्र लगाने का अभियान ग्रामीण स्तर पर शुरु हुआ था लेकिन गोबर की अनुपलब्धता और लागत की तुलना में कम उत्पादन ने लोगों का जल्दी ही मोहभंग कर दिया। इसी साल केंद्र सरकार के जलशक्ति मंत्रालय ने गोवर्धन योजना की शुरुआत की है। और भी कई योजनाओं की शुरुआत की गयी पर ये योजनाएं परवान नहीं चढ़ पाईं।
लेकिन पिछले साल छत्तीसगढ़ में शुरु की गई गोधन न्याय योजना चर्चा में है। अब कृषि मामलों की स्थायी समिति की सिफारिश ने आलोचकों को भी चुप करा दिया है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं, “गोधन न्याय योजना के एक कार्यक्रम से अनेक कार्य सध रहे हैं। इसमें केवल गोबर खऱीदी नहीं हो रही है, बल्कि वर्मी कम्पोस्ट भी बनाया जा रहा है। मवेशियों की देखभाल भी हो रही है, उसके चारा की व्यवस्था भी हो रही है और खेती भी बच रही है। जमीन की ऊर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी और लोगों को रोजगार भी मिलेगा।”
हालांकि विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी का दावा है कि छत्तीसगढ़ में गोबर ख़रीदी ने भ्रष्टाचार के नये दरवाज़े खोल दिये हैं। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का आरोप है कि ख़रीदी के फर्जी आंकड़ों के सहारे राज्य सरकार इसकी सफलता के दावे कर रही है।
क्या है गोधन न्याय योजना
दिसंबर 2018 में छत्तीसगढ़ में सत्ता में आने से पहले ही कांग्रेस पार्टी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के संकेत देते हुए नारा दिया था- छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा गरुवा, घुरवा, बाड़ी, एला बचाना हे संगवारी। यानी गांवों के बारहमासी नाले, पशुधन, घर से निकलने वाला जैविक कचरा व गोबर की खाद और घरों से लगी हुई ज़मीन पर फलों व सब्जियों की बाड़ियां, छत्तीसगढ़ की पहचान हैं और इन्हें बचाना है।
सत्ता में आते ही इस नारे को आधार बना कर राज्य में कई योजनाएं एक साथ शुरु की गईं। इनमें गांवों में 3 से 5 एकड़ में गाय-बैलों के रहने के लिए गौठान का निर्माण शुरु किया गया। राज्य में राज्य सरकार ने इस साल के बजट सत्र में बताया कि 9484 स्वीकृत गोठानों में से अब तक 5401 गोठान बन चुके हैं।
पिछले साल 20 जुलाई से इन्हीं गौठानों में ‘गोधन न्याय योजना’ के तहत 2 रुपये प्रति किलो की दर से गोबर की ख़रीदी शुरु की गई।
इस योजना के तहत ख़रीदे गये गोबर से स्वसहायता समूहों द्वारा संचालित गोठान में ही केंचुआ खाद यानी वर्मी कम्पोस्ट और अन्य उत्पाद बनाने की योजना बनाई गई। दावा किया गया कि गोबर ख़रीदी और वर्मी कम्पोस्ट से राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा ही, पशुपालकों को भी आर्थिक लाभ होगा। इस वर्मी कम्पोस्ट की क़ीमत पहले आठ रुपये, फिर दस रुपये और फिर बारह रुपये प्रति किलो रखी गई। शीर्ष अधिकारी इसकी पुष्टि करते हैं।
वर्मी कम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद बनाने के लिए गोबर या कच्चे जीवांश को सीमेंट या प्लास्टिक के बने हुए टांके में रखा जाता है। तीन मीटर लंबी, एक मीटर चौड़ी और लगभग 30 से 50 सेंटीमीटर ऊंचे इस टांका में केंचुओं को डाला जाता है। यह केंचुए इस गोबर या कच्चे जीवांश को खा कर अपने शरीर से छोटी-छोटी कास्टिग्स के रुप में निकालते हैं। इसे ही वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है। इस वर्मी कम्पोस्ट को तैयार होने में 45 से 60 दिन का समय लगता है।
कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में खरीफ फसल के दौरान 2018 में 8,02,737 मेट्रिक टन और रबी के दौरान 2,77,909 मेट्रिक टन यूरिया, सुपर फास्फेट, डीएपी, पोटाश, ग्रोमोर, आमोनियम सल्फेट, केन व अन्य रासायनिक खाद का उपयोग किया गया। वर्ष 2018 में खरीफ के दौरान प्रति हेक्टेयर 69.00 किलोग्राम रासायनिक खाद का उपयोग किया गया, वहीं रबी के दौरान 2017-18 में यह खपत प्रति हेक्टेयर 83 किलोग्राम थी।
ऐसे में जब राज्य में जैविक खेती की बात शुरु हुई और गोबर ख़रीदी योजना का आरंभ हुआ तो गांव-गांव में गोबर बिक्री को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। लेकिन यह उत्साह अब फीका पड़ता दिख रहा है।
आंकड़ों की बात करें तो जुलाई 2020 से 15 फरवरी 2021 तक राज्य भर में 40.359 लाख क्विंटल गोबर की खरीदी की गई। इसके लिए गोबर बेचने वालों को 7752.13 लाख का भुगतान किया गया। कृषि विभाग के दस्तावेज से ये आंकड़े लिए गए हैं।
सर्वाधिक गोबर रायपुर ज़िले में बेचा गया। यहां 5,41225.19 क्विंटल गोबर की खरीदी की गई। इसके बदले किसानों को 1033.59 लाख रुपये का भुगतान किया गया। सबसे कम गोबर की बिक्री नारायणपुर में हुई। यहां महज 6546.16 हज़ार क्विंटल ही गोबर की ख़रीदी हुई और इसके बदले 11.74 लाख का भुगतान किया गया।
लेकिन उम्मीद के उलट राज्य भर में ख़रीदे गये 40.359 लाख क्विंटल गोबर में से आंशिक गोबर का ही उपयोग हो पाया। अगर पूरे गोबर का उपयोग किया जाता तो राज्य भर में लगभग 20 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो पाता लेकिन कृषि मंत्री रवींद्र चौबे के अनुसार राज्य भर में अब तक केवल 95,680 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया गया, जिसमें आधे से भी कम 44,368 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री हो पाई।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार बीते 15 फरवरी तक के आंकड़ों के अनुसार 7752.13 लाख रुपये की गोबर ख़रीदी के मुकाबले गोबर ख़रीदने वाले स्वसहायता समूहों को कम्पोस्ट खाद से केवल 397.61 लाख रुपये मिले।
हालांकि इन गोठानों में जैविक खाद के अलावा फरवरी 2021 तक 29,236 लीटर कीटनाशक और बेमेतरा, सूरजपुर और सरगुजा ज़िले में 45,265 लीटर बायोगैस भी बनाया गया। कई गोठानों में गोबर से उपला, काष्ठ, मूर्ति, खिलौने और दीये भी बनाये जा रहे हैं लेकिन गोबर ख़रीदी पर होने वाले खर्च की तुलना में इनसे होने वाली आय नहीं के बराबर है।
बड़ी संख्या में गोठानों में गोबर का ढ़ेर पड़ा हुआ है और बेमौसम होने वाली बारिश में बड़ी मात्रा में गोबर बहने के मामले भी सामने आये हैं।
हालांकि राज्य के कई इलाकों में गोबर की मात्रा बढ़ने और दूसरे कारणों का हवाला दे कर पिछले कई महीनों से गोबर ख़रीदी बंद कर दी गई है। कई जगह ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन भी किया है।
मोंगाबे-हिन्दी ने जब जिलों में लोगों से बात की तो पता चला कि राजनांदगांव में गोबर ख़रीदी के 12 केंद्र शुरु किए गये थे। लेकिन बाद में आठ केंद्रों में ताला लगा दिया गया। जांजगीर-चांपा के नैला में गोबर ख़रीदी पिछले महीने भर से इसलिए बंद कर दी गई क्योंकि न तो गोबर रखने की जगह थी और ना ही वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए टांके खाली थे।
डोंगरगांव के आसरा के रहने वाले जयलाल का कहते हैं, “सरकार ने गोबर ख़रीदी के सपने ज़रुर दिखाये लेकिन कुछ महीनों बाद ही ख़रीदी बंद कर दी। इस योजना को अगर चला नहीं सकती थी तो सरकार को इसे शुरु ही नहीं करना था।”
जैविक खेती का हाल
ख़रीदे गये गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनाने और उसके सहारे राज्य को जैविक खेती की ओर ले जाने का सरकारी दावा भी अभी कमज़ोर नज़र आ रहा है। हालत ये है कि तमाम प्रचार-प्रसार के बाद भी वर्मी कम्पोस्ट में किसानों की दिलचस्पी नज़र नहीं आ रही है।
कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि राज्य के 28 में से 6 ज़िले ऐसे हैं, जहां 26,992 लोगों ने 913.15 लाख रुपये का गोबर तो ज़रुर बेचा लेकिन 6 ज़िलों गरियाबंद, कोरिया, बस्तर, सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर में किसी किसान ने; यहां तक कि गोबर बेचने वाले किसान ने भी, एक किलो कम्पोस्ट भी नहीं ख़रीदा।
इसी तरह 11 ज़िले बलौदाबाज़ार, बालोद, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, मुंगेली, कोरबा, सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर, जशपुर, कोंडागांव और कांकेर में 57,351 लोगों ने 1867.13 लाख रुपये का गोबर बेचा। लेकिन इन सभी 11 ज़िलों को मिला कर किसानों ने महज 57788 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट खरीदा। यानी गोबर बेचने वाले किसानों का ही औसत निकालें तो हर किसान ने लगभग एक किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट ख़रीदा।
सूरजपुर ज़िले में गोबर बेचने वाले किसानों की संख्या 3599 है। जिन्होंने 15 फरवरी तक 169.42 लाख रुपये का गोबर बेचा लेकिन इस ज़िले में किसानों ने केवल 70 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट ख़रीदा। बलरामपुर ज़िले में 2547 किसानों ने 63.27 लाख रुपये का गोबर बेचा लेकिन पूरे ज़िले में किसानों ने 390 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट ख़रीदा।
राज्य के पूर्व कृषि मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के विधायक बृजमोहन अग्रवाल पूरी योजना को संदेह के दायरे में रखते हैं। उनका आरोप है कि राज्य में किसानों ने इस योजना को लेकर कोई बहुत दिलचस्पी नहीं दिखाई। वे इसके लिए इस योजना में गोबर बेचने वाले किसानों की कम संख्या का हवाला देते हैं, जो केवल 1,67,450 है।
हालांकि राज्य के कृषि मंत्री रवींद्र चौबे का कहना है कि यह स्वैच्छिक योजना है, इसलिए किसानों की संख्या इतनी कम है। रवींद्र चौबे कहते हैं, “ छत्तीसगढ़ में 47 लाख किसान खातेदार हैं। लेकिन केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री सम्मान निधि केवल दो लाख लोगों को ही क्यों मिल पाती है?”
कृषि मंत्री का कहना है कि स्वसहायता समूहों की लगभग एक लाख महिलाएं गोठानों से जुड़ गई हैं और छत्तीसगढ़ जैविक खेती की ओर बढ़ रहा है। आज की तारीख़ में 12 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट तैयार है। उसकी मार्केटिंग की योजना तैयार की जा रही है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार और राज्य सरकार की इन परियोजनाओं की संकल्पना से जुड़े प्रदीप शर्मा का कहना है कि पुरानी परंपरा को भूल कर पिछले कई दशकों से लोग खेती में रासायनिक खाद का उपयोग कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें वर्मी कम्पोस्ट की ओर मोड़ना आसान नहीं है।
कैबिनेट मंत्री का दर्जा रखने वाले प्रदीप शर्मा ने मोंगाबे हिंदी से कहा कि गोधन न्याय योजना छत्तीसगढ़ शासन द्वारा शुरू की गयी एक शानदार योजना है, जिसमें परंपरा से छूट गये जैविक खाद के खेत मे नियोजन को नये ढंग से कार्यान्वित किया जा रहा है। अब किसानों को गोबर के दाम और साथ में वर्मी कम्पोस्ट भी गांव में उपलब्ध रहेंगे। वर्मी कम्पोस्ट के प्रति जागरुकता और रुझान दोनों किसानों में बढ़ी हैं और बढ़ेगी। इससे भूमि और फ़सल दोनों की गुणवत्ता में वृद्धि होगी।
लेकिन कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर संकेत ठाकुर इन तर्कों से सहमत नहीं हैं।
संकेत ठाकुर का कहना है कि छत्तीसगढ़ के किसान मूल रुप से धान की खेती करते हैं और प्रति एकड़ लगभग 4 हज़ार रुपये के रासायनिक खाद में उनका काम चल जाता है। उन्होंने मोंगाबे-हिंदी से बात करते हुए कहा, “धान को जितने तरह के पोषण की ज़रुरत होती है, उसके लिए एक एकड़ में लगभग 3000 किलो वर्मी कम्पोस्ट की ज़रुरत होगी, जिसकी लागत 36 हज़ार रुपये आएगी। ज़ाहिर है, इतनी मंहगी खेती तो साधारण किसान करने से रहा।”
डॉक्टर संकेत ठाकुर का कहना है कि गोबर बेचने वाले लोगों में बड़ी संख्या डेयरी उद्योग चलाने वालों की है। छोटे किसानों की गोबर बेचने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसी तरह वर्मी कम्पोस्ट की ख़रीदी मूल रुप से सरकारी विभाग कर रहे हैं। इसके अलावा शौकिया खेती करने वाले लोग वर्मी कम्पोस्ट ख़रीद रहे हैं।
वे कहते हैं, “अगर किसान खुद से वर्मी कम्पोस्ट बनाये या इसकी क़ीमत 4 से 5 रुपये रखी जाये तब कहीं जा कर किसानों को खेतों में वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग के लिए प्रेरित करने की कोशिश की जा सकती है।”
गोबर खरीदी में खर्च पर सवाल
गोधन न्याय योजना के बजट को लेकर भी छत्तीसगढ़ में कई सवाल हैं। वर्ष 2021-22 के बजट में गोठान योजना के लिए 175 करोड़ का प्रावधान रखा गया है। लेकिन इससे पहले इसके लिए कोई बजट ही नहीं रखा गया था। इस साल फरवरी तक ग्रामीण विकास विभाग ने पैसे दिए। अब योजना पर होने वाले खर्च का वहन कृषि विभाग कर रहा है। यही कारण है कि गोठान और गोबर पर होने वाले खर्च को लेकर भी विवाद हो रहे हैं।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का कहना है कि राज्य सरकार ने गोबर ख़रीदी से पहले कोई कार्य योजना ही नहीं बनाई। यहां तक कि इसके लिए कोई बजट नहीं रखा और कोरोना से लड़ने के नाम पर स्वास्थ्य विभाग को जो रकम मिलनी चाहिये थी, उसे गोबर ख़रीदी में लगा दिया।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “पिछले साल 2 मई और 15 मई को कोविड-19 को दृष्टिगत रखते हुए, देशी और विदेशी शराब पर प्रति बोतल 10 रुपये और 10 प्रतिशत का विशेष कोरोना शुल्क राज्य सरकार ने वसूला। 3 मार्च तक इस मद में 364.75 करोड़ रुपये वसूले गये। लेकिन स्वास्थ्य विभाग को कोई राशि नहीं दी गई। यह अपने आप में बड़ा सवाल है।”
सवाल कई हैं और इन सवालों को सुलझाये बिना गोबर के दिन बहुरने की बात महज कहावत ही बनी रहेगी।
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बैनर तस्वीरः गोधन न्याय योजना के तहत छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की द्रौपदी के पास 65 गाय हैं। वह हर महीने सरकार को गोबर बेचती हैं। तस्वीर- डीपीआर छत्तीसगढ़