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तस्वीरों में कैद रेगिस्तान: खतरे में है थार का पारिस्थितिकी तंत्र

रेगिस्तान में भेड़ों का एक झुंड

रेगिस्तान में भेड़ों का एक झुंड

  • हाल ही में प्रकाशित ‘द नेशनल पार्कः अ ज्वेल इन द वाइब्रेंट थार’ पुस्तक में रेगिस्तान के जैव-विविधता को दर्शाया गया है। अपने छः साल के प्रयास में इस पुस्तक के लेखक डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज ने रेगिस्तान के जीवन को तस्वीरों के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है।
  • मोंगाबे-हिन्दी ने डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज का साक्षात्कार लेकर रेगिस्तान की जैव-विविधता से जुड़े उनके अनुभव जानने की कोशिश की। जिसमें इन्होंने बताया कि देश के सारे इको-सिस्टम में सबसे ज्यादा खतरा रेगिस्तान के पारिस्थितिकी तंत्र को ही है।
  • इनके अनुसार इस पुस्तक के लिए शोध और फोटोग्राफी करने के दौरान ढेरों ऐसे अनुभव हुए जिन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता था। पर इस प्रयास में रेगिस्तान के ढेरों जीव-जंतुओं को जानने का मौका मिला।

जब जैव-विविधता और वन्य जीवों की बात होती है तो अमूमन सबका ध्यान घने जंगलों की तरफ जाता है। पर इस खूबसूरत पृथ्वी के लिए रेगिस्तान की जैव-विविधता भी काफी महत्वपूर्ण है। इसी जैव-विविधता से लोगों को अवगत कराने के लिए डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज ने ‘द नेशनल पार्कः अ ज्वेल इन द वाइब्रेंट थार’ नाम से एक किताब लिखी है। भारद्वाज भारतीय वन सेवा के राजस्थान में 1994 बैच के एक अधिकारी हैं और फिलहाल राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल में सदस्य सचिव पद पर हैं। इससे पहले सरिस्का टाइगर प्रोजेक्ट जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में मुख्य वन संरक्षक और फील्ड ऑफिसर भी रह चुके हैं। वन्यजीव और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी को जीने वाले डॉ. भारद्वाज ने अंग्रेजी भाषा में लिखी इस पुस्तक में जैसलमेर और बाड़मेर में फैले मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान (जो बतौर डेजर्ट नेशनल पार्क मशहूर है) की जैव-विविधता को विस्तार से बताया है। करीब छः सालों के अपने इस प्रयास में इन्होंने रेगिस्तान में रहने वाले छोटे-बड़े सभी जीव-जंतुओं को तस्वीरों में कैद करने की कोशिश की है। उनके इस अनुभव को जानने-समझने के लिए मोंगाबे-हिन्दी ने डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज बात की। इनकी सहमति से इस पुस्तक में प्रकाशित कुछ तस्वीरों को यहां प्रकाशित किया जा रहा है। 

थार में सूर्यास्त के समय ऊंटों का एक झुंड। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज
थार में सूर्यास्त के समय ऊंटों का एक झुंड। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज

कृपया किताब ‘द नेशनल पार्कः अ ज्वेल इन द वाइब्रेंट थार’ की यात्रा के बारे में थोड़ा बताइए? थार इकॉलोजी पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए किस बात ने आपको प्रेरित किया?  

स्थानीय संस्कृति के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता और इस क्षेत्र की विशाल जैविक विविधता से मुझे इसके डॉक्यूमेंटेशन की प्रेरणा मिली। ताकि आम लोग इस क्षेत्र के महत्व को समझ सकें। वास्तव में जब मैं उस क्षेत्र में मुख्य वन संरक्षक पद पर सेवाएं दे रहा था तब मुझे उस क्षेत्र को करीब से देखने का मौका मिला। 2015 में मुझे डेजर्ट नेशनल पार्क (डीएनपी) की जैव-विविधता के बारे में किताब लिखने का ख्याल आया। करीब 6 साल की मेहनत और डीएनपी की लगातार यात्रा के बाद यह किताब तैयार हुई जो आज आप लोगों के सामने है। 

थार में एक स्थानीय पौधा। रेगिस्तान फूल और जैव-विविधता का विशाल और अद्वितीय खजाना है। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज
थार में एक स्थानीय पौधा। इसे अंग्रेजी में Capparis Decidua कहते हैं। रेगिस्तान फूल और जैव-विविधता का विशाल और अद्वितीय खजाना है। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज

इस लिखने-पढ़ने और यात्रा के दौरान आपको कुछ ऐसे भी अनुभव हुए होंगे जो किताब में नहीं आ पाया होगा। ऐसे कुछ अनुभवों के बारे में बताएंगे! सामान्य क्षेत्र  की तुलना में रेगिस्तान के वन्यजीवों पर काम करने की मुख्य चुनौतियां क्या रहीं? 

सच बताऊं तो थार इकोसिस्टम में मेरे काम का अनुभव बिल्कुल अलग तरह का है।  हर एक मौसम में यहां जीव-जंतुओं और वनस्पतियों में बहुत विविधता देखने को मिलती है। गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) को देखना हो या रेत के टीले से चील को उड़ान भरते हुए कैमरे में उतारना। स्केनी टेल्ड लिजार्ड (खास तरह का गिरगिट) का लैगर फाल्कन पर शिकार के लिए हमला करना हो या परभक्षी जीवों से खुद को बचाने के लिए एक बिच्छु का रेत में खुद को छिपाना। ऐसे ढेरों अनुभव हैं जिन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है। इन्हें बता पाना कठिन होता है। इसके अलावा किसी डंग बीटल को गोबर या मल को धक्का देकर लुढ़काते हुए दूर तक ले जाते हुए देखना या सफेद-भूरे रंग के बुशचैट को नाचते देखना बेहतरीन अनुभव था।  हालांकि मुझे थार की वाइल्ड लाइफ डॉक्यूमेंट करते हुए कोई खास परेशानी या चुनौती नहीं आई। हां, असामान्य और दुर्लभ किस्म के कई फूल और जीवों को पहचानने में काफी समय खर्च हुआ जो काफी कठिन काम था। 

रेत के धोरे पर एक डंग बीटल के गुजरने के बाद उसके निशां। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज
रेत के धोरे पर एक डंग बीटल के गुजरने के बाद उसके निशान। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज

थार की जैव-विविधता के सामने आज सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं?

थार का रेगिस्तान दुनिया के एक मात्र रेगिस्तान है जहां सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व है। मानवजनित ताकतें जिसमें बेतरतीब बुनियादी ढांचे  का विकास और जमीन के उपयोग के तरीकों में तेजी से जो बदलाव आ रहे हैं वो थार के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। बल्कि मुझे लगता है कि देश के सारे इको-सिस्टम में सबसे ज्यादा खतरा रेगिस्तान के ही पारिस्थितिकी तंत्र को है।

 

रेगिस्तान का एक फूल। थार असामान्य और दुर्लभ किस्म के कई फूल और जीवों का गढ़ है। इस किताब में ऐसे कई प्रजातियों का जिक्र मिलता है। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज
रेगिस्तान का एक फूल। इसको अंग्रेजी में Arnebia hispidissima कहते हैं। थार असामान्य और दुर्लभ किस्म के कई फूल और जीवों का गढ़ है। इस किताब में ऐसे कई प्रजातियों का जिक्र मिलता है। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज

रेगिस्तान कई तरह के पेड़, फूल-फल, जंगली जानवर, प्रवासी पक्षियों का बसेरा है। क्या हम इस विरासत को संभाल पाने में सक्षम हैं? कृपया विस्तार से बताएं।

स्थानीय समुदायों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान सहित जैविक विविधता और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं के संरक्षण के उद्देश्य से 1980 में डेजर्ट वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को अधिसूचित किया गया था। ये सेंचुरी करीब 3,162 वर्ग किलोमीटर में प्रदेश के दो जिलों जैसलमेर और बाड़मेर में फैली हुई है। डेजर्ट नेशनल पार्क फूल और जैव-विविधता का विशाल और अद्वितीय खजाना है, जिसमें सबसे गंभीर खतरे से गुजर रहा गोडावण या ग्रेट इंडियन बस्टर्ड भी शामिल है। थार एक मात्र जगह है जहां गोडावण प्रजनन कर रहा है। इसे राजस्थान का राज्य पक्षी होने का दर्जा भी प्राप्त है। अपनी विरासत को बचाने के लिए हमारी क्षमता के  सवाल का जवाब शायद आपको मिल गया होगा। 

एक यूरेशियन ग्रिफन गिद्धों के समूह में एक हिमालयन ग्रिफन गिद्ध। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज
एक यूरेशियन ग्रिफन गिद्धों के समूह में एक हिमालयन ग्रिफन गिद्ध। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज

राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण (जीआईवी) लगभग खत्म हो गए हैं। पावर लाइंस इनके लिए सबसे बड़ा खतरा हैं, लेकिन विकास के नाम पर आज भी बड़े-बड़े ग्रीन एनर्जी और पावर लाइन डालने का काम वहां चल रहा है। समाधान क्या है?

इस पक्षी को संरक्षण के प्रयास करते रहने होंगे। हमें ग्रीन एनर्जी की भी जरूरत है तो प्रजातियों को बचाना भी हमारी जिम्मेदारी है। ऐसे में इस पक्षी के संरक्षण के प्रयास हो सकता है कि थोड़ा महंगा साबित हो लेकिन यह करना ही होगा। शोध संस्थानों जैसे भारतीय वन्यजीव संस्थान के सुझावों पर काम करने की जरूरत है।  

प्रजनन काल के दौरान अपनी गूलर सैक (थैली) के साथ गोडावण। इसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के नाम से जाना जाता है। राजस्थान में यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज
प्रजनन काल के दौरान अपनी गूलर सैक (थैली) के साथ गोडावण। इसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के नाम से जाना जाता है। राजस्थान में यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज

स्थानीय समुदायों का थार की जैव-विविधता को संरक्षित करने में क्या भूमिका है? अपनी किताब पर काम करने के दौरान क्या आपने ऐसा कुछ महसूस किया? 

डेजर्ड नेशनल पार्क को बनाते समय स्थानीय समुदायों के सहयोग के महत्व को महसूस किया गया था। शुरुआती दिनों से ही तय था कि इनसे लागातार बात की जाएगी, इनकी जरूरतों को समझा जाएगा और उसके अनुसार ही रणनीति बनायी जाएगी। संरक्षण के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए यह जरूरी है। सच तो ये है कि गोडावण को बचाने में खासकर उनके लिए क्लोजर्स (ऐसी जगह जहां उन्हें कोई डिस्टर्ब ना कर सके) बनाने की योजना सफल हो ही नहीं सकती, अगर स्थानीय समुदाय और लोगों का सहयोग न हो। गोडावण के प्रजनन क्षेत्रों को बनाने में रास्ते बंद करने का काम केवल स्थानीय लोगों को समझा कर ही किया जा सकता था। इसके अलावा हमने स्थानीय लोगों की भूमिका बढ़ाने के लिए ‘गोडावण बचाओ, इनाम पाओ’ कार्यक्रम की भी शुरुआत की। इससे गोडावण की मॉनिटरिंग काफी आसान और संगठित रूप से हो पाई। 

रेत में एक चौकन्ना चिंकारा। रेगिस्तान में कई तरह की वनस्पतियां खत्म हो रही हैं, जैसे सेवण घास जो यहां के पशु-पक्षियों के भोजन में पोषण का काम करती थी। इन वजहों से यहां की जैव-विविधता को खतरा है। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज।

देखा गया कि टिट्डी हमलों के बाद गोडावण ने एक से ज्यादा अंडे दिए। तो क्या माना जाए कि गोडावण को खाने या खाने में पोषण की कमी है? साथ ही यह भी बताएं कि थार में गोडावण के लिए भोजन उपलब्ध होने या न होने पर आपकी क्या समझ है? 

डेजर्ट नेशनल पार्क में गोडावण के लिए खाने की कोई कमी नहीं है। इस प्रजाति को सबसे ज्यादा जरूरत शांतिपूर्ण वातावरण और बिना व्यवधान वाले जगह की है। 

रेगिस्तान में कई तरह की वनस्पतियां खत्म हो रही हैं, जैसे सेवण घास जो यहां के पशु-पक्षियों के भोजन में पोषण का काम करती थी। अब ये खत्म हो चुकी है। ऐसी वनस्पतियों को कैसे बचाया जाए?

सेवण घास विलुप्त नहीं हुई है। हां, इंसानी दबाव से ये पहले की तुलना में कम जरूर हुई है। डीएनपी के अधिकारियों ने पार्क के कई क्लोजर्स में सेवण घास सहित कई तरह की वनस्पतियां विकसित की हुई है। ये घास ना सिर्फ स्थानीय पशुओं बल्कि गोडावण के रहने का भी सबसे बेहतरीन ठिकाना है।

स्पिनी टेल्ड लिजार्ड का एक जोड़ा। थार रेगिस्तान के अलावा ये भारत-पाकिस्तान की सीमा से लगे कच्छ इलाके में भी पाए जाते हैं। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज
स्पिनी टेल्ड लिजार्ड का एक जोड़ा। थार रेगिस्तान के अलावा ये भारत-पाकिस्तान की सीमा से लगे कच्छ इलाके में भी पाए जाते हैं। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज

जैसलमेर, बाड़मेर में काफी ओरण (चारागाह) हैं जिनमें बड़ी संख्या में जंगली जानवर, पशु-पक्षी रहते हैं। ओरणों को लेकर आपकी क्या टिप्पणी है? क्या भविष्य में हजारों प्रजातियों को संरक्षण देने वाले इन ओरणों को हम देख पाएंगे? 

थार में मौजूद ओरणों में अभी भी जैव-विविधता के तत्व मौजूद हैं, लेकिन इंसानी गतिविधियों खासकर इनके भीतरी हिस्सों में निर्माण एक बड़ी समस्या है। ये ओरण ना सिर्फ पक्षी बल्कि कई तरह के फूल-पत्तियों और कई तरह के प्रजातियों के पशुओं के लिए शरण स्थली हैं। इनको इसी स्वरूप में संरक्षित करने की जरूरत है।

बैनर तस्वीरः रेगिस्तान में भेड़ों का एक झुंड। तस्वीर- डॉ. गोबिंद सागर भारद्वाज