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कभी विदेशों से लाया गया ट्राउट मछली का बीज, अब कश्मीर में फल-फूल रहा कारोबार

कश्मीर के पहलगाम घाटी में ट्राउट मछली। तस्वीर- मैथ्यू लैयर्ड एकर्ड / विकिमीडिया कॉमन्स

कश्मीर के पहलगाम घाटी में ट्राउट मछली। तस्वीर- मैथ्यू लैयर्ड एकर्ड / विकिमीडिया कॉमन्स

  • कश्मीर में ट्राउट मछलियों का व्यापार बढ़ रहा है। दूसरे राज्यों में भी मछली के अंडों की आपूर्ति यहां से की जा रही है।
  • वर्ष 2021 में ट्राउट के 70 हजार अंडों को हवाई मार्ग से अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, सिक्किम और उत्तराखंड भेजा गया।
  • कश्मीर के किसानों के लिए ट्राउट मछली पालन जीविकोपार्जन के एक नए स्रोत के तौर पर उभर है।
  • ट्राउट पहाड़ी इलाके की मछली मानी जाती है जो ठंडे पानी में रहना पसंद करती है। पौष्टिक होने की वजह से इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।

कश्मीर में ट्राउट मछली का कारोबार जोर पकड़ रहा है। यहां पाली जा रही मछली के अंडों की मांग देश के दूसरे हिस्सों में भी हो रही है। ट्राउट मछली ठंडे पानी की मछली होती है और देश के पहाड़ी इलाकों में फार्म में मछली पालन किया जा रहा है। 

अपने स्वाद और पोषण के लिए मशहूर इस मछली को कश्मीर के अलावा नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी पाला जाता है। 

जनवरी में जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले से पांच लाख ट्राउट के अंडों को अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और उत्तराखंड भेजा गया। इसके बाद, फरवरी में सिक्किम से दो लाख अंडों की मांग आई। उत्तराखंड के भीमताल स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कश्मीर से अंडों को लेकर सिक्किम पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाई। 

इसके अलावा, ट्राउट के 70 हजार अंडों को वायु मार्ग से देश के कई दूसरे स्थानों पर भी ले जाया गया।

ट्राउट के अंडे से बीज तैयार करना और चारा तैयार करना तकनीकी तौर जटिलताओं वाला काम है। मछली के बढ़ने की रफ्तार भी काफी धीमी होती है। तस्वीर- यूएसएफडब्लूएस/फ्लिकर
ट्राउट के अंडे से बीज तैयार करना और चारा तैयार करना तकनीकी तौर जटिलताओं वाला काम है। मछली के बढ़ने की रफ्तार भी काफी धीमी होती है। तस्वीर- यूएसएफडब्लूएस/फ्लिकर

 कश्मीर की ट्राउट मछलियों के बारे में माना जाता है कि ये सबसे स्वस्थ होती हैं। दूसरे राज्यों की तुलना में इनकी किस्म अधिक उन्नत भी मानी जाती है। बढ़ने की रफ्तार अधिक होने के अलावा ये मछलियां साधारण मछलियों का चारा भी खा सकती हैं। इन वजहों से कश्मीर की ट्राउट मछलियां काफी मशहूर हो रही हैं, कहते हैं मोहम्मद मुजफ्फर बज़ाज़, जो कश्मीर मछली पालन विभाग के संयुक्त निदेशक हैं। 

कश्मीर में ट्राउट की दोनों किस्में पायी जाती हैं। भूरे रंग और इंद्रधनुषीय रंगों की किस्में। इन मछलियों ने कश्मीर के ठंडे पानी में रहने के लिए खुद को ढाल लिया है। जम्मू और कश्मीर की मछली पालन विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक ट्राउट मछलियों का कश्मीर के साथ 100 वर्षों से अधिक का नाता है।  

कश्मीर में हिम ट्राउट की एक किस्म मौजूद थी। उस वक्त कांटे से मछली पकड़ने के शौकीन कालीन कारोबारी फ्रैंक जे. मिशेल ने तब के राजा प्रताप सिंह के जरिए ब्रिटिश से और अधिक किस्मों की मांग की। 

पहली बार 1899 में ब्रिटेन से 10 हजार ट्राउट अंडे मंगाए गए। लेकिन रास्ते में ही सारे अंडे खराब हो गए। 

दूसरी बार वर्ष 1900 में स्कॉटलैंड से मछलियां मंगायी गईं। इनमें से एक हजार अंडों को श्रीनगर से 24 किलोमीटर दूर दाचिगाम में हरवान झील में छोड़ दिया गया। बाकी अंडों को मिशेल ने अपने निजी झील में रखवाया। बाद में मछलियों को घाटी की छोटी नदियों में छोड़ा गया। इसके बाद से ट्राउट की नई किस्मों ने कश्मीर के सर्द पानी को अपना लिया।

मिशेल ने 1901 में ट्राउट मछली पालन केंद्र खोला जहां इसके अंडे तैयार किए जाते थे। कश्मीर में ट्राउट मछली की बढ़ती लोकप्रियता के बाद 1903 में मछली पालन विभाग की स्थापना भी की गई। 

विभाग को उस दौरान गेम प्रिजर्वेशन यानी मछली पकड़ने के खेल और प्राकृतिक पानी की सुरक्षा करने वाले विभाग के नाम से जाना जाता था। 

वर्ष 1978 में इस विभाग की संरचना बदली और इसके बाद से विभाग के पास ट्राउट मछली पालन, अंडे से छोटी मछलियां निकालने, प्रयोगशाला का संचालन, बिक्री केंद्र जैसे कई अन्य दायित्व भी आ गए। विभाग द्वारा लेह, जम्मू और कश्मीर में मछलीघर और जागरुकता केंद्र भी संचालित किया जाता है।

कश्मीर मछली पालन विभाग के संयुक्त निदेशक मोहम्मद मुजफ्फर बज़ाज़ ट्राउट मछलीपालकों के साथ। ट्राउट मछली दो से तीन किलो का होने पर बाजार में बेची जाती हैं। तस्वीर- मोहम्मद मुजफ्फर बज़ाज़
कश्मीर मछली पालन विभाग के संयुक्त निदेशक मोहम्मद मुजफ्फर बज़ाज़ ट्राउट मछलीपालकों के साथ। ट्राउट मछली दो से तीन किलो का होने पर बाजार में बेची जाती हैं। तस्वीर- मोहम्मद मुजफ्फर बज़ाज़

ठंडे पानी की जलधाराओं में तैरती स्वादिष्ट ट्राउट मछली

कश्मीर में पाई जाने वाली ट्राउट मछली पश्चिमी देशों की तुलना में अच्छी गुणवत्ता की मानी जाती है। इसे साफ करना आसान होता है और इसमें कांटे भी कम होते हैं। घाटियों में ताजे पानी की नदियों की वजह से इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है। इन मछलियों को आसानी से कोई रोग भी नहीं लगता और इसे पालना भी आसान होता है। जम्मू-कश्मीर में 583 निजी और सरकारी ट्राउट फार्म में 500 टन मछलियों का उत्पादन होता है, बज़ाज़ कहते हैं।

कश्मीर में गर्म और ठंढे- दोनों तरह के पानी में मछली पालन होता है। ट्राउट मछलियों को जीरो से 20 डिग्री सेल्सियस का तापमान की जरूरत होती है। यह मछली जमे हुए पानी (बर्फ) में नहीं रह सकती। ट्राउट को बहता हुआ पानी चाहिए। ये मछलियां अंडा देने के लिए ऊंचाई वाले इलाके में जाती हैं। 

मछली फार्म के अलावा लिद्दर और ब्रेंगी नदी में यह मछलियां स्वतंत्र रूप से पाई जाती हैं। नदी के अलावा मधुमति, फिरोजपुर की जलधाराओं में भी ट्राउट मछली को देखा जा सकता है,” वन्यजीव पर शोध करते वाले शाह मलिक बताते हैं। 

भूरी ट्राउट को कांटों में फंसाकर पकड़ना विदेशी सैलानियों को काफी पसंद है। इस वजह से यहां पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है। दुर्भाग्यवश प्रदूषण और इंसानों की दखलअंदाजी से साफ पानी की मछलियां भी परेशान हैं। जलवायु परिवर्तन की मार भी मछलियों पर हो रही है। नतीजा यह कि भूरे रंग की ट्राउट की संख्या में कमी देखी जा रही है। स्वतंत्र रूप से मछलियों की आबादी कम होती देख सरकारी फार्म में इन मछलियों को पालकर दोबारा जल धाराओं में छोड़ा जा रहा है। 

कश्मीर के कोकेरनाग स्थित एक ट्राउट मछली फार्म का दृश्य। तस्वीर- मोहम्मद मुजफ्फर बज़ाज़
कश्मीर के कोकेरनाग स्थित एक ट्राउट मछली फार्म का दृश्य। तस्वीर- मोहम्मद मुजफ्फर बज़ाज़

इम्यूनिटी बढ़ाने वाली मछली है ट्राउट

ट्राउट मछली को इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला माना जाता है। इसमें प्रोटीन की भी भरपूर मात्रा पाई जाती है। इंद्रधनुषीय रंग की ट्राउट मछली नीला, हरा, पीला और चांदी जैसे चमकीले रंग लिए होती है। इसमें इंद्रधनुष के सभी रंग दिखते हैं। स्वाद और सेहत के लिहाज से समृद्ध इस मछली पर कई खतरे मंडरा रहे हैं। खनन की वजह से नदी में मछली-पालन मुश्किल हो रहा है। इसकी संख्या कम हो रही है। इस वजह से अब फार्म में ही मछली पालन हो रहा है। फार्म में मछली को नदी जैसा माहौल देना संभव नहीं है, मलिक कहते हैं। 

जून 2018 में अनंतनाग जिले को ट्राउट डिस्ट्रिक्ट ऑफ इंडिया की संज्ञा दी गई थी। सरकार की मदद से कई ट्राउट फिश फर्म की स्थापना की गई। कोकेरनाग में एशिया का सबसे बड़ा ट्राउट फार्म स्थित है। इसे इंद्रधनुषीय ट्राउट या रेनबो ट्राउट के उत्पादन में प्रसिद्धि मिल रही है। यूरोपियन इकोनॉमी कमेटी ने फार्म की स्थापना 1995 में की थी। इस समय यहां से कई स्थानों पर अंडों की आपूर्ति होती है। 

मछलियां नवंबर से फरवरी के बीच अंडे देती है। इनका करीब 51 दिन लंबा प्रजनन काल होता है, मलिक कहते हैं। 

“250 ग्राम का ट्राउट होने में 12 से 15 महीने का वक्त लगता है। इसके बाद इन्हें फार्म से बेचा जाता है। मछली पालक इसका वजन दो से तीन किलो तक बढ़ाते हैं और फिर बेचते हैं, उन्होंने कहा।

आज के समय में कश्मीर के हर जिले में ट्राउट प्रजनन केंद्र और फार्म खुल गए हैं। नई तकनीक के सहारे बड़ी मछलियों का उत्पादन हो रहा है। मछली पालन विभाग के मुताबिक महामारी के दौरान भी ट्राउट उत्पादकों को कोई खास परेशानी नहीं हुई और 2019-20 में 183 लाख के मुकाबले 2020-21 में अब तक इस फार्म ने 1.75 करोड़ रुपये का व्यापार कर लिया है, बज़ाज़ बताते हैं।

कोकेरनाग में ट्राउट मछली फार्म। तस्वीर- मोहम्मद मुजफ्फर बज़ाज़
कोकेरनाग में ट्राउट मछली फार्म। तस्वीर- मोहम्मद मुजफ्फर बज़ाज़

ट्राउट मछली से अर्थव्यवस्था को मिल रहा बल 

कश्मीर के किसानों के लिए ट्राउट मछली पालन एक अच्छे व्यवसाय के तौर पर उभर रहा है। इस उद्योग को प्रधानमंत्री मतस्य संपदा योजना की वजह से भी काफी सहारा मिला है। किसी पानी के स्रोत के किनारे ट्राउट मछली पालन व्यवसायिक रूप से भी किया जा सकता है। स्थानीय लोग सरकार की मदद से फार्म स्थापित कर सकते हैं। इस योजना के तहत अब तक 200 फार्म स्थापित हो चुके हैं, बज़ाज़ ने बताया। 

कुलगाम के आबिद अमिन पहले किसानी करते थे, लेकिन सरकार के सहयोग से उन्होंने ट्राउट पालने का काम शुरू किया है। 

ट्राउट पालने की शुरुआत शौक से किया था, लेकिन इससे खेती की तुलना में कहीं अधिक फायदा दिखने लगा। फिर मैंने खेती छोड़कर मछली पालन करने का फैसला किया है। सरकार की मदद से यह अब और आसान हो गया है, वह कहते हैं।

 

बैनर तस्वीरः कश्मीर के पहलगाम घाटी में ट्राउट मछली। तस्वीर- मैथ्यू लैयर्ड एकर्ड / विकिमीडिया कॉमन्स 

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