- छत्तीसगढ़ के जिस इलाके में राज्य सरकार ने केंद्र को हाथी अभ्यारण्य बनाने का हवाला देते हुए कोयला खदान आवंटित करने से मना किया, अब उसी इलाके में भूमि अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी की गई है।
- छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या बढ़ती जा रही है और राज्य के सरगुजा और बिलासपुर संभाग के जंगलों में रहने वाले हाथियों के झुंड अब भटकते हुये राजधानी रायपुर और बस्तर तक पहुंच रहे हैं। पिछले 20 सालों में राज्य में 162 हाथियों की मौत हो चुकी है और अधिकांश मौत हाथी-मानव संघर्ष का परिणाम हैं। 2005 में राज्य में लेमरू हाथी अभ्यारण्य बनाने की योजना पर काम शुरु हुआ था लेकिन यह अभ्यारण्य अब तक फाइलों में क़ैद है।
- हसदेव-अरण्य के जिस इलाके में लेमरू हाथी अभ्यारण्य बनाने की योजना है, उस इलाके में कई कोल ब्लॉक हैं, जिन्हें केंद्र सरकार खनन के लिए आवंटित कर रही है। राज्य सरकार की आपत्ति के बाद भी खुले बाज़ार में बेचने के लिए कोल ब्लॉक आवंटित किये जा रहे हैं।
कोरबा ज़िले की पतुरियाडांड के सरपंच उमेश्वर सिंह आर्मो को 15 जून 2015 को मदनपुर में कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी का वह वादा याद है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर आदिवासी और ग्रामसभा नहीं चाहेगी तो इस इलाके में कोयला खनन नहीं होने दिया जायेगा।
अब जबकि राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार है और कुछ महीने पहले तक राज्य सरकार ने इस इलाके को हाथी अभ्यारण्य में शामिल करने का हवाला दे कर केंद्र को एक के बाद एक चिट्ठियां भेजी हैं। बावजूद इसके, इस इलाके में कोयला खदान के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना केंद्र सरकार द्वारा जारी कर दी गई है।
आर्मो कहते हैं, “हम आदिवासी सरपंचों ने मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रधानमंत्री को कई-कई बार चिट्ठी भेजी है कि ग्रामसभा यहां कोयला खनन नहीं चाहती लेकिन हमारी आवाज़ कोई नहीं सुन रहा है। कम से कम बेजुबान हाथियों की आवाज़ ही सुन लें, जिनका घर उजाड़ने की तैयारी चल रही है।”
इस साल छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले के छपराडांड में 29 मार्च को एक हाथी का शव मिलने के साथ ही राज्य में 2020-21 में मरने वाले हाथियों की संख्या 18 हो गई है। राज्य के वन विभाग के अनुसार पिछले 20 सालों में छत्तीसगढ़ में इतनी बड़ी संख्या में हाथियों की मौत कभी नहीं हुई थी।
कोयला खदान वाले इलाके में इस हाथी की मौत के साथ ही यह सवाल फिर से उभरने लगा है कि क्या छत्तीसगढ़ में हाथियों के लिए 15 साल से लंबित लेमरू हाथी अभ्यारण्य कभी आकार ले पायेगा या कोयला खदानों के कारण भटकते हुये ये हाथी मारे जाने को अभिशप्त ही रहेंगे?
इस हाथी की मौत ऐसे समय में हुई है, जब चार दिन पहले ही केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ की 18 कोयला खदानों समेत कुल 67 कोयला खदानों की नीलामी की घोषणा की है। उन इलाकों में भी लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरु की जा रही है, जिस इलाके को छत्तीसगढ़ सरकार ने हाथियों की बढ़ती संख्या के कारण लेमरू हाथी अभ्यारण्य में शामिल करने की योजना बनाई है।
राज्य भर में पर्यावरण और आदिवासी मुद्दों पर काम करने वाले संगठनों के समूह, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला का कहना है कि कोयला खदानों के लोभ में जंगलों से हाथी बेदखल किये जा रहे हैं। कई सालों से लंबित जिस लेमरू हाथी अभ्यारण्य पर मुहर लगाने की बात कही थी, वह भी खटाई में पड़ता नज़र आ रहा है।
हसदेव अरण्य जंगल: कोयले का खदान और हाथियों का घर
पूरे देश में सर्वाधिक कोयला उत्पादन करने वाले छत्तीसगढ़ में 5990.78 करोड़ टन कोयला का भंडार है। यह देश में उपलब्ध कुल कोयला भंडार का करीब 18.34 फ़ीसदी है।
अगर छत्तीसगढ़ की बात करें तो कुल 12 कोयला प्रक्षेत्र के 184 कोयला खदानों में से, सर्वाधिक 90 कोल ब्लॉक मांड-रायगढ़ में और 23 कोल ब्लॉक हसदेव-अरण्य के जंगलों में हैं।
करीब 1,70,000 हेक्टेयर में फैले हसदेव अरण्य के जंगल को जैव विविधता और पारिस्थितकी रुप से संवेदनशील माना जाता रहा है। इसे हाथियों का घर भी कहा जाता है।
झारखंड के गुमला से छत्तीसगढ़ के कोरबा तक हाथियों के आवागमन का यह एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश के पेंच अभ्यारण्य , मध्य प्रदेश के कान्हा टाइगर रिज़र्व, छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिज़र्व और झारखंड के पलामू टाइगर रिज़र्व तक फैले कॉरिडोर का यह बीच का हिस्सा है।
नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद, कुछ सालों तक तो इन हाथियों को झारखंड और ओडिशा का प्रवासी हाथी घोषित कर इनसे संबंधित ज़िम्मेवारियों को टालने की कोशिश होती रही। लेकिन बाद में कोरबा, जशपुर, सरगुजा और रायगढ़ के कोयला खदान वाले जंगल के इलाकों में हाथियों के स्थाई रहवास और प्रजनन को देखते हुये 11 मार्च 2005 को विधानसभा में सर्वसम्मति से रायगढ़, जशपुर और कोरबा ज़िले में प्रोजेक्ट ऐलीफेंट के अंतर्गत हाथी अभ्यारण्य बनाने का अशासकीय संकल्प पारित किया गया।
फाइलों में ही रह गया लेमरू हाथी अभ्यारण्य
राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने हसदेव अरण्य और धर्मजयगढ़ के 450 वर्ग किलोमीटर के इलाके में लेमरू हाथी अभ्यारण्य बनाने की योजना पर काम करना शुरु किया और केंद्र को इससे संबंधित प्रस्ताव भेजा गया। इसके अलावा पहले से ही संरक्षित तमोर पिंगला अभ्यारण्य के 972.16 वर्ग किलोमीटर और बादलखोल सेमरसोत अभ्यारण्य के 176.14 वर्ग किलोमीटर को भी हाथी अभ्यारण्य घोषित करने के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेजा गया। हालांकि इन दो अभयारण्यों में नियमानुसार किसी भी तरह के खनन या गैर-वानिकी गतिविधियों की इजाजत पहले ही नहीं थी।
केंद्र सरकार ने मार्च 2007 में एक विशेषज्ञ अध्ययन दल को भेजा और इस दल की रिपोर्ट के आधार पर 5 अक्टूबर 2007 को इन सभी तीन हाथी अभ्यारण्य को अपनी सहमति भी दे दी।
राज्य सरकार ने सहमति के तुरंत बाद तमोर पिंगला अभ्यारण्य और बादलखोल सेमरसोत अभ्यारण्य को तो हाथी अभ्यारण्य घोषित कर दिया लेकिन प्रस्तावित लेमरू हाथी अभ्यारण्य के इलाके में ही बड़ी संख्या में कोयला खदानों के आवंटन के कारण इस पर चुप्पी साध ली।
कोयला खनन की चाहत से इस इलाके की परिभाषा बदलती रही। केंद्र सरकार के दस्तावेज़ों को देखें तो 2010 में कोयला मंत्रालय और वन पर्यावरण मंत्रालय ने देश के नौ कोयला प्रक्षेत्र के एक साझा अध्ययन के बाद हसदेव अरण्य के जंगलों की अति संपन्न जैव विविधता और पारिस्थितकी रुप से संवेदनशील पाया। और इस पूरे इलाके को ‘नो-गो एरिया’ घोषित कर दिया। फैसला लिया गया कि यहां कोयला खनन नहीं किया जाएगा।
लेकिन कुछ ही दिनों में कोयला खनन की ज़रुरतों का हवाला देकर ‘नो गो’ पर सरकार के भीतर ही सवाल उठने लगे। इसके कुछ दिनों के बाद ही 53 प्रतिशत हिस्से को ‘नो गो एरिया’ से बाहर कर दिया गया। साल भर बाद ‘नो गो एरिया’ का हिस्सा 47 प्रतिशत से घटा कर 29 प्रतिशत कर दिया गया।
जून-जुलाई 2014 में इस इलाके के 11.99 प्रतिशत हिस्से को निर्बाध क्षेत्र घोषित किया गया। घटते-घटते दिसंबर 2015 में इस इलाके का केवल 7 प्रतिशत हिस्सा ही निर्बाध क्षेत्र रह पाया। शेष इलाके को कोयला खदानों के लिए खोल दिया गया।
इधर 2018 में जब राज्य में सरकार बदली और इस इलाके में कोयला खदानों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर चुके भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हाथियों की बढ़ी हुई संख्या और पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से 15 अगस्त 2019 को, राज्य के 1995.48 वर्ग किलोमीटर इलाके में लेमरू हाथी अभ्यारण्य बनाने की घोषणा की और 27 अगस्त को मंत्रीमंडल ने इसकी मंज़ूरी भी दे दी।