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प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए रिसाइकल के साथ प्लास्टिक निर्माताओं की जिम्मेदारी भी करनी होगी तय

प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए रिसाइकल के साथ प्लास्टिक निर्माताओं की जिम्मेदारी भी करनी होगी तय
  • प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए रिसाइकलिंग यानी उसके बार-बार उपयोग को एक समाधान के रूप में देखा जाता है। हाल ही में 15वें वित्त आयोग ने देश के चार शहर पटना, अहमदाबाद, बैंगलुरु और वाराणसी में प्लास्टिक कचरा रिसाइकलिंग संयंत्र स्थापित करने की सिफारिश की है।
  • इस विषय पर काम करने वाले जानकार मानते हैं कि सिर्फ रिसाइकलिंग ही इस समस्या का समाधान नहीं है। इसके लिए कचरा पैदा करने वाली कंपनियों की जिम्मेदारी भी तय करनी होगी।
  • पर्यावरण मंत्रालय ने 11 मार्च, 2021 को इस वर्ष प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2021 का ड्राफ्ट जारी किया। नए नियमों के तहत प्लास्टिक पैदा करने वाली कंपनी को इसके निपटारे की जिम्मेदारी लेनी होगी।

बिहार की राजधानी पटना को जल्द ही प्लास्टिक कचरा के निपटारे के लिए रिसाइकलिंग प्लांट मिलने वाला है। 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में पटना के अलावा अहमदाबाद, बैंगलुरु और वाराणसी में भी ऐसे संयंत्र लगाने की सिफारिश की गयी है। इसको ध्यान में रखते हुए  सरकार ने संयंत्र लगाने की तैयारी शुरू कर दी है।

इस संयंत्र को डिजाइन करने और बनाने की जिम्मेदारी सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीआईपीईटी) की है। इसे लगाने में जो खर्च आएगा उसे पटना नगर निगम को वहन करना होगा। संयंत्र लगाने के लिए पटना के रामचक बैरिया गांव में पांच एकड़ की जमीन भी चिह्नित कर ली गयी है।

पटना में प्लास्टिक कचरे की समस्या दिन दोगुनी चार चौगुनी रफ्तार से बढ़ रही है। जनवरी 2015 में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की एक रिपोर्ट में पाया गया कि शहर में प्रतिदिन 220 मीट्रिक टन ठोस कचरा उत्पन्न हो रहा है। इस कचरे में से प्लास्टिक की मात्रा 57.25 किलोग्राम प्रति मीट्रिक टन है।

इसके अलावा ठोस कचरा सबसे बड़े रूप में पॉलीथिन बैग और पैकिंग के लिए बने पाउच के रुप में मिलता है। सीपीसीबी ने यह अध्ययन बैरिया में किया था।

वर्ष 2018-19 में एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि बिहार में 68,903.328 टन प्रति वर्ष प्लास्टिक कचरा पैदा होता है।

प्लास्टिक को दोबारा उपयोग लायक बनाने के लिए मशक्कत करती महिलाएं। तस्वीर- टेड मैथ्स/द एडवोकेसी प्रोजेक्ट/फ्लिकर
प्लास्टिक को दोबारा उपयोग लायक बनाने के लिए मशक्कत करती महिलाएं। तस्वीर– टेड मैथ्स/द एडवोकेसी प्रोजेक्ट/फ्लिकर

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 33 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्सर्जन वर्ष 2018-19 में हुआ था। मंत्रालय की रिपोर्ट कहती हैं कि इस कचरे का मुख्य उपयोग रिसाइकलिंग ही है। इसे सीमेंट के साथ मिलाकर सड़क निर्माण में भी दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है। हालांकि, इस रिपोर्ट में ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है जिससे रिसाइकल होने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा का अंदाजा लगाया जा सके।

शहरों के लिए कचरा प्रबंधन मुश्किल काम बनता जा रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी विकास विभाग ने कचरा प्रबंधन के लिए उचित व्यवस्था नही की है जिससे कचरे को इकट्ठा कर उसे इस कदर अलग किया जाए ताकि अधिक से अधिक रिसाइकल किया जा सके।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पॉलीथिन बैग पर लगी पाबंदी को लागू करने में भी राज्य नाकाम रहे हैं।

क्या सिर्फ रिसाइकलिंग से बनेगी बात?

समय-समय पर सरकारों ने प्लास्टिक कचरे को विभिन्न रासायनों के जरिए सड़कों का निर्माण में इसके इस्तेमाल की कोशिश करती रहीं हैं। हालांकि, इस क्षेत्र में शोध की कमी की वजह से यह कहना मुश्किल है कि सड़क निर्माण में इसका इस्तेमाल कितना कारगर है।

गुरुग्राम स्थित एक कंपनी री-प्लास्ट का दावा है कि इसने कोविड-19 माहामारी के दौरान करीब 30,000 टन प्लास्टिक कचरे का प्रयोग किया है।

“संस्था ने कई तरह की प्लास्टिक जैसे सिंगल यूज, मल्टी लेवल और वेल्यू प्लास्टिक को सफलतापूर्वक रिसाइकल कर कई तरह के टाइल्स बनाए हैं। इसका उपयोग मकान निर्माण में हो सकता है,” कहते हैं राजीव राणा जो री-प्लास्ट के संस्थापक हैं।

“फर्श पर बिछानेवाले ब्लॉक को बनाने के लिए कई तरह के प्लास्टिक को साथ मिलाया जाता है। इसका उपयोग खुले स्थानों की जमीन को ढकने के लिए किया जाता है। ये ब्लॉक भले ही प्लास्टिक से बने हो लेकिन आसानी से नहीं टूटते,” उन्होंने कहा।

हालांकि, विशेषज्ञ महसूस करते हैं कि सिर्फ रिसाइकलिंग ही कचरे की समस्या का समाधान नहीं है। अगर समस्या पर प्रभावी रूप से काबू पाना है तो प्रदूषण की जिम्मेवार कंपनियों को भी इसके समाधान में शामिल करना होगा। उनकी जवाबदेही निर्धारित करनी होगी।

गुरुग्राम की एक संस्था री-प्लास्ट ने अलग-अलग किस्म के प्लास्टिक कचरे को मिलाकर इस तरह के ब्लॉक बनाए हैं। इसे पेवमेंट ब्लॉक कहते हैं। तस्वीर- रोहिण कुमार
गुरुग्राम की एक संस्था री-प्लास्ट ने अलग-अलग किस्म के प्लास्टिक कचरे को मिलाकर इस तरह के ब्लॉक बनाए हैं। इसे पेवमेंट ब्लॉक कहते हैं। तस्वीर- रोहिण कुमार

“प्लास्टिक कचरे को पूरी तरह से दोबारा उपयोग में न लाने की समस्या सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों में ही है। पिछले 70 वर्ष में बने प्लास्टिक का 90 फीसदी हिस्सा दोबारा उपयोग लायक नहीं बनाया जा सका। जिन कंपनियों में प्लास्टिक भारी मात्रा में बनता है उनके पास उसे वापस लेने का कोई कारगर तरीका नहीं है। इस समस्या के समाधान में ऐसी बड़ी कंपनियों को भी शामिल करना होगा। इसके लिए कड़े कानूनों की जरूरत होगी,” पर्यावरणविद् और सिंगरौली फाइल्ड नामक पुस्तक के लेखक अविनाश चंचल ने कहा।

“भारी मात्रा में प्लास्टिक उत्पादन करने वाले बड़े उद्योग घरानों को सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन में कमी करनी चाहिए। कंपनियों को दोबारा उपयोग हो सकने लायक प्लास्टिक बनाने पर जोर देना चाहिए और एक बार उपयोग के बाद वापस प्लास्टिक कंपनी तक कैसे पहुंचे इसका ढांचा बनाना चाहिए,” चंचल ने कहा।

 क्या कहता है प्लास्टिक का नया नियम

11 मार्च को पर्यावरण मंत्रालय ने नए प्लास्टिक नियम को संशोधित कर एक ड्राफ्ट जारी किया है। नए नियम का दायरा बढ़ाकर इसमें प्लास्टिक बनाने वाली कंपनियों को भी शामिल किया गया है। प्लास्टिक  कचरे को दोबारा उपयोग में लाने के लिए नियम में नई परिभाषाएं भी शामिल की गई हैं। नियम के मुताबिक वर्ष जनवरी 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक के निर्माण, आयात, स्टॉक और बेचने पर पाबंदी लगा दी जाएगी। इस ड्राफ्ट पर 11 मई तक नागरिकों के सुझाव मांगे गए हैं।

भारत में पहली बार प्लास्टिक कचरा प्रबंधन कानून 1999 में बना था। इसमें 20 माइक्रॉन और इससे अधिक पतले पॉलीथिन बैग पर प्रतिबंध लगाया गया था। इस कानून को वर्ष 2003 में संशोधित किया गया था और प्लास्टिक बनाने वाली कंपनियों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तहत लाया गया था। बढ़ते प्लास्टिक कचरे को देखते हुए वर्ष 2011 में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन और रखरखाव नियम लागू किया गया। इस नियम में प्लास्टिक के उपयोग पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गयी।  हालांकि, यह कानून कागजों तक ही सिमट कर रहा गया।

ग्रीनपीस ने पटना में जल स्रोतों के किनारे प्लास्टिक कचरा हटाने के लिए सफाई अभियान चलाया। तस्वीर- सागनिक पॉल/ग्रीनपीस
ग्रीनपीस ने पटना में जल स्रोतों के किनारे कचरा हटाने के लिए सफाई अभियान चलाया। तस्वीर- सागनिक पॉल/ग्रीनपीस

स्वच्छ भारत अभियान के तहत में कचरे को लेकर काफी बातें हुई। पर्यावरण मंत्रालय ने वर्ष 2016 में एक नियम बनाया जिसमें प्रदूषक के ऊपर कचरा प्रबंधन मे हुए खर्च का भुगतान करने का नियम था।

इन नियमों के क्रियान्वयन को लेकर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में वर्ष 2019 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक जवाब दाखिल किया। इसमें कहा गया कि राज्य सरकारें ठोस कचरा प्रबंधन को लेकर उठाए गए कदमों की जानकारी नहीं साझा कर रही है।

“पॉलीथिन की थैलियों पर प्रतिबंध के बावजूद कई राज्य इसे लागू नहीं कर पा रहे हैं।  कचरे के रिसाइकल करने के बजाए जलाया भी जा रहा है,” प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है।

जवाब में कहा गया कि 18 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने पॉलीथिन पर पूर्ण प्रतिबंध तो 5 राज्यों ने आंशिक प्रतिबंध लगाया हुआ है।

समस्या के समाधान को लेकर पर्यावरणविद् विवेक श्रीवास्तव कहते हैं कि प्रतिबंध काम नहीं कर रहा है।

“प्लास्टिक बनाने वाली कंपनियों को स्ट्रॉ, थैली, बोतल आदि न बनाने को लेकर मनाने से लेकर लोगों को अपने स्तर पर भी प्लास्टिक उपयोग को सीमित करना चाहिए। बाजार इस समय सिंगल यूज प्लास्टिक से पूरी तरह उबरने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाया है,” उन्होंने कहा।


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बैनर तस्वीरः प्लास्टिक कचरा सबसे बड़े रूप में पॉलीथिन बैग और पैकिंग के लिए बने पाउच के रुप में मिलता है। तमाम कोशिशों के बाद भी पॉलीथिन बैग पर कारगर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सका है। प्रतीकात्मक तस्वीर– मेलिसा कूपरमैन / आईएफपीआरआई/फ्लिकर

 

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