Site icon Mongabay हिन्दी

पानी में बिना किसी टकराव के कैसे साथ रह लेते हैं घड़ियाल और मगरमच्छ

सज्जनगढ़ बायोलाजिकल पार्क, उदयपुर में आराम करता एक मगरमच्छ

सज्जनगढ़ बायोलाजिकल पार्क, उदयपुर में आराम करता एक मगरमच्छ

  • घड़ियाल और मगरमच्छ दोनों को पानी में रहना पसंद है, लेकिन साथ रहते हुए भी उनके बीच टकराव नहीं होता। आखिर यह कैसे संभव हो पाता है!
  • पहले इसको लेकर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी। हालांकि, अब पता चला है कि आराम फरमाने और अंडों की सुरक्षा के लिए दोनों प्रजाति अलग-अलग स्थानों को चुनते हैं। इससे टकराव की स्थिति नहीं उत्पन्न होती।
  • एक अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि घड़ियाल जहां आराम करने के लिए पानी के बीच बने टापू पसंद करते हैं। वहीं मगरमच्छ नदी की कछार पर बने ढलान पर लेटना पसंद करते हैं।

जब दो बराबर के जीवों का ठिकाना एक ही हो। आमना-सामना होता हो और मौजूदा संसाधनों में दोनों को हिस्सा चाहिए हो तो टकराव होना सामान्य हो जाता है। इस दृष्टि से पानी में रहने वाले दो जीवों- घड़ियाल और मगरमच्छ- को देखें तो अनायास यह सवाल उठता है कि आखिर इनके बीच टकराव क्यों नहीं होता!

इस सवाल के तह में जाने पर स्पष्ट हुआ कि मगरमच्छ और घड़ियाल की आदतें भिन्न-भिन्न हैं। इसलिए इनमें टकराव की स्थिति नहीं उत्पन्न होती। 

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूडब्ल्यूआई) से जुड़े शोधकर्ताओं ने उत्तरप्रदेश स्थित कतरनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य में रहने वाले मगरमच्छ और घड़ियालों पर अध्ययन कर इसे जानने की कोशिश की। इस अध्ययन में स्पष्ट हुआ कि दोनों जीवों का एक जैसा रहवास होने के बावजूद इनको रहने और प्रजनन इत्यादि के लिए पसंदीदा जगहें भिन्न हैं। 

कतरनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य नेपाल से सटे उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती इलाके में स्थित है।

इन दोनों जीवों के टकराव से पहले यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि इनदोनों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) का मानना है कि घड़ियाल (Gavialis gangeticus) गंभीर रूप से खतरे में हैं। यह उत्तरी भारत का स्थानीय जीव है। मुंह पर मिट्टी के घड़े जैसा आकार होने की वजह से भी इन्हें घड़ियाल कहा जाता है।

वहीं लंबे थूथन वाले  मगरमच्छ की प्रजाति भी विलुप्ति का खतरा झेल रही है। ये भारत के अलावा पाकिस्तान और दक्षिण ईरान में भी पाए जाते हैं।

टकराव नहीं होने के इस निष्कर्ष पर पहुंचने वाले इस शोध में सह-लेखक की भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक बीसी चौधरी कहते हैं कि ऐतिहासिक रूप से दोनों जीव भारत के उत्तरी भाग में स्थित नदियों- गंगा, चंबल, सोन, रामगंगा और गिरवा (गेरुआ) तथा पूर्वी भाग की नदियां जैसे महानदी में साथ रहते आए हैं। फिर भी इनमें टकराव नहीं होता। चौधरी डब्ल्यूडब्ल्यूआई के इनडेंजर्ड स्पीशीज़ मैनेजमेन्ट डिपार्ट्मन्ट से सेवानिवृत्त हुए हैं।

“घड़ियाल मूल रूप से मछली खाना पसंद करते हैं। इसके विपरीत मगरमच्छ का भोजन विस्तृत और विविधताओं से भरा होता है। प्राकृतिक वातावरण में मगरमच्छ की तुलना में घड़ियाल की आबादी अधिक है,” चौधरी ने कहा।

चौधरी ने बताया कि यहां दोनों जीवों के संरक्षण का काम चला जिसके बाद इनकी संख्या में इजाफा हुआ। इसी प्रयास में यह भी जानने का मौका मिला कि इन दोनों जीव के व्यवहार में अंतर क्या है!

कतरनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य में एक नर घड़ियाल आराम फरमाता हुआ। तस्वीर- बीसी चौधरी
कतरनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य में एक नर घड़ियाल आराम फरमाता हुआ। तस्वीर- बीसी चौधरी

एक गलती से शुरू हो गया मगरमच्छ संरक्षण

“शुरुआती कुछ वर्ष संरक्षण के माध्यम से घड़ियाल की आबादी बढ़ाई गई। कुछ समय बाद नदी के किनारे घड़ियाल के अंडों को इकट्ठा कर कृत्रिम तरीके से उनका निषेचन किया जाने लगा। इस दौरान शोधकर्ताओं ने गलती से मगरमच्छ के अंडे भी इकट्ठा कर लिए और उनका भी निषेचन हो गया। जब मगरमच्छ बड़े हुए तो उनको फिर पानी में छोड़ा गया,” चौधरी ने बताया।

“मगरमच्छ नए माहौल में खुद को तेजी से ढाल लेते हैं इसलिए उनकी आबादी घड़ियाल से अधिक है। 1980 के बाद से इस केंद्र में मगरमच्छ का संरक्षण भी होता आ रहा है,” उन्होंने कहा।

शोधकर्ता मगरमच्छ और घड़ियाल के आपसी रिश्तों के बारे में अधिक नहीं जानते थे। चौधरी ने शिखा चौधरी, गोविंधन वीरास्वामी गोपी के साथ मिलकर अप्रैल 2011 के बाद शोध करना शुरू किया। गिरवा नदी के 14 किलोमीटर लंबे कछार पर उन्होंने यह शोध शुरू किया। गिरवा नदी जिसे गेरुआ नदी के नाम से भी जाना जाता है, नेपाल से बहकर कतरनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य तक आती है। इस नदी में घड़ियाल और मगरमच्छ दोनों निवास करते हैं। शोधकर्ताओं ने नदी की कछार पर ढलान, ऊंचाई, मिट्टी में नमी आदि का ध्यान रखकर अपना शोध क्षेत्र चुना।


और पढ़ें: दशकों बाद पंजाब की नदी में फिर नजर आ रहे घड़ियाल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का भी योगदान


एक ही निवास में रहने का अलग अलग स्थान

शोधकर्ताओं ने पाया कि सर्दी और गर्मी में घड़ियाल नदी के बीच बने रेत के टापू पर पसरकर पड़े रहते हैं। वहीं, मगरमच्छ नदी के किनारे आराम फरमाना पसंद करते हैं। नदी के किनारे का ढलान उन्हें पसंद आता है।

शोधकर्ता मानते हैं कि घड़ियाल के पांव कमजोर होते हैं जिस वजह से उन्हें ढलान पसंद नहीं आता होगा।

“मगरमच्छ ऊंचाई पर चढ़ सकते हैं, लेकिन घड़ियाल ऐसे नहीं करते। घड़ियाल को रेंगना पसंद है,” इस अध्ययन की मुख्य लेखिका शिखा चौधरी कहती हैं।

“घड़ियाल का रंग हल्का होता है इसलिए उनके शरीर को अधिक गर्मी चाहिए। रेत के टीलों पर बाहर से गर्मी और भीतर से ठंडक की वजह से उन्हें अधिक आनंद मिलता है,” चौधरी कहती हैं।

इसके विपरीत मगरमच्छ को मिट्टी और दलदल में भी आराम फरमाते देखा जा सकता है। अंडा देने के लिए भी घड़ियाल और मगरमच्छ की पसंद अलग-अलग है।

दोनों प्रजाति के मादा जीव गर्म मौसम में ही अंडे देती हैं। घड़ियाल पानी के नजदीक अंडा देते हैं, जबतकि मगरमच्छ पानी से दूर ढलान वाले स्थान पर अपना अंडा देते हैं।

चौधरी इसकी संभावित वजह के बारे में बताते हुए कहते हैं कि घड़ियाल अपने शिशु को पानी में ले जाने में मदद करते हैं, जबकि मगरमच्छ के बच्चे अंडे से निकलकर पानी तक रेंगकर पहुंच जाते हैं।

कतरनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य में आराम फरमाती मादा घड़ियाल। अंडा देने से पहले वह इलाके का कई बार मुआयना करती हैं। तस्वीर- शिखा चौधरी
कतरनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य में आराम फरमाती मादा घड़ियाल। अंडा देने से पहले वह इलाके का कई बार मुआयना करती हैं। तस्वीर- शिखा चौधरी

मगरमच्छ की तुलना में घड़ियाल पर अधिक खतरे

इस अध्ययन से पता चलता है कि घड़ियाल अपने रहने और अंडा देने का स्थान बड़ी सावधानी से चुनते हैं। वहीं, मगरमच्छ इस मामले में उतने चौकन्ने नहीं होते।

“यह शोध काफी रोचक है। इससे पता चलता है कि एक ही नदी में घड़ियाल और मगरमच्छ को अलग-अलग तरह का माहौल चाहिए,” लाला एके सिंह, केंद्रीय मगरमच्छ प्रजनन और प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान के पूर्व ऑफिस इंचार्ज कहते हैं। वे इस शोध का हिस्सा नहीं हैं।

सिंह ने कहा कि घड़ियाल के इलाके में मगरमच्छ की संख्या बढ़ रही है। “पिछले तीस वर्षों में मगरमच्छ दिखने के मामले में 10 गुना अधिक बढ़ोतरी हुई है। वहीं, घड़ियाल दिखने के मामले में सिर्फ दो गुना बढ़ोतरी हुई है” सिंह ने बताया।

 

बैनर तस्वीर: सज्जनगढ़ बायोलाजिकल पार्क, उदयपुर में आराम करता एक मगरमच्छ। तस्वीर– जैकब हलून/विकी मीडिया कॉमन्स

Exit mobile version