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कोविड के साथ राष्ट्रीय कार्यक्रम से जैव-विविधता और इसके संरक्षण की बढ़ी उम्मीद

कोविड के साथ राष्ट्रीय कार्यक्रम से जैव-विविधता और इसके संरक्षण की बढ़ी उम्मीद

कोविड के साथ राष्ट्रीय कार्यक्रम से जैव-विविधता और इसके संरक्षण की बढ़ी उम्मीद

  • भारत सरकार राष्ट्रीय जैव विविधता और मानव कल्याण मिशन के माध्यम से देश की समृद्ध जैव-विविधता और इसके संरक्षण को मुख्य धारा में लाने के लिए प्रयासरत है ताकि वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और जागरूक नागरिकों का इसपर ध्यान बना रहे।
  • इस कार्यक्रम के तहत लोगो में जैव-विविधता के बारे में जानकारी और विलुप्तप्राय जीवों की स्थिति के बारे में समय रहते पता लगाने पर जोर दिया जाएगा। संरक्षण की गतिविधियां सिर्फ संरक्षित क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसे जन-जन तक पहुंचाया जाएगा।
  • इस कार्यक्रम के लागू होने के बाद जैव-विविधता का विज्ञान अपनी दूसरी शाखाओं के मुकाबके मुख्य धारा में आ सकता है। इसके जरिए कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन के समय टिकाऊ विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी।

जैव-विविधता वैसे तो हमारे जीवन को वृहत्तर तौर पर प्रभावित करती है पर आम-जन में इसकी चर्चा कम ही होती है। जब से कोरोना महामारी ने इंसानी समाज को अपने चपेट में लिया है सामान्य जन को जैव-विविधता का महत्व समझ में आने लगा है। इस समझ को और समृद्ध बनाने तथा जैव-विविधता की बारीकियों को लोगों तक पहुंचाने के लिए ‘राष्ट्रीय जैव-विविधता और मानव कल्याण मिशन’ के नाम से एक योजना की शुरुआत हो रही है। इस मिशन का उद्देश्य संरक्षण को भारतीय मुख्य धारा में लाना है ताकि यह विषय वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और जागरूक नागरिकों के बीच, इस पर निरंतर विचार-विमर्श चलती रहे।

इस मिशन से संबंध रखने वाले संरक्षण जीवविज्ञानी और पर्यावरणविद् मानते हैं कि इस तरह के कार्यक्रम से देश में संरक्षण की कोशिशों को बल मिलेगा और टिकाऊ विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी। उनका मानना है कि इस मिशन को महज संरक्षित क्षेत्र तक सीमित नहीं किया गया है बल्कि इसे आम जन तक पहुंचाने की कोशिश रहेगी।

भारत विश्व के 8 प्रतिशत जैव-विविधता को समेटे हुए है, जबकि क्षेत्रफल के मामले में यह पूरी दुनिया का मात्र 2.3 प्रतिशत है। विश्व के 36 जैव-विविधता हॉटस्पॉट में से चार स्थान भारत में पाए जाते हैं। भारत की जैव-विविधता देश भर में इस कदर फैली हुई है कि इससे देश की आर्थिक समृद्धि भी है। वर्ष 2018 में भारत के जंगलों का मोल 12800000 करोड़ रुपए आंकी गयी थी।

मोंगाबे-हिन्दी को मेल के जरिए बताते हुए इस मिशन के एक सदस्य ने बताया कि देश की इस समृद्ध जैव-विविधता के बावजूद देश के लोग इस विविधता को कम ही जानते हैं। इस मिशन को देश के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ने वर्ष 2019 में सीड ग्रांट यानी इसे शुरू करने हेतु कुछ राशि दी है।

मध्यप्रदेश के आदिवासी समाज के लोग यहां के जंगलों की विविधता बचा रहे हैं। तस्वीर- सहाना घोष
मध्यप्रदेश के आदिवासी समाज के लोग यहां के जंगलों की विविधता बचा रहे हैं। तस्वीर- सहाना घोष

कोविड-19 महामारी की वजह से यह मिशन जरा देर से शुरू हो सकता है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग में इसे लेकर तैयारियां चल रही हैं।

इस मिशन के दो हिस्से होंगे। इसके केंद्र में नेशनल इनिशिएटिव फॉर सस्टेंड एसेसमेंट ऑफ रिसोर्सेज गवर्नेंस है, जो कि देश की जैव-विविधता का दस्तावेजीकरण करेगा। मिशन का दूसरा हिस्सा टिकाऊ विकास के लक्ष्यों की पूर्ति की दिशा में काम करेगा।

मिशन के तहत कृषि से संबंधिक विविधता, घास के मैदानों की विविधता, जंगल, वेटलैंड्स सहित कई जैव-विविधताओं पर ध्यान दिया जाएगा। इसके तहत कई तरह के शोध किए जाएंगे।

इस मिशन को लेकर पर्यावरण भूगोलविद् रूथ डेफ्रीज़ जो कि इसका हिस्सा नहीं हैं, कहते हैं, “इस तरह का प्रयास काफी सराहनीय है। इसमें मनुष्यों की भलाई के साथ आसपास के वातावरण की चिंता भी की गई है।”

“खेती से लेकर शुद्ध पानी सुनिश्चित करना और स्वस्थ्य जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए विविधता वाला वातावरण जरूरी है,” डेफ्रीज़ ने कहा।

पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली की तरफ एक कदम

भारत अपने प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल को सतत और टिकाऊ बनाए रखने में काफी चुनौतियों को झेल रहा है, यह कहना है मिशन से जुड़े सदस्यों का।

इन चुनौतियों में अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 को प्रभावी रूप से और समय पर लागू करना शामिल है। इसके अलावा बंजर पड़ी जमीन, वेटलैंड्स और नदियों को पुनर्जीवित करना भी सरकार की बड़ी चुनौतियों में शामिल है। ये चुनौतियां कोविड-19 महामारी के समय काफी बड़ी हो जाती है।

संयुक्त राष्ट्र ने 2021-30 के लिए एक घोषणा की थी जिसमें इस दशक को पारिस्थितिकी तंत्र को पहले जैसा बनाने का लक्ष्य रखा गया है।

अर्बन गोल्डन-बैक फ्रॉग, मेंढक की एक प्रजाति है जो केवल केरल में दक्षिणी पश्चिमी घाट में पाई जाती है। तस्वीर- जीवन जोस/विकिमीडिया कॉमन्स
अर्बन गोल्डन-बैक फ्रॉग, मेंढक की एक प्रजाति है जो केवल केरल में दक्षिणी पश्चिमी घाट में पाई जाती है। तस्वीर– जीवन जोस/विकिमीडिया कॉमन्स

मिशन से जुड़े लोगों ने इस बात पर जोर दिया है कि भारत को आने वाले दशक में इस मौके का इस्तेमाल कर वैश्विक स्तर पर एक संदेश देना चाहिए। इस मिशन के तहत देश के लिए एक दिशानिर्देश तैयार करना, समुदाय को इस काम में शामिल करना और शुरुआत के लिए राशि का इंतजाम करना शामिल है।

“जैव-विविधता को वापस लाने की पहली कड़ी होती है हरियाली वापस लाना जिससे जीव-जंतुओं का रहवास सुनिश्चित होता है। एकबार आशियाना मिलने के बाद जंगल के जीव वापस आने शुरू हो जाते हैं। भारत में बढ़ते जनसंख्या की वजह से जंगल की जमीन और इंसानों के रहने वाले स्थान के बीच सामंजस्य की अधिक जरूरत होगी,” मिशन से जुड़े विशेषज्ञ विचार प्रकट करते हैं।

वे आगे कहते हैं, “बड़े स्तनधारी जीवों के संरक्षण के लिए उनके रहने और प्रजनन लायक माहौल तैयार किया जाता है, ताकि उनकी संख्या बढ़ सके। इस काम में एक जंगल को दूसरे से जोड़ने के लिए गलियारों का निर्माण भी जरूरी है।”


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विलुप्तप्राय जीवों की समय रहते पहचान

मिशन के तहत विलुप्त होने का खतरा आने से पहले ही ऐसे जीव व वनस्पति की पहचान की जा सके इसकी व्यवस्था की जाएगी। नागरिकों के लिए एक ऐसा पोर्टल बनाया जाएगा जिसमें औषधीय पौधे, पशुधन, फसलों के स्वास्थ्य और वन्यजीवों की जानकारी दी जाएगी। इससे जैव-विविधता की जानकारी के अभाव को पाटा जा सकेगा।

मिशन से जुड़े व्यक्तियों ने कोविड-19 के दौरान देश के लोगों में जैव-विविधता को लेकर उत्साह देखा है। लॉकडाउन के दौरान लोगों ने जैव-विविधता को लेकर कई कार्यक्रम चलाए। ऐसा ही एक कार्यक्रम आईची जैवविविधता लक्ष्य है। आईची लक्ष्य या टार्गेट का संबंध जैव-विविधता पर दबाव को कम करते हुए इसके लाभों को सभी में बढ़ाने से है। आईची लक्ष्य में मुख्य रूप से पांच रणनीतिक लक्ष्य हैं। ये लक्ष्य हैं जैव-विविधता नुकसान के कारणों को समझना, जैव-विविधता पर प्रत्यक्ष दबाव को कम करना व सतत उपयोग को बढ़ावा देना, प्रजातियों एवं अनुवंशिक विविधता की सुरक्षा कर जैव-विविधता को समृद्ध करना इत्यादि। 

 

बैनर तस्वीर: छिपकली की एक खास प्रजाति ब्रुक हाउस छिपकली को शोधकर्ता डॉ. राजू कसंबे ने महाराष्ट्र के अंबोली में अपने कैमरे में कैद किया। तस्वीर– डॉ. राजू कसंबे/विकिमीडिया कॉमन्स 

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