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ताउते के बाद अब यास तूफान ने मचाई तबाही, बढ़ता तापमान बढ़ा रहा मुसीबत

  • ताउते के बाद भारत में चक्रवाती तूफान यास ने तबाही मचाई। तूफान से पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में कम से कम 14 लोगों की जान गई है और करोड़ों की संपत्ति बर्बाद हुई।
  • तूफान ने न सिर्फ इंसानों पर कहर बरपाया है बल्कि इसका असर जीव-जंतुओं पर भी हुआ है। कोलकाता में दुर्लभ कछुआ नॉर्दन रिवर टेरापिन और मगरमच्छ के लिए बने संरक्षण केंद्र में भी तूफान की वजह से नुकसान हुआ है।
  • जानकार मानते हैं कि समुद्र का तापमान बढ़ने की वजह से चक्रवाती तूफान का रौद्र रूप देखने को मिल रहा है। एक ही सप्ताह के भीतर ताउते और यास ने देश में काफी नुकसान किया है।

पश्चिम बंगाल की बुजुर्ग महिला शिल्पा गायेन का घर चक्रवाती तूफान यास ने उजाड़ दिया। 26 मई 2021 को हवा के तेज थपेड़ों को उनका कच्चा घर सह नहीं पाया और भरभराकर गिर गया। यास तूफान पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और झारखंड में शिल्पा की तरह अनेकों लोगों के जीवन में तबाही लेकर आया।

साठ वर्ष की शिल्पा गायेन पारुलपारा गांव की निवासी है जो कि रुपनारायण नदी से कुछ ही किलोमीटर दूर है। यह नदी पूर्वी मिदनापुर और हावड़ा जिले की सीमा पर बहती है।

पिछले तीन दिनों से बेघर शिल्पा गांव के सरकारी स्कूल में शरण लेकर रह रही हैं। वहां उनके पानी और खाने का इंतजाम गांव के दूसरे लोगों ने किया है। तूफान तो थम गया लेकिन तूफान की तबाही का मंजर उनकी आंखों के सामने अब भी घूम रहा है। “मैं बिस्तर पर आराम कर रही थी, तभी तेज आंधी उठी जिससे मेरी नींद खुली। मैंने पाया कि मेरे सर पर छत नहीं और घर के भीतर तक पानी घुस आया है। कुछ ही मिनट के भीतर मेरा कच्चा घर ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। मेरी सारी जमा पूंजी और महत्वपूर्ण दस्तावेज पानी के साथ बह गए,” वह कहती हैं।

यही आपबीती पूर्वी तट से करीब स्थित इन राज्यों के सैकड़ों लोगों की है जिनका घर तूफान के थपेड़े न सह सका। चक्रवाती तूफान यास की वजह से ओडिशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड के साथ-साथ बिहार के भी कुछ क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। यहां करोड़ों की संपत्ति और जान-माल का नुकसान हुआ है।

तूफान के बाद बेघर हुई शिल्पा गायेन। उन्हें कई दिनों तक सरकारी स्कूल में बने शरणस्थली में रहना पड़ा। तस्वीर- ऋग दास
तूफान के बाद बेघर हुई शिल्पा गायेन। उन्हें कई दिनों तक सरकारी स्कूल में बने शरणस्थली में रहना पड़ा। तस्वीर- ऋग दास

भारत ने झेली दो तूफानों की तबाही

यास एक ही सप्ताह के भीतर आया दूसरा चक्रवाती चूफान है। इससे पहले पश्चिमी तट पर ताउते तूफान ने जान-माल का काफी नुकसान किया था। 

17 मई 2021 को ताउते ने अपना रंग दिखाना शुरु किया। इसी दौरान भारतीय मौसम विभाग ने बंगाल की खाड़ी में कम दबाव का क्षेत्र बनने की चेतावनी जारी की। इस कम दबाव की वजह से पैदा हुआ तूफान यास। ओडिशा के धमरा में 26 मई की सुबह 10.30 से 11.30 के बीच तूफान ने तट को छूआ। तूफान की रफ्तार करीब 130 से 140 किलोमीटर प्रति घंटा थी जो कि आगे बढ़कर 155 किमी प्रति घंटे तक पहुंच गयी।

तूफान जब तट से टकराया भी नहीं था तब से ही पश्चिम बंगाल के दीघा घाट पर इसकी ताकत देखी जा सकती थी। समुद्र की उठती लहरें बता रही थी कि तूफान काफी शक्तिशाली है। हुगली नदी में तटबंध टूटने के कारण बंगाल के औद्योगिक केंद्र हल्दिया में कई कारखाने जलमग्न हो गए। ज्वार-भाटा और समुद्री लहरों की वजह से कई नदियों में जल स्तर भी बढ़ गया।

हैम रेडियो के जरिए समन्वय से कम हुआ तूफान से नुकसान

पश्चिम बंगाल में पिछले वर्ष अंफान तूफान की वजह से इससे भी अधिक तबाही मची थी। हालांकि, इस वर्ष यास के आने से पहले ही कई तैयारियां कर लगी गई थी, जिससे नुकसान अपेक्षाकृत कम हुआ। यास तूफान में कम से कम 14 लोगों की जानें गईं जिसमें पश्चिम बंगाल (4), ओडिशा (6) और झारखंड (4) लोग शामिल हैं। तीनों राज्य सरकारों ने तूफान पूर्व तैयारी के दौरान तकरीबन 20 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया था।

इस काम में इन राज्यों के गैर-लाभकारी संस्थाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

बचाव कार्य में सबसे अधिक चर्चा में रही उच्च फ्रिक्वेंसी वाले हैम रेडियो। हैम रेडियो चलाने वाले कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि इस तकनीक की वजह से बेहतर समन्वय हो सका और तकरीबन 2,000 लोगों की जान बचाई जा सकी।

“हमने 42 बेस रेडियो स्टेशन स्थापित किए थे। इन स्टेशन का संपर्क अलग-अलग जिलों के प्रशासनिक दफ्तर तक था। हमने समन्वय के लिए मोबाइल रेडियो स्टेशन भी स्थापित किए थे जो कि कार, बोट आदि पर लगाए गए थे। वहां से हमारे कार्यकर्ता जमीनी स्थिति की जानकारी देते जो कि हमारे रेडियो स्टेशन प्रशासन को देते। इस तरह राहत कार्य में तेजी आई,”कहते हैं अंबरिश नाग बिस्वास, जो वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब के संस्थापक हैं।

“हमने कोविड-19 के लक्षण वाले और सर्पदंश वाले मरीजों का अस्पताल पहुंचाया। डिजास्टर मैनेजमेंट ग्रुप के अधिकारियों के साथ काम करते हुए हमने 2,000 लोगों की जान बचाई होगी,” उन्होंने कहा।

दक्षिण 24 परगना जिले में बाढ़ में फंसे लोगों को बचाव दल ने सुरक्षित निकाला। तस्वीर- वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब
दक्षिण 24 परगना जिले में बाढ़ में फंसे लोगों को बचाव दल ने सुरक्षित निकाला। तस्वीर- वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब

आजीविका और कृषि का नुकसान

सरकार और गैर-लाभकारी संस्थाओं की कोशिशों ने काफी लोगों की जान बचाई, लेकिन खेती, घर और रोजगार का नुकसान होने से रोकना नामुमकिन था।

हावड़ा के पास कमलपुर गांव की निवासी अर्चना सामंत (28) कहती हैं इस तूफान में उनके मवेशी बह गए। “तूफान से अधिक तबाही समुद्र की उठती लहरों की वजह से हुई। पानी गांव में घुस आया और बाढ़ जैसे हालात बन गए। सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि हमें संभलने का मौका ही नहीं मिला। हमारी बकरियां, मुर्गियां और अन्य मवेशी पानी के साथ बह गए। हमारे सरकारी दस्तावेज भी पानी के साथ चले गए। हमारी जान तो बच गई लेकिन रोजगार के अभाव में हम कैसे जीवित रह पाएंगे,” वह कहती हैं।


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खेत को भी पानी से काफी नुकसान हुआ है। खेती की जमीनों में समुद्र का खारा पानी भर आया। कुछ स्थानों पर नदी का तटबंध भी टूट गया। “मेरे खेत में सब्जियां लगी हुई है। उन्हें जल्दी तोड़कर बाजार ले जाने वाला था। खेत में समुद्र का खारा पानी भर आया जिससे सब्जी तबाह हो गई। अब मेरे पास कुछ नहीं बचा। सामाजिक संस्थाओं के द्वारा दिए खाने पर जीवित हूं,” ओडिशा के बालासोर  जिले के रंजीत दास (45) ने कहा।

पश्चिम बंगाल में पूर्वी मिदनापुर, दक्षिण 24 परगना और ऊत्तर 24 परगना जिला तूफान और समुद्र की लहरों से आई बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित रहा। ओडिशा के बालासोर और भद्रक जिले के सैकड़ों गांव भी इससे प्रभावित हुए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मई को इन स्थानों का हवाई सर्वेक्षण किया और एक हजार करोड़ रुपए की राहत राशि आवंटित की।

वन्यजीवों पर खतरा

इस तूफान का असर सुंदरबन के वन्यजीवों पर पड़ने की आशंका है। ज्वार-भाटा  और लहरों की वजह से टाइगर रिजर्व क्षेत्र में पानी घुस आया। यहां मौजूद मगरमच्छ और दुर्लभ प्रजाति के कछुओं के संरक्षण क्षेत्र में भी पानी घुस आया।

बाघ इंसानी आबादी में न घुस आएं इसलिए नायलॉन से बने जाल लगाए गए हैं। तूफान से ये जाल भी कई स्थानों पर टूट गए हैं।

“चक्रवाती तूफान अंफान के बाद पिछले वर्ष मैंग्रोव लगाने के लिए एक मुहीम चल रही थी। इसका मकसद ऐसे तूफानों से बचाव था। यास तूफान की वजह से इस मुहीम को भी धक्का लगा है। हमने 200 नॉर्दन रिवर टेरापिन दुर्लभ कछुआ को संरक्षण केंद्रों में रखा था। इसमें से मुश्किल से 4-5 बचाए जा सके, पश्चिम बंगाल के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन विनोद कुमार यादव कहते हैं। उन्होंने बताया कि मगरमच्छ संरक्षण केंद्र में भी खारा पानी घुस आया। “दक्षिण 24 परगना जिले में 300 मगरमच्छों को संरक्षण केंद्र में रखा गया है। वहां भी काफी नुकसान हुआ है। हालांकि, सभी मगरमच्छ सुरक्षित हैं,” वह कहते हैं।

सुंदरबन के मौसुनी में तटबंध टूटने के बाद बाढ़ का पानी घुस आया। तस्वीर- वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब
सुंदरबन के मौसुनी में तटबंध टूटने के बाद बाढ़ का पानी घुस आया। तस्वीर- वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब

गर्म होते समुद्र से बढ़ रही मुसीबत

जलवायु वैज्ञानिक मानते हैं कि समुद्र का तापमान बढ़ रहा है जिसकी वजह से ताउते और यास जैसे तूफान देखने को मिल रहे हैं।

“बंगाल की खाड़ी में तूफान तो आते रहते हैं, लेकिन अब अरब सागर में भी ऐसा हो रहा है। इसकी वजह समुद्र का बढ़ता तापमान है। दोनों तूफान समुद्र की सतह का तापमान 32 डिग्री सेल्सियस होने की वजह से पैदा हुए हैं। आने वाले समय में ऐसे तूफानों की पुनरावृत्ति बढ़ने की आशंका है,” कहते हैं रॉक्सी मैथ्यू कोल जो भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक हैं।

“कई अध्ययन से पता चलता है कि भयानक तूफान जो कभी सदी में एकबार आते थे, अब हर पांच से 10 वर्ष में आने लगेंगे। साल 2100 तक ऐसा हो सकता है,” वह कहते हैं।

 

बैनर तस्वीरः पूर्वी मिदनापुर जिले में तूफान के दौरान समुद्र में आए ज्वार-भाटे से खारा पानी कई इलाकों में घुस आया।  पश्चिम बंगाल में पूर्वी मिदनापुर, दक्षिण 24 परगना और ऊत्तर 24 परगना जिला तूफान और समुद्र की लहरों से आई बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित रहा। तस्वीर- वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब

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