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[कॉमेंट्री] लक्षद्वीप के अनकहे संकट

लक्षद्वीप की कोरल रीफ या प्रवाल समूह को समुद्र का पानी गर्म होने की वजह से सफेद होते हुए देखा जा रहा है। इसका मतलब प्रवाल भित्तियां बीमार हो रही हैं। तस्वीर- रोहन आर्थर

लक्षद्वीप की कोरल रीफ या प्रवाल समूह को समुद्र का पानी गर्म होने की वजह से सफेद होते हुए देखा जा रहा है। इसका मतलब प्रवाल भित्तियां बीमार हो रही हैं। तस्वीर- रोहन आर्थर

  • लक्षद्वीप को विकास की सख्त जरूरत है पर इन विकास की परियोजनाओं को जलवायु परिवर्तन के नजरिये से देखना होगा।
  • तकरीबन 70 हजार लोगों की आबादी वाला लक्षद्वीप भले ही पर्यटकों के लिए स्वर्ग की तरह दिखता हो, लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है ।
  • पिछले कुछ दिनों मे सरकार की तरफ से लक्षद्वीप के विकास को लेकर ऐसी योजनाओं का प्रस्ताव आया है जिससे यहां के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होने की, और यहां के नागरिकों के अधिकारों का हनन होने की संभावना है, लिखते हैं रोहन आर्थर।
  • इस कॉमेंट्री में व्यक्त विचार लेखक के हैं।

लक्षद्वीप में चल रहे ताजा घटनाक्रमों के बीच एक ऐसी त्रासदी धीरे-धीरे इस जगह को प्रभावित कर रही है, जिससे आने वाले दिनों में इन द्वीपों पर मनुष्य का निवास मुश्किल हो सकता है। समय के साथ गाढ़ी होती यह त्रासदी, विकास की तमाम परियोजनाओं पर ढेरों सवाल खड़े करती है। हाल ही में आए नियम इस त्रासदी को और गंभीर बना सकते हैं। यहां मैं जिस त्रासदी की बात कर रहा हूं वह है जलवायु परिवर्तन। इसको देखते हुए लक्षद्वीप द्वीप समूह के लिये समय बहुत कम है और इस कम समय में हम कौन से कदम उठाते हैं उस पर द्वीपसमूह का और द्वीपसमूह के नागरिकों का अस्तित्व निर्भर करेगा। 

मैं उनमें से नहीं हूं जो हर वक्त विनाश की भविष्यवाणी करता रहता है। मैंने पिछले बीस साल लक्षद्वीप के कोरल रीफ या प्रवाल भित्ति पर जलवायु परिवर्तन के असर को देखने-समझने में बिताये हैं। इस दौरान मैंने पारिस्थितिकी तंत्र को जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों से प्रभावित होते और उससे उभरते हुए भी देखा है।

1998 में पहली बार मैंने लक्षद्वीप की कोरल रीफ या प्रवाल समूह को, समुद्र का पानी गर्म होने की वजह से, सफेद होते हुए (बीमार होते हुए) देखा, तब मुझे लगा था कि अब ये प्रवाल समूह समाप्त हो जायेंगे और मैं आजीवन उनकी श्रद्धांजलि लिखता रहूंगा।

पर मैं गलत साबित हुआ। प्रवाल समूह को उभरने में कुछ साल लगे, पर उसके बाद बड़ी तेजी से वह स्वस्थ हो गये, और एक दशक के अंदर लगभग पूरा प्रवाल समूह स्वस्थ दिखने लगा। अगर कोई प्रकृति के साथ अधिक वक्त बिताता है तो प्रकृति उसकी जानकारी के अभिमान को मिटा देती है। ऐसा सोचना कि हमें प्रकृति की हर तरकीब पता है, काफी खतरनाक साबित हो सकता है।

लक्षद्वीप के बंगारम द्वीप के पास मृत कोरल। समुद्र के गर्म होने की वजह से इन प्रवाल भित्तियों की यह हालत हुई है। तस्वीर- रोहन आर्थर
बंगारम द्वीप के पास मृत कोरल। समुद्र के गर्म होने की वजह से इन प्रवाल भित्तियों की यह हालत हुई। तस्वीर- रोहन आर्थर

प्रवाल भित्तियों पर असर डाल रहा ग्लोबल वार्मिंग

अपनी इस क्षमता के बावजूद लक्षद्वीप के प्रवाल समूह इन दिनों मुश्किल में है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। 1998 के बाद से यहां के प्रवाल समूहों ने कम से कम दो बार ऐसी सामूहिक क्षति झेली है। समुद्र के लगातार गर्म होने की वजह से ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होने लगी है। और ऐसी घटनाओं के बीच का अंतराल भी घटने लगा है।

इन भूमंडलीय ऊष्मीकरण की घटनाओं के साथ बेमौसम तूफान की तीव्रता और उनकी आवृत्ति भी बढ़ रही है। ऐसी घटनाएं भी इसी जलवायु के बदलाव का हिस्सा है। ऐसी हर एक घटना प्रवाल भित्तियों की खुद को दुरुस्त कर दोबारा स्वस्थ होने की क्षमता को प्रभावित कर रही है। 1998 के बाद इनके उभरने की क्षमता में भारी गिरावट नजर आ रही है।

1998 के बाद और भी कई चीजों में बदलाव आया है। उन दिनों अधिक स्थानीय आबादी के बावजूद प्रवाल भित्तियों पर स्थानिक दबाव काफी कम था। पर 2014 के बाद से प्रवाल भित्तियों में पायी जाने वाली मछलियों का शिकार बड़े स्तर पर होना शुरू हो गया है। इस वजह से बड़ी शिकारी मछलियां और बड़ी शाकाहारी मछलियां इन प्रवाल भित्तियों से लुप्त हो रही हैं। ऐसी मछलियां प्रवाल भित्तियों के स्वास्थ्य का अविभाज्य घटक है। इस वजह से इन मछलियों का शिकार प्रवाल भित्तियों के लिए नुकसानदेह है।

क्यों महत्वपूर्ण हैं प्रवाल भित्तियां

जो प्रवाल भित्ति के साथ होता है वही पूरे द्वीप के साथ होता है। द्वीप पर रहने वाले लोग इन भित्तियों पर पूरी तरह से निर्भर है। इस निर्भरता को समझने के लिये हमें यह समझना होगा कि ये प्रवाल भित्तियां बनती कैसे हैं। प्रवाल भित्तियां, कोरल या मूंगा जीव का समूह है जो सूरज के प्रकाश की मदद से प्रकाश संश्लेषण कर समुद्री जल को अरगोनाइट नामक खनिज में बदलती है। इसके फलस्वरूप चट्टान का निर्माण होता है।

प्रवाल के जीवन चक्र की वजह से धीरे-धीरे भित्तियों का निर्माण होता है। कुदरती प्रक्रिया जैसे तूफान, समुद्री लहरें और प्रवाल खाने वाली प्रजातियों की वजह से भित्तियों में कटाव होता है। कटे हुए अरगोनाइट के टुकड़े इस प्रक्रिया में तट पर आते रहते हैं और टूटकर रेत में तब्दील हो जाते हैं। प्रवाल भित्तियों के बीचो बीच रेत का ढेर जमा हो जाता है और द्वीपों का निर्माण होता है। यही द्वीप मनुष्यों का ठिकाना है।

इसी प्रकार प्रवाल का जीवन चक्र किसी अरगोनाइट या सीमेंट फैक्ट्री जैसे काम करता है। अरगोनाइट बनने की प्रक्रिया अगर चलती रहती है तो यह प्रवाल से बनी हुई सुरक्षा दीवार द्वीप को बनाए रखती है। और समुद्र की बड़ी लहरों या तुफान के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित करती है। जलवायु परिवर्तन की वजह से द्वीप का यह रक्षा कवच बौना साबित हो रहा है। प्रवाल कि क्षति सहने की क्षमता अभी सबसे कम है और इस कुदरती फैक्ट्री के रुकने की संभावना बहुत बढ़ गयी है।

हमारे हाल ही के शोध में सामने आया है कि लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती में प्रवाल भित्ति के बनने की रफ्तार उनकी कटाई की रफ्तार से कम है। इसका मतलब यह हुआ कि अगले कुछ दशक में कवरत्ती में तट का कटाव तेज होगा और ताजे पानी का भंडार कम होगा। ओखी और ताउते जैसे तुफानो से भविष्य में नुकसान और बढ़ेगा। 

इस समय 32 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए लक्षद्वीप द्वीपों पर 70 हजार लोग रहते हैं। आने वाले कुछ समय में उनके सामने एक विकराल सवाल खड़ा होगा। आखिर वे लोग कब तक जलवायु की कठिन परिस्थितियों में इस जगह पर रह पाएंगे। इसकी पूरी संभावना है कि लक्षद्वीप के लोग जलवायु परिवर्तन की वजह से विस्थापन झेलने वाले भारत के पहले समूह हो जाएं।

लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती में प्रवाल भित्तियों के साथछ मछलियों का एक समूह। 2014 के बाद से प्रवाल भित्तियों में पायी जाने वाली मछलियों का शिकार बड़े स्तर पर होना शुरू हो गया है। तस्वीर- रोहन आर्थर
लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती में प्रवाल भित्तियों के साथ मछलियों का एक समूह। 2014 के बाद से प्रवाल भित्तियों में पायी जाने वाली मछलियों का शिकार बड़े स्तर पर होना शुरू हो गया है। तस्वीर- रोहन आर्थर

विकास की हर परियोजना की समीक्षा जरूरी

हम जलवायु के परिवर्तन को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। यह ऐसी सच्चाई है जिससे नजरे फेरना लापरवाही की श्रेणी में आएगा और यह भविष्य में नुकसानदायक साबित होगा।

जिस तरह की मुसीबतें लक्षद्वीप में आने वाली है उन से निपटने के लिए आज के हर निर्णय को उसी नजरिए से देखना होगा। पर्यावरण, मत्स्यपालन, पर्यटन, विकास किसी भी क्षेत्र की किसी भी योजना को, नियमों को इस जलवायु परिवर्तन और इससे जुड़े प्रतिरोध-क्षमता के नज़रिये से देखना ही होगा।

अगर हमें लक्षद्वीप को जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौती के लिए तैयार करना है तो सबको मिलकर इसके लिए प्रयास करना होगा। वह चाहे सरकार हो, सिविल सोसाइटी हो या यहां के रहने वाले लोग हों। पर इन मुद्दों पर यहां अजीब सी खामोशी व्याप्त है।

ऐसा लगता है कि जब भी लक्षद्वीप के भविष्य पर बातचीत होती है तब जलवायु परिवर्तन का मुद्दा कहीं गुम हो जाता है। हालांकि जलवायु परिवर्तन के लिए साल 2012 में बना लक्षद्वीप का एक्शन प्लान, जलवायु परिवर्तन के खतरों को स्वीकार करता है। लेकिन इस प्लान में सुझाए गए तरीके प्रकृति के हिसाब से ठीक विपरीत हैं। वास्तव में यह प्लान उन योजनाओं को प्रोत्साहित करता है जिनका मुख्य लक्ष्य अधिक से अधिक उत्पादन करना है। इससे वर्तमान की मुश्किलों में और इजाफा ही होना है। 

इस मामले में सन 2014 मे आए जस्टिस रवींद्रन कमेटी की रिपोर्ट में में कई बेहतरीन विचार सुझाये गये थे। इस रिपोर्ट में लक्षद्वीप और उसके समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की संवेदनशीलता का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था। इस रिपोर्ट में द्वीपसमूह की पारिस्थितिकी को बचाए रखने के लिए तथाकथित ‘विकास’ की एक सीमा तय करने की सिफारिश की गई थी।

पर विडंबना यह है कि इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद भी उसकी सिफारिशों को लगातार कमजोर ही किया गया है। नीति आयोग के द्वारा लक्षद्वीप को विकसित करने की ताजा योजना को देखते हुए ऐसा कहा जा सकता है कि जस्टिस रवींद्रन कमेटी की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। ऐसे में लक्षद्वीप को सुरक्षित रखने के लिए फिर से उन सीमाओं को पारिभाषित करने की जरूरत है ताकि ‘विकास’ के नाम पर लायी गयी तमाम योजनाओं से होने वाले नुकसान का अनुमान लगाया जा सके। 

लक्षद्वीप के विकास के लिए प्रस्तावित (ड्राफ्ट लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी रेगुलेशन ऑफ 2021) विकास के मॉडल को देखते हुए स्पष्ट होता है कि इस प्रस्ताव का पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से कोई लेना-देना नहीं है। इसमे विकास-सम्बंधित मूल-भूत संरचना, उचित शासन और दृढ़ योजनाओं की जरूरत पर बल दिया गया है। इस नए रेगुलेशन में ज़मीन के उपयोग संबंधी सभी निर्णयों को किसी एक संस्था के हाथ में केंद्रित करने की बात कही गयी है। वह संस्था अपनी सहज बुद्धि-विवेक से से द्वीपों के विकास की राह तय करेगी ।

रेगुलेशन एक तरफ प्रशासन का अधिकार क्षेत्र बढ़ा रहा है पर दूसरी तरफ लक्षद्वीप के नागरिकों को इस विकास की दशा-दिशा तय करने में कोई भूमिका नहीं होगी। इस योजना में कहीं जलवायु परिवर्तन का जिक्र हुआ भी है तो ऐसे कि कोई उसे गंभीरता से नहीं लेगा।

यही विकास की अवधारणा पिछले 70 सालों से सरकार-दर-सरकार चली आ रही है। हर सरकार लक्षद्वीप में विकास लाना चाहती है। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार जल्द से जल्द लक्षद्वीप को भारत के उपभोगवादी विकास के मॉडल में शामिल करना चाहती है। योजनाकारों को लगता है के “बहुत लंबे समय तक यह द्वीप देश के विकास की गौरव-गाथा से अलग-थलग रह लिया। बहुत दिनों तक इस द्वीप के लोग अपने आप में सिर्फ टूना मछली और नारियल से मिलने वाले मामूली से फायदे से संतुष्ट रह लिए!”

हालांकि इन द्वीपों पर व्यापार के लायक कोई दूसरी वस्तु नहीं है। पर अब इन द्वीपों को ही व्यापार की वस्तु के नजरिऐं से देखा जा रहा है। लक्षद्वीप में पर्यटकों को लुभाने के लिए ढेरों चीजें हैं। खाली समुद्र-तट, सफेद रेत, नीला समुद्र, नारियल के पेड़ और ऐसी ढेरों चीजें।

दूसरी तरफ लक्षद्वीप को पर्यटन का केंद्र बनाने में भी कुछ कठिनाइयां भी हैं। एक तो पर्यटन के लिये ऐसे निर्जन द्वीप लक्षद्वीप में कम है। और जिन द्वीपों पर बस्ती है वहां कई सारे लोग सदियों से रह रहे है। उन्हें उनके जीवन के लिये जमीन, मीठे पानी की आवश्यकता है। वे समुद्र तट पर मछलियां सुखाते है। और यह लोग अपनी जिंदगी से खुश है।

पर्यटकों को लुभाने के लिए बनी तस्वीर में ये लक्षद्वीपवासी और उनकी जिंदगी जीने का ढंग आकर्षक नहीं लगने वाला। लक्षद्वीप की यही अनाकर्षक परंतु स्थानीय लोगों के लिए परम संतोष का दृश्य अब प्रशासन को बेचैन कर रहा है।

पर यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि पर्यटकों के नजरिए से लक्षद्वीप की जो तस्वीर बनाई जा रही है, वो सच्चाई से कोसों दूर है। यहां की प्रवाल भित्तियां अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। उनके भीतर रहने वाली मछलियों की संख्या कम होती जा रही है।

इन सबके बावजूद लक्षद्वीप की प्रवाल भित्तियां मेरे लिए दुनिया की सबसे खूबसूरत भित्तियों मे से एक हैं। हालांकि इस खूबसूरती के पीछे की वजह मेरा उनसे लंबा जुड़ाव है। मैं उन्हें उनके बेहतर दिनों से जानता हूं। ठीक वैसा जैसा पर्यटकों को लुभाने के लिए तस्वीरों में दिखाया जाता है। पर उदासी की बात यह है कि आज की प्रवाल भित्तियां वैसी नहीं रहीं।

लक्षद्वीप में पर्यटकों को लुभाने के लिए लक्षद्वीप की एक खास तस्वीर दिखाई जाती है। इसमें खाली समुद्र-तट, सफेद रेत, नीला समुद्र, नारियल के पेड़ और ऐसी ढेरों चीजें शामिल हैं। हालांकि, लक्षद्वीप की तस्वीरों में वहां रह रहे लोग और प्रकृति को हो रहे नुकसान को भी शामिल करना चाहिए। तस्वीर- रोहन आर्थर
पर्यटकों को लुभाने के लिए लक्षद्वीप की एक खास तस्वीर दिखाई जाती है। इसमें खाली समुद्र-तट, सफेद रेत, नीला समुद्र, नारियल के पेड़ और ऐसी ढेरों चीजें शामिल हैं। हालांकि, लक्षद्वीप की तस्वीरों में वहां रह रहे लोग और प्रकृति को हो रहे नुकसान को भी शामिल किया जाना चाहिए। तस्वीर- रोहन आर्थर

जलवायु परिवर्तन को झेल सकने वाले पर्यटन में ही द्वीप का भविष्य संभव

इस बात में कोई संदेह नहीं कि लक्षद्वीप को विकास की अत्यंत आवश्यकता है। लेकिन वह विकास कैसा होगा, इसके लिए प्रशासन को वर्तमान नीतियों के परे जाकर अधिक कल्पनाशील होना होगा। अगर हम ये चाहते है कि लक्षद्वीप द्वीपसमूह पर इन्सान की मौजूदगी बनी रहे, तो हमें हर एक योजना को जलवायु परिवर्तन के नजरिए से देखना ही होगा।

मुझे लगता है कि लक्षद्वीप के विकास में पर्यटन को भी शामिल करना होगा। पर जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुये हमें घिसें-पीटें आकर्षण, जैसे तैरते घर और जेट लगी बोट को लक्षद्वीप के पर्यटन आकर्षणों से हटाना होगा। पर्यटन के ऐसे तरीके खोजने होंगे जिसमें यहां की पारिस्थितिकी और संस्कृति को लेकर आदर का भाव हो, और यहां की प्रवाल भित्ति, खाड़ी की जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को समझा जाता हो। एक ऐसा पर्यटन, जो लक्षद्वीप के नागरिकों द्वारा संचालित हो और जो लक्षद्वीप के सांस्कृतिक इतिहास को वहां के लोगों के माध्यम से जाने-समझे। यहां की अर्थव्यवस्था को भी उन परिवर्तनों को स्वीकार करना होगा जो कि जलवायु बदलने की वजह से सामान्य होती जा रहीं हैं।

लक्षद्वीप में स्थानीय सरकार, सिविल सोसायटी को एक साथ मिलकर काम करना होगा। जलवायु परिवर्तन से होने वाली चुनौतियों से लड़ने के लिए हर वक्त सीखने की और उस हिसाब से योजना बनाने की क्षमता विकसित करनी होगी। अब आपदा प्रबंधन के लिये तैयार रहना भी जरुरी है। सबसे खराब स्थिती में हमें द्वीपसमूह छोड़ने की जरुरत भी आ सकती है। ऐसी किसी संभावना को ध्यान में रखते हुए आर्थिक, तार्किक और मनोवैज्ञानिक तौर पर तैयार रहना भी विकास नीति का हिस्सा होना चाहिए। तभी हम जिम्मेदारी पूर्ण और न्यायोचित विकास कर पायेंगे।

अंधाधुंध विकास का भार सहने के लिहाज से देखें तो लक्षद्वीप काफी छोटा पर अनमोल है। लक्षद्वीप से संबंधित आए असंगत और स्थानिक परिस्थितियों से अंजान नोटिफिकेशन के विरोध के साथ ही हमें असल समस्याओं के बारे में गंभीर चिंतन जल्द से जल्द शुरू करना होगा। यह वाकई जीवन, मृत्यु और गरिमा का मामला है ।

– रोहन आर्थर वरिष्ठ वैज्ञानिक और नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के संस्थापक ट्रस्टी हैं।

बैनर तस्वीरः लक्षद्वीप की कोरल रीफ या प्रवाल समूह को समुद्र के पानी गर्म होने की वजह से सफेद होते हुए देखा जा रहा है। इसका मतलब प्रवाल भित्तियां बीमार हो रही हैं। तस्वीर- रोहन आर्थर

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