- मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में बीते मई महीने में एक बाघिन पी 213-32 की मौत हो गई, जिसके बाद उसके चार बच्चे अनाथ हो गए।
- इन शावकों की उम्र महज सात-आठ महीने ही है और इन्हें अभी शिकार करना नहीं आता। ऐसा देखने में आ रहा है कि इन शावकों का पिता, पी243 नामक बाघ न केवल इनके लिए शिकार कर रहा है बल्कि इनके साथ खेल-कूद रहा है।
- पन्ना टाइगर रिजर्व प्रशासन ने बाघिन के मरने के तकरीबन एक महीने बाद पाया कि बाघिन के बच्चों का ख्याल उसका पिता पी243 नामक बाघ रख रहा है। प्रशासन के लिए बाघ के इन बच्चों को बचना और भविष्य के लिए तैयार करना एक चुनौती है।
- रिजर्व प्रशासन के मुताबिक बाघ पी243 और बाघिन पी213-31 दो साल से साथ देखे जा रहे थे। प्रशासन बाघ और उसके बच्चों के व्यवहार की कैमरा ट्रैप से निगरानी कर रहा है।
मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में 6 जून को पी243 नामक एक बाघ ने गाय का शिकार किया। सुबह शिकार के बाद दिन भर बाघ उस इलाके में भटकता रहा लेकिन शिकार खाने नहीं आया। बाघ के द्वारा गाय का शिकार करना एक सामान्य घटना थी, लेकिन शिकार को न खाना पन्ना टाइगर रिजर्व के ग्राउंड स्टाफ को कुछ अटपटा लगा। खोजबीन की तो पता चला जहां शिकार हुआ है वह इलाका बाघिन के चार छोटे बच्चों का है। इन बच्चों की मां पी213-32 नामक एक बाघिन थी, जिसकी तकरीबन एक महीने पहले मृत्यु हो गई। बाघ पी243 इन बच्चों का पिता है।
क्या यह घटना कुछ इशारा कर रही है? क्या बाघ ने जानबूझकर अपना शिकार वहां छोड़ा ताकि उसके बच्चे इसे खा सकें? टाइगर रिजर्व प्रशासन भी इन्हीं सवालों के जवाब तलाश रहा था।
अधिकारियों को कुछ और भी संकेत मिले जिससे यह साफ हो रहा था कि नर बाघ अपने बच्चों का ख्याल रख रहा है। 21 मई को बाघ ने इसी इलाके में एक और शिकार किया था और उसे खींचकर अपने बच्चों के पास ले गया। वहां उस शिकार को अपने शावकों के साथ साझा किया। यह घटनाएं अधिकारियों को यह संकेत करने के लिए काफी हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व में कुछ अनोखा घट रहा है। क्या नर बाघ अपनी मादा साथी की मृत्यु के बाद बच्चों को पालने की कोशिश कर रहा है?
इस सवाल के जवाब में पन्ना टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर उत्तम कुमार शर्मा कहते हैं, “हां, ऐसा कहा जा सकता है। जो संकेत हमें मिल रहें है उससे लग रहा है कि नर बाघ अपने बच्चों के लिए लगातार भोजन का इंतजाम कर रहा है। हम बाघ और बच्चों के व्यवहार की सतत निगरानी कर रहे हैं।”
यह माना जाता है कि नर बाघ की जिम्मेदारी परिवार को सुरक्षा देने की होती है, लेकिन बच्चों को पालने, उन्हें शिकार की तकनीक सिखाने और अपना इलाका चुनने में मादा बाघ ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
बाघिन के बिरह में बाघ
बाघिन पी213-32 का निधन 15 मई को अज्ञात कारणों से हो गया।
“मृत्यु के बाद बाघ के बच्चों की खोज की गई। हमने इलाके में कैमरा ट्रैप लगा दिए जिसमें मृत्यु के दो दिन बाद बच्चे नजर आए। वे खेल रहे थे और भूखे भी नहीं लग रहे थे,” शर्मा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
प्रशासन ने पाया कि मादा की मृत्यु के बाद नर बाघ उसकी चिता के पास देर तक बैठा रहा।
“हमने पाया कि पी243 और पी213-32 दो साल से साथ हैं। इस दौरान नर बाघ किसी और बाघिन के साथ नहीं दिखा। जहां बाघिन का मृत शरीर जलाया गया वहां भी नर बाघ कुछ देर बैठा रहा। एक दिन बाद वह बाघिन के मरने के स्थान पर बैठा मिला। गतिविधियों से पता चला कि बाघ के सभी बच्चे भी आसपास ही थे,” पन्ना टाइगर रिजर्व ने घटना पर एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा।
“यह भी देखा गया कि अपने बच्चों को नर बाघ पुकार रहा है,” रिपोर्ट में बताया गया है।
शर्मा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि नर बाघ की गतिविधियों से लगता है कि उसके साथ बच्चे सुरक्षित हैं। “बिन मां के बाघ के बच्चों के ऊपर हमारी समझ भी सीमित है। इस दौरान रिजर्व प्रशासन बहुत कुछ सीख रहा है,” शर्मा कहते हैं।
मध्यप्रदेश स्थित पन्ना टाइगर रिजर्व विंध्य जंगल में बसा बाघों के लिए एक महत्वपूर्ण आशियाना है। यह 1598.1 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
बाघिन की मृत्यु के बाद अनाथ हुए बच्चे
बाघिन पी213-32 गांव के आसपास घूमती थी, इसलिए पन्ना टाइगर रिजर्व ने निगरानी के लिए उसके गले में रेडियो कॉलर लगाया था। रिजर्व प्रशासन को 12 मई को ऐसे संकेत मिले जो कि उसके मृत होने की तरफ इशारा कर रहे थे। जैसे उसके 5-6 घंटे तक लगातार एक ही स्थान पर होने का संकेत दे रहा था।
रिजर्व की ट्रैकिंग टीम तलाश में निकल पड़ी। उन्होंने पाया कि बाघिन ठीक से चल नहीं पा रही और सुस्त दिख रही है। आनन-फानन में हाथियों का एक दल मौके पर आया और फोटोग्राफी से पता चला कि उसके बाएं पैर में सूजन है। बाघिन का इलाज शुरू हुआ लेकिन 15 मई को उसकी मृत्यु हो गई।
“पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु की वजह नहीं पता चल पाई है। बाघिन के खून के नमूने और शरीर के अंग तीन प्रयोगशालाओं में भेज दिए गए हैं। ये प्रयोगशालाएं नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) बरेली, और राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला सागर हैं,” पन्ना टाइगर रिजर्व ने बयान जारी कर कहा।
बाघिन की मौत के बाद सबसे अधिक प्रभावित उसके बच्चे हुए। उन्हें खोजने में पचास ग्राउंड स्टाफ और हाथी दल की मदद लेनी पड़ी।
“बाघ के बच्चे तकरीबन आठ महीने के हैं। इसका मतलब उन्होंने शिकार करना पूरी तरह से नहीं सीखा है। मां ने बच्चों को शिकार खाना जरूर सिखा दिया है, लेकिन अब तक हमने किसी शिकार को पकड़ते नहीं देखा है। हमने निर्णय लिया कि इन बच्चों की देखभाल जंगल के प्राकृतिक माहौल में ही करेंगे। उनके खाने का इंतजाम भी किया जाएगा। जबतक यह खुद शिकार करना शुरू नहीं कर देते हम बच्चों पर कड़ी निगरानी रखेंगे,” शर्मा कहते हैं।
बाघ के बच्चे पालने में मध्यप्रदेश का बुरा अनुभव
मध्यप्रदेश में बाघ के अनाथ बच्चों को पालने की कई बार कोशिश हो चुकी है। इन्हें वापस जंगल में छोड़ने में सफलता नहीं मिल पाई है। वर्ष 2017 में तीन अनाथ बच्चों बांधवगढ़ के जंगल में पाए गए थे। इनकी मां को शिकारियों ने मार गिराया था। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व प्रशासन ने इन्हें पालने की कोशिश की, लेकिन एक-एक कर तीनों बच्चे वायरस संक्रमण का शिकार हुए और उनकी मृत्यु हो गयी।
एक दूसरी घटना में बांधवगढ़ में दो बच्चों को बाघिन छोड़कर चली गई थी। दोनों बच्चों डेढ़ महीने के थे। रिजर्व प्रशासन ने इन्हें पाला, लेकिन बड़े होने के बाद भी यह शिकार करना नहीं सीख पाए। थक-हारकर इन्हें भोपाल स्थित चिड़ियाघर वन विहार में रखना पड़ा।
जानकार मानते हैं कि बाघ को मां के बिना पालना मुश्किल काम है।
“एक बाघ को शिकार करने में आत्मनिर्भर होने के लिए करीब दो साल का होना जरूरी है। इससे पहले वे आसान शिकार कर सकते हैं पर वो भी अपनी मां की निगरानी में,” कहते हैं मृदुल पाठक, जो रिटायर्ड वन अधिकारी और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के पूर्व फील्ड डायरेक्टर रहे हैं।
पाठक उस समय बांधवगढ़ में ही पदस्थ थे जब बाघ के बच्चों को पालने की कोशिश हुई थी।
“यह पहला मौका नहीं जब नर बाघ ने अपने बच्चों को पालने की कोशिश की हो, लेकिन यह घटना दुर्लभ ही मानी जाएगी। पन्ना टाइगर रिजर्व के सामने एक बड़ी चुनौती बच्चों को पालने और दूसरे जंगली जानवरों से सुरक्षित रखने की है,” पाठक कहते हैं।
“रणथंभौर नेशनल पार्क में 2011 ऐसा ही मामला सामने आया था,” पाठक ने कहा।
दो शावकों की मां की मृत्यु के बाद उनके पिता टी-25 ने उन्हें पाला था।
यह देखना अभी बाकी है कि नर बाघ पी243 अपने बच्चों को शिकार सिखा पाता है या नहीं। या बच्चे खुद बखुद शिकार की तकनीक सीख पाते हैं या नहीं। अगर ऐसा नहीं होता है तो उन्हें भी वन विहार जैसी किसी सुरक्षित स्थान पर बाड़े में रखना होगा।
“बाघ के बच्चों में शिकार करना एक नैसर्गिक गुण है, लेकिन इन्हें मां के माध्यम से अच्छी तकनीक सीखने को मिलती है। जब इन बच्चों का वजन बढ़ जाएगा तो हमें उम्मीद है ये शिकार करने लगेंगे,” शर्मा ने बताया।
बच्चों को जंगल में पालने की कवायद
इन सभी चुनौतियों को ध्यान में रखकर रिजर्व प्रशासन बच्चों को पाल रहा है।
“बाघ के स्वभाव के बारे में अबतक जो जानकारी उपलब्ध है उससे पता चलता है कि 12-13 महीने का बाघ शिकार करना शुरू करता है। हमें इस हिसाब से बच्चों की 3-4 महीने देखभाल करनी है,” शर्मा कहते हैं।
पन्ना टाइगर रिजर्व की रिपोर्ट के मुताबिक बाघ के बच्चों का वजन फिलहाल 50 से 60 किलो तक है, जो कि अगले 3-4 महीनों में 80 से 90 किलो तक हो जाना चाहिए। इस वजन को हासिल करने के लिए उन्हें हर तीन-चार दिन में एक शिकार चाहिए, इसका मतलब आने वाले चार महीने में 25 से तीन शिकार चाहिए।
बच्चों की सुरक्षा के लिए नर बाघ पी243 को भी कॉलर लगा दिया गया है। बच्चों को भी सही समय आने पर कॉलर लगाया जा सकता है।
प्रशासन को लगता है कि अगर पी243 किसी दूसरी बाघिन के संपर्क में आया तो बच्चों के ऊपर संकट आ सकता है। ऐसे में इसकी निगरानी जरूरी है।
“अगर कोई बाघिन नर बाघ के संपर्क में आती है तब यह बच्चों को छोड़ सकता है। ऐसे हालात में बाघ के बच्चों का खुद से शिकार करना काफी जरूरी है,” रिपोर्ट में बताया गया है।
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टाइगर स्टेट में लगातार मर रहे हैं बाघ
वर्ष 2019 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में सबसे अधिक 526 बाघ पाए गए हैं। हालांकि, राज्य में लगातार बाघ के मरने का सिलसिला जारी है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन ऑथोरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल एक जुलाई तक 24 बाघों की मृत्यु हो चुकी है। वहीं, पिछले वर्ष 2020 में 26 बाघ मृत पाए गए थे। वर्ष 2019 में 28 बाघों की मृत्यु हुई थी। वर्ष 2012 से लेकर 2019 तक प्रदेश में 172 बाघों की मृत्यु हुई जो देश में सबसे अधिक है।
बैनर तस्वीरः बाघिन की मृत्यु के दो दिन बाघ पन्ना टाइगर रिजर्व के ग्राउंड स्टाफ को चार शावक मिले। इनके पिता ने इनकी देखभाल की इसलिए शावक तंदरुस्त और खेलते हुए नजर आए। तस्वीर- पन्ना टाइगर रिजर्व