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[वीडियो] एक बाघिन के पलायन की कहानी, 99 किलोमीटर की यात्रा का बनाया रिकार्ड

एक बाघिन के पलायन की कहानी, 99 किलोमीटर की यात्रा का बनाया रिकार्ड

एक बाघिन के पलायन की कहानी, 99 किलोमीटर की यात्रा का बनाया रिकार्ड

  • पलायन का एक दुर्लभ मामला जिसमें बाघिन ने पन्ना टाइगर रिजर्व स्थित अपने इलाके से 99 किलोमीटर दूर चलकर नए इलाके में बनाया ठिकाना।
  • नया इलाका संरक्षित जंगल नहीं था, बावजूद इसके बाघिन को साथी के रूप में एक बाघ मिला। अभी अपने दो शावकों की कर रही है देखभाल।
  • अपनी इस यात्रा के दौरान बाघिन ने एक जंगल से दूसरे जंगल के बीच इंसानी इलाकों को भी पार किया। दो जंगलों को जोड़ने वाले ये इलाके बाघों के लिए महत्वपूर्ण हैं और इनका संरक्षण किया जाए इस खास जीव को आने-जाने में सहूलियत होगी।
  • बाघिन की गतिविधियों पर निगरानी रखते हुए वन विभाग और शोधकर्ताओं ने उसके रास्ते की पहचान की है। आने वाले समय में वन विभाग इन स्थानों को वन्य जीवों के मुफीद बनाने पर कार्य कर सकता है।

हाल ही में एक बाघिन के द्वारा किया गया इतिहास का सबसे लंबा पलायन का मामला सामने आया है। एक 18 महीने की बाघिन, पन्ना टाइगर रिजर्व के अपने इलाके से, 99 किलोमीटर दूर तक यात्रा की और उसी नई जगह को अपना ठिकाना बनाया। 

यह बाघिन सात बाघों के कुनबे की दूसरी पीढ़ी की युवा सदस्य है जिन्हें पन्ना टाइगर रिजर्व में 2009 से 2015 के दौरान लाया गया था, तब जब इस रिजर्व में शिकार की वजह से बाघ खत्म हो गए थे। युवा होने के बाद बाघिन ने 99 किलोमीटर दूर जाकर अपना इलाका बनाया। यह एक दुर्लभ घटना है क्योंकि बाघों के लंबी दूरी की यात्रा सुनने में आती रही है पर बाघिनों की नहीं। 

भारत में बाघ वाले जंगल की गुणवत्ता काफी अच्छी नहीं कही जाती है और अक्सर बाघ और इंसान के बीच टकराव होता रहता है। बाघ को अपना इलाका बनाने के लिए जंगल के एक छोर से दूसरे छोर और कई बार जंगल से दूर भी जाना पड़ता है। 

नर बाघों को अपना इलाका बनाने के लिए यात्रा करते हुए तो देखा गया है। इस दौरान वे खाने के साथ-साथ अपने साथी की तलाश भी करते हैं। इसके विपरीत मादा बाघ या कहें बाघिन जहां जन्म लेती है वह उसी इलाके में रहना पसंद करती है। 

“बाघिन में लंबी दूरी की यात्रा काफी दुर्लभ है,” कहते हैं मृगांका शेखर सरकार, जो जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरनमेंट से जुड़े एक वैज्ञानिक हैं। बाघिन के पलायन को लेकर उन्होंने यह रिपोर्ट बनाई है। बाघिन को पी213-22 के नाम से जाना जाता है। 

“बाघिन की यह यात्रा दुर्लभ है और बाघों को समझने में काफी मददगार भी है,” शेखर कहते हैं। 

बाघिन पी213-22 की संतान। इलाका बनाने के लिए बाघिन ने 99 किलोमीटर लंबा पलायन किया जो कि एक दुर्लभ घटना है। तस्वीर- सतना वन प्रमंडल
बाघिन पी213-22 का शावक। इलाका बनाने के लिए बाघिन ने 99 किलोमीटर लंबा पलायन किया जो कि एक दुर्लभ घटना है। तस्वीर- सतना वन प्रमंडल

इस रिपोर्ट के एक अन्य लेखक रॉबर्ट जॉन चंद्रन मानते हैं कि जंगल की गुणवत्ता कम होना या बाघों की बढ़ती संख्या की वजह से नए बाघों को अपना इलाका बनाने के लिए इतनी लंबी दूरी तय करनी पड़ रही है। चंद्रन, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च कोलकाता से जुड़े हैं। 

“हमारा अध्ययन कहता है कि अगर बाघिन नए इलाके के लिए लंबी दूरी तय करती है तो आनुवंशिक स्तर पर बाघों की गुणवत्ता में सुधार होता है। इससे बाघों की आबादी बढ़ेगी। हालांकि, जंगल जिस कदर बिखरा हुआ है, उसको देखकर ऐसा होना संभव नहीं लगता। वनों के संरक्षण के प्रयास करने होंगे,” चंद्रन कहते हैं। 

चंद्रन बताते हैं कि मध्यप्रदेश वन विभाग इस बाघिन जिसका नाम पी213-22 है, पर अभी भी निगरानी रखे हुए है। इसके लिए हाई फ्रिक्वेंसी की रेडियोटेलीमेट्री और कैमरा ट्रैपिंग का इस्तेमाल किया जा रहा है।  

सरकार बताते हैं कि बाघिन अपने इलाके में सुरक्षित है। उसने पांच शावकों को एक साथ जन्म दिया था जिसमें से तीन की मृत्यु हो गई। वह बचे हुए अपने दो शावकों को पाल रही है।

बाघिन के पदचिन्हों की पड़ताल करते शोधकर्ता 

बाघिन जिन रास्तों से आगे बढ़ी उसकी जानकारी वन विभाग के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इस जानकारी के सहारे ही उन स्थानों पर संरक्षण के प्रयास किए जा सकते हैं। फील्ड स्टाफ और शोधकर्ताओं की एक टीम ने बाघिन की यात्रा की निगरानी की और उस रास्ते को भी चिन्हित किया। बाघिन के गले में 2015 में रेडियो कॉलर लगाया गया था। शोधकर्ताओं ने 743 स्थानों पर इस कॉलर की मदद से बाघिन को लोकेट किया। अक्टूबर 2015 से दिसंबर 2015 के बीच बाघिन ने सबसे लंबा सफ तय किया। जून 2017 से लेकर सितंबर 2017 तक बाघिन को 340 स्थानों पर ट्रैक किया गया। यह दौर उसके पलायन का अंतिम पड़ाव था।

78 दिन की यात्रा के दौरान पी213-22 ने 99 किलोमीटर की एक सीध में यात्रा तय की। इस दौरान जंगल में भटकते हुए वह 340 किलोमीटर चली। बाघिन ने सफर के लिए रात का समय चुना और जल स्रोतों के पास से होकर गुजरी। खेत और इंसानी इलाकों से उसने इस दौरान दूरी बनाये रखी। इस दौरान बाघिन 19 ऐसे इलाकों तक पहुंची जो कि बाघिन के आराम करने के लिहाज से संपन्न हो। सरकार के मुताबिक इन इलाकों को स्टेपिंग स्टोन कहते हैं जो कि जंगल का एक छोटा इलाका होता है। अगर इन इलाकों को दुरुस्त कर लिया जाए तो बाघों को अपना इलाका बनाने के लिए सफर करने में आसानी होगी। 

ऊंचाई से पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल कुछ इस तरह दिखता है। मध्य प्रदेश में कुल 94,689 वर्ग किलोमीटर के संरक्षित वन (प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट) हैं। फोटो- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे हिन्दी
ऊंचाई से पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल कुछ इस तरह दिखता है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

इन छोटे जंगलों में बाघिन के चलने की रफ्तार 0.15 किलोमीटर प्रति सेकंड थी, जबकि इससे बाहर रफ्तार पांच गुना बढ़कर 0.94 मीटर प्रति सेकंड हो गई। 

चंद्रन के मुताबिक जंगल के ये छोटे इलाके या स्टेपिंग स्टोन संरक्षण में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 

“बाघों को अपना इलाका बनाने के लिए ऐसे स्टेपिंग स्टोन को चिन्हित करना होगा, जिससे होकर बाघ आगे बढ़ सकें। दो जंगलों के बीच गलियारा बनाने की तरफ यह जरूरी कदम होगा,” वह कहते हैं। 

डब्लू डब्लू एफ इंडिया के बाघ संरक्षण विभाग के प्रमुख प्रणव चंचानी कहते हैं कि यह मामला दिखाता है कि कैसे छोटे-छोटे जंगल बाघ की राह को आसान बनाते हैं। इन स्थानों पर बाघ आराम करता है और फिर आगे की यात्रा पर निकलता है। 

यद्यपि चंचानी इस शोध से नहीं जुड़े हैं पर उनका मानना है कि संरक्षण क्षेत्र के अलावा भी खेतीहर जमीन और दो जंगलों के बीच के गलियारे को भी संरक्षण के प्रयासों में शामिल करना होगा। इस तरह बाघों की बड़ी आबादी को सुरक्षित रखा जा सकता है और उनके इलाके का विस्तार किया जा सकता है। 

उन्होंने कहा कि बाघों के द्वारा की गई ऐसी यात्राएं अक्सर अनसुनी रह जाती हैं।

बाघिन 213-22 के शावक। बाघिन ने संरक्षण क्षेत्र के बाहर इन्हें जन्म दिया और वहीं इन्हें पाल रही है। तस्वीर- सतना वन प्रमंडल
बाघिन 213-22 के शावक। बाघिन ने संरक्षित क्षेत्र के बाहर इन्हें जन्म दिया और वहीं इन्हें पाल रही है। तस्वीर- सतना वन प्रमंडल

बाघिन के नए इलाके में रेलवे लाइन

बाघिन ने अपना इलाका जिस नए जंगल को बनाया है वह संरक्षित वन नहीं है। यह रानीपुर वाइल्डलाइफ सेंचुरी के नजदीक है। सरकार के मुताबिक इस इलाके से एक बड़ी रेलवे लाइन गुजरती है। 

“इस रेलवे लाइन की वजह से कई बाघों की मृत्यु हुई है। वे ट्रैक पर ट्रेन से टकरा जाते हैं,” वह कहते हैं। 

इस वजह से बाघिन पर रेलवे लाइन के नजदीक नजर रखी जा रही है। 

“हमारी सलाह है कि रेलवे लाइन के दोनो तरफ ऊंची बाड़बंदी कर देनी चाहिए और वन्यजीव के आने-जाने के लिए नीचे से अंडरपास बनाना चाहिए,” सरकार सुझाते हैं। 

रानीपुर के पास स्थित यह इलाका मध्यप्रदेश के मझगवां, बारुंधा, सिंहपुर, चित्रकूट, सिमरिया, सिरमौर और अतरौली जंगल रेंज से नजदीक है। सरकार सुझाते हैं कि इलाके को कानूनी तौर पर संरक्षित क्षेत्र की मान्यता दिलवाई जाए, ताकि बाघों का बेहतर संरक्षण हो सके। 


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इस शोध में सह लेखक के तौर पर शामिल राजशेखर नियोगी कहते हैं कि शोधकर्ताओं ने जिन जंगल के छोटे-छोटे इलाकों को चिन्हित किया है वहां संरक्षण के प्रयास होने चाहिए, ताकि बाघों को आवाजाही में सुविधा हो। 

“इन इलाकों के संरक्षण से नर और मादा बाघ को पन्ना टाइगर रिजर्व और रानीपुर वाइल्डलाइफ सेंचुरी के बीच आने-जाने में सुविधा होगी,” नियोगी कहते हैं। 

चंचानी सचेत करते हुए कहते हैं कि अपना इलाका बनाने या उसके विस्तार के लिए बाघ इसी तरह पलायन करेंगे। इसके लिए वन विभाग को सटीक योजना बनाई चाहिए। 

वह कहते हैं कि अगर आगे भी कोई बाघ या बाघिन इस तरह की यात्रा करते हैं तो संरक्षण के लिहाज से इसे कामयाबी माना जाएगा। लेकिन तब जब जंगल के गलियारे की गुणवत्ता और जंगल का दायरा बढ़ाने का  प्रयास किया जाए।

 

बैनर तस्वीरः बाघिन की कैमरा ट्रैप में ली गई तस्वीर। तस्वीर- सतना वन प्रमंडल

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