Site icon Mongabay हिन्दी

[कॉमेंट्री] क्यों फेल हुई दिल्ली में यमुना नदी पर वाटर-टैक्सी परियोजना: एक असफलता और ढेरों सीख

सोनिया विहार दिल्ली में युमना नदी में मछुआरों के नावें। तस्वीर- अवली वर्मा

सोनिया विहार दिल्ली में युमना नदी में मछुआरों के नावें। तस्वीर- अवली वर्मा

  • वर्ष 2016 में दिल्ली की यमुना नदी पर केंद्र सरकार ने वाटर-टैक्सी परियोजना शुरू की और पांच साल बाद बताया कि यह संभव नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या बिना उचित अध्ययन के ही सरकार ने ऐसी घोषणा कर दी।
  • सरकार जल यातायात को प्रोत्साहित कर रही है पर इनसे जुड़े अध्ययन और आकलन सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। ऐसे में लोगों के लिए यह समझना काफी कठिन है कि किसी योजना की घोषणा के पहले क्या तैयारी की गयी है और भविष्य में इसके क्या परिणाम होने वाले हैं।
  • यह डर है कि राष्ट्रीय जलमार्ग-110 भी कहीं दिल्ली की यमुना नदी पर वाटर-टैक्सी परियोजना की तरह ही न साबित हो जाए। सरकार ने राष्ट्रीय जलमार्ग-110 से जुड़े अध्ययन इत्यादि भी सार्वजनिक नहीं किये हैं।
  • अवली वर्मा मंथन अध्ययन केंद्र के साथ जुड़ी हैं और यह लेखिका के निजी विचार हैं।

वर्तमान सरकार सत्ता में आने के बाद से जल यातायात को लेकर कई घोषणाएं करती आयी है। फिर उन योजनाओं का होता क्या है, इसकी तस्वीर स्पष्ट हो नहीं पाती।

ऐसी ही एक योजना थी दिल्ली में यमुना नदी में वाटर-टैक्सी चलाने की। वर्ष 2014 से 2019 तक दिल्ली में यमुना नदी पर ‘वाटर-टैक्सी’ परियोजना को शुरू और पूरा करने के कई दावे किये गये। वादे के अनुसार अगर यह परियोजना सफल होती तो दिल्ली से आगरा तक वाटर-टैक्सी के जरिए लोग यातायात और पर्यटन का लाभ उठाते। यही नहीं 2014 में केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने तो यह भी कहा, “देश की राजधानी और आगरा के बीच यमुना नदी जलमार्ग को यात्री और माल की ढुलाई के लिए उपयोग किया जा सकेगा।” वर्तमान स्थिति यह है कि इन तमाम दावों और घोषणाओं के बाद दिल्ली में यमुना नदी पर वाटर-टैक्सी चलते देखने का सपना टूट चुका है। इसके साथ ही यमुना पर घोषित राष्ट्रीय जलमार्ग -110 पर प्रस्तावित जल-विमान योजना सिर्फ कागज़ी परियोजना तक सीमित होने की कगार पर है।

यमुना नदी पर राष्ट्रीय जलमार्ग 110 दर्शाता मानचित्र। मानचित्र- असलम शेख, मंथन अध्ययन केंद्र
यमुना नदी पर राष्ट्रीय जलमार्ग 110 दर्शाता मानचित्र। मानचित्र- असलम शेख, मंथन अध्ययन केंद्र

यमुना वाटर-टैक्सी: ख्याली पुलाव साबित होता सरकारी वादा

शिपिंग मंत्रालय के भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने दिल्ली में यमुना नदी पर यात्रियों के यातायात और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यमुना वाटर-टैक्सी परियोजना का प्रस्ताव लाया था। उद्देश्य था- दिल्ली जैसे भीड़भाड़ वाले शहर में यातायात का एक नया माध्यम विकसित करना, पर्यटन को बढ़ावा देना। जाहिर है इससे रोड-ट्रैफिक को कम करने का सपना भी देखा गया था।

ये सारे उद्देश्य अपनी जगह पर सही और महत्त्वपूर्ण हैं पर इस पर भी गौर करना जरूरी है कि क्या दिल्ली की ट्रैफिक कम करने और पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए यमुना में वाटर-टैक्सी शुरू करना ही एकमात्र विकल्प है! साथ ही एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि क्या यमुना पर वाटर-टैक्सी परियोजना को चालू करना संभव और व्यवहारिक है?

पर पहले उन सरकारी वादों और दावों की पड़ताल करते हैं।

वर्ष 2016 में शिपिंग (पोत परिवहन) मंत्रालय ने लोक सभा में बताया, “दिल्ली में यमुना नदी (राष्ट्रीय जलमार्ग -110) के वजीराबाद से फतेहपुर जाट के 16 किलोमीटर के हिस्से में वाटर-टैक्सी परियोजना को शुरू करने के लिए इसकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट एवं तकनीकी निर्देशों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। इस परियोजना के तीन भागों को कार्यान्वित करने के लिए निविदाएं आमंत्रित की जा चुकी हैं।”

यह भी बताया गया कि इस परियोजना की अनुमानित लागत 31.70 करोड़ रूपये है। इसमें भूमि की लागत को शामिल नहीं किया गया था। इसके साथ यह भी बताया गया कि यह परियोजना कार्य सौंपे जाने के छः महीने में पूरी हो जानी है।  सरकार की तरफ से दिए जाने वाले ऐसे बारीक और महत्वपूर्ण जानकारी से आपको ऐसा प्रतीत हो सकता है कि सरकार ने इस परियोजना का गहन अध्ययन किया है। पर इस घोषणा को पांच साल गुजर गए और इससे संबंधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं है। माने कि आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं है।

तार से सुरक्षित किया सोनिया विहार में नदी के टत पर मछली पकड़ने की कोशिश में मछुआरा। तस्वीर- अवली वर्मा
तार से सुरक्षित किया सोनिया विहार में नदी के टत पर मछली पकड़ने की कोशिश में मछुआरा। तस्वीर- अवली वर्मा

इसके तीन साल गुजरने के बात यानी 2019 में तब पोत परिवहन मंत्रालय के मंत्री मनसुख मंडाविया ने इस परियोजना के प्रस्तावित स्थल सोनिया विहार का दौरा किया। इसी दौरान यह बताया गया कि यह परियोजना दो चरणों में लागू की जाएगी। पहले चरण में सोनिया विहार से ट्रोनिका सिटी के हिस्से का विकास होगा और दूसरे चरण में ट्रोनिका सिटी से फतेहपुर जाट तक का।

इस घोषणा का जमीनी पक्ष जानने के लिए दिसम्बर 2020 में मंथन अध्ययन केंद्र ने सोनिया विहार का दौरा किया। कोशिश यह थी कि अब तक हुए विकास और स्थानीय जनता की राय जानी जाए। वहां जाने पर पता चला कि जमीनी स्तर पर कोई कार्य शुरू ही नहीं हुआ है। स्थानीय लोगों ने इस परियोजना के बारे में अखबार में पढ़ा जरूर था पर इसको लेकर वे तब भी नाउम्मीद ही थे।

और वैसा ही हुआ। हाल ही में आई खबर से इसकी पुष्टि हो गयी। यह साफ़ हो गया कि इस परियोजना की फाइल अब बंद की जा चुकी है।

दरअसल, पोत परिवहन मंत्रालय ने तो इस परियोजना को लेकर काफी बड़े-बड़े दावे किये पर दिल्ली के पर्यटन विभाग ने माना कि यमुना में वाटर-टैक्सी चलाने की योजना व्यावहारिक नहीं है। नदी की गंदगी, प्रदूषण और जगह-जगह पर नदी में पर्याप्त गहराई न होने के कारण भी इसे वाटर-टैक्सी योजना के अनुकूल नहीं माना जाता रहा। दिल्ली पर्यटन विभाग के इन दलीलों से स्पष्ट होता है कि यह परियोजना सही मायनों में कभी व्यवहारिक थी ही नहीं।

इससे पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के वादों और दावों पर भी प्रश्न उठता है। मजेदार यह है कि ऐसे ही दावे यमुना पर घोषित जलमार्ग को लेकर भी किये गए हैं।

यमुना नदी में गाद दर्शाती तस्वीर। नदी की गंदगी, प्रदूषण और जगह-जगह पर नदी में पर्याप्त गहराई न होने के कारण यह परियोजना व्यावहारिक नहीं दिखती। तस्वीर- अवली वर्मा
यमुना नदी में गाद दर्शाती तस्वीर। नदी की गंदगी, प्रदूषण और जगह-जगह पर नदी में पर्याप्त गहराई न होने के कारण वाटर-टैक्सी परियोजना व्यावहारिक नहीं दिखती। तस्वीर- अवली वर्मा

कहीं राष्ट्रीय जलमार्ग-110 भी न हो जाए इसी नियति का शिकार

दरअसल 2016 में दिल्ली में जगतपुर (वजीराबाद बैराज के छः किलोमीटर अपस्ट्रीम) से इलाहाबाद (प्रयागराज) में गंगा और यमुना नदी के संगम तक यमुना नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग -110 घोषित किया गया था। फरवरी 2019 में नितिन गडकरी ने प्रयागराज में कहा, “दिल्ली से प्रयागराज तक यमुना में जलमार्ग का विकास किया जायेगा। उन्होंने कहा कि इसकी विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी तैयार है।”

इस घोषणा को भी दो साल गुजर गए पर अभी तक इस जलमार्ग पर न तो इससे जुड़ा कोई विकास कार्य शुरू हुआ और ना ही इसकी विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट ही सार्वजनिक हुई।  दिल्ली में वाटर-टैक्सी प्रोजेक्ट के रिपोर्ट की तरह।

इन जरूरी दस्तावेजों का आम लोगों के लिए सुलभ होना अहम है ताकि लोग इन परियोजनाओं के विभिन्न पहलू और इसके परिणाम/दुष्परिणाम से अवगत हो सके। इन परियोजनाओं के विकास में जरूरी पारदर्शिता बनी रहे, इसके लिए भी यह जरूरी है।

2017  में शिपिंग मंत्रालय ने यमुना जलमार्ग को नौपरिवहन की दृष्टि से सही घोषित किया था। लेकिन भारतीय जलमार्ग विकास प्राधिकरण की 2020 में प्रकाशित राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास की कार्य योजना के अनुसार यमुना जलमार्ग को माल ढुलाई के वास्ते व्यावहारिक नहीं पाया गया। बस यात्री और पर्यटन के लिए सही पाया गया। वह भी सिर्फ प्रयागराज से चम्बल नदी के मुहाने तक।

इस रिपोर्ट के मुताबिक यमुना जलमार्ग को तीन हिस्से में बांट कर विकास के लिए शोध किया गया था। पहला चरण प्रयागराज से चम्बल नदी के मुहाने तक, दूसरा चरण चम्बल के मुहाने से आगरा तक और तीसरा चरण आगरा से दिल्ली तक था।

पहले चरण में जलमार्ग विकास की लागत 7,156  करोड़ रुपये, दूसरे चरण की लागत 5,078 करोड़ रुपये और तीसरे चरण की लागत  7,386 करोड़ रुपये बताई गयी है। गौर करने  की बात है कि तीनो में से एक भी चरण में इस जलमार्ग का इंटरनल रेट ऑफ़ रिटर्न यानी इससे होने वाली कमाई न के बराबर पायी गयी है।

यमुना नदी में मछुआरे की नाव। तस्वीर- अवली वर्मा
यमुना नदी में मछुआरे की नाव। तस्वीर- अवली वर्मा

नदी-पर्यटन और जल-विमान: बिना समावेशी और पारदर्शिता के नहीं बनेगा काम  

अब शिपिंग मंत्रालय द्वारा नदी-पर्यटन को खासा प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए जलमार्गों पर क्रूज चलाने और जल विमान (सी-प्लेन) उतारने की भी तैयारी है। हालांकि, यमुना वाटर-टैक्सी का सपना पूरा नहीं हुआ है पर इसकी जगह यमुना जल विमान ने ले ली है। जनवरी 2021 में शिपिंग मंत्रालय ने सागरमाला सी-प्लेन सुविधाओं की परियोजनाओं को एयरलाइन्स ऑपरेटर्स के साथ चलाने की घोषणा की। इस घोषणा में प्रस्तावित रास्तों में यमुना नदी पर दिल्ली से प्रयागराज के लिए सी -प्लेन चलाने का प्रस्ताव भी शामिल है।  सी-प्लेन सुविधाओं को दूरस्थ स्थानों को आसानी से जोड़ने का माध्यम बताया गया है। यह भी कहा जा रहा है कि कम लागत में यह संभव हो सकेगा। जब दिल्ली और प्रयागराज, सड़क के साथ-साथ रेल और हवाई-जहाज से पहले से ही जुड़े हुए हैं तो इसकी बहुत संभावना है कि यमुना में सी-प्लेन भी वाटर-टैक्सी और राष्ट्रीय जलमार्ग की तरह ही आने वाले समय में अव्यावहारिक साबित हो जाए।

इस परियोजना को गुजरात में नर्मदा नदी पर केवाडिया से अहमदाबाद तक शुरू की गयी सी-प्लेन सुविधा के अनुरूप ही ढ़ालने की बात भी कही गयी। हालांकि केवड़िया-अहमदाबाद सी-प्लेन को भी शुरुआती छ : माह में ही चार बार बंद करना पड़ा है।

मार्च 2021 में ही जल शक्ति मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि दिल्ली में वज़ीराबाद बैराज के नीचे मीठा पानी (फ्रेश वाटर) नहीं बचा है। यमुना नदी के प्राथमिक मुद्दें  जैसे  जल की गुणवत्ता, जरूरी प्रवाह, और फ्लड-प्लेन (बाढ़ प्रभावित मैदान) की स्थिति काफी खराब है यह तब है जब पिछले दो दशकों से इसपर निगरानी रखी जा रही है।

वैसे तो इन परियोजनाओं के पक्ष में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि इनकी वजह से लोगों में नदियों से जुड़ाव होगा और लोग नदियों के संरक्षण के लिए प्रेरित होंगे। पर ऐसे तर्क तब हास्यास्पद लगने लगते हैं जब दूसरी तरफ अधिक प्रदूषण होने का हवाला देकर यमुना नदी के कुछ हिस्से में मछुआरों के मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।


और पढ़ेंः [कॉमेंट्री] बिहार की नदियों की तरह बदलती बिहार के जलमार्गो की कार्य योजनाएं


इन परियोजनाओं को लेकर संशय इसलिए भी होता है क्योंकि इनसे नदी की पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का सही आंकलन सार्वजनिक नहीं होता। लोग इसपर विचार-विमर्श नहीं कर पाते। जैसे कि यमुना वाटर-टैक्सी के लिए यमुना के फ्लड-प्लेन पर बंदरगाह बनाने की बात चली। इस संदर्भ में भारतीय जलमार्ग विकास प्राधिकरण ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में इस परियोजना के पर्यावरणीय  और सामाजिक प्रभावों के आंकलन करने का वादा भी किया। पर यह आकलन हुआ या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। दूसरे, अगर हुआ भी हो तो इसकी रिपोर्ट किसी भी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं हैं।

वैसे  पिछले पांच वर्षों में पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने जलमार्ग सम्बंधित बहुत से दावे और वादे किये पर इनमें से अधिकतर योजनाएं या तो जल्दी शुरू होकर ठप हो गयीं या फिर इनकी शुरुआत ही नहीं हो पायी।

आगे इस सन्दर्भ में सही ढंग से विकास तभी हो पायेगा जब ये योजनाएं नदी की प्राथमिकता समझकर, लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की जाएं। इन योजनाओं के बनने और लागू करने में समावेशी तरीके अपनाएं जाएं तथा पूरी पारदर्शिता बरती जाए।

 

बैनर तस्वीरः वर्ष 2020 में सोनिया विहार दिल्ली में युमना नदी में मछुआरों के नावें। अधिक प्रदूषण का हवाला देकर यमुना नदी के कुछ हिस्से में मछुआरों के मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। तस्वीर- अवली वर्मा 

Exit mobile version