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[वीडियो] क्या बजट की कमी से प्रभावित हो रहा है बिहार का बाढ़ राहत अभियान?

बिहार भीषण बाढ़ की चपेट में है, लेकिन इस साल सरकार ने राहत शिविर नहीं बनाए हैं। राहत शिविर न होने की वजह से लोग सड़कों पर रहने को मजबूर हैं। तस्वीर साभार माधव

बिहार भीषण बाढ़ की चपेट में है, लेकिन इस साल सरकार ने राहत शिविर नहीं बनाए हैं। राहत शिविर न होने की वजह से लोग सड़कों पर रहने को मजबूर हैं। तस्वीर साभार माधव

  • बिहार के 11 जिले के 16 लाख से अधिक लोग बाढ़ से पीड़ित हैं, मगर अब तक एक राहत शिविर नहीं खोला गया है। सामुदायिक रसोई से ही काम चलाया जा रहा है।
  • आपदा प्रबंधन विभाग ने इस साल एक दिन भी दैनिक बाढ़ प्रतिवेदन को वेबपोर्टल पर अपलोड नहीं किया, इसे 15 जून के बाद रोज अपलोड किया जाना था।
  • कोरोना टीकाकरण, कोरोना की वजह से मरने वाले लोगों को मुआवजा देने में आठ हजार करोड़ से अधिक की राशि खर्च होने जा रही है। माना जा रहा है कि इससे सरकार का बाढ़ राहत कार्य प्रभावित हुआ है।

इन दिनों जब हर जगह देश में महाराष्ट्र और दुनिया भर में चीन में आई प्रलयंकारी बाढ़ की चर्चा है। बिहार भी इससे अछूता नहीं है। बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने इस साल पहली दफा 23 जुलाई को बाढ़ से जुड़ी रिपोर्ट जारी करते हुए सूचना दी कि राज्य के 11 जिले के 16.61 लाख लोग बाढ़ से पीड़ित हैं और इनमें से 1.10 लाख लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है। बावजूद इसके विभाग यह मानता है कि इस साल राज्य में बाढ़ जैसी स्थितियां नहीं है, ये छोटी-मोटी घटनाएं हैं।

हालांकि बिहार सरकार ने अपने आंकड़े में इस बाढ़ से मरने वाले लोगों की संख्या नहीं दी है और न ही यह बताया है कि कितने घरों को नुकसान हुआ मगर यह माना जा सकता है कि बिहार में इस साल की प्रलयंकारी बाढ़ की तुलना महाराष्ट्र और चीन की बाढ़ से नहीं की जा सकती। फिर भी यह आंकड़ा निश्चित तौर पर परेशान करने वाला है कि विभाग ने 1.10 लाख लोगों को बाढ़ पीड़ित इलाकों से बाहर निकाला है। वे कहां हैं और किस हाल में हैं यह सूचना विभाग ने नहीं दी है।

1.10 लाख बाढ़ पीड़ित कहां रह रहे इसका कोई अनुमान नहीं

विभाग की 22 जुलाई की फ्लड रिपोर्ट में यह जानकारी है कि सरकार ने अब तक बिहार में एक भी बाढ़ राहत शिविर नहीं खोले हैं। जाहिर सी बात है कि ये 1.10 लाख बाढ़ पीड़ित इन दिनों अपने भरोसे जहां-तहां रह रहे हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक विभाग द्वारा इस वक्त राज्य में 216 सामुदायिक रसोई संचालित हो रही है, जिसमें 1.92 लाख लोग भोजन कर रहे हैं। यानी बिहार सरकार बाढ़ पीड़ितों को सिर्फ दो वक्त का भोजन उपलब्ध करा देना ही अपनी जिम्मेदारी समझती है। इस कोरोना काल में पीड़ित चाहे जैसे रहें, जहां रहें।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़ के हालात का जायजा लेने के लिए हवाई सर्वेक्षण किया। तस्वीर- नीतीश कुमार के ट्विटर हैंडल से साभार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़ के हालात का जायजा लेने के लिए हवाई सर्वेक्षण किया। तस्वीर- नीतीश कुमार के ट्विटर हैंडल से साभार

दिलचस्प है कि सात जून, 2021 को राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने निर्देश जारी किया था कि बाढ़ राहत अभियान से जुड़े सभी लोगों का टीकाकरण हो, राहत शिविर और सामुदायिक किचेन में कोरोना मानकों का ध्यान रखा जाये।

इस साल बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग ने बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत शिविर तो नहीं ही खोले हैं, बल्कि बाढ़ के मौसम में हर साल जारी होने वाली दैनिक बाढ़ प्रतिवेदन को भी जारी करना बंद कर दिया। पिछले साल तक यह रिपोर्ट खुद विभाग के पोर्टल पर अपलोड हो जाती थी। दो अगस्त तक तो यही स्थिति थी। इससे तो यही स्पष्ट होता है कि सरकार बाढ़ पीड़ितों के आंकड़ों के छिपा रही है। कोसी नदी के तटबंध पीड़ितों के बीच काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र यादव ने इस आंकड़ों को सार्वजनिक न किये जाने से संबंधित एक सवाल पूछते हुए आरटीआई भी दाखिल किया था, उन्हें जवाब मिला है कि बिहार में दैनिक बाढ़ प्रतिवेदन के आंकड़ों को सार्वजनिक करने का कोई नियम नहीं है। जबकि इन अनियमितताओं पर लगातार निगाह रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एकलव्य प्रसाद कहते हैं कि किसी भी आपदा से निबटने के लिए आंकड़ों की पारदर्शिता पहली शर्त है, हम जब असम सरकार के बाढ़ से संबंधित आंकड़ों के विवरण देखते हैं तो दंग रह जाते हैं। पता नहीं क्यों बिहार में सरकार आंकड़ों को उजागर नहीं करना चाहती।

राज्य के 11 जिलों के 388 गांवों में फैले बाढ़ के पानी और 16.61 लाख लोगों के पीड़ित होने के बावजूद बिहार सरकार द्वारा एक भी राहत शिविर न खोलना और डेली फ्लड रिपोर्ट को जारी न करना लोगों के मन में कई तरह की आशंकाओं को जन्म दे रहा है। यह कयास भी लगाये जाने लगे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि कोरोना और लॉकडाउन की वजह से राज्य की माली हालत अच्छी नहीं है, इसलिए वह बाढ़ पीड़ितों की मदद करने से बच रहा है।

मुजफ्फरपुर के बाढ़ प्रभावित लोग गांव छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाते हुए। तस्वीर साभार माधव
मुजफ्फरपुर के बाढ़ प्रभावित लोग गांव छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाते हुए। तस्वीर साभार माधव

पिछली बाढ़ का मुआवजा कई लोगों को अब तक नहीं मिला

इससे संबंधित एक और तथ्य तब सामने आया जब बिहार विधानसभा में दो विधायकों ने सवाल पूछा कि उनके क्षेत्र के बाढ़ पीड़ितों को पिछले साल का मुआवजा अब तक क्यों नहीं मिला। पहला सवाल सारण जिले के 11850 पीड़ितों के बारे में था, दूसरा मधेपुराके आलमनगर और चौसाप्रखंड के 10866 पीड़ितों के बारे में। यह सवाल उस अनुदान राशि के बारे में था जिसके तहत हर पीड़ित परिवार को छह हजार रुपये दिया जाना था। इनके सवालों से यह स्पष्ट होता है कि सरकार पिछले साल के हजारों बाढ़-पीड़ितों को मुआवजा अभी तक नहीं दे पायी है। हालांकि सरकार ने इन विधायकों को जवाब दिया है कि एक हफ्ते के भीतर मुआवजा देने की कार्रवाई पूरी हो जायेगी।

विभाग के एक अधिकारी ने नाम पर छापे जाने की शर्त पर इस विलंब की वजह बताते हुए कहा कि ये बहुत छोटे मामले हैं। पिछले साल हमने 22.92 लाख लोगों को मुआवजा बांटा है। उन्होंने कहा कि राज्य में अपादा पीड़ितों की मदद के लिए राशि की कभी कमी नहीं होती। अगर दिक्कत हो तो दूसरे विभागों के हिस्से का बजट हमें दे दिया जाता है।

यह सच है कि बिहार में आपदा पीड़ितों की मदद के लिए अच्छा खासा बजट होता है। इस साल राज्य की आकस्मिकता निधि 8732 करोड़ रुपये की है। इस निधि में से ज्यादातर पैसा आपदा के मामले में खर्च होता है। मगर इस साल इस राशि के तहत कई काम होने हैं। राज्य के सभी नागरिकों को मुफ्त वैक्सीन भी इसी पैसे से लगेगा, जिसके लिए 4000 करोड़ रुपये सुरक्षित रखे गये हैं। राज्य में कोरोना से मरने वाले हर व्यक्ति को सरकार चार लाख रुपये का मुआवजा दे रही है। सरकारी आंकड़ों में राज्य में अब तक 9639 लोगों की मौत कोरोना से हो चुकी है। यानी लगभग 4,000 करोड़ रुपये उसमें भी खर्च होंगे। हालांकि सरकार पहले चरण में सिर्फ 7500 लोगोंको मुआवजा देने की तैयारी कर रही है। राज्य सरकार कोरोना की दूसरी लहर के बीच भी सामुदायिक किचेन का संचालन कर चुकी है। इसमें भी पैसे खर्च हुए होंगे।

बिहार सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के लिए सामुदायिक रसोई बनाए हैं। हालांकि, सरकार ने इनके रहने के लिए राहत शिविर नहीं बनाए हैं। तस्वीर साभार माधव
बिहार सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के लिए सामुदायिक रसोई बनाए हैं। हालांकि, सरकार ने इनके रहने के लिए राहत शिविर नहीं बनाए हैं। तस्वीर साभार माधव

इन सब तथ्यों से और सरकार के इस साल के रवैये से तो यही लग रहा है कि बाढ़ पीड़ितों के लिए सरकार के पास पैसा नहीं के बराबर है। बिहार में नदियों और बाढ़ पीड़ितों के सवाल पर लंबे समय से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता रंजीव कहते हैं कि ऐसा इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि इस बार राज्य में बाढ़ समय से पहले आ गयी है। राज्य में बाढ़ सितंबर-अक्टूबर तक आती है। सरकार संभवतः इस प्रयास में है कि आपदा राहत इस तरह संचालित हो कि अगर बाद के दिनों में भी बाढ़ आये तो उसके लिए उसके पास पैसों का प्रबंधन हो।


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बाढ़ से निबटने में साढ़े तीन से चार हजार करोड़ होते हैं खर्च

बिहार में बाढ़ और चक्रवात जैसी आपदाओं से निबटने में कितनी राशि व्यय होती है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य में 2019-20 में इस कार्य के लिए 3539 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, 2017-18 में 4461 करोड़ रुपये। बिहार राज्य आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में इन आंकड़ों का जिक्र है।

इस साल बाढ़ राहत के लिए सरकार द्वारा कितनी राशि का आवंटन हुआ है, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं है, मगर 26 जुलाई, 2021 को बिहार विधानसभा में इस साल का पहला अनुपूरक बजट पेश हुआ जिसमें 600 करोड़ रुपये प्राकृतिक आपदाओं से राहत के लिए है।

2017 से राहत शिविरों के बदले सामुदायिक रसोई को तरजीह

महेंद्र यादव कहते हैं कि एक वजह यह भी है कि सरकारी कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी से भागना चाहते हैं। इसी वजह से राहत शिविरों के बदले सामुदायिक रसोई की व्यवस्था 2017 में शुरू की गयी। वे कहते हैं, राहत शिविरों के संचालन का एक मानक तय है, वहां हर वयस्क पीड़ित को 2400 कैलोरी, बच्चे को 1700 कैलोरी भोजन देना है। छोटे बच्चों को दूध, साफ पेयजल, शौचालय, सोने के लिए बिछावन, मेडिकल कैंप, सुरक्षा एवं रोशनी का इंतजाम करना है। कोरोना काल में कुछ और नियम बन गये हैं। सोशल डिस्टेंसिंग और कोविड टेस्ट का भी प्रोटोकॉल है। यह सब करने में काफी पैसा और काफी मेहनत लगता है, इसलिए आपदा प्रबंधन विभाग राहत शिविरों के बदले सामुदायिक रसोई को तरजीह देता है। इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों को कुछ राशि दे दी जाती है, और वह लोगों को भोजन खिला देता है। मगर यह भोजन असल बाढ़ पीड़ितों तक पहुंचता है, इसकी गारंटी नहीं होती।

बिहार के 11 जिले के 16.61 लाख लोग बाढ़ से पीड़ित हैं और इनमें से 1.10 लाख लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है। तस्वीर साभार माधव
बिहार के 11 जिले के 16.61 लाख लोग बाढ़ से पीड़ित हैं और इनमें से 1.10 लाख लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है। तस्वीर साभार माधव

वे कहते हैं कि बाढ़ पीड़ितों को क्षतिपूर्ति राशि के 6,000 रुपयों के साथ-साथ, बरतन और कपड़े के लिए 3,800 रुपये दिये जाने का भी नियम है, मगर यह नियम कभी लागू नहीं होता। सामुदायिक रसोई की व्यवस्था राहत शिविर शुरू होने से पहले की आपात स्थिति के लिए की गयी थी, मगर अब सरकार ने इसे ही स्थायी व्यवस्था बना दिया है।

महेंद्र यादव ने विभाग से आरटीआई के जरिये पूछा है कि इस साल डेली फ्लड रिपोर्ट क्यों पोर्टल पर अपलोड नहीं हो रहा? उन्हें उनके इस सवाल का जवाब नहीं मिला है। वे कहते हैं, सरकार को नियमानुसार हर सामुदायिक रसोई की सूचना वेबपोर्टल पर अपलोड करना चाहिए।

केंद्र सरकार से बिहार को नहीं मिलती समुचित सहायता

यह सच है कि कोरोना और लॉकडाउन की वजह से बिहार की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है। पिछले साल 11 मई को ही राज्य के तत्कालीन वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी ने केंद्र से पैसों की कमी का हवाला देते हुए एडवांस मांग लिया था। जाहिर सी बात है कि तब से अब तक स्थितियां काफी बिगड़ी हैं और राज्य की आय पर भी असर पड़ा है।

यह भी सच है कि केंद्र सरकार बिहार की बाढ़ के लिए यहां की सरकारों को समुचित मदद नहीं देती। पिछले साल की बाढ़ से निबटने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र से 3328 करोड़ रुपये की मांग सितंबर, 2020 में की थी, बाद में उसे संशोधित कर 3634 करोड़ रुपया कर दिया था। मगर केंद्र ने बिहार को सिर्फ 1255 करोड़ रुपये दिये, वह भी फरवरी, 2021 में।

ऐसा पहली दफा नहीं हुआ है, जब केंद्र द्वारा बिहार के बाढ़ पीड़ितों को समुचित सहायता राशि नहीं दी गयी। 2016 से 2020 के बीच चार बार बिहार ने केंद्र से मदद की मांग की, यह कुल मांग 19683 करोड़ की थी, मगर राज्य को इसके एवज में केंद्र से सिर्फ 3908 करोड़ रुपये मिले। यानी जितने की मांग की गयी उसका सिर्फ 20 फीसदी पैसा मिला। वह भी तब जब केंद्र और राज्य में एक ही गठबंधन की सरकार है।

हालांकि 15वें वित्त आयोग के तहत बिहार को आपदा प्रबंधन के लिए अगले पांच वर्षों से लिए केंद्र ने 10,432 करोड़ की राशि तय कर दी है। मगर यह राशि मिलेगी और समय से मिल जायेगी, पिछले अनुभवों से ऐसा लगता नहीं है।


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ये तमाम आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि राज्य सरकार कोरोना और लॉकडाउन की वजह से फिलहाल ऐसे आर्थिक संकट से जूझ रही है कि वह फिलहाल बाढ़ पीड़ितों के सवाल को टाल देना चाहती है। हालांकि इस सवाल पर राज्य का कोई अफसर आधिकारिक टिप्पणी देने के लिए तैयार नहीं है।

इस बीच सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 1.10 लाख लोग बाढ़ की वजह से सड़कों पर हैं, वे हाईवे के किनारे हैं, तटबंधों के किनारे या किसी अन्य जगह पर झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। राज्य सरकार यह जरूर कहती है कि उसने ऐसे लोगों के बीच 87,132 पॉलिथीन शीट बंटवाये हैं। मगर इनके सुरक्षित रहने के लिए राहत शिविरों के संचालन में उसकी रुचि नहीं है।

 

बैनर तस्वीरः बिहार भीषण बाढ़ की चपेट में है, लेकिन इस साल सरकार ने राहत शिविर नहीं बनाए हैं। राहत शिविर न होने की वजह से लोग सड़कों पर रहने को मजबूर हैं। तस्वीर साभार माधव

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