Site icon Mongabay हिन्दी

जानलेवा प्रदूषणः मुंबई की इस बस्ती में 40 साल में ही आ जाता है बुढ़ापा

देवनार

देवनार

  • देवनार में मुंबई शहर का कचरा इकट्ठा होता है। 134 हेक्टेयर में फैले इस डंपिंग ग्राउंड पर 9,000 मीट्रिक टन कचरा जमा होता है, जिससे पास की बस्ती में लोगों का जीना दूभर हो गया है।
  • बस्ती में रहने वाले लोगों के जीवन पर प्रदूषण का इतना घातक असर हो रहा है कि यहां के लोगों का औसत जीवनकाल 39 वर्ष ही रह गया है। जबकि महाराष्ट्र में शहरी लोगों का औसत जीवनकाल 73.5 साल आंका गया है।
  • मुंबई के कचरा प्रबंधन के लिए राजनीतिक इच्छा-शक्ति भी जरूरी है। हाल ही में नगर निगम ने कचरा चुनने वालों को गीले और सूखे कचरे को अलग करने का ठेका देने का निर्णय लिया है। जबकि कई सालों से यह कहा जा रहा है कि घरों में ही गीले और सूखे कचरे को अलग करना सबसे बेहतर उपाय है।

सूरज उगने से पहले जगकर तैयार होती मानसी दिघे (बदला हुआ नाम) का दिन बेहद संघर्षों से भरा होने वाला है। साड़ी ठीक कर अपने बाल बनाते हुए दिघा की मंजिल है मुंबई का सबसे बड़ा डंपिंग ग्राउंड-देवनार।

रोज 20 से 25 किलोमीटर की थकान भरी पैदल यात्रा से दिघे इतना कचरा भी इकट्ठा नहीं कर पाती कि उसे बेचकर 100 रुपए से अधिक की कमाई हो सके। लोहा, प्लास्टिक और कांच के टुकड़े 20 रुपए प्रति किलो बिक जाते हैं।

मुंबई की एक करोड़ से अधिक आबादी हर दिन 9,000 मीट्रिक टन कचरा पैदा करती है जिसे 234 एकड़ में फैले डंपिंग ग्राउंड में भेजा जाता है। यहां कचरे का अंबार 18 से 20 मंजिला इमारत जितना है। आसपास की बस्तियों में रहने वाले लोग यहां से काम लायक कचरा चुनकर अपनी रोजी-रोटी भी चलाते हैं।

“हमारे लिए तो यह कचरे का अंबार सोने की खान जितना महत्व रखता है,” दिघे कहती हैं।

“कचरा बीनने के लिए ग्राउंड में घुसना है तो नगर निगम के कर्मचारियों को कुछ पैसा खिलाना पड़ता है,” वह कहती हैं।

हाल ही में मुंबई के नगर निगम ने घोषणा की है कि कचरा चुनने वालों को डम्पिंग ग्राउन्ड इत्यादि में कचरा अलग करने का ठेका दिया जाएगा। जबकि यह कहा जाता रहा है कि कचरा को घर में ही अलग करना सबसे बेहतर उपाय है।

सरकार के इस कदम से कितना फायदा होगा यह तो भविष्य की गर्भ में है पर इस बहाने इस डंपिंग ग्राउंड के आस-पास रहने वाले लोगों की हालचाल जानें।

मुंबई में इन बस्तियों में रहना सबसे सस्ता विकल्प है, इस वजह से प्रवासी मजदूर और कचरा बीनने वाले लोग यहां रहने को मजबूर हैं। तस्वीर- अपनालय
मुंबई में इन बस्तियों में रहना सबसे सस्ता विकल्प है, इस वजह से प्रवासी मजदूर और कचरा बीनने वाले लोग यहां रहने को मजबूर हैं। तस्वीर- अपनालय

स्थानीय लोगों की मानें तो देवनार के लोगों का जीना दूभर हो रखा है। यहां के कचरे से, सड़ने के बाद, मिथेन गैस निकलता है जिसकी वजह से यहां बार-बार आग लगने की घटनाएं भी होती रहती है। बदबू की समस्या भी बनी रहती है। नगर निगम इससे निपटने के लिए कुदरती तरीके निकालने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए हाल ही में एक टेंडर भी निकाला गया। आसपास के लिए धुएं और बदबू की वजह से लोग कई बीमारियों के शिकार हो रहे हैं, जिससे उनका जीवनकाल घट रहा है।

गंदगी के साथ जीने की मजबूरी

यहां के लोगों की परेशानी आसपास के कई सामाजिक संस्थाओं ने भी सामने लाने की कोशिश की है। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस) और कई दूसरे गैर सरकारी संस्थाओं ने कई बार यह मुद्दा उठाया है।

“गंदगी और प्रदूषण के पास रहते-रहते यहां के लोगों का जीवनकाल औसतन 39 साल हो गया है जबकि महाराष्ट्र में यह 73.5 आंका गया है,” चंद्रिका राव कहते हैं जो अपनालय संस्था से सिटिजन एंड एंडवोकेसी डायरेक्टर के तौर पर जुड़े हैं।


और पढ़ेंः जयपुर: कई गांवों में ‘मौत’ बांट रहा स्मार्ट सिटी से निकला कचरा


टीआईएसएस की एक रपट इलाके के सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति को दिखाती है। रपट के मुताबित इस इलाके में कुपोषण, सांस लेने में तकलीफ और क्षय रोग जैसी बीमारियां काफी अधिक लोगों में है।

“मेडिकल कचरे की वजह से भी लोगों को सांस की समस्याएं आ रहीं हैं। यहां एक निजी कंपनी ने मेडिकल कचरे के जलाने की लिए भट्ठी स्थापित किया है जिसे समस्या की जड़ माना जाता है,” टीआईएसएस की रपट तैयार करने वाली टीम की सदस्य पूर्वा देवूलकर ने कहा।

इन बस्तियों की सामाजिक स्थिति पर राव कहते हैं कि हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि डंपिंग ग्राउइंड के पास बनी बस्ती शिवाजी नगर में महज 63 प्रतिशत लोगों का नाम मतदाता सूची में है।

लोगों का आरोप है कि किसी भी सरकार ने यहां के लोगों का ध्यान नहीं दिया। मार्च 2016 में महाराष्ट्र के तत्कालीन पर्यावरण मंत्री और शिवसेना के नेता रामदास कदम ने आरोप लगाया था कि भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर राजनीतिक फायदा लेना चाहती है। शिवसेना से सांसद अरविंद सावंत ने भी इस आरोप का समर्थन किया था।

इसके बाद कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस स्थान का दौरा किया, लेकिन इसका कोई खास फायदा होता नहीं दिखा। उच्च न्यायालय द्वारा स्थापित एक कमेटी ने भी पाया कि यहां से हालात बदलने के लिए कोई पुख्ता कोशिश नहीं की गई।

इन दिक्कतों की वजह से कोई इस डंपिंग ग्राउंड के आसपास रहना नहीं चाहता। राव ने अपने शोध में पाया कि यहां के लोग अभी सफलता का पैमाना डंपिंग ग्राउंड से घर की अधिक से अधिक दूरी को मानते हैं।

देवनर में गंदगी के बीच जीवन। यहां रोजाना 9000 मीट्रिक टन कचरा जमा किया जाता है। तस्वीर- अपनालय, मुंबई
देवनर में गंदगी के बीच जीवन। यहां रोजाना 9000 मीट्रिक टन कचरा जमा किया जाता है। तस्वीर- अपनालय, मुंबई

कहां है समस्या की जड़

“वर्ष 1927 के बाद से मुंबई का कचरा, कुर्ला से हटाकर शहर के बाहर देवनार में जमा किया जाने लगा,” कहते हैं देवूलकर। अब शहर का आकार इस कदर बढ़ा है कि देवनार शहर के बीच आ गया है। यह डंपिंग ग्राउंड लोगों को खराब जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर रहा है।

“डंपिंग ग्राउंड के आसपास रहना मुंबई में रहने का सबसे सस्ता इलाका है,” संपूर्ण अर्थ एनवायरनवमेंट सॉल्यूशन के डायरेक्टर देबर्थ बैनर्जी कहते हैं। यहां प्रवासी मजदूर रहते हैं जिन्हें 500 से 1000 रुपये तक में छोटा सा कमरा मिल जाता है। अधिकतर लोगों की जिंदगी, कचरा इकट्ठा करने से चलती है।

 कचरा निपटाने का क्या है बेहतर तरीका

एक अध्ययन कहता है कि कचरा प्रबंधन को कचरा इकट्ठा कर डंपिंग ग्राउंड में डालने के बजाए, उसके खत्म करने की तरफ मोड़ना होगा। इसमें कंपोस्टिंग, डायजेशन और कचरे को दोबारा किसी प्रयोग में लाने के उपाय सोचने होंगे। अध्ययन के मुताबिक ऐसे कई उपाय मौजूद हैं, लेकिन इसे लागू नहीं करने की वजह से समस्या विकराल होती जा रही है।

अगर हाउंसिंग सोसायटी को अपना कचरा वर्गीकृत करने का जिम्मा दिया जाए तो कचरे से खाद बनाना और इसे रिसाइकल करना आसान होगा।

देवनार
मुंबई का सबसे बड़ा डंपिंग ग्राउंड-देवनार। तस्वीर- अपनालय, मुंबई

कहां से हो शुरुआत

कचरे का वर्गीकरण इसके बेहतर प्रबंधन के लिए बेहद जरूरी है। इसे कचरा उत्पन्न होने के स्थान पर ही करना होगा। अभी तक यह जिम्मेदारी नगर निगम ही निभा रहा है। हालांकि, नगर निगम कचरा डंप करने के लिए नए-नए स्थान खोजता रहता है, जिससे परिवहन का खर्च बढ़ता जा रहा है। श्री मुक्ति संगठन की ज्योति म्हापसेकर कहती हैं कि कचरे को डंप करना एक कारगर तरीका नहीं है। उनकी संस्था कचरा बीनने वाले लोगों के लिए काम करती है।

हर साल बीएमसी कचरा प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए बजट में घोषणाएं करता है, लेकिन हर बार नाकामी हाथ आती है।

“अगर मुंबई को अपना कचरा प्रबंधन ठीक करना है तो इसे वग्रीकृत कर आसपास ही दोबारा उपयोग लायक स्थिति में इसे लाना होगा। इससे पर्यावरण का नुकसान भी कम होगा,” बैनर्जी करते हैं।

राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव

राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से मुंबई का कचरा प्रबंधन बेहतर नहीं हो पा रहा है। “शहर में कई वार्ड पार्षद हैं जो कि इस समस्या को स्टैंडिंग कमेटी की बैठकों में उठा सकते हैं। हालांकि, उनके पास सीमित क्षमता है,” देवूलकर करते हैं।

“कचरे का निपटारा करने के मामले में नगर निगम असफल रहा है,” वह कहती हैं।


और पढ़ेंः [वीडियो] कांच की बोतलों से बेहाल हैं गोवा के खूबसूरत बीच


प्रजा फाउंडेशन नामक संस्था अपने एक अध्ययन में पाया है कि पार्षद अपनी उपलब्ध शक्तियों का इस्तेमाल भी नहीं करते और आसानी से होने वाले उपायों को भी नहीं अपनाते।

जबतक इस समस्या को कोई समुचित समाधान नहीं मिल जाता, लोग ऐसे ही परेशान होते रहेंगे। वर्ष 2016 में आग लगने से डंपिंग ग्राउंड के आसपास धुएं की वजह से लोगों का बुरा हाल हो गया था। धुएं की वजह से ग्राउंड से 10 किलोमीटर दूर कुर्ला कॉम्प्लेक्स का एयर क्वालिटी इंडेक्स 322 पहुंच गया था।

कचरा बीनकर जीवन यापन करने वाली मानसी जैसे हजारों लोग खराब जीवनशैली की वजह से काल के गाल में जा रहे हैं।

 

बैनर तस्वीरः देवनार में रहने वाले लोग औसतन 39 वर्ष ही जी पाते हैं। महाराष्ट्र में शहरी इलाके का औसतन जीवनकाल 73.5 आंका गया है। तस्वीर- अपनालय

Exit mobile version