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[वीडियो] छत्तीसगढ़ के जंगलों में हाथियों के लिए छोड़ा जा रहा धान, जानकारों को अजीब लग रहा यह फैसला

हसदेव अरण्य को हाथियों का घर कहा जाता है। यह करीब 1,70,000 हेक्टेयर में फैला जैव विविधता से भरा हुआ जंगल है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

हसदेव अरण्य को हाथियों का घर कहा जाता है। यह करीब 1,70,000 हेक्टेयर में फैला जैव विविधता से भरा हुआ जंगल है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

  • छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य पर रिकॉर्ड धान की ख़रीदी अब राज्य सरकार के लिए मुश्किल का सबब बना हुआ है। तमाम कोशिशों के बाद जब धान की खपत नहीं हो पा रही है तो अब सरकार ने 2500 रुपये के समर्थन मूल्य पर ख़रीदे गये धान को हाथियों को खिलाने का फ़ैसला किया है।
  • राज्य में लगभग पांच सौ जंगली हाथी हैं और पिछले तीन सालों के आंकड़े बताते हैं कि हर दिन राज्य में फसल नुकसान के 60 मामले और घरों व दूसरी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के सात से अधिक मामले सामने आते हैं।
  • विशेषज्ञ राज्य सरकार के इस फ़ैसले से असहमत हैं और उन्होंने इसके प्रतिकूल परिणाम की आशंका जताई है।

सरगुजा ज़िले के मैनपाट के बरपारा के लोकनाथ यादव अपने टूटे हुए घर के सामने खड़े हो कर यही सोच रहे हैं कि अब इस बरसात में टूटे घर की मरम्मत कैसे हो। कंडराजा पंचायत के इस गांव में रविवार को जंगली हाथियों के एक दल ने घुस कर कई घरों को तोड़ डाला। यह सब कुछ तब हुआ, जब इसी मैनपाट इलाके के डांडकेसरा, केसरा और दूसरे गांवों से लगे जंगल के इलाके में वन विभाग ने हाथियों के खाने के लिए कई बोरा धान खुले में रखा था। इससे दो दिन पहले मैनपाट के ही उरंगा पतरापारा में हाथियों ने वन विभाग द्वारा रखे गये धान के बोरे को छुआ तक नहीं और गांव में घुस कर पांच घरों को तोड़ डाला और घरों में रखा अनाज खा गये। धान की उपलब्धता के बाद भी हाथियों के गांवों तक पहुंचने के ऐसे कुछ और मामलों के सामने आने के बाद अब हाथियों को धान खिलाने की राज्य सरकार की योजना हास्यास्पद लगने लगी है। इस योजना पर सवाल शुरू से उठ रहे हैं।

असल में छत्तीसगढ़ के पास धान की अधिकता होने से राज्य सरकार इसे खपाने के तरह-तरह के रास्ते तलाश रही है। पहले चावल से इथेनॉल बनाने की योजना बनाई जो अभी अधर में है। अब राज्य सरकार ने समर्थन मूल्य पर ख़रीदे गये धान को छत्तीसगढ़ के जंगली हाथियों को खिलाने का फ़ैसला किया है।

राज्य सरकार का दावा है कि वन विभाग ने कुछ इलाकों में हाथियों को धान खिलाने का प्रयोग किया था और प्रयोग सफल होने के बाद यह फ़ैसला लिया गया है।

धान की अधिकता

असल में 2018 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस पार्टी की सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपये प्रति क्विंटल देना शुरु किया और अब तक की धान ख़रीदी के सारे रिकार्ड ध्वस्त हो गये।

भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में 2017-18 में राज्य में 12.06 लाख किसानों से 56.88 लाख मीट्रिक टन धान की ख़रीदी की गई थी। लेकिन 2018-19 में धान की यह मात्रा बढ़ कर 80.38 लाख मीट्रिक टन, 2019-20 में 83.94 लाख मीट्रिक टन और 2020-21 में 92.00 लाख मीट्रिक टन धान की समर्थन मूल्य पर ख़रीदी की गई। लेकिन धान की यह रिकार्ड तोड़ ख़रीदी ही अब राज्य सरकार के लिए मुश्किल का सबब बन गई है।

बिलासपुर के हिर्री इलाके में एक धान संग्रहण केंद्र में किसानों से समर्थन मूल्य पर ख़रीदे गये धान का हाल
बिलासपुर के हिर्री इलाके में एक धान संग्रहण केंद्र में किसानों से समर्थन मूल्य पर ख़रीदे गये धान का हाल। राज्य में धान की खरीदी अधिक हो जाने की वजह से सरकार उसे खपाने के तरीके ढूंढ रही है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

इस वर्ष 28 जुलाई को विधानसभा में राज्य के खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने जो जानकारी उपलब्ध कराई है, उसके अनुसार राज्य सरकार के पास पुराना धान तो पहले से पड़ा ही हुआ था, 2020-21 में जिस धान की ख़रीदी की गई थी, उसमें से भी केवल 64.56 लाख मीट्रिक टन धान की ही कस्टम मिलिंग की गई है। जनवरी के बाद से 14.79 लाख टन अभी तक धान संग्रहण केंद्रों में ही पड़ा हुआ है, जबकि 2.33 लाख टन समितियों में ही पड़ा हुआ है यानी कुल 17.09 लाख टन धान अभी तक पड़ा हुआ है।

हालत ये है कि बारिश में भीग कर कई इलाकों में धान में अंकुर निकल गये तो कई जगह धान सड़ गया। दो साल पहले राज्य सरकार ने चावल से इथेनॉल बनाने की घोषणा की थी लेकिन अभी तक चावल ख़रीदी को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच मामला अटका हुआ है। ऐसे में धान का किसी भी तरह निपटारा ज़रुरी था।

यही कारण है कि राज्य सरकार ने पहली बार 2,500 रुपये प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य पर ख़रीदे गये धान को खुली नीलामी के माध्यम से बेचने का फ़ैसला किया। अब तक राज्य सरकार भारी घाटा उठा कर, अलग-अलग ज़िलों में न्यूनतम 1350 रुपये और अधिकतम 1580 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 9.20 लाख टन की ही नीलामी कर पाई है। राज्य सरकार ने जो लक्ष्य तय किया था, उतनी धान की भी नीलामी नहीं हो पाई।

हाथियों को धान खिलाने की योजना

तमाम उपाय के बाद भी जब लाखों टन धान बचा रह गया तो राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहने वाले हाथियों को धान खिलाने की घोषणा की है।

छत्तीसगढ़ में लगातार कोयला खनन के बाद सरगुजा और बिलासपुर वन वृत्त में रहने वाले हाथी, अब पूरे राज्य में फैल गये हैं। मई 2017 में की गई अंतिम हाथी गणना में राज्य में 398 हाथियों के होने का दावा किया गया था। इनमें सरगुजा वृत्त में 212, बिलासपुर वृत्त में 121, रायपुर वृत्त में 42 और दुर्ग वन वृत्त में 23 हाथी शामिल थे। माना जा रहा है कि अब इन हाथियों की संख्या 500 से ऊपर हो चुकी होगी।

एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल छत्तीसगढ़ में 500 से अधिक हाथी हैं। वर्ष 2017 की गणना में इनकी संख्या 398 थी। ।प्रतीकात्मक तस्वीर- ए जे टी जॉनसिंह, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया और एनसीएफ/विकिमीडिया कॉमन्स
एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल छत्तीसगढ़ में 500 से अधिक हाथी हैं। वर्ष 2017 की गणना में इनकी संख्या 398 थी। ।प्रतीकात्मक तस्वीर– ए जे टी जॉनसिंह, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया और एनसीएफ/विकिमीडिया कॉमन्स

पूरे राज्य में फैले इन हाथियों के साथ हर दिन संघर्ष की ख़बरें सामने आती हैं। पिछले 3 सालों के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में मानव-हाथी संघर्ष में 204 लोग मारे गये हैं, वहीं इस दौरान 45 हाथियों की भी मौत हुई है। इन तीन सालों में फसल नष्ट करने के 66,582 मामले, घरों को नुकसान पहुंचाने के 5,047 और दूसरी संपत्तियों को नष्ट करने के 3,151 मामले भी सामने आए हैं।

राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक पीवी नरसिंह राव के अनुसार मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए वन विभाग ने गांवों से कुछ दूरी पर, जंगलों में धान के ढेर लगाने का फैसला किया है, जो हाथियों को मानव बस्तियों में प्रवेश करने से रोकने का काम करेंगे।

इसके लिए आनन-फानन में वन विभाग ने राज्य के नौ ज़िलों में हाथियों के लिए, लागत मूल्य पर धान उपलब्ध कराने के लिए राज्य के सहकारी विपणन संघ को चिट्ठी लिखी और अब धान उपलब्ध कराने की प्रक्रिया भी शुरु कर दी गई है। अभी 2,095.83 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वन विभाग को धान उपलब्ध कराने पर सहमति बनी है।

राज्य के वन मंत्री मोहम्मद अक़बर ने हाथियों को धान खिलाए जाने की ख़बरों के बीच एक प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि राज्य के अलग-अलग वन क्षेत्र के 11 बीट में धान रखा गया था। इनमें से तीन बीट में हाथियों ने धान को खाया। वे इसे सफल प्रयोग बता रहे हैं।

मोहम्मद अक़बर कहते हैं, “लगातार अध्ययन के बाद हमलोग ये देख रहे हैं कि जब हाथी गांव में हमला करते हैं तो उसी कमरे को तोड़ते हैं, जिसमें अनाज रखा हुआ है। हमारी योजना ये है कि जब हाथी गांव के रास्ते में आएंगे तो उन रास्तों में ही धान के बोरे खोल कर रख दिए जाएंगे। जब हाथियों को रास्ते में ही खाना मिल जाएगा तो हाथी गांव के भीतर प्रवेश नहीं करेंगे और तोड़फोड़ नहीं करेंगे।”

राज्य के खाद्य मंत्री अमरजीत भगत का कहना है कि वन विभाग ने हाथियों के लिए खराब धान की मांग की है। जो खराब क्वालिटी का धान है, उसे वन विभाग को दिया जाएगा। संभव है, इससे हाथियों के उत्पात में कमी आए।

हाथियों का आशियाना छिनने से स्थानीय लोग इसके दुष्परिणाम झेल रहे हैं। पिछले 20 सालों में राज्य में 162 हाथियों की मौत हो चुकी है और अधिकांश मौत हाथी-मानव संघर्ष का परिणाम हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल
हाथियों का आशियाना छिनने से स्थानीय लोग इसके दुष्परिणाम झेल रहे हैं। पिछले 20 सालों में राज्य में 162 हाथियों की मौत हो चुकी है और अधिकांश मौत हाथी-मानव संघर्ष का परिणाम हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

लेकिन विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी, सरकार की इस योजना को लेकर कई सवाल खड़े कर रही है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता औऱ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का कहना है कि हाथियों के नाम पर राज्य सरकार अंकुरित और सड़े धान को करीब 2100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से ख़रीद रही है, जबकि खुले बाजार में यही धान 1400 रुपये की दर नीलाम की गई है।

उन्होंने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “कौन-सी मजबूरी है कि हाथियों को खिलाने के लिए सड़े हुए धान को प्रति क्विंटल दो हजार रुपये से अधिक की कीमत में ख़रीद कर खिलाने की बात हो रही है? राज्य सरकार ने धान ख़रीदी में भ्रष्टाचार किया है, इसलिए अब उसे निपटाने के लिए हाथियों को धान खिलाने की योजना की शुरुआत की है।”


और पढ़ेंः तकनीक के सहारे हाथियों से बचाव, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में हो रहे नए प्रयोग


प्रयोग पर सवाल

हाथियों को धान खिलाने के वन विभाग के फ़ैसले को लेकर हाथियों के जानकार भी सवाल उठा रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य वन संरक्षक केके बिसेन का कहना है कि 2018 में वन विभाग ने हाथियों को जंगल के भीतर ही रोकने और भोजन देने की कोशिश की थी और इसी तरह धान के कुछ बोरे रखे गये थे। लेकिन हाथियों ने धान को नहीं खाया।

वन्यजीव विशेषज्ञ मीतू गुप्ता का कहना है कि इस तरह के किसी प्रयोग से पहले व्यापक अध्ययन ज़रुरी है। भारत और दुनिया के दूसरे देशों में मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए किए गये प्रयोगों से सीख लेते हुए कई ज़रुरी क़दम उठाये जा सकते हैं। उन्होंने मोंगाबे-हिंदी से बात करते हुए कहा कि हाथियों के लिए धान की मुलायम और नरम फसल को खाने के उदाहरण तो मिलते हैं लेकिन वे वन विभाग द्वारा बोरे में रखे गये धान को खा कर वहीं रुक जाएंगे, इसमें संशय है।

वे कहती हैं, “हाथी के अलावा दूसरे जानवर भी धान खाने आएंगे और इससे दूसरी तरह की पारिस्थितिक से संबंधी परेशानियां शुरु हो सकती हैं, जिसका केवल अनुमान भर लगाया जा सकता है।”

भारत में 1992 में शुरु किए गये प्रोजेक्ट एलिफेंट से जुड़े रहे डॉक्टर रमन सुकुमार पिछले 40 सालों से हाथियों पर शोध और अध्ययन कर रहे हैं। दुनिया के शीर्ष हाथी विशेषज्ञों में शुमार किए जाने वाले डॉक्टर रमन सुकुमार भी छत्तीसगढ़ सरकार के इस फ़ैसले को लेकर कई आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं।

डॉक्टर रमन सुकुमार ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “ छत्तीसगढ़ सरकार इससे क्या हासिल करना चाहती है? अगर वे इससे मानव-हाथी संघर्ष को रोकना चाहते हैं, तो यह संभव नहीं है। विज्ञान की भाषा में हम इसे कहते हैं पॉजिटिव रिइंफोर्समेंट। हाथी को हम धान का स्वाद चखा कर उसे इसकी आदत लगाएंगे तो वह जंगल के भीतर जा कर अपना प्राकृतिक भोजन करना बंद कर देगा।”

बिलासपुर के हिर्री इलाके में एक धान संग्रहण केंद्र में किसानों से समर्थन मूल्य पर ख़रीदे गये धान का हाल
बिलासपुर के हिर्री इलाके में एक धान संग्रहण केंद्र में किसानों से समर्थन मूल्य पर ख़रीदे गये धान का हाल। राज्य सरकार ने चावल से इथेनॉल बनाने के प्रयास भी कर रही है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

डॉक्टर सुकुमार कहते हैं, “आप एक बार हाथियों को खिलाना शुरु कर देंगे तो वे उन्हीं जगहों पर खाने की प्रतीक्षा करेंगे। वे हमेशा ऐसा ही करेंगे। हम उन्हें कितने दिन तक खिला पाएंगे? यह कोई आसान काम नहीं होगा और ना ही यह समस्या का समाधान है। उनकी आबादी भी बढ़ेगी और किसी दिन उन्हें भोजन नहीं मिलेगा तो वे और आक्रामक हो सकते हैं और अनाज की तलाश में वे घरों को तोड़ेंगे। वे जंगल की ओर नहीं लौटेंगे क्योंकि तब तक उन्हें अनाज का स्वाद लग चुका होगा। आप इसकी भयावहता का अनुमान लगा सकते हैं।”

डॉक्टर रमन सुकुमार का सुझाव है कि छत्तीसगढ़ सरकार को पड़ोसी राज्यों के साथ मिल कर मानव-हाथी द्वंद को रोकने के लिए, विशेषज्ञों के साथ मिल कर दीर्घकालीन योजना बनानी चाहिए। लेकिन मंत्रीमंडल के फैसले के दो साल बाद भी राज्य के लेमरु हाथी रिजर्व को अधिसूचित करने में जिस तरह सरकार फाइलों में बंद कर बैठी है, उससे लगता नहीं है कि ऐसी किसी दीर्घकालीन योजना में राज्य सरकार की कोई दिलचस्पी होगी।

 

बैनर तस्वीर- छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य का हाथी। मई 2017 में की गई अंतिम हाथी गणना में राज्य में 398 हाथियों के होने का दावा किया गया था। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

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