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एसएमएस से मौसम की जानकारी किसानों के लिए कितनी है कारगर?

एसएमएस से मौसम की जानकारी किसानों के लिए कितनी है कारगर?

एसएमएस से मौसम की जानकारी किसानों के लिए कितनी है कारगर?

  • किसानों को एसएमएस के ज़रिये मौसम और कृषि से जुड़ी सलाह दी जाती है। जिससे खेती से जुड़े रोजमर्रा के कार्यों में किसानों को मदद मिल सके। देशभर में 200 ज़िला एग्रोमेट यूनिट हैं जो ब्लॉक स्तर पर मौसम के लिहाज से एडवाइजरी जारी करने का दावा करती हैं।
  • आईआईटी दिल्ली के शोधार्थियों ने वर्ष 2016 से 2019 के बीच इस एडवाइजरी को लेकर अध्ययन किया। इस अध्ययन का मकसद ये समझना था कि क्या किसान मौसम-कृषि आधारित सलाह की मदद ले रहे हैं।
  • इस अध्ययन में सामने आया कि जहां किसानों को लागत लगानी है वहां तो वे इस जानकारी का फायदा उठा रहे हैं पर जहां लागत नहीं लगनी है जैसे नहर से सिंचाई इत्यादि, वहां निर्णय उपलबद्धता पर निर्भर है। ऐसी जानकारी मिलने से किसानों की उपज पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा पर लागत में कमी जरूर आई है।

एक तरफ टिहरी के किसान भागचंद रमोला हैं। रुआंसे होकर अपने अनुभव बताते हैं कि इस साल साफ़ मौसम और खिली धूप देखकर उन्होंने सब्जियों की नर्सरी पर लगी नेट हटा दी थी। ताकि पौधों को खुली हवा और धूप मिल जाए। ये अप्रैल का तीसरा हफ़्ता था। उम्मीद से उलट मौसम बदल गया। उसी रात तेज़ बारिश के साथ ओले गिरे। उनकी तकरीबन दो महीने की मेहनत पर पानी फिर गया। बारिश थमने के बाद उन्होंने दोबारा नर्सरी तैयार करनी शुरू की।

देश के अधिकतर किसानों की लगभग यही कहानी है। यहां मौसम, खेती, उपज और किसानों की आमदनी का सीधा नाता है और मौसम की अनिश्चितता जगजाहिर है।

दूसरी तरफ हैं हिसार के हांसी तहसील के सिसाय गांव के किसान राजकुमार सिंह। वह बताते हैं “मौसम में कोई विशेष परिवर्तन होता है तो हिसार कृषि विश्वविद्यालय की ओर से हमें एसएमएस मिलता है। जिसमें अगले 48 घंटों में बारिश या आंधी जैसी सूचना दी जाती है। इन एसएमएस से मुझे मदद तो मिलती है।”

इसके फायदे गिनाते हुए राजकुमार सिंह कहते हैं, “अगर हमें 48 घंटे पहले बारिश की सूचना मिल गई है, तो मैं ट्यूबवेल चलाकर खेत में पानी नहीं डालता। इससे मेरा डीज़ल और बिजली का खर्च बच जाता है। लेकिन अगर नहर का पानी मिल रहा होगा। जो कि हमारे लिए 40 दिन में एक हफ्ते भर के लिए ही खुलती है, तो बारिश की सूचना मिलने के बाद भी मैं उस पानी को नहीं छोड़ूंगा।”

राजकुमार सिंह को यह एसएमएस एक सरकारी योजना के तहत आता है जिसका वह जिक्र कर रहे हैं। सरकारी दावे के अनुसार मौजूदा समय में देश के 4.37 करोड़ किसानों को एसएमएस के ज़रिये एग्रोमेट एडवाइज़री जारी की जाती है।

पर क्या मौसम से जुड़ी जानकारी भागचंद जैसे किसानों की मदद कर रही है? इसे जानने के लिए हरियाणा के किसानों पर एक अध्ययन किया गया और राजकुमार सिंह उस अध्ययन के हिस्सा रहे हैं।  

एसएमएस से किसानों को मौसम की जानकारी दी जाती है। सरकारी दावे के अनुसार मौजूदा समय में देश के 4.37 करोड़ किसानों को एसएमएस के ज़रिये एग्रोमेट एडवाइज़री जारी की जाती है। तस्वीर- फ्रांसेस्को फियोन्डेला/फ्लिकर
एसएमएस से किसानों को मौसम की जानकारी दी जाती है। सरकारी दावे के अनुसार मौजूदा समय में देश के 4.37 करोड़ किसानों को एसएमएस के ज़रिये एग्रोमेट एडवाइज़री जारी की जाती है। तस्वीर– फ्रांसेस्को फियोन्डेला/फ्लिकर

एग्रो-मेट एडवाइजरी: एसएमएस से किसानों को मौसम की जानकारी 

 भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र, इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च और राज्य कृषि विश्वविद्यालय मौसम के मुताबिक फसलों से जुड़ी मौसम-कृषि सलाह यानी एग्रो-मेट एडवाइजरी जारी करते हैं। जो ग्रामीण कृषि मौसम सेवा योजना के नाम से जानी जाती है। देशभर में 200 ज़िला एग्रोमेट यूनिट हैं, जो ब्लॉक स्तर पर मौसम के लिहाज से एडवाइजरी जारी करने का दावा करती हैं। इन सूचनाओं को और बेहतर बनाने के लिए एग्रो-ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन स्थापित किये जाने का कार्य भी चल रहा है। 3 अगस्त को राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ जितेंद्र सिंह ने यह जानकारी दी।

इस एडवाइजरी को लेकर इंडियन इंस्टिट्यूट पर टेक्नॉलजी (आईआईटी) दिल्ली के कुछ शोधार्थियों ने वर्ष 2016 से 2019 के बीच एक अध्ययन किया। इस अध्ययन का मकसद ये समझना था कि क्या किसान मौसम-कृषि आधारित सलाह की मदद ले रहे हैं? ये सलाह किसानों के लिए कितनी कारगर है? और क्या एसएमएस जैसी आसान तकनीक किसानों तक मौसम और खेती से जुड़ी सूचनाएं पहुंचाने का बेहतर ज़रिया हो सकती है?

इस बारे में आईआईटी दिल्ली में स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी विभाग में असोसिएट प्रोफेसर डॉ उपासना शर्मा और उनके साथियों ने हरियाणा के दो अलग-अलग एग्रो-क्लाइमेटिक ज़ोन के आधार पर छः ज़िलों हिसार, पलवल, मेवात, अंबाला, जींद, पंचकुला का चयन किया गया। यहां 300-300 किसानों के दो समूह बनाए। एक कंट्रोल ग्रुप और दूसरा एक्सपेरिमेंटल ग्रुप।

देहरादून के धान के खेत। समय पर मौसम की जानकारी मिलने से किसानों को सिंचाई और कीटनाशक छिड़काव जैसे निर्णयों में मदद मिलती है। तस्वीर- वर्षा सिंह
देहरादून के धान के खेत। समय पर मौसम की जानकारी मिलने से किसानों को सिंचाई और कीटनाशक छिड़काव जैसे निर्णयों में मदद मिलती है। तस्वीर- वर्षा सिंह

डॉ उपासना बताती हैं, “हमने अपने अध्ययन के लिए सीसीएस हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से साझेदारी की। उनकी मदद से ऐसे गांव भी चुने, जहां के किसानों के पास मौसम-कृषि से जुड़ी कोई सूचना नहीं पहुंच रही थी। विश्वविद्यालय के ज़रिये एक्सपेरिमेंटल ग्रुप के किसानों को मौसम से जुड़ी जानकारी एसएमएस के माध्यम से भेजनी शुरू की। जबकि कंट्रोल ग्रुप के किसानों को इस तरह की कोई सूचना नहीं दी जा रही थी।”

ये अध्ययन रबी की फ़सल के दौरान ही किया गया। शोधकर्ताओं ने दोनों समूहों के किसानों से फ़सल के दौरान  चार-पांच बार बात की। ये बातचीत खेती से जुड़े उनके फ़ैसले को समझने को लेकर थी। जैसे कि किसान एसएमएस पर मिल रही सूचनाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं या नहीं। सूचनाएं मिलने वाले समूह और बिना सूचना वाले समूह के फ़ैसलों में क्या अंतर है!

कितनी कारगर है मौसम से जुड़ी सरकारी सलाह

इस अध्ययन के नतीजे शोधकर्ताओं के लिए चौंकाने वाले रहे। फ़सल चक्र को लेकर जारी एडवाइजरी का किसानों पर सकारात्मक असर देखा गया। लेकिन मौसम से जुड़ी पूर्वसूचना के साथ सिंचाई को लेकर दी गई सलाह का बहुत असर नहीं रहा।

एक्सपेरिमेंटल ग्रुप को दी जा रही एग्रोमेट एडवाइजरी को तीन तरीकों से परखा गया। पहला, फसल चक्र के लिहाज़ से किसानों को सिंचाई, खाद और खरपतवार नाशक को लेकर दी गई सलाह कितनी कारगर रही? दूसरा, मौसम के लिहाज़ से दी गई जानकारी का किसानों ने कितना इस्तेमाल कियातीसरा, क्या बारिश की पूर्व-सूचना मिलने पर किसानों ने सिंचाई में इसे आजमाया?

दो साल, 2016-17 और 2017-18 के आंकड़ों की तुलना कर निष्कर्ष निकाला गया।

खेतों की साफ-सफाई और खरपतवार हटाने से जुड़े कार्य में एक्सपेरिमेंटल ग्रुप और कंट्रोल ग्रुप के किसानों के बीच औसतन तकरीबन 9 दिनों (-8.41 दिन) का फर्क रहा। कृषि कार्य के लिहाज से यह उल्लेखनीय अंतर है। वहीं खाद के इस्तेमाल में दोनों समूहों के बीच औसतन तकरीबन 3 दिन (-2.54) का अंतर रहा।

हरियाणा के किसान राजकुमार सिंह का खेत। हरियाणा के किसानों पर एक अध्ययन किया गया और राजकुमार सिंह उस अध्ययन के हिस्सा रहे हैं। तस्वीर- राजकुमार सिंह
हरियाणा के किसान राजकुमार सिंह का खेत। हरियाणा के किसानों पर एक अध्ययन किया गया और राजकुमार सिंह उस अध्ययन के हिस्सा रहे हैं। तस्वीर- राजकुमार सिंह

इस अध्ययन में सिंचाई के आंकड़े भी पता किये गए। जैसे बुवाई के 22 दिन बाद पहली सिंचाई की एडवाइजरी पर दोनों समूहों के किसानों के बीच औसतन 2 दिन का अंतर रहा। बुवाई के 45 दिनों बाद दूसरी सिंचाई में दोनों समूहों में औसतन 5 दिन  का अंतर रहा। जबकि बुवाई के 60 दिनों बाद तीसरी सिंचाई के समय में दोनों समूहों में औसतन 9 दिन  का अंतर रहा।

मौसम के आधार पर जारी की गई एसएमएस एडवाइजरी में सिंचाई के मामले में दोनों समूहों के फ़ैसलों में ज्यादा फर्क देखने को नहीं मिला।

साथ किसानों की उपज पर भी इस एसएमएस एडवाइजरी कोई उल्लेखनीय असर नहीं पाया गया। डॉ उपासना के मुताबिक हमें एक्सपेरिमेंटल और कंट्रोल ग्रुप के किसानों की उपज में ज्यादा अंतर देखने को नहीं मिला। लेकिन एक्सपेरिमेंटल ग्रुप के किसानों की लागत और मेहनत इससे कुछ कम हुई।


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खेती की लागत का फैसले पर प्रभाव

आधार वर्ष यानी 2016-17 में ही दोनों ही समूहों के तकरीबन 67 फीसदी किसान बारिश की पूर्व सूचना पर खरपतवार नाशक का इस्तेमाल न करने की सलाह मान रहे थे। जबकि 85 फीसदी किसान बारिश की स्थिति में  खाद का इस्तेमाल न करने की सलाह मान रहे थे।

डॉ उपासना के मुताबिक कीटनाशक, खरपतवार नाशक और खाद महंगी होते हैं। बारिश के पानी में इनके धुलने का खतरा होता है इसलिए किसान इसे बर्बाद नहीं करना चाहता।

इसके विपरीत सिंचाई के मामले में मात्र 21 फीसदी लोगों ने एडवाइजरी के लिहाज से कार्य किया। सिंचाई से जुड़े फ़ैसले किसान अपने आसपास की मौजूदा स्थितियों के आधार पर ही ले रहे थे। जैसा कि किसान राजकुमार सिंह ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में बताया।

इनके अनुसार, अगर हमें 48 घंटे पहले बारिश की सूचना मिल गई है, तो ट्यूबवेल चलाकर खेत में पानी नहीं डालेंगे क्योंकि इससे इनका डीज़ल और बिजली बिजली का खर्च बचेगा। लेकिन अगर नहर का पानी मिल रहा होगा जो कि 40 दिन में एक हफ्ते भर के लिए ही खुलती है, तो बारिश की सूचना मिलने के बाद भी ये उससे खेत की सिंचाई करेंगे।

 

बैनर तस्वीरः खेतों की तरफ जाते उत्तराखंड के देहरादून के एक किसान। तस्वीर- वर्षा सिंह

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