- दामोदर नदी हाल ही में दो कारणों से चर्चा में थी- प्रदूषण और पश्चिम बंगाल में बाढ़। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर राज्य में आई बाढ़ के लिए बिजली कंपनी दामोदर वैली कॉरपोरेशन को जिम्मेदार ठहराया।
- दामोदर नदी झारखंड और पश्चिम बंगाल में लाखों लोगों की जीवन रेखा है। यह नदी भारत के कुछेक खनिज संपन्न क्षेत्र से होकर गुजरती है और नदी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। अत्यधिक प्रदूषण के रूप में।
- डीवीसी न बाढ़ रोकने में सक्षम हो पा रहा है और इसकी वजह से जो प्रदूषण हो रहा है सो अलग। केंद्र की गठित एक समिति ने कहा था कि डीवीसी जलाशयों में गाद का जमाव इतनी तेजी से हो रहा है कि एक दशक बाद ये बांध, भीषण बाढ़ को नहीं रोक पाएंगे।
दामोदर नदी, झारखंड और पश्चिम बंगाल के करोड़ों लोगों के लिए जीवनरेखा है पर इसे बंगाल के शोक के तौर पर जाना जाता है। दशकों से इस पर काम होने के बावजूद भी इसके आस-पास रहने वाले लोगों का शोक कम नहीं हो रहा है। बस उसके रूप बदल रहे हैं।
छोटा नागपुर की पहाड़ियों से निकलने वाली और हुगली नदी में जाकर मिल जाने वाली यह नदी आजकल प्रदूषण और बाढ़ की वजह से पुनः सुर्खियों में है।
हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) की चंद्रपुरा इकाई द्वारा दामोदर में प्रदूषण फैलाने के मामले को लेकर 1.69 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। उधर पश्चिम बंगाल में आए बाढ़ में छः जिले बुरी तरह प्रभावित हुए तो वहन की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर डीवीसी पर कई आरोप लगाए।
विडंबना यह है कि डीवीसी बाढ़ नियंत्रण के लिए ही अस्तित्व में आया था। आजादी के पहले के दिनों में इस नदी की वजह से पश्चिम बंगाल में अक्सर बाढ़ आया करती थी और जान-माल की व्यापक क्षति होती थी। ऐसी ही एक भीषण बाढ़ 1943 में आई और सरकार के खिलाफ स्थानीय लोगों को गुस्सा बढ़ा। इसे देखते हुए बंगाल सरकार ने दामोदर बाढ़ जांच समिति के नाम से एक बोर्ड का गठन किया। इस बोर्ड के सुझाव पर देश की आजादी के तुरंत बाद 1948 में दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) की स्थापना संसद में डीवीसी एक्ट पारित कर की गयी।
इधर बाढ़ की तीव्रता इत्यादि में कमी जरूर आई है पर नदी से होने वाले शोक में कोई कमी नहीं दिखती। इसकी वजह है, नदी का प्रदूषण।
दामोदर नदी के प्रदूषण का लंबा इतिहास
दामोदर अपने उदगम बिंदु के आस-पास अपनी पवित्रता एवं स्वच्छता के कारण देवनद भी बुलाया जाता है। यह नदी देश के कुछेक खास खनिज संपन्न क्षेत्र से होकर गुजरती है। ये खनिज झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के लिए तो वरदान है पर यहां होने वाली खनन की गतिविधियों की वजह से, नदी और आस-पास रह रहे लोगों के लिए अभिशाप साबित हो रहा है।
दामोदर नदी झारखंड के साथ जिले- लोहरदगा, लातेहार, रांची, चतरा, रामगढ़, धनबाद और पश्चिम बंगाल के पांच जिले- बांकुरा, पुरुलिया, बर्धमान, हावड़ा और हुगली से होकर गुजरती है। अपने उद्गम से शुरू होकर हुगली नदी में मिलने से पहले यह नदी 547 किलोमीटर की यात्रा पूरी करती है। इस नदी का कैचमेंट क्षेत्र 23,370.98 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इस नदी में होने वाले जल प्रदूषण से ढाई करोड़ लोगों प्रभावित हो सकते हैं।
नदी की राह में कोयला खदानों, कोल वाशरियों, ताप एवं पन बिजली उत्पादन इकाइयों, स्टील प्लांट, उर्वरक, सीमेंट व रासायनिक कारखानों की भरमार है। इनसे निकल कचरा इस नदी को भयंकर रूप से प्रदूषित करता है।
जैसे, 1990 में बोकारो स्टील लिमिटेड के प्लांट से तेल का बहाव हुआ, जिसका संज्ञान अधिकारियों ने चार दिन बाद लिया। तब तक यह कचरा बहकर 150 किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर तक पहुंच गया था और इस दूषित जल को पचास लाख लोगों ने पी लिया था। अनेकों बीमार हो गए थे।
इसी तरह दो साल पहले यानी 2019 में चंद्रपुरा थर्मल पॉवर प्लांट से 13 अक्टूबर 2019 को 41 घंटे तक फर्निश ऑयल का बहाव दामोदर नदी में होता रहा। दामोदर बचाओ आंदोलन के संयोजक प्रवीण कुमार सिंह ने इस मामले की शिकायत एनजीटी में की और जांच के बाद डीवीसी पर कुल 1,640,8000 रुपये का जुर्माना लगा।
इस नदी में प्रदूषण के लिए फ्लाई ऐश (उद्योगों से निकली राख) भी एक बड़ी वजह है। 12 सितंबर 2019 को बोकारो थर्मल पॉवर प्लांट का फ्लाई एश पाउंड टूट गया था, जो बड़े स्तर पर प्रदूषण की वजह बना। जांच में पाया गया कि वह फ्लाई ऐश पाउंड न तो स्वीकृत योजना के अनुरूप बना था और न ही उसके अनुरूप उसका रखरखाव होता था। इस मामले में भी एनजीटी ने 2.89 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया।
ये अतिरेक घटनाएं नहीं हैं। हाल में ऐसे कई अध्ययन हुए हैं जिनसे दामोदर नदी में अत्यधिक प्रदूषण का पता चलता है।
मसलन, वर्ष 2012 में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ। इसमें कहा गया कि इस नदी का पानी पीने के योग्य नहीं है। नहाने के लायक भी नहीं। इस अध्ययन का निष्कर्ष था, “इसमें नहाने या इसके पानी पीने से लोगों को चर्म रोग या आंत की बीमारियाां हो सकती हैं।”
हाल ही कोविड-19 के बाद लगे लॉकडाउन के दामोदर नदी पर होने वाले असर को समझने के लिए एक अध्ययन किया गया। इसका निष्कर्ष था, “लॉकडाउन के पहले जल प्रदूषण इंडेक्स से पता चलता है कि सौ फीसदी सैम्पल प्रदूषित थे। लॉकडाउन के बाद 90 फीसदी सैम्पल को स्वच्छ पाया गया और महज 9.10 फीसदी सैम्पल ‘कुछ हद’ तक प्रदूषित थे।” इससे नदी के प्रदूषित होने में उद्योगों की भूमिका स्पष्ट होती है।
मोंगाबे-हिन्दी से बात करते हुए नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी दुर्गापुर के सेंटर फॉर रिसर्च ऑन इनवायरनमेंट एण्ड वाटर से जुड़े एशोसिएट प्रोफेसर हिरोक चौधरी कहते हैं कि दामोदर नदी अत्यधिक प्रदूषित है और इसका पानी इंसानों के इस्तेमाल के लायक नहीं है। अपने एक अध्ययन का जिक्र करते हुए चौधरी कहते हैं कि नदी के ऊपरी हिस्से में सिंघभूम पड़ता है जहां यूरेनियम इत्यादि के खान मौजूद हैं। पूरी संभावना है कि इसकी वजह से नदी भी रेडियोऐक्टिव पदार्थ से प्रदूषित हो। “हमलोग इसको लेकर एक अध्ययन कर रहे हैं और हमारा डर सही साबित हो रहा है,” चौधरी कहते हैं। यह अध्ययन अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है।
उधर इस नदी में बढ़ते प्रदूषण को लेकर पर्यावरण कार्यकर्ता एवं राजनेता सरयू राय ने पिछले ही महीने केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह से शिकायत की थी कि बोकारो स्टील लिमिटेड जीरो डिस्चार्ज के वादे से मुकर गया है और उसका जहरीला पानी अब भी दामोदर नदी में प्रवाहित किया जा रहा है। राय के अनुसार, बोकारो स्टील लिमिटेड ने 2018 में अपना एक नाला बंद कर दिया था, जबकि दिसंबर 2019 तक दूसरे नाले से भी जीरो डिस्चार्ज का वादा किया।
डीवीसी की भूमिका पर सवाल
डीवीसी की स्थापना का मूल उद्देश्य बाढ़ नियंत्रण था। सिंचाई, बिजली उत्पादन व नौवहन इसके अन्य प्रमुख उद्देश्य थे। अब डीवीसी एक ऊर्जा उत्पादक कंपनी बन गया है। दामोदर घाटी क्षेत्र में डीवीसी के सात ताप विद्युत संयंत्र (थर्मल पावर प्लांट) व दो जल विद्युत संयंत्र हैं।
सरयू राय ने मोंगाबे हिंदी से बात करते हुए आरोप लगाया कि डीवीसी अपने गठन के मूल्य उद्देश्य से भटक गया है और वह एक ऊर्जा उत्पादक कंपनी बन गया है। 1948 में जब एक्ट बना था तो उसमें जिक्र था कि जो दामोदर नदी को प्रदूषित करेगा उसे दंडित करने का काम डीवीसी का होगा। लेकिन अब वह खुद प्रदूषण में शामिल है।
और पढ़ेंः बॉक्साइट खनन से सूख रही छत्तीसगढ़ और झारखंड की बुरहा नदी, भेड़ियों के एक मात्र ठिकाने पर भी खतरा
सरयू राय के अनुसार, डीवीसी इस बात के लिए राजी हुआ था कि वह दामोदर नदी में अपशिष्ट का प्रवाह शून्य करेगा, इसके लिए सीवेज प्लांट भी लगाएगा। चंद्रपुरा थर्मल प्लांट ने इन चीजों के लिए टेंडर भी निकाला, लेकिन फिर उसका क्या हुआ पता नहीं।
स्वास्थ्य से प्रभावित लोगों का कोई आंकड़ा नहीं
कहने की जरूरत नहीं कि इस तरह के प्रदूषण से आम लोग प्रभावित हो रहे होंगे पर इसकी तीव्रता समझ में तब आएगी जब इसको लेकर कोई अध्ययन होगा।
पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था लाइफ के ट्रस्टी व डीवीए को तकनीकी सहयोग देने वाले राकेश कुमार सिंह ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, दामोदर झारखंड की जीवन रेखा है, यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर राज्य के लोगों के जीवन को प्रभावित करती है। उद्योगों का फ्लाई ऐश जाने के कारण जहरीले पदार्थ व हैवी मैटल भी नदी में मिलता है जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। इस पानी में क्लोरीन या ब्लीचिंग डालकर उसके हानिकारक तत्वों को नष्ट नहीं किया नहीं जा सकता।
सिंह कहते हैं कि सरकार हेल्थ स्टडी नहीं करवाती हैं और उद्योग लोगों की गरीबी व जागरूकता के अभाव का बेजा लाभ लेते हैं।
झारखंड में पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था युगांतर भारती के सचिव आशीष शीतल कहते हैं कि प्रदूषण से लोगों को शारीरिक और आर्थिक क्षति हो रही है।
सबकी राय है कि इस प्रदूषण से होने वाले प्रभाव का वृहत्तर अध्ययन होना चाहिए।
बाढ़ रोकने में कितनी कारगर दामोदर नदी घाटी परियोजना?
इस साल जुलाई के आखिरी दिनों एवं अगस्त के शुरुआत में भारी बारिश के बाद जब पश्चिम बंगाल के आधा दर्जन जिलों में बाढ़ आयी तो राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बिफरते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा और इस बाढ़ के लिए दामोदर घाटी निगम को जिम्मेदार ठहराया. इस बाढ़ में 15 लोगों की मौत हो गयी और छह जिलों के तीन लाख लोग विस्थापित हुए।
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ने लिखा कि पश्चिम बंगाल व झारखंड दोनों ओर बैराज एवं बांधों के माध्यम से बाढ नियंत्रण प्रणाली बहुत पुरानी हो चुकी है। गाद जमने और रख-रखाव की कमी के कारण दामोदर नदी की जल धारण क्षमता भी कम हो गयी है। हालांकि, डीवीसी ने इस आरोप का जवाब यह कह कर दिया कि वह राज्य सरकार की सहमति लेकर ही पानी छोड़ता है। साथ में यह भी कहा कि दामोदर घाटी जलाशय विनियमन समिति में राज्य के सिंचाई सचिव भी सदस्य होते हैं।
ममता बनर्जी ने डीवीसी पर जो आरोप लगाये उसकी एक पृष्ठभूमि है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन विभाग द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने साल 2013 में यह अनुमान व्यक्त किया था कि डीवीसी के मैथन एवं पंचेत जलाशयों से गाद हटाने में 3,500 करोड़ रुपये से अधिक का व्यय आएगा। विशेषज्ञ समिति का कहना था कि इन जलाशयों में गाद का जमाव इतनी तेजी से हो रहा है कि दोनों बांध एक दशक बाद भीषण बाढ को रोक नहीं पाएंगे। समिति का अनुमान था कि पंचेत में गाद की दर निर्धारित दर से छह गुणा और मैथन में नौ गुणा है। अगर गाद का जमाव इसी तीव्रता से बिना किसी रोक-टोक के जारी रहा तो 10 वर्षों में पंचेत अपनी जल संग्रहण क्षमता का आधा से अधिक और मैथन दो तिहाई से अधिक खो देगा।
यह संयोग है कि उस रिपोर्ट के आठ साल बाद इन्हीं दो जलाशयों के पानी के प्रवाह की वजह से पश्चिम बंगाल में बाढ़ आयी। हालांकि डीवीसी के एक पूर्व अधिकारी ने नाम का उल्लेख नहीं करने की शर्त पर कहा कि अगर पानी नहीं खोला जाएगा तो बांध टूटने से स्थिति और भयावह हो जाएगी। इनके अनुसार, पानी की सुचारू निकासी नहीं हो पाने की एक बड़ी वजह है, बंगाल में ड्रेन प्वाइंट पर अवैध बसवाट।
मोंगाबे हिंदी ने गाद की सफाई सहित प्रदूषण को लेकर दूसरे सवाल दामोदर घाटी निगम से मेल के जरिए पूछा और मुख्य जन संपर्क अधिकारी से इसके लिए फोन के माध्यम से संपर्क भी किया। संपर्क अधिकारी ने अन्य संबंधित अधिकारियों से जानकारी लेकर, अपेक्षित जवाब देने की बात कही। हालांकि उन सवालों का जवाब रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक तक नहीं आया है।
बैनर तस्वीरः छोटा नागपुर की पहाड़ियों से निकलकर दामोदर नदी हुगली नदी में जाकर मिलती है। प्रदूषण और बाढ़ की वजह से नदी काफी चर्चित रहती है। तस्वीर- राहुल सिंह